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गुजरात : एशियाटिक शेरों का घर क्यों उजाड़ रही है सरकार?

सरकार के इस कदम से गुजरात स्थित ईएसजेड के तीन जिलों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं

गिर के बब्बर शेर का बफर क्षेत्र अब और छोटा हो गया
गिर के बब्बर शेर का बफर क्षेत्र अब और छोटा हो गया
अपडेटेड 9 दिसंबर , 2024

गुजरात के सौराष्ट्र में गिर का लैंडस्केप भारत में वन्यजीव प्रबंधन की मुश्किलों की मिसाल-सा बन गया है. सितंबर के मध्य में केंद्र सरकार ने गिर वन्यजीव अभयारण्य (जीडब्ल्यूएस) के इर्द-गिर्द ईको सेंसिटिव जोन (ईएसजेड) या पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र के लिए मसौदा अधिसूचना जारी की. पहले जीडब्ल्यूएस के 1,468.16 वर्ग किमी मूल क्षेत्र के आसपास 0-10 किमी का दायरा बफर जोन माना जाता था, जहां भारी उद्योग लगाने और खनन की मनाही थी. संशोधित मसौदे में इस इलाके को छोटा कर दिया गया है—कुछ जगहों पर अभयारण्य से न्यूनतम 2.78 किमी और अन्य जगहों पर अधिकतम 9.5 किमी.

मसौदे में गिर के आसपास के 2,061 वर्ग किमी इलाके को ईएसजेड बनाने की पेशकश की गई है. यह इलाका जूनागढ़, अमरेली और गिर सोमनाथ जिलों के 196 गांवों तक फैला है, जिसके दायरे में 17 नदियां, 24,000 हेक्टेयर वन क्षेत्र और 1.59 लाख हेक्टेयर गैर-वन क्षेत्र भी आते हैं. सरकारी बयान कहता है कि इस संरक्षित क्षेत्र में एशियाई शेरों के एकमात्र वासस्थान में उनके चार अहम आवागमन गलियारे भी हैं. एक स्थानीय प्रकृतिवादी का अनुमान है कि इस ईएसजेड में पहले के बफर जोन के मुकाबले करीब 38 फीसद इलाका कम है. मगर हजारों स्थानीय ग्रामीणों के लिए यह भी बहुत ज्यादा है.

उन्हें डर है कि ईएसजेड में लागू की गई पाबंदियों और सख्ती के कारण वे आजीविका और विकास से हाथ धो बैठेंगे. जंगली जानवरों से अपने को बचाने के अधिकार का मुद्दा भी है.

केंद्र सरकार ने अक्टूबर 2015 में अधिसूचना जारी करके जीडब्ल्यूएस के आसपास 291 गांवों तक फैले 3,328 वर्ग किमी इलाके को ईएसजेड के रूप में निर्धारित किया था, जो कुछ जगहों पर अभयारण्य की परिधि से 17.9 किमी तक फैला था. इस पर स्थानीय लोगों ने व्यापक विरोध प्रदर्शन किए. उन्हें डर था कि इससे उनकी आर्थिक आजादी सिमट जाएगी. लिहाजा सरकार ने एक और अधिसूचना जारी करके उल्टा अतिवादी रुख लिया और बफर जोन का दायरा महज 500 मीटर तक समेट दिया.

वन्यजीव कार्यकर्ता बीरेन पाधिया ने 2017 में गुजरात हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसके बाद दोनों अधिसूचनाओं पर रोक लगा दी गई. सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के मुताबिक अधिसूचित ईएसजेड नहीं होने की स्थिति में 10 किमी के बफर को डिफॉल्ट ईएसजेड माना जाता है. 2023 में हाइकोर्ट ने सरकार को ईएसजेड अधिसूचित करने की इजाजत दे दी. उसके बाद सर्वे किया गया और मसौदा प्रकाशित कर दिया गया.

समाहित क्षेत्र में कमी होने के बावजूद तीनों जिलों में तकरीबन सभी 196 गांवों के नुमाइंदों और तमाम पार्टियों के नेताओं ने ईएसजेड का विरोध किया. आम आदमी पार्टी (आप) से जुड़े एक स्थानीय कार्यकर्ता कहते हैं, "मसौदा अधिसूचना के मुताबिक ग्रामीणों को रोजमर्रा के 19 कामों के लिए पहले सरकार की मंजूरी की जरूरत नहीं थी, अब होगी. यह ईको जोन अब 'लूट जोन' है." वे यह भी कहते हैं, "पहले राजस्व विभाग था, अब वन विभाग अपने भ्रष्टाचार के साथ हमारी जिंदगियों को नियंत्रित करेगा."

सत्तारूढ़ भाजपा और वन विभाग दुष्परिणामों से निबटने में जुटे हैं. वे समझा रहे हैं कि किसानों की रोजमर्रा की जिंदगी या बुनियादी ढांचे के विकास पर कोई असर नहीं पड़ेगा और ईएसजेड में केवल प्रदूषण पैदा करने वाले भारी उद्योगों, खनन, व्यावसायिक आरा मिलों, बड़ी पनबिजली परियोजनाओं वगैरह पर पाबंदी रहेगी.

जूनागढ़ और गिर सोमनाथ के भाजपा जिला अध्यक्षों ने गुजरात के मुख्यमंत्री से मांग की है कि उनके जिलों के गांवों को प्रस्तावित ईएसजेड से बाहर रखा जाए. पूर्व केंद्रीय मंत्री, भारतीय किसान उर्वरक सहकारी (आइएफएफसीओ या इफ्को) के अध्यक्ष और इलाके के प्रभावशाली पाटीदार नेता दिलीप संघानी चाहते हैं कि अधिसूचना को रद्द किया जाए. वे कहते हैं, "बीते दो साल में कितने जंगली जानवर मारे गए? लेकिन इतने ही वक्त में सौराष्ट्र में वन्यजीवों के हमलों ने 39 लोगों की जानें ले लीं."

भाजपा के सांसदों और विधायकों को जल्द से जल्द प्रदर्शनकारियों पर काबू पाने का काम सौंपा गया है क्योंकि जल्द जूनागढ़ नगर निगम और कई नगरपालिका परिषदों के चुनाव होने की उम्मीद है. वन अधिकारियों का कहना है कि विरोध प्रदर्शन इलाके के भू बैंकों से जुड़े निहित स्वार्थों से प्रेरित हैं. राजकोट में रहने वाले भारत के वरिष्ठ वन्यजीव फोटोग्राफर और गुजरात राज्य वन्यजीव बोर्ड के पूर्व सदस्य भूषण पंड्या ग्रामीणों को समझा-बुझा रहे हैं कि ईएसजेड दरअसल लंबे वक्त के लिए अच्छा है क्योंकि इसकी वजह से प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग दूर रहेंगे.

स्थानीय अखबारों में व्यापक रूप से प्रकाशित पत्र में पंड्या ने लिखा, "ईएसजेड के बिना मनुष्य-वन्यजीव टकरावों में कई गुना इजाफा होगा. गुजरात के तीन नेशनल पार्क और 20 अभयारण्यों सहित देश भर के करीब 600 संरक्षित इलाके ईएसजेड से घिरे हैं."

जीववैज्ञानिक और शेरों के विशेषज्ञ ईएसजेड का दायरा सिकुड़ने पर अफसोस जाहिर कर रहे हैं. भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) के पूर्व डीन वाइ.वी. झाला को लगता है कि स्थानीय लोगों के समर्थन के बिना संरक्षण संभव नहीं. वे कहते हैं, "गिर शानदार मिसाल थी कि एक संकटग्रस्ट जंगली जानवर जितना संरक्षित क्षेत्र में उतना ही चरागाह भूमि, कस्बों, औद्योगिक इलाकों, सड़कों और रेलवे लाइनों से मिलकर बने इलाके में कैसे फला-फूला. इसके बावजूद इस अफरा-तफरी ने लंबे वक्त के संरक्षण को खतरे में डाल दिया है."

शेरों का नुक्सान

> गिर के आसपास ईको-सेंसिटिव जोन की ड्राफ्ट अधिसूचना में पिछले बफर जोन की तुलना में कम क्षेत्र है

> इस कदम से ईएसजेड के तीन जिलों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं

> ग्रामीणों को डर है कि जंगली जानवरों से बचाव के अधिकार के साथ ही आर्थिक स्वतंत्रता और विकास को नुक्सान पहुंच सकता है

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