जम्मू-कश्मीर में खासकर इस साल के शुरू में उप-राज्यपाल के राज में लागू किए गए सरकारी नौकरियों में आरक्षण को खत्म करने की लगातार मांग की बड़ी वजह इस क्षेत्र में बेरोजगारी का रिकॉर्ड स्तर है. नौकरी चाहने वालों की संख्या उपलब्ध सरकारी या निजी क्षेत्र की नौकरियों से काफी ज्यादा है. 22 नवंबर को कैबिनेट की बैठक में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर की आरक्षण नीति की समीक्षा के लिए तीन मंत्रियों की एक उप-समिति बनाई.
हाल के हफ्तों में इस मुद्दे पर नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) सरकार को तीखी आलोचना का सामना करना पड़ा है. आरक्षण पर नए सिरे से विचार करने के अपने चुनावी वादे पर अमल करने का उस पर भारी दबाव है. यह मुद्दा उमर सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है. जम्मू-कश्मीर में 60 फीसद आरक्षण को खत्म करने की मांग उठ रही है, जो एनसी के सरकार बनने के 180 दिनों के भीतर सभी सरकारी खाली पदों पर एक लाख नौकरियां देने के चुनावी वादे को पूरा करने में रुकावट बना हुआ है.
उमर ने बेहद सतर्कता के साथ कहा, "हमारे खासकर सामान्य वर्ग के नौजवान महसूस करते हैं कि उन्हें उनके हक नहीं मिल रहे, जबकि आरक्षण के दायरे में आने वाले अपने हक में कटौती नहीं देखना चाहते."
उप-राज्यपाल के राज में 2019 से जम्मू-कश्मीर की आरक्षण नीति में कई फेरबदल किए गए हैं. भाजपा के अगुआई वाले केंद्र ने आदिवासियों और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को लुभाने के लिए कई कदम उठाए हैं. मार्च 2024 में सरकार ने एसटी के लिए पहले से मौजूद 10 फीसद के अलावा, चार समुदायों—पहाड़ी, पद्दारी, कोली और हाल में अनुसूचित जनजाति (एसटी) की श्रेणी में शामिल किए गए गड्डा ब्राह्मण—के लिए आरक्षण की अलग व्यवस्था की गई, जबकि एसटी के लिए 10 फीसद आरक्षण पहले से था.
इसके लिए 2005 के जम्मू-कश्मीर आरक्षण नियम को बदला गया. उस बदलाव में इस नई श्रेणी के तहत 15 नई जातियों को जोड़ा गया और ओबीसी के लिए आरक्षण में 4 फीसद की बढ़ोतरी की गई. इस तरह ओबीसी कोटा बढ़ाकर 8 फीसद कर दिया गया. इस 14 फीसद की वृद्धि से सरकारी नौकरियों में कुल आरक्षण 60 फीसद हो गया. इससे सामान्य वर्ग के लिए 40 फीसद सीटें ही बचीं. जम्मू-कश्मीर की बहुसंख्यक आबादी इसे बेहद नाकाफी मानती है.
पुलवामा से पीडीपी के विधायक वहीद उर रहमान पर्रा ने एक्स स्पेस ऑडियो बातचीत में कहा, "अगर सरकार नाकाम रहती है तो हम नाजायज आरक्षण के खिलाफ अदालत जाएंगे. यह आनुपातिक आधार पर होना चाहिए...आबादी के हिस्से के हिसाब से आरक्षण का अनुपात तय होना चाहिए." इस बातचीत में सैकड़ों नौकरी चाहने वाले नौजवानों ने शिरकत की.
हालांकि, आरक्षण के नियमों में फेरबदल आसान नहीं होगा. केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के लिए केंद्र का 'कार्य संचालन का नियम' सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, अभियोजन और शीर्ष नौकरशाहों की नियुक्तियों के मामलों का अधिकार उप-राज्यपाल को देता है, लेकिन आरक्षण सहित कुछ मामलों को लेकर असमंजस की स्थिति है.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में ऐतिहासिक इंद्रा साहनी फैसले में आरक्षण की सीमा 50 फीसद तय की थी लेकिन तमिलनाडु, राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में इस सीमा को तोड़ दिया गया है. वैसे ये मामले न्यायिक समीक्षा के दायरे में हैं.
केंद्र शासित प्रदेश की प्रमुख भर्ती एजेंसी जम्मू-कश्मीर सेवा चयन बोर्ड (जेकेएसएसबी) के एक अधिकारी के मुताबिक, सरकारी भर्ती में 60 फीसद संशोधित आरक्षण लागू होगा, जिसमें आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि के लिए आवंटित 10 फीसद कोटा भी शामिल है.
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के जुलाई-सितंबर के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के मुताबिक, देश में जम्मू-कश्मीर में 15-29 वर्ष आयु वर्ग में सबसे ज्यादा 32 फीसद बेरोजगारी दर है. सर्वेक्षण में पाया गया कि महिलाओं में बेरोजगारी दर 53.6 फीसद जैसी भारी मात्रा में है. यह भयावह स्थिति आंशिक रूप से नौकरियों के लिए सरकारी क्षेत्र पर अत्यधिक निर्भरता के कारण है. दरअसल, निजी क्षेत्र में बहुत ही कम अवसर उपलब्ध हैं, कोई प्रमुख उद्योग भी नहीं है और निवेश की तो खासी कमी है.
जम्मू-कश्मीर की जीडीपी में फार्मिंग, बागवानी और खेती का योगदान 60 फीसद से ज्यादा है, इसके अलावा पर्यटन क्षेत्र भी उसका एक मुख्य आधार है. दोबारा मुख्यमंत्री बनने पर उमर खेती-किसानी के क्षेत्र में रोजगार सृजन को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं. उनका कहना था, "सचाई तो यह है कि हम सभी को सरकारी नौकरी नहीं दे सकते. इससे जम्मू-कश्मीर में बेरोजगारी खत्म नहीं होगी. हमें अपने आधार पर ध्यान देना होगा, चाहे वह कृषि हो, हस्तशिल्प हो या फूलों की खेती." लेकिन कश्मीर के नौजवान नौकरियों में ज्यादा हिस्सेदारी पसंद करेंगे.
आरक्षण नहीं
> मार्च में एलजी शासन की ओर से एसटी और ओबीसी के लिए कोटा बढ़ाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में आरक्षण 60 फीसद तक बढ़ गया
> सामान्य वर्ग के नौकरी चाहने वाले यूटी में ज्यादा बेरोजगारी की वजह से इसे वापस कराना चाहते हैं
> मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने आरक्षण नीति पर फिर से विचार करने के लिए तीन मंत्रियों का एक पैनल गठित किया है
- कलीम गीलानी