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खेलों की दुनिया में क्या दूसरा 'हरियाणा' बन पाएगा बिहार?

राजगीर में महिला हॉकी की एशियन चैंपियंस ट्रॉफी के सफल आयोजन, खेल संरचनाओं के विकास और टैलेंट पूल को बढ़ाकर बिहार अब खेलों की दुनिया में छाने की तैयारी कर रहा. पर क्या उसे कामयाबी मिलेगी

बिहार के राजगीर में महिला हॉकी की एशियन चैंपियंस ट्रॉफी में चीन से फाइनल जीतने के बाद झूमती भारतीय टीम
बिहार के राजगीर में महिला हॉकी की एशियन चैंपियंस ट्रॉफी में चीन से फाइनल जीतने के बाद झूमती भारतीय टीम
अपडेटेड 11 दिसंबर , 2024

इसी नवंबर महीने का तीसरा बुधवार बिहार के खेल इतिहास का सुनहरा पन्ना था. एस्ट्रो टर्फ मैदान और अत्याधुनिक स्टेडियम में महिला हॉकी की एशियन चैंपियंस ट्रॉफी का सफल आयोजन हुआ. फाइनल में जब भारतीय टीम ने चीन को 1-0 से मात दी तो बिहारी दर्शक झूम उठे.

भारतीय हॉकी टीम की कप्तान सलीमा टेटे ने इस आयोजन के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का विशेष आभार जताया. सबसे ज्यादा खुश भारतीय महिला हॉकी टीम के कोच हरेंद्र कुमार थे, जो बिहार के सारण जिले के रहने वाले हैं. उनके शब्द थे, ''बिहार में खेल का माहौल बदल चुका है."

कुमार ने आगे कहा, "28 साल के कोचिंग करियर में मैंने हर दरवाजा खटखटाया कि बिहार में खेल का माहौल बदले, अच्छा आयोजन हो. मुझे नेशनल टूर्नामेंट की भी उम्मीद नहीं थी, आज इंटरनेशनल टूर्नामेंट हुआ. हर कोच का सपना होता है कि उसकी जन्मभूमि पर उसे कोई जीत मिले. आज मेरा सपना पूरा हो गया.''

इसी साल जनवरी में पटना के मोईनुल हक स्टेडियम में हुए रणजी मुकाबले में टूटे स्टेडियम और स्टैंड पर उगी घास की वायरल तस्वीरों से बिहार की खेल व्यवस्था का खूब मजाक उड़ा था. मगर राजगीर के इस भव्य आयोजन ने उस छवि को बदल दिया है. 

हरेंद्र कहते हैं, ''बिहार सरकार ने खिलाड़ियों को जितनी सुविधाएं देनी थी, दे दीं. अब खिलाड़ियों के हाथ में है कि वे इन सुविधाओं को अपने हक में कैसे इस्तेमाल करते हैं.''

राजगीर हॉकी स्टेडियम में ही जीत के बाद बिहार के ही पूर्व हॉकी खिलाड़ी और अभी पटना में हॉकी इंडिया से मान्यता प्राप्त हॉकी कोचिंग एकेडमी का संचालन कर रहे अजितेश राय कहते हैं, ''इस बदलाव के बाद मेरे जैसे कई और खिलाड़ी बिहार से निकलेंगे. कुछ साल में आपको बदलाव दिखने लगेगा.''

मगर क्या सचमुच बिहार में खेल का माहौल बदल रहा है? क्या सचमुच बिहार सरकार ने राज्य के खिलाड़ियों के लिए हर तरह के इंतजाम कर दिए हैं? क्या सचमुच कुछ साल में बिहार भी देश को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी दे पाएगा, जो मेडलों का टोटा खत्म कर देंगे?

इसी तरह के कुछ सवालों का जवाब तलाशने के इरादे से इंडिया टुडे राजधानी पटना के पाटलिपुत्र स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स पहुंचा तो वहां स्पोर्ट्स की किट टांगे आठ से सोलह साल के कई बच्चे अकेले या अपने अभिभावकों के साथ पहुंच रहे थे. अंदर फुटबॉल, बॉलीवॉल, बास्केटबॉल, कबड्डी और दूसरे कई खेल खेले जा रहे थे.

बास्केटबॉल ग्राउंड के ठीक पहले कई बच्चे एक अलग तरह का गेम खेलते नजर आए. इसमें एक अलग तरह की गेंद थी, जिसे बच्चे पैरों से हिट कर रहे थे. वहीं राज आर्यन मिले, जिन्होंने बताया, "इस गेम का नाम सेपक टाकरा है. यह मलेशिया का राष्ट्रीय खेल है. इसे पैरों से खेला जाता है. बैडमिंटन और वॉलीबॉल की तरह इसका भी कोर्ट होता है. दोनों टीमों में तीन-तीन खिलाड़ी होते हैं.''

पाटलिपुत्र खेल परिसर में बास्केटबॉल ​

राज आर्यन इस गेम में जूनियर लेवल पर बिहार टीम को रिप्रेजेंट करते हैं और कहते हैं कि मार्च में हुए नेशनल मुकाबले में उनकी टीम ने गोल्ड मेडल जीता है. एशियन गेम्स में भी इसे खेला जाता है. हम हमेशा देश में दिल्ली और मणिपुर के साथ टॉप थ्री टीम में रहते हैं. चूंकि इस गेम ने नेशनल गेम्स में बिहार के मेडल का टोटा खत्म किया है, इसलिए इस गेम को खेलने वालों की संख्या काफी अधिक दिखती है. इनमें लड़के और लड़कियां दोनों हैं. वहीं बॉबी और एक अन्य बिहारी खिलाड़ी मिलते हैं, जो सेपक टाकरा की नेशनल टीम में हैं.

बिहार ने सेपक टाकरा, रग्बी, वुशू और तलवारबाजी जैसे खेलों पर फोकस किया है. इसी वजह से 2023 के नेशनल गेम्स में बिहार ने दो मेडल लेकर राज्यों की टैली में एंट्री की थी. इस बार राज्य को नौ मेडल मिले और वह राज्यों की सूची में 20वें स्थान पर पहुंच गया.

उसी कॉम्पलेक्स में कबड्डी, बास्केटबॉल, वेटलिफ्टिंग और चेस खेलने वालों की भी भीड़ दिखती है. वेटलिफ्टिंग वाले हिस्से में अच्छा-खासा जमावड़ा है. वहां भोला मिलते हैं, जो वेटलिफ्टिंग में रिकॉर्ड होल्डर हैं और बिहार टीम के लिए नेशनल लेवल पर गोल्ड और सिल्वर मेडल जीत चुके हैं.

जहानाबाद जिले के एक चतुर्थ श्रेणी स्टाफ के बेटे भोला कम उम्र में ही भारी वजन उठा लेते थे, लोगों ने कहा तुमको वेटलिफ्टिंग करनी चाहिए. एक शिक्षक की मदद से उनका एडमिशन बिहार में खिलाड़ियों को प्रशिक्षित करने वाले संस्थान एकलव्य में हो गया. फिर वे आगे बढ़ते चले गए. मेडल मिला तो बिहार सरकार ने उन्हें सरकारी नौकरी भी दी.

वे कहते हैं, ''आज बिहार सरकार खिलाड़ियों को सुविधा देने के मामले में बेहतरीन है.'' बिहार सरकार ने हाल ही में 'मेडल लाओ, नौकरी पाओ' स्कीम शुरू की है. इस योजना में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीतने वाले खिलाड़ियों को सरकार सीधे नौकरी दे रही है. इस योजना के तहत राज्य सरकार अब तक 342 खिलाड़ियों को नौकरी दे चुकी है. 71 खिलाड़ियों को इसी वित्तीय वर्ष में नौकरी मिली है. इससे खेल का माहौल बेहतर हुआ है.

बिहार सरकार ने माहौल को बदलने के लिए तीन मोर्चों पर काम किया है. पहला इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास. इसके तहत राज्य के हर जिले में खेल भवन बने हैं. इसके अलावा एक खेल विश्वविद्यालय की भी स्थापना की गई है, जिसमें खेलों से जुड़े पेशेवरों के लिए तमाम विषयों की पढ़ाई होगी.

बिहार में खेलों का माहौल बदलने में रवींद्रण शंकरण की बड़ी भूमिका बताई जा रही है. बिहार सरकार ने उन्हें बिहार राज्य खेल प्राधिकरण का महानिदेशक बनाया है. मिलने के लिए पहुंचने पर वे पाटलिपुत्र स्पोर्ट्स कॉंप्लेक्स के अपने दफ्तर में सभी प्रमुख कोचों की बैठक ले रहे थे. उन्होंने साफ निर्देश दिए कि 20 दिसंबर तक उन सबको अपने खिलाड़ियों समेत राजगीर के नए खेल प्रशिक्षण परिसर में शिफ्ट हो जाना है.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राजगीर खेल अकादमी में निर्मित एथलेटिक ट्रैक का लोकार्पण करते हुए

उन्होंने इंडिया टुडे से बातचीत में कहा, ''हमारा फोकस अभी स्टेडियम बनाने पर नहीं है, हम प्रशिक्षण संस्थान खोलने पर ज्यादा जोर दे रहे हैं. स्टेडियम बना लें और आयोजन न हो तो पूरा इन्फ्रास्ट्रक्चर बेकार होने लगता है. राजगीर में भी जहां हॉकी चैंपियनशिप हुई, वह ट्रेनिंग के लिए ही बना है. हम अपने ट्रेनिंग के पूल को बड़ा करने की कोशिश में हैं. अगले कुछ वर्षों में हम 5,000-6,000 बच्चों पर मेहनत करना चाहते हैं, ताकि 2036 के ओलंपिक में बिहार का प्रदर्शन सम्मान करने लायक हो. अभी हमारा यही टारगेट है.''

बिहार सरकार ने 14 खेलों को अपनी प्राथमिकता सूची में रखा है. इनमें फुटबॉल, बैडमिंटन, चेस, रग्बी, वेटलिफ्टंग, वॉलीबाल, हॉकी, शूटिंग, साइक्लिंग, एथलेटिक्स, कबड्डी, सेपक टाकरा, कुश्ती और तलवारबाजी हैं. राज्य के 14 निगमों को अपने सीएसआर फंड से इन खेलों को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी दी गई है. इनमें सेपक टाकरा, कुश्ती, तलवारबाजी और रग्बी को बिहार सरकार ने शॉर्ट टर्म गोल के तौर पर रखा है, ताकि तत्काल मेडल का टोटा खत्म हो. दूसरे खेलों पर भी फोकस किया जा रहा है, ताकि लंबी अवधि में इन खेलों के भी अच्छे खिलाड़ी पैदा हों.

बिहार के सात खिलाड़ी विदेशों में राज्य सरकार के खर्चे पर प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं. 28 खिलाड़ियों को दूसरे राज्यों में बेहतर प्रशिक्षण के लिए भेजा गया है.

बिहार में खेलों के अलग-अलग प्रशिक्षण संस्थानों में अभी 2,500 के करीब खिलाड़ी प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं. सरकार अब इस संख्या को बढ़ाकर 5,000 तक करने की कोशिश में है. शंकरण कहते हैं, ''हम जल्द बिहार सरकार के मिडल स्कूलों में मशाल योजना के तहत टैलेंट हंट करने वाले हैं, जिससे हमें 2,500 नए खिलाड़ी मिलेंगे. हमारा टारगेट इन्हें 2032 और 2036 के मुकाबलों के लिए तैयार करना है.''

रवींद्रण शंकरण, महानिदेशक, बिहार राज्य खेल प्राधिकरण

शंकरण जिस खेल प्राधिकरण के महानिदेशक हैं इसका सालाना बजट 2022 में 30 करोड़ था, जो अब बढ़कर 680 करोड़ हो गया है. पटना और राजगीर के अलावा सीवान, पूर्णिया, जमुई और सहरसा जैसे राज्य के दूसरे जिले भी खेलों के सेंटर के रूप में उभर रहे हैं.

बिहार में खेलों के प्रशिक्षण से जुड़े कोच भी इस बदलाव से खुश हैं. सीनियर एथलेटिक्स कोच शख्स तौहीद कहते हैं, ''रवींद्रण शंकरण जैसे अधिकारी के आने से बड़ा बदलाव आया है. अब प्रैक्टिस ग्राउंड और किट की दिक्कतें नहीं के बराबर हैं.''

हालांकि तौहीद कहते हैं, ''हर खेल भवन और खेलो इंडिया के तहत बने संस्थानों में प्रशिक्षण अभी शुरू नहीं हुआ है. कई जगह सामान पड़ा है पर कोच न होने से उनका इस्तेमाल नहीं हो पा रहा. पूर्णिया में तो विश्वविद्यालय के कुलपति की जिद की वजह से हॉकी प्रशिक्षण की सुविधाएं खराब हो गईं. वे किसी को उसमें जाने ही नहीं देते थे.''

खेल प्राधिकरण के महानिदेशक शंकरण तौहीद की बात से सहमति जताते हुए कहते हैं, ''कोचों की कमी ही हमारी सबसे कमजोर कड़ी है.'' इसके बावजूद शंकरण निराश नहीं हैं. बढ़ती सुविधाएं, खिलाड़ियों के बढ़े आत्मविश्वास और नए खेलों की वजह से मेडलों की आमद ने उन्हें उत्साहित किया है. 

शंकरण अपने कमरे में टंगे इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन के उस पत्र को दिखाते हैं, जिस पर लिखा है कि एक समय बिहार के जाने-माने कोच मोईनुल हक इस संगठन के सचिव हुआ करते थे. वे कहते हैं, ''हमें उसी दौर को वापस लाना है. जब ए.पी.जे. अब्दुल कलाम राष्ट्रपति थे, तब बिहार की टीम नंगे पांव नेशनल गेम्स में खेलने गई थी. वह वक्त अब बीत चुका. हमने रास्ता ढूंढ लिया है, अब बिहार के खिलाड़ी खेलेंगे और खिलेंगे.''

ऐसे बदले हालात

> खेलों का अलग विभाग बना, खेल प्राधिकरण का गठन किया.

> राजगीर में 23 खेलों के प्रशिक्षण के लिए अत्याधुनिक सुविधाओं का विकास किया.

> हर जिले में खेल भवन खोले, वहां हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराईं.

> मेडल लाने पर 342 खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी दी.

> रग्बी, सेपक टाकरा, तलवारबाजी जैसे कम चर्चित खेलों पर फोकस ने बढ़ाई मेडल की टैली.

> भविष्य के लिए 5,000 खिलाड़ियों का पूल बना रहे. उनके रहने, खाने से लेकर प्रशिक्षण तक का हर इंतजाम सरकारी खर्चे पर.

> खेल बजट 30 करोड़ से बढ़ा, 680 करोड़ रु. किया.

> संभावनाशील खिलाड़ियों को सरकारी खर्चे पर प्रशिक्षण के लिए विदेश तक भेज रहे.

> एशियन महिला हॉकी चैंपियनशिप का आयोजन कर खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाया.

> बेहरतीन कोचों को जुटाने में जुटी है सरकार.

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