मणिपुर में पिछले साल मई में जब मैतेई और कुकी/जो जनजातियों के बीच कबीलाई हिंसा भड़की, तभी से असम सीमा के पास इंफाल से करीब 220 किलोमीटर दूरी पर स्थित जिरीबाम जिला अमन-चैन का टापू-सा बना हुआ था. खून-खराबे की वजह से मणिपुर साफ-साफ दो अलग इलाकों में बंट गया. मैतेई बहुल इंफाल घाटी और कुकी कब्जे वाले पहाड़ी जिलों के बीच नो मैन्स लैंड, जहां केंद्रीय बलों का पहरा रहा है.
ऐसे हालात में जिरीबाम बेहद नाजुक शरणस्थली की तरह खड़ा था, जहां मैतेई, कुकी-जो, नगा और अन्य समूहों की मिलीजुली आबादी है. लेकिन जून में अचानक एक कुकी युवा का शव मिलने पर कुकी समूहों ने हत्या के लिए मैतेई हथियारबंद गुटों को दोषी ठहराया. कुछ दिनों बाद एक मैतेई शख्स का शव मिला, जिसे कथित तौर पर कुकी समूह ने मार दिया. तब से जिरीबाम में भड़की हिंसा में लगभग दो दर्जन लोगों की जान जा चुकी है.
इस खून-खराबे की जड़ में जमीन और संसाधनों पर नियंत्रण की लड़ाई है. पिछले साल हिंसा उस वक्त भड़की जब मणिपुर अखिल आदिवासी छात्र संघ ने मणिपुर हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ एकजुटता मार्च का आयोजन किया था. हाइकोर्ट ने अपने फैसले में मैतेई लोगों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की सिफारिश की थी. दरअसल, हिंसक टकराव मणिपुर में सामाजिक खाई के चौड़ी होने का नतीजा है.
मैतेई बहुल इंफाल घाटी में राज्य की 53 फीसद आबादी है. यहां राज्य के कुल क्षेत्रफल की सिर्फ 11 फीसद जमीन है. लेकिन यही इलाका राजनैतिक ताकत रखता है, क्योंकि राज्य की कुल 60 विधानसभा सीटों में से 40 इसी इलाके में हैं. पहाड़ियों में रहने वाले आदिवासी समुदायों नगा (24 फीसद) और कुकी/जो (16 फीसद) हाशिए पर धकेले जाने का आरोप लगाते हैं. जमीन संबंधी कानून के मुताबिक, घाटी में रहने वाले गैर-आदिवासी लोग पहाड़ों में जमीन नहीं खरीद सकते. इसी प्रतिबंध को मैतेई लोग एसटी का दर्जा हासिल करके टालना चाहते हैं. पिछले एक साल में हिंसक टकरावों में करीब 200 लोगों की जान जा चुकी है और 60,000 से ज्यादा लोग बेघर हो गए हैं.
अपने-अपने इलाकों में सीमित दोनों समुदायों के बीच अब जिरीबाम जैसे साझा क्षेत्रों पर नियंत्रण की होड़ है. इसी जिले से गुजरने वाला एक राष्ट्रीय राजमार्ग मणिपुर को असम और बाकी देश से जोड़ता है और एक तरह से वह जीवन रेखा है. कुछ की यह दलील है कि जिरीबाम मिजोरम से सटा है, जहां की अधिसंख्य मिजो आबादी कुकी/जो आदिवासी समूह का ही हिस्सा है, इसलिए यह जिला कुकी लोगों की अलग प्रशासनिक इकाई की मांग के लिए अहम है.
मैतेई गुटों का इशारा एक गहरी राजनैतिक साजिश की ओर है. उनके मुताबिक, मिजोरम के मुख्यमंत्री ललदुहोमा ने अमेरिका में भारत, म्यांमार और बांग्लादेश में बिखरी आबादी को एकजुट करके कुकी/जो के लिए 'ईसाई राष्ट्र' की वकालत की और उसके फौरन बाद हिंसा भड़क उठी. मैतेई गुटों का तर्क है कि उससे सीमा पार के कुकी समूह जमीन हड़पने के लिए प्रेरित हुए.
हिंसा का ताजा चक्र 7 नवंबर को जिरीबाम के जैरावन गांव में हुई एक भयानक घटना के साथ शुरू हुआ. एक स्कूल शिक्षिका तथा तीन बच्चों की मां एक हमार महिला के साथ कथित तौर पर बलात्कार किया गया, उसकी हत्या कर दी गई और उसे आग के हवाले कर दिया गया. हमार दरअसल कुकी/जो समुदाय का एक उपसमूह है. कुकी गुटों ने इसके लिए मैतेई उग्रवादियों को दोषी ठहराया. कुकी गुटों ने हमला भी किया. 9 नवंबर को बिष्णुपुर में संदिग्ध कुकी उग्रवादियों ने एक मैतेई महिला की गोली मारकर हत्या कर दी.
दो दिन बाद, बोरोबेकरा पुलिस थाने और जिरीबाम के जकुराधोर में सीआरपीएफ कैंप पर हमले के दौरान सीआरपीएफ ने 10 संदिग्ध कुकी उग्रवादियों को मार गिराया. पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक, हथियारबंद उग्रवादी कुकी-बहुल चूड़ाचंदपुर और फेरजावल जिलों से आए थे. टकराव के दौरान पुलिस थाने के भीतर बने राहत शिविर से तीन महिलाएं और तीन बच्चे लापता पाए गए. असम की बराक नदी में 15 नवंबर को एक महिला और दो बच्चों के शव मिले. दो दिन बाद लखीपुर में और शव मिले. सभी पीड़ित एक ही मैतेई परिवार से थे.
इन हत्याओं के बाद इंफाल में हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. गुस्साई भीड़ ने तीन विधायकों के घरों में तोड़फोड़ की, जिनमें भाजपा विधायक तथा मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के दामाद आर.के. इमो के घर भी शामिल थे. इससे राज्य के राजनैतिक नेतृत्व और सरकार के प्रति लोगों की हताशा का पता चलता है.
इस बीच, एक प्रमुख कुकी/जो संगठन, इंडजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आइटीएलएफ) ने मैतेई गुटों पर जिरीबाम में पांच चर्च, एक स्कूल, एक पेट्रोल पंप और 14 आदिवासी घरों को आग लगाने का आरोप लगाया, जिससे तनाव और बढ़ गया. उसके बाद राज्य सरकार ने इंफाल घाटी के सात प्रभावित जिलों में इंटरनेट और मोबाइल डेटा सेवाओं को निलंबित कर दिया है, कर्फ्यू लगा दिया है और जिरीबाम सहित छह पुलिस थाना क्षेत्रों में सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (आफ्सपा) को फिर से लागू कर दिया है.
केंद्र ने सीआरपीएफ की 15 और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की पांच कंपनियों को तैनात किया है. इस प्रकार अतिरिक्त 7,000 जवान तैनात किए गए हैं. राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) तीन मामलों की जांच कर रही है: जिरीबाम में एक महिला की हत्या, सीआरपीएफ ठिकाने पर हमला और बोरोबेकरा में आम लोगों की हत्या.
लेकिन, सिविल सोसाइटी समूहों को भरोसा नहीं है. मैतेई नागरिक अधिकार समूह, मणिपुर एकता समन्वय समिति (सीओसीओएमआइ) के प्रवक्ता खुरैजम अथौबा कहते हैं, "राज्य के सभी प्रतिनिधियों और सभी विधायकों को एक साथ बैठकर इस संकट का हल निकालने के लिए निर्णायक कार्रवाई करनी चाहिए." मैतेई गुट आफ्सपा हटाने की मांग कर रहे हैं. कुकी गुटों ने कुकी-बहुल क्षेत्रों से सीआरपीएफ हटाने की मांग की है. इससे भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार को अपना एक सहयोगी गंवाना पड़ा है.
मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा के नेतृत्व वाली नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी) ने सरकार पर नाकाम रहने का आरोप लगाकर समर्थन वापस ले लिया है. बाद में एनपीपी ने कहा कि भाजपा बीरेन सिंह को हटा देती है तो समर्थन दिया जा सकता है. वैसे, एनपीपी के समर्थन वापस लेने से सरकार को कोई खतरा नहीं है क्योंकि 60 सदस्यीय विधानसभा में सत्तारूढ़ एनडीए के 46 विधायक हैं.
बीरेन सिंह को हटाने या राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग के बावजूद केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार मुंह सिले हुए है. आलोचकों के मुताबिक, बीरेन को हटाने से भाजपा को राजनैतिक गणित गड़बड़ाने का डर है. इंफाल घाटी में असर रखने वाले मैतेई नेता के नाते बीरेन सिंह भाजपा के लिए अपरिहार्य हैं.
राष्ट्रपति शासन लागू करना भी नई दिल्ली के सीधे राज की तरह देखा जा सकता है. उसके अलावा, भाजपा को साख खोने का डर है क्योंकि इससे उसकी सरकार की नाकामी जाहिर होगी. मणिपुर की म्यांमार और चीन के साथ सीमाओं की निकटता को देखते हुए, वहां अस्थिरता के रणनीतिक परिणाम हो सकते हैं. केंद्र कोई भी ऐसी कार्रवाई करने के बारे में सतर्क है जो विद्रोही समूहों को बढ़ावा दे या बाहरी हस्तक्षेप के लिए जगह बना सके.
केंद्र के खिलाफ नाराजगी की वजह यह है कि हिंसा शुरू होने के 16 महीने बाद भी प्रधानमंत्री मोदी ने राज्य का दौरा नहीं किया है; केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह खास कुछ नहीं कर पाए हैं. 6,500 से अधिक हथियार और गोला-बारूद लूट लिए गए लेकिन उसकी जब्ती पर खास कोई कार्रवाई नहीं हुई है.
मणिपुर में सिविल सोसाइटी समूह अपनी मांगों को लेकर मुखर रहे हैं. सीओसीओएमआइ जैसे मैतेई संगठनों ने कुकी उग्रवादियों के खिलाफ फौरन सैन्य कार्रवाई और आफ्सपा को हटाने की मांग की है, जिसके बारे में उनका दावा है कि इससे तनाव बढ़ा है. कुकी समूहों ने मैतेई बहुसंख्यकों के साथ सह-अस्तित्व की गुंजाइश न होने का हवाला देकर अलग प्रशासन की अपनी मांग को फिर से दोहराया है.
सवाल लगातार बड़ा होता जा रहा है. हिंसा के इस चक्र को कैसे तोड़ा जाए? इसका जवाब सिर्फ राजनैतिक इच्छाशक्ति में नहीं बल्कि प्रतिनिधित्व, संसाधनों और जातीय पहचान के गहरे मुद्दों को हल करने में है. तब तक जिरीबाम की लपटें लोगों की जिंदगियों और राज्य के ढांचे को तहस-नहस कर सकती हैं.
जिरीबाम: हिंसा का नया केंद्र
> मणिपुर में जातीय हिंसा का नया केंद्र जिरीबाम जिला, इंफाल से 220 किमी दूर असम सीमा के पास स्थित है
> यह एक जीवन रेखा के रूप में काम करता है, जिसके जरिए मणिपुर को असम और शेष भारत से जोड़ने वाला एक राष्ट्रीय राजमार्ग गुजरता है
> इस बहु-जातीय जिले में मैतेई, कुकी-जो, नगा और अन्य समूह रहते हैं
> साल भर चली हिंसा ने मणिपुर को कई हिस्सों में विभाजित कर दिया है: मैतेई-प्रभुत्व वाली इंफाल घाटी और कुकी-नियंत्रित पहाड़ियां, जो केंद्रीय बलों की ओर से संरक्षित नो मैन्स लैंड से अलग हैं
> दोनों समुदाय जिरीबाम जैसे साझा रणनीतिक क्षेत्रों पर नियंत्रण के लिए होड़ लगा रहे हैं
> मिजोरम से जिरीबाम की नजदीकी—जहां मिजो आबादी है, जो कुकी-जो समूह का हिस्सा हैं—कुकी समुदाय की ओर से एक अलग प्रशासनिक इकाई की मांग के लिए महत्वपूर्ण है
इंफाल में राजनेताओं के घर पर हमले से राज्य के राजनैतिक नेतृत्व और सरकार के प्रति लोगों की मायूसी के स्तर का अंदाजा लगता है
केंद्र सरकार के प्रति लोगों का गुस्सा इस बात से भी बढ़ गया है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले 16 महीने में हिंसा की आग में झुलस रहे मणिपुर का एक बार भी दौरा नहीं किया