कांग्रेस ने 16 दिसंबर, 2023 को जितेंद्र 'जीतू' पटवारी को मध्य प्रदेश का अपना नया अध्यक्ष बनाने का ऐलान किया था. वह पार्टी में पीढ़ीगत बदलाव का संकेत था क्योंकि पटवारी ने अनुभवी कमलनाथ की जगह ली. कई चुनावी पंडितों का मानना था कि उस साल के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत मिलनी चाहिए थी मगर निराशाजनक तरीके से वह केवल 66 सीटों पर सिमट गई, जबकि 2018 में उसको 114 सीटों पर जीत मिली थी. पटवारी ने विधानसभा चुनाव की उस अपमानजनक हार के ठीक बाद पदभार संभाला था. पद पर साल भर रहने के बाद पटवारी नतीजे दे पाए हैं?
उनकी राह आसान न थी. कांग्रेस नेताओं के एक तबके के बीच स्वीकार्यता न मिलना पटवारी की सबसे बड़ी बाधा रही है. लगता है पटवारी ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के साथ एक रणनीतिक गठजोड़ कायम किया पर उससे ज्यादा कुछ नहीं हो सका. कमलनाथ राज्य की सियासत से दूर रहे, जबकि अजय सिंह और लक्ष्मण सिंह सरीखे अन्य वरिष्ठ नेता अक्तूबर के आखिर में घोषित 335 सदस्यीय राज्य कार्यकारिणी में 'संतुलन की कमी' को लेकर मुखर रहे हैं. कम से कम पांच 'वरिष्ठ' पदाधिकारियों ने खुद को दिए गए दायित्व को कद से कमतर बताते हुए लेने से इनकार कर दिया.
उनके लिए तकलीफ की बात यह भी है कि कांग्रेस की चुनावी किस्मत में कोई सुधार नहीं हुआ है. पटवारी की देखरेख में पार्टी को लोकसभा चुनाव में एक भी सीट हासिल न हो सकी. यहां तक कि इंदौर में उनके पसंदीदा उम्मीदवार अक्षय बाम चुनाव प्रचार के बीच में ही भाजपा में शामिल हो गए थे. पार्टी के तीन विधायकों ने भी लोकसभा चुनाव के ऐन पहले पार्टी छोड़ दी थी. चुनाव के बाद होने वाले पहले उपचुनाव में भाजपा ने अमरवाड़ा में जीत दर्ज की और छिंदवाड़ा में कमलनाथ के गढ़ में सेंध लगा दी. इस तरह पटवारी के लिए कुछ भी सकारात्मक नहीं रहा. दो अन्य उपचुनाव विजयपुर और बुधनी में हुए हैं, जिनके नतीजे 23 नवंबर को आएंगे. वैसे, जमीनी रिपोर्टों के आधार पर वहां से भी उनको अच्छी खबर मिलने की संभावना नहीं है.
पटवारी की आंदोलन-केंद्रित राजनीति उनकी पहचान थी. मानसून के महीनों में कृषि को केंद्र में रखकर शुरू की उनकी हड़ताल को भी मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली. बाद में उस पर भी कोई ध्यान नहीं दिया गया जिससे उन्हें कोई बढ़त हासिल न हो सकी. राज्य खाद की भारी कमी से जूझ रहा है मगर मुख्य विपक्षी दल ने जमीनी स्तर पर कोई कदम नहीं उठाए हैं. पटवारी ने महिलाओं और हाशिए के अन्य समूहों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ एक विरोध-प्रदर्शन भी आयोजित किया था मगर वह लोगों के बीच जगह बनाने में नाकाम रहा. बुंदेलखंड के एक कांग्रेस विधायक कहते हैं, ''जब तक जमीनी स्तर पर संगठन को खड़ा करने के लिए कुछ नहीं किया जाता, सभी तरह के कदम दिखावटी होंगे.'' ऐसा लगता है कि सच का सामना होना अभी बाकी है.