दो दिसंबर 1984 की वह रात दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदियों में से एक के रूप में पत्थर की लकीर की तरह लोगों के जेहन में दर्ज हो गई है. भोपाल के आदमी, औरतें और बच्चे उस रात पुराने शहर की सड़कों-गलियों में बचाव के लिए भागते-फिरते रहे क्योंकि अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड के कीटनाशक संयंत्र से जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का एक बादल घुमड़ आया था. आंखों में जलन, सांस लेने में बेचैनी, जी मिचलाने और पेट में ऐंठन की शिकायतें इतनी ज्यादा थीं कि मध्य प्रदेश की राजधानी की साधारण चिकित्सा व्यवस्था कुछ ही घंटों के भीतर चरमरा गई.
सुबह होते-होते हजारों लोग मर चुके थे और लाखों लोग ऐसी बीमारी की चपेट में आ गए थे जो जिंदगी भर उनके साथ रहने वाली थी. चार दशक बाद, पीड़ित और उनके परिवार अभी भी कई मोर्चों पर अपनी लड़ाई के अंजाम पर पहुंचने का इंतजार कर रहे हैं. कानूनी जवाबदेही, पर्यावरणीय सफाई और पुनर्वास के मसले अभी भी बाकी हैं. कई लोग तो यह उम्मीद भी गंवा चुके हैं कि कभी उनको न्याय भी मिलेगा. कानूनी जवाबदेही का नामोनिशान नहीं है.
सालों की अदालती देरी के बाद 2010 में आठ आरोपियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 304ए (लापरवाही के कारण मौत), 336, 337, 338 और 35 के तहत दोषी करार दिया गया और दो साल की जेल की सजा सुनाई गई लेकिन सभी को तुरंत जमानत पर रिहा कर दिया गया. तब से चार दोषी मर चुके हैं. मामला भोपाल के जिला न्यायाधीश की अदालत में चल रहा है जिसमें केंद्रीय जांच ब्यूरो अभियोजन एजेंसी है.
इस बीच, पर्याप्त चिकित्सा राहत के लिए संघर्ष की भी ऐसी ही निराशाजनक कहानी है. राज्य सरकार ने खासतौर पर गैस पीड़ितों के लिए अस्पताल और क्लिनिक बनाए. इसके अलावा भोपाल गैस त्रासदी राहत और पुनर्वास विभाग बनाया. 1991 में सुप्रीम कोर्ट ने यूनियन कार्बाइड को 500 बेड का आधुनिकतम अस्पताल बनाने का आदेश दिया जिसके फलस्वरुप भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल ऐंड रिसर्च सेंटर (बीएमएचआरसी) बना लेकिन सिर्फ 350 बेड के साथ.
पीड़ित बताते हैं कि इस अस्पताल के लिए आवंटित संसाधनों में बहुत ज्यादा कटौती कर दी गई है. कार्सिनोमा (एक तरह का कैंसर) और किडनी रोग जैसी बीमारियों का मुफ्त इलाज, जिसकी कभी गारंटी दी गई थी, को अब आयुष्मान भारत योजना से जोड़ दिया गया है जिससे त्रासदी से बचे लेकिन बीमार लोगों के लिए पहुंच पेचीदा हो गई है. बीएमएचआरसी में कभी देश के कुछ सर्वश्रेष्ठ डॉक्टर हुआ करते थे पर अब वहां से काफी तादाद में विशेषज्ञ छोड़कर निजी अस्पतालों में चले गए हैं जिससे इसका भविष्य डांवाडोल हो गया है.
त्रासदी के कारण पर्यावरण से जुड़े खतरे झीलों के शहर को लगातार त्रस्त किए हुए हैं. हाल ही में राज्य सरकार ने 126 करोड़ रुपए की केंद्रीय सहायता के साथ यूनियन कार्बाइड संयंत्र स्थल पर पड़े 336 टन जहरीले कचरे को जलाने का फैसला किया. कार्यकर्ताओं की दलील है कि यह उपाय नाकाफी है. इससे सिर्फ 0.028 फीसद कचरा ही नष्ट हो सकेगा जबकि वहां 12 लाख टन जहरीली सामग्री पड़ी हुई है. गैस त्रासदी के शिकार लोगों के लिए काम करने वाले संगठन भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन ऐंड ऐक्शन की रचना धींगरा कहती हैं, "इस निबटान से भोपाल के लोगों की मदद नहीं होने जा रही क्योंकि यह साइट पर पड़ी जहरीली सामग्री का महज छोटा-सा अंश है. हमारी मांग है कि इस कचरे की गहराई और फैलाव तय करने के लिए व्यापक वैज्ञानिक सर्वेक्षण कराया जाए जिससे पता चल सके कि यह कितना जहरीला है."
इस प्रदूषण के गंभीर नतीजे पहले से ही दिख रहे हैं. कार्यकर्ता सरकार और नेशनल एन्वायरनमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) समेत स्वतंत्र संस्थाओं के 17 अध्ययनों के हवाले से जोर देकर कहते हैं कि भूमि और भूमिगत जल दोनों दूषित हो चुके हैं, खासतौर से संयंत्र के सौर वाष्पीकरण तालाब की दीवारें टूटने और बिना दीवारों वाली 29 पिट्स के कारण. इस कचरे को 2013 और 2015 के बीच ठिकाने लगाने की कोशिशें छह बार नाकाम हुईं जिससे यहां के निवासियों के लिए पर्यावरण का नया जोखिम और खड़ा हो गया है.
पुनर्वास के टूटे वादों ने बचे हुए लोगों के संघर्ष को और ज्यादा तोड़ दिया है. कार्यकर्ता गैस पीड़ितों को रोजगार उपलब्ध कराने के सरकार के और स्वतंत्र एजेंसियों की ओर से सत्यापित दावों के बीच अंतर बताते हैं. कई बचे हुए लोग अपने आप को अलग-थलग महसूस करते हैं क्योंकि उनकी दीर्घावधि स्वास्थ्य और आर्थिक चुनौतियां दूर करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए गए. इस धरती पर हुए सबसे जानलेवा औद्योगिक हादसों में से एक अभी भी उनकी जिंदगी में साए की तरह चिपका हुआ है.
इंसाफ का इंतजार
चालीस साल बाद भोपाल गैस त्रासदी से हुए बड़े पैमाने पर जानो-माल के नुक्सान, दावे, मुआवजे में कमी, मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर और इंसाफ के लिए अब भी जारी संघर्ष पर एक नजर
मौत
15,342*
> दावा: 22,151
> मुआवजा पाने वाले: 5,479**
> मुआवजे की रकम: 10 लाख रुपए
> कुल खर्च: 547.9 करोड़ रुपए
*मध्य प्रदेश सरकार; और **भारत सरकार के मुताबिक
स्थायी विकलांगता
> दावा: 3,252
> मुआवजा पाने वाले: 3,241
> मुआवजे की रकम: 5 लाख रुपए
> कुल खर्च: 162 करोड़ रुपए
मामूली रूप से प्रभावित
> दावा: 9,64,774
> मुआवजा पाने वाले: 5,21,350
> मुआवजे की रकम: 50,000 रुपए
> कुल खर्च: 2,606.75 करोड़ रुपए
अस्थायी विकलांगता
> दावा: 33,691
> मुआवजा पाने वाले: 33,672
> मुआवजे की रकम: 1 लाख रुपए
> कुल खर्च: 336.72 करोड़ रुपए
मुआवजे 1993 और 2011 के बीच दिए गए
दोषी साबित
8 अभियुक्तों की संख्या जिन्हें दो साल कैद की सजा मिली लेकिन जल्दी ही जमानत पर रिहा हो गए. सीबीआइ की चार्जशीट में 12 नाम हैं (नौ व्यक्तियों और 3 कंपनियों के)
दावों के लंबित मामले
952 मामले अतिरिक्ति कल्याण आयुक्त के पास
522 मामले कल्याण आयुक्त की रिवीजनल कोर्ट में
18 मामले हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में
11,278 कैंसर मरीजों की संख्या, जिन्हें एक्स-ग्रेशिया मिला
1,855 जानलेवा किडनी रोगियों की संख्या, जिन्हें एक्स-ग्रेशिया मिला
47 करोड़ डॉलर यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन ने 1989 में दिया
मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर
7* अस्पतालों की संख्या
1,014 बिस्तरों की संख्या
98 डिस्पेंसरी की संख्या
*350-बिस्तरों वाले भोपाल मेमेरियल हॉस्पिटल ऐंड रिसर्च सेंटर समेत