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गुजरात: क्या है माइक्रो एटीएम जो बदल सकता है लाखों महिलाओं की जिंदगी!

गांवों में माइक्रो एटीएम का सबसे बड़ा फायदा यह है कि किसानों को बैंकिंग गतिविधियों के लिए 5 से लेकर 15 किलोमीटर दूरी तक की यात्रा नहीं करनी पड़ती

बैंक मित्र कल्पेश पटेल की मदद से माइक्रो एटीएम का इस्तेमाल कर रहीं डेयरी किसान कोकिलाबेन पटेल
बैंक मित्र कल्पेश पटेल की मदद से माइक्रो एटीएम का इस्तेमाल कर रहीं डेयरी किसान कोकिलाबेन पटेल
अपडेटेड 26 नवंबर , 2024

कोकिलाबेन पटेल पिछले कुछ महीनों में कल्पेश पटेल को कई बार माइक्रो एटीएम संचालित करते देख चुकी हैं लेकिन अब भी वह क्षण उन्हें रोमांचित कर देता है जब 3,000 रुपए हाथ में आते हैं. गुजरात में पंचमहल जिले के गोधरा तालुका स्थित महुलिया गांव की यह पशुपालक कभी स्कूल नहीं गई लेकिन पिछले साल अपने घर पर माइक्रो एटीएम के माध्यम से बुनियादी बैंकिंग सीखने के बाद वे एक तरह से घर की मुखिया बन गई हैं.

50 वर्षीया कोकिलाबेन अब घर का खर्च संभालती हैं और उनकी सूझबूझ से ही परिवार ट्रैक्टर खरीदने में सक्षम हो पाया है. पंचमहल के वावडी खुर्द गांव निवासी एक अन्य पशुपालक दिवुबेन चारण ने भी ऐसा प्रशिक्षण हासिल किया. 30 वर्षीया दिवुबेन का कहना है कि परिवार पहले से अधिक बचत कर पा रहा है और उसके पास अपने दो बच्चों को पढ़ाने-लिखाने और खुद पर खर्च करने के लिए भी अधिक पैसे होते हैं. वे थोड़ा शर्माते हुए बताती हैं कि कुछ गहने भी खरीदे हैं.

कोकिलाबेन ग्राम स्तर पर बहुउद्देशीय प्राथमिक कृषि ऋण सहकारी समितियों (एमपीएसीएस) की उन हजारों महिला सदस्यों में शामिल हैं, जिन्हें पंचमहल और बनासकांठा जिलों के जिला ऋण एवं सहकारी बैंकों (डीसीसीबी) की माइक्रो एटीएम सुविधा इस्तेमाल करने के लिए डेबिट/क्रेडिट कार्ड दिए गए हैं. माइक्रो एटीएम पॉइंट-ऑफ-सेल मोबाइल डिवाइस की तरह होते हैं, जो जीपीआरएस के माध्यम से बैंक सर्वर से जुड़े होते हैं. इनके जरिये नकद जमा, निकासी, फंड ट्रांसफर और बैलेंस की जानकारी लेने जैसी बुनियादी बैंकिंग सेवाएं हासिल की जा सकती हैं. मदद के लिए एक प्रशिक्षित स्थानीय 'बैंक मित्र' भी मौजूद रहता है.

केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री अमित शाह ने सितंबर में श्वेत क्रांति 2.0 की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य डेयरी सहकारी क्षेत्र में बदलाव लाना और महत्वाकांक्षी 'सहकारी समितियों के बीच सहयोग' जैसी पहल के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाना है. उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा, ''गुजरात में 36 लाख महिलाएं डेयरी क्षेत्र से जुड़ी हैं और सालाना 60,000 करोड़ रुपए का कारोबार करती हैं. श्वेत क्रांति 2.0 इन महिलाओं को सशक्त बनाएगी. जब उनके नाम पर बैंक चेक आएंगे तो उनकी खुशी कई गुना बढ़ जाएगी.''

गांवों में माइक्रो एटीएम का सबसे बड़ा फायदा यह है कि किसानों को बैंकिंग गतिविधियों के लिए 5 से लेकर 15 किलोमीटर दूरी तक की यात्रा नहीं करनी पड़ती. इससे एक तो उनका समय और किराया बचता है, दूसरा जरूरत के आधार पर कम धनराशि निकालकर वे ज्यादा बचत भी कर पाते हैं.

राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के मुख्य महाप्रबंधक बी.के. सिंघल कहते हैं, "सबसे अहम बात तो यह है कि बैंक के दूर होने की वजह से आमतौर पर बैंकिंग से जुड़े सारे कामकाज केवल पुरुष ही करते थे. लेकिन माइक्रो एटीएम की वजह से घर के दरवाजे पर ही 24&7 बैंकिंग सुविधा उपलब्ध हैं. समितियां बैंकों की तरह सिर्फ निर्धारित समयावधि में ही काम नहीं करतीं. हमने महिला किसानों को बैंकिंग सेवाओं के इस्तेमाल के लिए प्रशिक्षित किया है और वे घर से ही पूरा वित्तीय कामकाज नियंत्रित करती हैं. यह किसी मौन क्रांति से कम नहीं है."

'सहकारी समितियों के बीच सहयोग' पहल गुजरात के दो जिलों बनासकांठा और पंचमहल में बतौर पायलट प्रोजेक्ट चल रही है. परियोजना का संचालन नाबार्ड कर रहा है, जिसने 1,732 एटीएम की तैनाती के लिए 3.67 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता दी और इन जिलों में खासकर प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पीएसीएस) की महिला सदस्यों के लिए 824 डिजिटल साक्षरता शिविर आयोजित किए. जनवरी से जुलाई 2024 के बीच दोनों डीसीसीबी में 8,00,000 नए बचत खाते खुले, जबकि कुल जमा राशि में 4,612 करोड़ रुपए की वृद्धि हुई. करीब 20,000 नए क्रेडिट कार्ड जारी किए गए और 1,031 अतिरिक्त दुग्ध समितियों और 187,000 नए दुग्ध उत्पादकों को जोड़ा गया.

बहरहाल, वित्तीय गतिविधियों के केंद्र में इस बदलाव के राजनैतिक निहितार्थ भी हैं. इन सहकारी समितियों का नेतृत्व एक बहुस्तरीय निर्वाचित निकाय करता है, जिसका मॉडल 'दुग्ध क्रांति के जनक' दिवंगत वर्गीज कुरियन ने राजनैतिक प्रतिनिधियों को बाहर रखने के लिए सोचा था. शुरू में कांग्रेस ने सहकारी समितियों के निर्वाचित नेताओं को समर्थन देना और उन्हें राजनैतिक समर्थन के लिए लुभाना शुरू किया. लेकिन 2001 के बाद इन समितियों की राजनीति पूरी तरह से भाजपा में समाहित हो गई.

अभी भगवा पार्टी गुजरात की 81,300 से अधिक सहकारी समितियों में से 95 फीसद को नियंत्रित करती है. पंचामृत डेयरी के अध्यक्ष जेठा भरवाड़ जिले के सेहरा से भाजपा विधायक हैं और बनास डेयरी के अध्यक्ष शंकर चौधरी बनासकांठा के थराड से विधायक हैं.

इसे लेकर आलोचना भी होती है कि इसके जरिए केंद्रीय मंत्रालय और सत्तासीन पार्टी का तकरीबन हर ग्रामीण परिवार पर दबदबा होगा. एमएस विश्वविद्यालय, बड़ौदा में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख अमित ढोलकिया का मानना है कि सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में कुछ प्रभाव पड़ेगा फिर भी यह एक अच्छी पहल है क्योंकि तालमेल से सहकारी निकायों को मजबूती मिलती है.

36 लाख महिलाएं जुड़ी हैं गुजरात डेयरी सेक्टर से. वे साल में 60,000 करोड़ रु. का कारोबार करती हैं. 1,732 माइक्रो एटीएम तैनात किए गए हैं पंचमहल और बनासकांठा जिले में. वे बैंकिंग सेवा घर-घर पहुंचा रहे.

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