राज्य की तीन सीटों चन्नपट्टण, शिग्गांव और संदूर पर उपचुनाव के नतीजे कर्नाटक विधानसभा में स्पष्ट बहुमत रखने वाली कांग्रेस के लिए संख्याबल के लिहाज से भले ही कोई ज्यादा मायने न रखते हों, मगर मुख्यमंत्री सिद्धरामैया की कुर्सी पर मंडराते खतरे के मद्देनजर जरूर बेहद अहम माने जा रहे हैं. दरअसल, सिद्धरामैया मैसूरू शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) भ्रष्टाचार मामले में लोकायुक्त जांच का सामना कर रहे हैं.
अगर चन्नपट्टण सीट की बात करें तो ओल्ड मैसूरू का वोक्कलिगा बहुल यह निर्वाचन क्षेत्र दो सियासी दिग्गजों उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार और केंद्रीय मंत्री एच.डी. कुमारस्वामी के बीच जंग का एक और मैदान था. संसदीय चुनाव में कुमारस्वामी के जनता दल (सेक्युलर) ने भाजपा के साथ गठबंधन करके शिवकुमार के छोटे भाई डी.के. सुरेश को बुरी तरह हराया था.
इसी हार का बदला चुकाने के लिए शिवकुमार ने इस सीट पर भाजपा से पाला बदलकर आए पूर्व मंत्री और स्थानीय वोक्कलिगा नेता सी.पी. योगेश्वर को कांग्रेस का उम्मीदवार बनाया. कुमारस्वामी की छोड़ी सीट चन्नपट्टण पर योगेश्वर जातीय समीकरण और मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण की वजह से जेडीएस नेता के बेटे निखिल को 25,413 वोटों से हराने में सफल रहे.
कांग्रेस ने शिग्गांव में पार्टी के भीतर बगावती सुरों पर काबू पाकर आश्चर्यजनक ढंग से जीत दर्ज की. यह सीट भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने खाली की थी और उनके बेटे भरत मैदान में किस्मत आजमा रहे थे. और संदूर में कांग्रेस अपना कब्जा बरकरार रखने में सफल रही, जो सीट 2008 से पार्टी के पास है. 3-0 से एकतरफा जीत ने विपक्ष को करारा झटका दिया है. साथ ही भाजपा और जेडीएस दोनों में आंतरिक खींचतान को और बढ़ा दिया.
—अजय सुकुमारन
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केरल : बराबर की बाजी
सबकी नजरें केरल में वायनाड लोकसभा सीट के उपचुनाव पर टिकी थीं, जहां से प्रियंका गांधी वाड्रा को पहली चुनावी जीत मिली. वहीं, दो अहम विधानसभा सीटों चेलक्कारा और पलक्कड़ में उपचुनाव नतीजे राज्य के प्रमुख गठबंधनों के लिए बराबरी की बाजी साबित हुए.
चेलक्कारा में माकपा के यू.आर. प्रदीप ने अपनी पार्टी का कब्जा कायम रखा. इससे 140 सदस्यीय विधानसभा में 98 विधायकों के साथ सत्तारूढ़ लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) का वर्चस्व बरकरार रहा. वहीं, 2011 से कांग्रेस के गढ़ रहे पलक्कड़ में यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) के लिए पार्टी उम्मीदवार राहुल ममकूटतिल ने जीत हासिल की. यूडीएफ के राज्य में 41 विधायक हैं.
एलडीएफ के लिए चेलक्कारा सीट जीतना प्रतिष्ठा का सवाल बन गया था, क्योंकि वहां 1996 से उसकी हार नहीं हुई है. यह जीत मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के लिए बड़ी राहत लेकर आई, जिन्होंने इसका श्रेय आठ साल पुरानी एलडीएफ सरकार पर जनता के भरोसे को दिया है.
भाजपा के लिए नतीजे बेहद निराशाजनक रहे क्योंकि उसे पलक्कड़ सीट जीतने की उम्मीद थी जहां 2016 से वह दूसरे नंबर पर आती रही है. मगर जोरदार प्रचार अभियान के बावजूद वह कांग्रेस को हराने में नाकाम रही और उसका वोट शेयर भी काफी घट गया.
—जीमॉन जैकब