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आंध्र प्रदेश: नायडू सरकार ज्यादा बच्चों को लेकर क्यों संजीदा हो गई?

नायडू इस कदर गंभीर हैं कि कानून बदलकर उन्हीं प्रत्याशियों से चुनाव लड़वाना चाहते हैं जिनके दो या दो से ज्यादा बच्चे हैं

मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू
मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू
अपडेटेड 17 दिसंबर , 2024

आंध्र प्रदेश सरकार ने 30 साल पुराना वह नियम ही निरस्त कर दिया है, जिसके तहत ग्राम पंचायत, मंडल प्रजा परिषद और जिला परिषद जैसे स्थानीय निकायों के चुनाव लड़ने वालों के लिए दो बच्चों का मानदंड अनिवार्य था. विधानसभा ने 18 नवंबर को आंध्र प्रदेश पंचायत राज (संशोधन) विधेयक और आंध्र प्रदेश नगरपालिका कानून (संशोधन) विधेयक रद्द कर दिया. ये विधेयक देशभर में 1970 के दशक से व्यापक स्तर पर जारी परिवार नियोजन की पहल के तहत लाए गए थे.

पिछले तीन दशक में आंध्र प्रदेश में जनसंख्या वृद्धि दर में काफी तेजी से गिरावट आई है; दरअसल, 2021 तक यह घटकर महज 1.5 रह गई (जनसंख्या स्थिर रखने के लिए 2.1 की कुल प्रजनन दर को आदर्श माना जाता है). सरकार का कहना है कि इसका नतीजा जनसांख्यिकीय संरचना में असमानता के तौर पर सामने आएगा.

मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने हाल ही में अमरावती में एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान कहा, "अगर आपके दो से कम बच्चे होंगे तो जनसंख्या घटती जाएगी. हम पहले से ही कम हैं, काफी युवा विदेश पलायन कर रहे हैं और हमारे गांव खाली हो रहे हैं...हर किसी को जिम्मेदारी से काम करना चाहिए, न केवल अपने लिए बल्कि देश के लिए भी." वैसे, दो बच्चों का मानदंड 1994 में उस समय निर्धारित किया गया था जब नायडू अविभाजित आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. अपने नए रुख को लेकर तो वे इस कदर गंभीर हैं कि यह चाहते हैं केवल वे ही उम्मीदवार चुनाव लड़ पाएं जिनके दो या दो से ज्यादा बच्चे हैं.

दूसरे दक्षिणी राज्यों की तरह अगली परिसीमन प्रक्रिया (जो एक लंबे इंतजार के बाद 2025 में प्रस्तावित दशकीय जनगणना के बाद होनी है) में संसद में राज्य की सीटें घटने का अंदेशा है. दो-बच्चों के मानदंड के प्रभावों पर किए गए अध्ययन बताते हैं कि ऐसी नीतियों के अक्सर प्रतिकूल नतीजे ही सामने आते हैं, जिसमें महिलाओं के साथ भेदभाव बढ़ना और कन्या भ्रूण का जबरन गर्भपात शामिल है. उनका कहना है कि दो-बच्चों के मानदंड जैसे उपाय गरीबों पर असमान बोझ डालते हैं क्योंकि परिवार नियोजन उपायों तक उनकी पहुंच सीमित होती है.

पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्तरेजा यह मानती हैं कि "पुराना दृष्टिकोण (जैसे दो-बच्चों का मानदंड) खारिज किया जाना चाहिए", लेकिन वे नायडू के नजरिए से सहमत नहीं हैं. उनके मुताबिक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल जैसे दक्षिणी राज्यों ने शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और महिला सशक्तीकरण पर विशेष ध्यान देकर ही कम प्रजनन दर की स्थिति हासिल की है. मुत्तरेजा इसके साथ आगाह करती हैं, "महिलाओं से ज्यादा बच्चे पैदा करने का नायडू का आह्वान जनसंख्या स्थिरीकरण और महिला सशक्तीकरण की दिशा में दशकों की प्रगति को खतरे में डालने वाला है."

तो आगे का रास्ता क्या है? अधिक उम्र के लोगों को आर्थिक तौर पर सक्रिय रहने को प्रोत्साहित करना और राज्यों की ओर से मजबूत स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराना फायदे का सौदा हो सकता है. भारत की जनसांख्यिकीय विविधता को ध्यान में रखकर तैयार किए जाने वाले विकास कार्यक्रम भी आवश्यक हैं. मुत्तरेजा के मुताबिक, "अधिक उन्नत दक्षिणी राज्यों की नीतियां बढ़ती बुजुर्ग आबादी को ध्यान में रखने के साथ-साथ बच्चों की देखभाल संबंधी बुनियादी ढांचे को मजबूत करने और प्रवासी श्रमिकों के लिए उपयुक्त वातावरण बनाने पर केंद्रित होनी चाहिए."

जनसांख्यिकीय विविधता का इस्तेमाल करना एक उम्मीद जगाता है. विशेषज्ञों का मानना है कि प्रवासी आबादी को कौशल प्रदान करने और शिक्षित करने से ज्यादा संतुलित जनसंख्या वृद्धि हासिल करने में मदद मिल सकती है.

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