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एक मुकदमे ने कैसे बदल दी राष्ट्रपति पुरस्कार विजेता वीरेंद्र की जिंदगी?

गेट, ग्रिल और शटर की दुकान चलाने वाले वीरेंद्र कुमार सिन्हा के पड़ोसी ने उनके खिलाफ मुकदमा किया, जिसके बाद उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदल गई. अब उनके किए आविष्कार को देखते हुए राष्ट्रपति ने उन्हें पुरस्कृत किया है.

38th Anniversary/Technology se tarakki/ energy
वीरेंद्र कुमार सिन्हा
अपडेटेड 2 जनवरी , 2025

मोतिहारी शहर के एक मोहल्ले में गेट, ग्रिल और शटर जैसी चीजों का उद्यम चलाने वाले वीरेंद्र कुमार सिन्हा का जीवन एक मुकदमे ने बदल दिया. अपनी कहानी खुद बताते हुए वीरेंद्र कहते हैं, "उस जमाने में हमारे शहर में पावर कट काफी होता था. मजबूरन मुझे बड़ा जेनरेटर चलाना पड़ता था. उससे पोल्यूशन भी होता था. जहरीली हवा निकलती थी और शोर भी होता था. मैं समझता था, मगर कारोबार की मजबूरी थी. पड़ोसी इससे काफी परेशान होते थे."

उन्होंने आगे कहा, "एक पड़ोसी ने सिविल कोर्ट में मेरे खिलाफ मोहल्ले में प्रदूषण फैलाने का मुकदमा कर दिया. इस मुकदमे में अदालत ने मुझे निर्देश दिया कि या तो मैं प्रदूषण कम करने का रास्ता ढूंढूं या कारखाना मोहल्ले से बाहर ले जाऊं. इसी चक्कर में खोजते-खोजते मैंने यह उपकरण बनाया. उसी के चलते मेरे खाते में एक आविष्कार और राष्ट्रपति का पुरस्कार जुड़ गया.’’

वीरेंद्र कुमार सिन्हा का आविष्कार शायद आपने भी देखा होगा. किसी भी बड़े जेनसेट के ऊपर हाथी के सूंड़ जैसा पाइप लगा रहता है, जो बाइक के साइलेंसर जैसा होता है. इससे जेनसेट की आवाज तो काफी कम हो ही जाती है, जहरीली गैस का निकलना भी न्यूनतम हो जाता है.

वीरेंद्र को यह उपकरण बनाने में छह महीने लगे थे. वे यह परखने के लिए कि इससे ध्वनि और वायु प्रदूषण कितना कम हुआ है, दस फुट दूर से इसकी आवाज सुनते तो बहुत कम आवाज आती. आउटपुट के पाइप पर सफेद कागज या कपड़ा लगाकर देखते तो वह काला नहीं होता. इससे वे संतुष्ट थे कि उनकी समस्या सुलझ गई. मगर एक दिन उनकी इस खोज का पता राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान के स्वयंसेवक अजहर हुसैन अंसारी को चला.

फिर प्रतिष्ठान के इंजीनियरों ने इसकी जांच की. उसके बाद बीआइटी मेसरा में इसका परीक्षण हुआ. वहां से पास हो गया तो आखिर में इसकी जांच पुणे की एक लैब में हुई. वहां भी इसे सफलता मिली तो फिर इस खोज के लिए इन्हें राष्ट्रपति के हाथों राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला.

इसके बाद उनके पास ऐसी मशीन बनाने के लिए खूब मांग आने लगी. खास कर स्कूलों और अस्पतालों से. वे इसे बना-बनाकर देते थे, उनका रोजगार भी बढ़ रहा था. वीरेंद्र कहते हैं, ''दो-ढाई साल यह काम खूब चला. मगर फिर बिहार में बिजली की स्थिति बेहतर हो गई तो धीरे-धीरे मेरा काम घटने लगा.अब मैं इसे नहीं के बराबर बनाता हूं.’’

मगर इस घटना ने उनके जीवन को बदल दिया. अब उनके मोहल्ले के लोग उन्हें राष्ट्रपति के हाथों पुरस्कार पाने वाले व्यक्ति के तौर पर देखते हैं. अजहर हुसैन कहते हैं, ''भले ही वीरेंद्र जी का काम अब वैसा नहीं रहा, मगर बहुत सारे लोग इस प्रयोग की नकल कर जेनरेटर में ऐसे उपकरण खुद लगवा रहे हैं. यह खोज तो वीरेंद्र जी की ही है. पर्यावरण के क्षेत्र में यह उनका बड़ा योगदान है.’’ इस उपकरण का पेटेंट भी उनके पास है.

उनके इस उपकरण की तीन वेराइटी है. पहला तो पांच केवीए के जेनसेट का 1,500 रु. में आता है, जो घरेलू इस्तेमाल वाले जेनसेट के लिए है. दूसरा बड़ा 15-10 केवीए का, जो स्कूल या अस्पताल में लगता है और 3,500 रु. में आता है. 30 से 40 केवीए के इंडस्ट्रियल जेनरेटर के लिए उन्होंने एक बड़ा उपकरण बनाया है. अब तक उन्होंने ऐसे 1,500-1,700 उपकरण बनाए और बेचे हैं.

नवाचार
यह तकनीक कुछ-कुछ बाइक में लगने वाले साइलेंसर जैसी ही है. पहले पतली पाइप, फिर पाइप का आकार मोटा हो जाता है, जिसमें कार्बन और दूसरे प्रदूषक कण जमा होते हैं, फिर पतली-सी लंबी पाइप से हवा बाहर निकलती है. इस उपकरण से गुजरने से जहरीली हवा कमोबेश साफ हो जाती है और आवाज भी बहुत घट जाती है.

''मैंने लोगों की देखा-देखी यह पाइप अपने जेनरेटर में लगवा लिया. ब्याह-बारात में जब मैं जेनरेटर लेकर जाता था, तो लोग शोर और धुएं की शिकायत करते थे. अब यह दिक्कत दूर हो गई है.’’
- प्रदीप बर्णवाल, टेंट संचालक, मुजफ्फरपुर

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