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राजस्थान : लाखों हेक्टेयर जमीन बचाने, अदाणी की कंपनी के खिलाफ क्यों उतरे लोग?

राजस्थान के जैसलमेर में अदाणी की कंपनी को बिजली बनाने के लिए मिली भारी 'बंजर' जमीन. लेकिन ऐसी 'बंजर' जमीन को ओरण-गोचर जमीन घोषित कराने की मांग. प्रशासन-आंदोलनकारी आए आमने-सामने

जैसलमेर में ओरण का एक शिलालेख और एक कंपनी की लगीं पवनचक्कियां
जैसलमेर में ओरण का एक शिलालेख और एक कंपनी की लगीं पवनचक्कियां
अपडेटेड 11 दिसंबर , 2024

थार में सर्दी की आमद शुरू हो चुकी है लेकिन जैसलमेर जिले का बसिया क्षेत्र इन दिनों उबाल पर है. यहां प्रस्तावित अदाणी कंपनी के सोलर प्लांट के विरोध में बइया, गाले की बस्ती और मगरा गांव के लोग एक पखवाड़े से धरने पर हैं. कहानी में नया मोड़ उस वक्त आया जब बाड़मेर जिले के शिव क्षेत्र के विधायक रवींद्र सिंह भाटी आंदोलनकारियों के साथ आ डटे.

एक तबके का मानना है कि भाटी यहां अपनी राजनैतिक जमीन बनाने को ऐसा कर रहे हैं. पर्यावरणविद् सुमेर सिंह सांवता पिछले 15 साल से जैसलमेर जिले में ओरण यानी चरागाहों की जमीन बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. वे साफ कहते हैं, ''ओरण की लड़ाई किसी सियासी पार्टी की लड़ाई नहीं. ऐसे में इसे बचाने के लिए कोई भी नेता साथ आता है तो उसका स्वागत है.''

बइया ग्राम पंचायत के सरपंच पदम सिंह तुरंत इस पर जोड़ते हैं, ''मामला गोचर या ओरण का है ही नहीं. यहां जान-बूझकर बखेड़ा खड़ा किया जा रहा है. जहां कंपनी ग्रिड स्टेशन बना रही है वह हमारी खातेदारी जमीन है. भाटी अदाणी कंपनी पर दबाव बनाकर निजी स्वार्थ साधना चाहते हैं. बाड़मेर में चुनाव हारने के बाद अब वे जैसलमेर में संभावनाएं तलाश रहे हैं.''

पर भाटी आरोपों से कतई विचलित नहीं. वे कहते है, ''मैं यहां राजनीति करने नहीं बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत और जीवन के आधार ओरण को बचाने आया हूं. ओरण मल्टीनेशनल कंपनियों को दे दिए गए तो यहां के पशु-पक्षी, यहां के लोग कहां जाएंगे? एक ओर तो केंद्र और राज्य सरकार एक पेड़ मां के नाम लगाने का अभियान चला रही है, दूसरी ओर कंपनियां हजारों पेड़ काट रही हैं. प्रशासन जबरदस्ती से लोगों की आवाज दबाने का प्रयास कर रहा है जिसे किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.''

अदाणी कंपनी को लगता है कि विरोध बेवजह का है. उसके प्रतिनिधि आलोक चतुर्वेदी के शब्दों में, ''600 मेगावाट क्षमता का सोलर प्लांट लगाने के लिए सरकार ने हमें बंजर और बारानी किस्म की 5,280.58 बीघा जमीन आवंटित की है. 351 बीघा जमीन कंपनी ने लोगों से खरीदी है. निजी खातेदारी वाली उसी जमीन पर हम सब स्टेशन बना रहे हैं, ग्रामीण जिसका बेवजह विरोध कर रहे हैं."

अब जरा बइया गांव के इस मामले को समझते हैं. राज्य की पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार ने अदाणी बाड़मेर वन लिमिटेड को 600 मेगावाट क्षमता का सोलर प्लांट लगाने के लिए बइया, गाले की बस्ती और मगरा क्षेत्र में बंजर और बारानी किस्म की 5,280.58 बीघा जमीन दी थी. (यह कंपनी अदाणी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड की ही इकाई है). सरकारी रिकॉर्ड में बंजर इस जमीन को आवंटित करने का अधिकार कलेक्टर के पास था.

इसके अलावा अदाणी की कंपनी ने यहां 351 बीघा जमीन किसानों से सीधे तौर पर खरीदी या किराए पर ली है. किराए वाली जमीन के लिए तीनों गांवों के सैकड़ों किसानों को दो साल से 10,800 रुपए बीघा किराया दिया जा रहा है. तब से किसी ने भी जमीन आवंटन का विरोध नहीं किया लेकिन जब कंपनी ने गाले की बस्ती गांव के निजी खातेदारी की जमीन पर बिजली ट्रांसमिशन के लिए ग्रिड स्टेशन यानी स्विचयार्ड बनाने का काम शुरू किया तो ग्रामीण विरोध में आ खड़े हुए. यह जमीन कंपनी ने बइया गांव के खेत सिंह से खरीदी थी.

अदाणी की कंपनी को दी गई जमीन ओरण घोषित कराने की मांग करने वालों से निबटने पहुंची पुलिस

महीने भर पहले इस जमीन पर काम शुरू हुआ और 10-12 दिन बाद ग्रामीणों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. पुलिस और प्रशासन ने दखल दिया पर ग्रामीण नहीं माने. इस पर पुलिस ने 14 लोगों को हिरासत में ले लिया. इस पर विधायक भाटी बइया गांव पहुंचकर स्थानीय लोगों के धरने में आ जुटे. 9 नवंबर को हिरासत में लिए गए दो लोगों को पुलिस की जीप से जबरन नीचे उतार देने पर भाटी के खिलाफ भी झिनझिनियाली थाने में मामला दर्ज किया गया. उसके बाद से भाटी तो धरने पर नहीं आए हैं लेकिन ओरण बचाने के आंदोलन को लगातार समर्थन मिल रहा है. सोलर प्लांट का काम बंद पड़ा है. ग्रामीणों और प्रशासन के बीच तनाव की स्थिति है.

ग्रामीण इस मांग पर अड़े हैं कि सरकारी रिकॉर्ड में बंजर और बारानी इस जमीन को राजस्व रिकॉर्ड में ओरण घोषित किया जाए. पर प्रशासन के अपने तर्क हैं. जैसलमेर के अतिरिक्त कलेक्टर एम.आर. बगड़िया कहते हैं, ''अदाणी बाड़मेर वन प्राइवेट लिमिटेड को नियमानुसार जमीन आवंटित की गई है. पर ग्रामीण अब इसे ओरण घोषित करने की मांग कर रहे हैं जो कि गलत है.''

ओरण शब्द अरण्य से निकला है जिसका अर्थ है वनभूमि. पुराने समय में राजा-महाराजाओं, जमींदारों ने गांवों के नजदीक देवी देवताओं के मंदिर और पशुपालन के लिए जमीन दान की थी जिसे ओरण कहा जाता है. हरियाणा में ऐसी जमीन को तीरथवन, पंजाब में समाधि और गुरुद्वारा वन, असम में थान, मिजोरम में मावमुंड, सिक्किम में गुंपा, तमिलनाडु में कोकिलनाडु, हिमाचल और उत्तराखंड में देववन, महाराष्ट्र में देवराई और अरुणाचल में गुंपा कहा जाता है.

राजस्थान में ज्यादातर ओरण 600-650 साल पुराने हैं. जैसलमेर के पर्यावरणविद् पार्थ जगाणी कहते हैं, ''रेगिस्तान में पानी-चारे की जरूरत को देखते हुए पुरखों ने पशुओं के लिए ओरण और इंसानों के लिए तालाब-बेरियां बनवाए. ओरणों में पेड़ों के पत्ते तक तोड़ने की इजाजत नहीं. टूटकर गिरे फल और लकड़ियों को ही लोग अपने काम में ले सकते हैं.''

जैसलमेर के पूर्व महारावल वैरसी सिंह ने 610 साल पहले रासला, सांवता, अचला और भोपा गांवों के लिए 60,000 बीघे का ओरण देगराय माता के लिए संरक्षित किया था. यह करीब 5,000 ऊंट, 40,000 भेड़-बकरियों और लाखों प्रवासी पक्षियों के भोजन-विचरण का आधार है. जैसलमेर जिले में 300 से ज्यादा छोटे-बड़े ओरण हैं जिनमें से 4-5 ओरण की ही करीब 1.64 लाख बीघा जमीन राजस्व रिकॉर्ड में ओरण के रूप में दर्ज हुई है.

मारवाड़ क्षेत्र में आने वाले जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, पाली, जालौर और सिरोही जिलों के 10,000 गांवों में आज भी 3,000 से ज्यादा ओरण हैं जिनके अधीन लाखों बीघा जमीन आती है. पिछले कुछेक वर्षों में जैसलमेर जिले में करीब 9 लाख बीघा जमीन विंड, सोलर और सीमेंट कंपनियों को दी गई है.

ओरण बचाने की लड़ाई नई नहीं है. पिछले कई साल से जिले के विभिन्न इलाकों में सरकारी रिकॉर्ड में बंजर जमीन को ओरण मानकर राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज किए जाने की मांग चल रही है. पिछले एक दशक में इस संबंध में राज्य सरकार को 84 प्रस्ताव भेजे जा चुके हैं. इनमें से 4-5 प्रस्तावों को ही मंजूरी मिली है. बंजर जमीन को ओरण में रिकॉर्ड कराने के लिए शुरू हुए आंदोलनों के कारण ओरण की जमीन को राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज किए जाने की कवायद फिर से शुरू हुई है.

भू राजस्व अधिनियम 1956 की धारा 92 के तहत जैसलमेर जिले के जिन ओरणों को राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज किया गया है उनमें भादरिया माता (1.29 लाख बीघा), देगराय माता (30,000 बीघा), सलखा (13,000 बीघा), कुछड़ी (2,000 बीघा) छायण (7,000 बीघा) के ओरण शामिल हैं.

जैसलमेर जिले में मोकला, दीदू आसकंदरा, राजवा, बंभारा, मेघा बिंजोता, सवांगिया माता, पररामजी, पनोदर रामजी और नोख के ओरणों की करीब दो लाख बीघा जमीन अब तक राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज नहीं हो पाई है. इस वजह से यह बंजर-बारानी श्रेणी में शामिल है.

भारत में वनों की स्थिति का बयान करने वाली इंडिया स्टेट ऑफ फारेस्ट रिपोर्ट 2021 के अनुसार, राजस्थान में कुल 3.4 करोड़ हेक्टेयर जमीन में से सिर्फ 8 फीसद ही वनक्षेत्र के रूप में दर्ज है. उपग्रहों की मदद से किए जाने वाले डेटा संग्रह में पेड़ों से ढकी जमीन को ही वनक्षेत्र के रूप में मान्यता दी जाती है. रेगिस्तानी जैसलमेर जिले में पेड़ों की संख्या बहुत कम है लेकिन ओरण के रूप में छोड़ी गई इस जमीन पर प्राकृतिक घास, वनस्पति और खेजड़ी, कैर, बेर, जाल के वृक्ष अच्छी-खासी संख्या में हैं जो पशुपालन और लोगों की जीविका के प्रमुख आधार हैं. जैसलमेर में ऊंट, गाय और भेड़-बकरियों की संख्या सर्वाधिक है और इन पशुओं के चारे का प्रमुख स्रोत ओरण ही हैं.

जैसलमेर जिले में सोलर, विंड और सीमेंट कंपनियों को दी गई जमीन संकटग्रस्त राज्य पक्षी गोडावण, प्रवासी पक्षी तिल्लोर, राज्य पशु चिंकारा, मरु लोमड़ी, मरु बिल्ली समेत 200 से ज्यादा देशी और प्रवासी पक्षियों, वन्यजीवों का विचरण क्षेत्र रही है. वन्यजीव प्रेमी और ओरण बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक सुमेर सिंह सांवता जोड़ते हैं, ''इस क्षेत्र में सौर, पवन ऊर्जा इकाइयों और बिजली की हाइटेंशन लाइनों से टकराकर हजारों प्रवासी पक्षी जान गंवा चुके हैं. इसी कारण उनका इधर आना कम हो गया है.'' 

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद 1 फरवरी, 2024 को राजस्थान सरकार ने ओरण, देव वन और पारंपरिक रूप से संरक्षित खुले वन को मानद वन का दर्जा दिए जाने की अधिसूचना जारी की है. ऐसे वनक्षेत्रों में खनन, कटाई और निर्माण जैसी किसी भी तरह की गैरवानिकी गतिविधियां नहीं की जा सकतीं.

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