राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने सत्ता संभालने की अपनी पहली वर्षगांठ से ठीक पहले विधानसभा उपचुनावों में भाजपा को शानदार जीत दिलाई. पार्टी ने राज्य में सात में से पांच सीटें जीतीं. यह सफलता इसलिए भी खास है क्योंकि अब तक इनमें से महज एक सीट पर ही भाजपा का कब्जा था.
विविध जाति और धार्मिक जनसांख्यिकी वाले इन सात निर्वाचन क्षेत्रों पर उपचुनाव शर्मा के नेतृत्व की अग्निपरीक्षा की तरह थे. उन्होंने खुद 14 चुनावी रैलियां और विभिन्न सामाजिक समूहों के साथ 44 मीटिंग कीं. चुनाव नतीजे उनकी सरकार की स्थिरता के लिहाज से बेहद मायने रखते हैं.
इससे यह भी पता चलता है कि मुख्यमंत्री अपनी कैबिनेट और पार्टी के भीतर प्रतिद्वंद्वियों पर काबू पाने की क्षमता रखते हैं. भाजपा महासचिव राधा मोहन अग्रवाल पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि 2028 के विधानसभा चुनाव शर्मा के नेतृत्व में लड़े जाएंगे. इससे नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों पर भी विराम लग गया है.
यही नहीं, दौसा में भाजपा के असंतुष्ट आदिवासी नेता किरोड़ीलाल मीणा के भाई जगमोहन कांग्रेस से हार गए. इससे शर्मा पर दबाव डालने की मीणा की क्षमता घटी है. वंशवादी राजनीति को भी झटका लगा है. मसलन, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के प्रमुख हनुमान बेनीवाल की पत्नी कनिका खींवसर में हार गईं.
कांग्रेस प्रत्याशियों में सांसद बृजेंद्र सिंह ओला के बेटे अमित ओला और पूर्व विधायकों सफिया और जुबैर खान के बेटे आर्यन खान को क्रमश: झुंझुनूं और रामगढ़ में हार का मुंह का देखना पड़ा. मगर, भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) अपना मजबूत गढ़ चौरासी बचाने में सफल रही. इस उपचुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन में खासी गिरावट दिखी. चार निर्वाचन क्षेत्रों में पार्टी तीसरे स्थान पर सिमट गई और तीन में तो उसके प्रत्याशियों की जमानत भी जब्त हो गई.
जाहिर है, 200 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा की सीट संख्या 119 पर पहुंच जाने से शर्मा को बड़ी ताकत मिली है. मगर इसे बरकरार रखने के लिए उन्हें प्रशासनिक सुधारों और कानून-व्यवस्था दुरुस्त रखने पर खास ध्यान देना होगा.
—रोहित परिहार
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पंजाब : हर तरफ आप ही आप
उपचुनाव के नतीजों के ऐलान से एक दिन पूर्व आम आदमी पार्टी (आप) ने पंजाब में अपनी राज्य इकाई में अहम बदलाव किए. मुख्यमंत्री भगवंत मान को राज्य संयोजक पद से मुक्त कर दिया गया. उनकी जगह कैबिनेट सहयोगी अमन अरोड़ा को यह जिम्मेदारी सौंपी गई. वहीं विधायक अमनशेर सिंह शेरी कलसी ने कार्यकारी अध्यक्ष का पद संभाला, जो अभी तक मान के खास माने जाने वाले बुध राम के पास था. बहरहाल, केंद्रीय नेतृत्व के बढ़ते प्रभाव को दर्शाते ये बदलाव जमीनी स्तर पर पार्टी की पकड़ कमजोर करने वाले नजर नहीं आते.
आप ने चार में से तीन निर्वाचन क्षेत्रों डेरा बाबा नानक, गिद्दड़बाहा और चब्बेवाल में जीत का परचम लहराया, जिन पर पहले कांग्रेस काबिज थी. इसमें चब्बेवाल का नतीजा बेहद खास रहा, जहां इशांक ने अपने पिता राज कुमार चब्बेवाल की सीट पर फिर से कब्जा जमाया, जिन्होंने आप का दामन थाम लिया था और अब होशियारपुर के सांसद हैं. ये नतीजे कांग्रेस के लिए बड़ा झटका हैं क्योंकि सुखजिंदर सिंह रंधावा और प्रदेश अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वारिंग जैसे दिग्गज अपने गढ़ों में अपनी-अपनी पत्नियों को जीत दिलाने में नाकाम रहे.
बरनाला सीट पर आप के वर्चस्व को झटका लगा जहां कभी मान के भरोसेमंद रहे गुरदीप बाठ निर्दलीय मैदान में उतरे. इससे वोट बंटे और कांग्रेस के कुलदीप सिंह काला ढिल्लों को मामूली अंतर से जीत मिल गई. फिर भी, उपचुनाव नतीजों ने लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन करने वाले आप में नई जान फूंक दी है. आम चुनाव में पार्टी राज्य की 13 सीटों में से तीन जीत सकी थी. उपचुनाव में मुख्यमंत्री की सक्रियता काफी कम थी. इसे नियंत्रण केंद्रीय नेतृत्व के हाथ में रहने का संकेत माना जा रहा. अरोड़ा का कद बढ़ना इसी का संकेत है.
इस बीच, पूर्व कांग्रेस और अकाली नेताओं पर भरोसा करने वाली भाजपा को निराशा हाथ लगी और उसे तीन निर्वाचन क्षेत्रों में जमानत तक गंवानी पड़ी. शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) ने अपने नेता सुखबीर बादल के धार्मिक विवादों में उलझे होने के कारण चुनाव न लड़ने का फैसला किया था, जिससे आप के पक्ष में पंथिक वोट और मजबूत हो गए. उपचुनाव नतीजे एक तरह से बताते हैं कि बदलावों को अपनाना आप के लिए नुक्सानदेह नहीं, बल्कि उसकी नींव को मजबूत करने वाला ही साबित हो रहा है.
—अनिलेश एस. महाजन
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पूर्वोत्तर : दबदबा बरकरार
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने असम, मेघालय और सिक्किम के उपचुनावों में जीत हासिल करके पूर्वोत्तर में अपना दबदबा बरकरार रखा है. भाजपा की अगुआई वाले गठबंधन ने न केवल अपनी छह सीटों पर कब्जा बनाए रखा, बल्कि शानदार चुनाव अभियान के बलबूते दो अहम निर्वाचन क्षेत्र कांग्रेस से छीन भी लिए.
असम में भाजपा ने तीन सीटें जीतीं, जिसमें समागुड़ी शामिल है, जिसे कांग्रेस का गढ़ माना जाता था और 2001 से पूर्व मंत्री रकीबुल हुसैन इस पर काबिज थे. इस साल के शुरू में हुसैन ने धुबरी में रिकॉर्ड दस लाख से ज्यादा मतों के अंतर से जीतकर लोकसभा में कदम रखा. इस कारण खाली हुई इस मुस्लिम बहुल सीट पर हुसैन के बेटे तंजील हुसैन किस्मत आजमा रहे थे जिन्हें भाजपा के एक अनजान-से ब्राह्मण चेहरे दिप्लू रंजन सरमा ने हरा दिया.
वहीं, बेहाली सीट के नतीजे को इस लिहाज से काफी अहम माना जा रहा है कि असम के मुख्यमंत्री ने यहां पर कांग्रेस नेता गौरव गोगोई से सियासी बदला चुका लिया. गोगोई ने भाजपा के भारी अभियान के बावजूद जोरहाट लोकसभा सीट पर जीत हासिल की थी.
मेघालय में एनडीए के घटक दल नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी) ने गाम्बिगरे सीट जीतकर कांग्रेस को करारा झटका दिया. उस सीट पर मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा की पत्नी मेहताब चांडी संगमा ने जीत हासिल की है. सिक्किम में सत्तारूढ़ सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेएम) ने भी भाजपा के सहयोगी दल के तौर पर दो उपचुनाव निर्विरोध जीत लिए. इस तरह विधानसभा में विपक्ष का सूपड़ा साफ हो गया.
—कौशिक डेका