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गुजरात सरकार के पास पुलिस फोर्स की क्यों हो गई कमी? 'थर्ड पार्टी' से करवा रही है काम

गुजरात पुलिस अब मोबाइल फोन ट्रैकिंग जैसे रोजमर्रा के तकनीकी कामों को भी आउटसोर्स पर दे रही है लेकिन ड्रग्स कंट्रोल जैसे मामलों में पुलिस का कोई विकल्प नहीं

पुलिस अधिकारी 21 अक्टूबर को अहमदाबाद में पुलिस कमेमोरेशन डे मनाते हुए
पुलिस अधिकारी 21 अक्टूबर को अहमदाबाद में पुलिस कमेमोरेशन डे मनाते हुए
अपडेटेड 3 दिसंबर , 2024

गुजरात के तटीय इलाके में मादक पदार्थों की तस्करी और शहरी इलाकों में लगातार बढ़ती प्रवासी आबादी की वजह से राज्य पुलिस पर दबाव खासा बढ़ गया है. ऐसे में उसे अधिक क्षमता की दरकार है. मगर बल में खासकर सीनियर अफसरों की भारी कमी है. इसका असर उसके मनोबल पर पड़ रहा है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा आंकड़े इस बात के सबूत हैं कि गुजरात अपराध नियंत्रण में पिछड़ा हुआ है.

राज्य के दो प्रमुख शहरों—अहमदाबाद और सूरत—को अपराध के मामले में भारत के शीर्ष 10 शहरों में जगह मिली है. दूसरे मामलों में भी स्थिति चिंताजनक है. 2023 में राज्य ने लगातार तीसरे साल हिरासत में सबसे ज्यादा मौतें दर्ज कीं. छह साल से कम उम्र के बच्चों की हत्या के मामले में यह देशभर में दूसरे स्थान पर है.

भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारियों के लिए स्वीकृत 208 पदों में से फिलहाल 184 भरे हुए हैं. मगर उनमें से 23 प्रतिनियुक्ति पर बाहर हैं और एक रजनीश राय निलंबित हैं. अक्तूबर तक कुल 48 वरिष्ठ पद खाली थे. स्थिति बदतर होने का अंदेशा है क्योंकि अगले साल तकरीबन 11 अधिकारी रिटायर होने वाले हैं.

गुजरात में आईपीएस में पदोन्नति के लिए पात्र राज्य पुलिस सेवा (एसपीएस) अधिकारियों की स्वीकृत संख्या 63 है, जिनमें से 60 की नियुक्ति की जा चुकी है. आठ अधिकारियों के पिछले बैच को दो चरणों वाले लोकसभा चुनावों से ठीक पहले अप्रैल में जल्दबाजी में पदोन्नत किया गया था क्योंकि कई अहम पद खाली थे या अतिरिक्त प्रभार के तौर पर रखे गए थे. फिलहाल, वरिष्ठ अधिकारियों को कम से कम 20 पद अतिरिक्त प्रभार के रूप में दिए गए हैं. उनमें करीब पांच अधिकारियों ने दो-दो अतिरिक्त प्रभार संभाला है.

अधिकारियों की कमी की समस्या इतनी गंभीर है कि भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के निदेशक जैसा अहम पद भी अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कानून और व्यवस्था) शमशेर सिंह को अतिरिक्त प्रभार के रूप में मिला हुआ है. इसी तरह संयुक्त पुलिस आयुक्त नीरज बडगूजर अहमदाबाद शहर के दोनों सेक्टरों की देखरेख करते हैं. यही नहीं, मुख्यमंत्री कार्यालय में तैनात एम.के. दास को सहायक मुख्य सचिव, गृह का पद भी अतिरिक्त प्रभार के तौर पर सौंपा गया है, जबकि यह विभाग में सबसे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी का और बेहद महत्वपूर्ण पद होता है.

कांग्रेस प्रवक्ता मनीष दोशी कहते हैं, "जमीनी स्तर पर पुलिस बल की कमी की समस्या बताए गए आंकड़ों से कहीं ज्यादा गंभीर है क्योंकि स्वीकृत संख्या 14 साल पुरानी आबादी के आंकड़ों पर आधारित है." पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो की ओर से संकलित आंकड़ों का हवाला देते हुए दोशी इस बात पर जोर देते हैं कि गुजरात में 1,00,000 की आबादी पर पुलिसकर्मियों का अनुपात 127.82 है जबकि स्वीकृत संख्या 174.39 है, यानी पुलिसकर्मियों की 26.7 फीसद कमी है.

पुलिस के नियमित कामकाज के अलावा, पिछले पांच साल में गुजरात पुलिस को मादक पदार्थों की तस्करी और पेडलिंग के बारे में खुफिया जानकारी इकट्ठा करने का भी काम सौंपा गया है. यह काम पहले विशेष रूप से नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की ओर से संभाला जाता था. पिछले महीने दिल्ली पुलिस ने स्थानीय पुलिस के साथ एक साझा अभियान में अंकलेश्वर में एक बड़े स्तर का भंडाफोड़ किया और एक बंद पड़े दवा कारखाने से 5,000 करोड़ रुपए की 518 किलो कोकीन बरामद की.

वे मादक पदार्थ कथित तौर पर कुछ महीने पहले दक्षिण अमेरिकी देशों से गुजरात के तटों के जरिए भारत लाए गए थे और देशभर में वितरित किए जाने से पहले 'शोधन' के लिए अंकलेश्वर में जमा किए गए थे. दिल्ली पुलिस की अगुआई में मारे गए इस छापे ने गुजरात पुलिस के उसके साथियों को शर्मिंदा कर दिया, जिससे एक बार फिर पुलिसकर्मियों की कमी को लेकर बहस छिड़ गई है.

पुलिस सुधारों को लेकर काम कर रहे एक सेवानिवृत्त अधिकारी कहते हैं, "नियमित अपराध के मामलों में टेक्नोलॉजी पुलिस की मददगार के तौर पर सामने आई है क्योंकि लोकेशन ट्रैकिंग, मोबाइल उपकरणों के डेटा और सोशल मीडिया गतिविधि से जांच में मदद होती है. इनमें से कई कामों को यह महकमा भरोसे के एथिकल हैकर्स को आउटसोर्स करता है. उससे आगे जाकर, अन्य विशिष्ट कार्यों को भी आउटसोर्स किया जा सकता है. मगर मानव बुद्धिमत्ता सभी तरह की पुलिसिंग में सबसे अहम है और इसका कोई विकल्प नहीं हो सकता."

पुलिस बल के सूत्रों का दावा है कि उन्हें यह कमी 1990 के दशक के मध्य में कांग्रेस सरकार से विरासत में मिली थी. तब मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल ने नर्मदा बांध के मसले पर केंद्र सरकार से असहमति के कारण तीन साल तक संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएसएसी) के जरिए अधिकारियों की भर्ती रोक दी थी. हर साल यूपीएससी 150 आइपीएस अधिकारियों की भर्ती करता है, जिन्हें जरूरत के आधार पर विभिन्न राज्यों में तैनात कर दिया जाता है.

दबाव में खाकी

> आइपीएस अधिकारियों के 208 स्वीकृत पदों में से फिलहाल 184 पर नियुक्तियां हैं

> उनमें से 23 प्रतिनियुक्ति पर हैं और एक अफसर निलंबित है

> कम से कम 20 पदों का अतिरिक्त प्रभार वरिष्ठ अधिकारियों को सौंपा गया है

> इस कमी का असर भी दिख रहा है: अपराधों से निबटने के मामले में गुजरात बुरी तरह पिछड़ रहा है

राज्य की पुलिस अब मोबाइल फोन ट्रैकिंग जैसे रोजमर्रा के तकनीकी कामों को भी आउटसोर्स पर दे रही है लेकिन मादक द्रव्यों के नियंत्रण जैसे मामलों में पुलिस का कोई विकल्प नहीं

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