भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का लखनऊ स्थित प्रदेश कार्यालय 23 नवंबर को सुबह से ही जोश से भरा नजर आया. यूपी की नौ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के नतीजों के शुरुआती रुझान आते ही भाजपा बढ़त बनाती दिखी तो बड़ी संख्या में कार्यकर्ता जमा हो गए और ढोल-ताशे पर थाप देकर अपनी खुशी जाहिर करने लगे.
दोपहर 3 बजे तक जब भाजपा की अगुआई वाले गठबंधन की सात सीटों पर जीत की पुष्टि हुई, तो उत्सव का माहौल एकदम चरम पर पहुंच चुका था. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के वहां पहुंचते ही कार्यकर्ताओं ने पटाखे फोड़कर जीत का जश्न मनाया और 'बंटेंगे तो कटेंगे’ नारा भी जोरदार ढंग से गूंजने लगा.
भाजपा की यह निर्णायक जीत योगी के नेतृत्व में बेहद सजगता से तैयार रणनीति का नतीजा है. पार्टी ने हालिया लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद अपनी खामियों पर कड़ा मंथन किया था. संगठनात्मक ताकत ने इस जीत में अहम भूमिका निभाई क्योंकि योगी और उनके ध्रुवीकरण वाले नारे दोनों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से हरी झंडी मिल गई थी.
भाजपा ने चार ओबीसी उम्मीदवार उतारकर जातिगत समीकरणों को साधा और ये सभी जीत गए. यहां तक कि 62 फीसद मुस्लिम आबादी वाले कुंदरकी निर्वाचन क्षेत्र में भगवा पार्टी ने 31 साल बाद जीत का परचम लहराया.
भाजपा का नैरेटिव हिंदू मतदाताओं को एकजुट करने पर केंद्रित था, वहीं इसे खतरा बताकर समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया अखिलेश यादव ने एकता पर केंद्रित नारा 'जुड़ेंगे तो जीतेंगे’ दिया. दरअसल, वे अपने पीडीए फॉर्मूले यानी पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों को जोड़ने की रणनीति के जरिए विविध मतदाताओं को साधना चाहते थे.
मगर इसने कोई खास असर नहीं दिखाया. कुल नतीजा यह रहा कि भाजपा अब 257 सीटों के साथ और मजबूत स्थिति में आ गई है, जिसने 2022 में 255 सीटें जीती थीं. वहीं, सपा के पास 403 सदस्यीय विधानसभा में 107 विधायक ही बचे हैं.
उपचुनावों का नतीजा संसदीय चुनाव नतीजों के बिल्कुल उलट है, जब भाजपा 2019 में जीती 62 लोकसभा सीटों के मुकाबले करीब आधी को गंवाकर महज 33 पर सिमट गई थी. वहीं, सपा-कांग्रेस गठबंधन यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से 43 पर जीत पाने में सफल रहा था. सपा के एक वरिष्ठ नेता ने माना कि नौ निर्वाचन क्षेत्रों में चार मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारकर पार्टी ने जाने-अनजाने गेंद भाजपा के पाले में डाल दी और इसने ध्रुवीकरण की उसकी कोशिश को और मजबूत ही किया.
सपा के साथ सीट बंटवारे पर बातचीत विफल रहने के बाद कांग्रेस चुनावी मैदान से एकदम गायब दिखी, और इसने इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इक्न्लूसिव अलायंस (इंडिया) को और कमजोर कर दिया.
लखनऊ के राजनीति विज्ञानी ब्रजेश मिश्र कहते हैं कि समन्वय की कमी साफ दिखी. इस जीत के बाद भाजपा का मनोबल बल्लियों उछल रहा है, वहीं विपक्ष के लिए जरूरी हो गया है कि 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले खामियों को दुरुस्त कर वह खुद को फिर संगठित करे.