
मणिपुर में पिछले साल मई में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच हिंसक जातीय संघर्ष भड़क उठा था. उसको लेकर अब एक अहम कानूनी और सियासी घटनाक्रम में, सुप्रीम कोर्ट उन ऑडियो रिकॉर्डिंग की जांच करने पर राजी हो गया है जिनसे कथित तौर पर पता चलता है कि मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह उस हिंसा में शामिल थे. यह फैसला देश के सबसे अस्थिर राज्य संकटों में एक की अदालती निगरानी में अहम कदम है.
इस पूर्वोत्तर राज्य में महीनों से जारी अशांति से 230 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और तकरीबन 60,000 लोग विस्थापित हो गए हैं, और दोनों समुदायों के बीच भीषण ध्रुवीकरण हुआ. ग्रामीण इलाकों से हिंसा की छिटपुट घटनाएं अब भी सामने आ रही हैं जिससे शांति बिगड़ने का खतरा बना हुआ है.
यह मामला कुकी ऑर्गेनाइजेशन फॉर ह्युमन राइट्स ट्रस्ट (केओएचआरटी) की ओर से सामने लाया गया. बंद कमरे में हुई एक कथित बैठक की रिकॉर्डिंग को इसका आधार बनाया गया है जिसमें बीरेन को कथित तौर पर हिंसा का समर्थन करने, हथियारों की लूट को प्रोत्साहित करने और उग्रवादी गतिविधियों में शामिल लोगों को बचाने की बात को स्वीकार करते सुना जा सकता है. उन टेपों की अदालती जांच का न सिर्फ मणिपुर के सियासी परिदृश्य, बल्कि सरकारी पद की जवाबदेही के व्यापक प्रश्न को लेकर भी गहरा असर पड़ सकता है.
ये रिकॉर्डिंग पहली बार 2024 के मध्य में सामने आईं जिससे हंगामा मच गया और सोशल मीडिया तथा समाचारों में इसके फैलने के साथ इसकी आंच बढ़ती गई. ये रिकॉर्डिंग कथित तौर पर 2023 के अंत में मुख्यमंत्री के आधिकारिक निवास पर एक बैठक में रिकॉर्ड की गई थीं. एक व्हिसलब्लोअर ने बीरेन की जानकारी के बिना फोन पर उस बातचीत को रिकॉर्ड कर लिया था.
व्हिसलब्लोअर की पहचान सुरक्षा कारणों से गुप्त रखी गई है. 48 मिनट से ज्यादा के उस टेप में कथित तौर पर बीरेन को हिंसा में शामिल लोगों को 'बचाने' की योजना पर चर्चा करते और यहां तक कि अत्यधिक बल प्रयोग से बचने के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के आदेशों की अवहेलना करने का दावा करते पाया गया है.

शाह के निर्देश को नासमझी बताते हुए, टेप में कहा गया, "उन्हें खुले तौर पर नहीं, चुपचाप बम का इस्तेमाल करने दो." रिकॉर्डिंग में विस्तार से बताया गया है कि कैसे बीरेन ने कथित रूप से उन लोगों को बचाया जिन्होंने राज्य के शस्त्रागारों से हजारों हथियार लूटे और यहां तक कि उन्हें गिरफ्तार करने से मना कर दिया क्योंकि उन्हें लगा कि उनके ये कदम उनकी वृहद सियासी रणनीति के मुफीद हैं. इंडिया टुडे के पास ये टेप मौजूद हैं, पर वह स्वतंत्र रूप से उनकी प्रामाणिकता की पुष्टि नहीं कर सकता.
जुलाई में कुकी संगठन ने हिंसा की वजहों की जांच के लिए पिछले जून में केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से गठित न्यायमूर्ति अजय लांबा आयोग को वे टेप सौंपे. केओएचआरटी का आरोप है कि रिकॉर्डिंग की गंभीरता के बावजूद आयोग ने महीनों तक उसकी जांच करने की जहमत नहीं उठाई. देरी की वजह से याचिकाकर्ताओं ने सरकार की जांच की निष्पक्षता पर सवाल उठाए और आखिरकार उन्हें अदालत की निगरानी में एक विशेष जांच दल (एसआइटी) से जांच की मांग के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा.
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश मानवाधिकार वकील प्रशांत भूषण ने दलील दी कि ऑडियो टेप अगर प्रमाणित होते हैं तो उनसे न केवल हिंसा को लेकर मुख्यमंत्री की लापरवाही बल्कि उनकी सक्रिय संलिप्तता का भी पता चलता है. भूषण ने दलील दी, "उन्होंने उग्रवाद को हवा देने, हथियारों को लूटने देने और उसमें शामिल लोगों को बचाने की बात स्वीकार की." मगर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका को खारिज करने या कम से कम मणिपुर हाइकोर्ट में स्थानांतरित करने पर जोर देते हुए सुझाव दिया कि जमीनी हालात को समझे बगैर सुप्रीम कोर्ट हस्तक्षेप कर रहा है.
अपनी सेवानिवृत्ति से ठीक दो दिन पहले तीन जजों की पीठ की अध्यक्षता कर रहे पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी.वाइ. चंद्रचूड़ ने तीखा जवाब देते हुए कहा, "हम असल हालात से अपरिचित नहीं हैं, इसलिए मामले की सुनवाई कर रहे हैं. एक संवैधानिक अदालत के तौर पर अपने कर्तव्य से हम भलीभांति परिचित हैं, और गड़बड़ियों को नजरअंदाज नहीं कर सकते." उसके बाद कोर्ट ने अगले कदमों पर फैसला लेने से पहले उस टेप की प्रामाणिकता की पुष्टि करने के लिए याचिकाकर्ताओं को अतिरिक्त सामग्री प्रदान करने का आदेश दिया.
सामने आने के बाद से उन रिकॉर्डिंग ने भयंकर बहस छेड़ दी और मणिपुर में समुदायों में अविश्वास बढ़ा दिया है. जवाब में, मणिपुर सरकार ने उन रिकॉर्डिंग को फर्जी करार दिया और उन्हें राज्य को अस्थिर तथा शांति प्रक्रिया को कमजोर करने के 'दुर्भावनापूर्ण अभियान' का हिस्सा बताया. सूचना और जनसंपर्क निदेशालय ने एक बयान जारी करके कहा कि उन टेपों के साथ 'छेड़छाड़' की गई. उसने कहा कि सोशल मीडिया के विश्लेषण से पता चलता है कि उन रिकॉर्डिंग को फैलाने के लिए समन्वित प्रयास किया गया और कई एकाउंट्स ने उन्हें आगे बढ़ाया. मणिपुर पुलिस ने साइबर अपराध विभाग में भी एक केस दर्ज किया है.
बढ़ते दबाव और इस्तीफे की मांग के बावजूद बीरेन सिंह अपने पद पर बने हुए हैं और उनके लिए सुप्रीम कोर्ट की जांच बड़ा दांव साबित हो सकती है. अगर अदालत उन टेप की प्रामाणिकता को सही करार देती है तो वे इन आरोपों को बल दे सकते हैं कि बीरेन सरकार हिंसा में सक्रिय रूप से शामिल थी. उनका सियासी अस्तित्व गहरे खतरे में पड़ सकता है, उनके प्रशासन की वैधता पर आंच आ सकती है और उसके नतीजतन हिंसा में उनकी भूमिका की व्यापक सियासी तथा कानूनी जांच होगी.
सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पूरे संकट के दौरान बीरेन का समर्थन किया और वे टेप भाजपा के लिए भी नुक्सानदेह साबित हो सकते हैं. उस संभावित झटके से पूर्वोत्तर में पार्टी के हालात बदल सकते हैं, जहां सांप्रदायिक स्थिरता अक्सर एक नाजुक डोर पर टिकी होती है. वहीं, जैसा कि सरकार का दावा है, अगर टेपों के साथ छेड़छाड़ की बात साबित होती है, तो उससे प्रशासन की उस बात की पुष्टि होगी कि मणिपुर को अस्थिर करने, बीरेन की प्रतिष्ठा को धूमिल करने और उनके नेतृत्व को कमजोर करने के लिए फर्जी खबरों को फैलाने का संगठित अभियान चलाया गया.
सियासी प्रभावों से इतर देखें तो, रिकॉर्डिंग की जांच करने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला संवैधानिक अधिकारों के संरक्षक के तौर पर उसकी भूमिका को रेखांकित करता है. जब राज्य तंत्र पर भेदभाव का आरोप लगता है तो वह आगे बढ़कर कदम उठाने को तत्पर रहता है. उन टेपों की प्रमाणिकता पर अदालत का फैसला असल में सांप्रदायिक हिंसा में राज्य की कथित मिलीभगत के मामलों में एक मिसाल कायम करेगा.
वह इस बात का संकेत होगा कि क्या सियासी और सामाजिक अशांति के माहौल के बीच भारत की न्यायपालिका शक्तिशाली अधिकारियों को जवाबदेह ठहरा सकती है. मणिपुर मामले में, वह फैसला या तो उनकी जवाबदेही के नए दौर की शुरुआत कर सकता है या फिर उन्हीं के पीडि़त होने के दावों को सही ठहरा सकता है. यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आखिर कौन-सा सच साबित होता है. दोनों ही सूरत में, अदालत के फैसले की गूंज मणिपुर की सीमाओं से काफी आगे तक सुनाई देगी क्योंकि पूरे भारत में विभिन्न समुदाय और नेता इस बात पर नजरें टिकाए हैं कि अशांति और फर्जी खबरों के शोर के बीच क्या इंसाफ को कोई आवाज मिल सकेगी या नहीं.
दूरगामी परिणाम
सुप्रीम कोर्ट उन ऑडियो रिकॉर्डिंग की जांच को राजी हो गई है जिनमें कथित तौर पर पता चलता है कि मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह जातीय हिंसा में शामिल थे, जिसकी वजह से 230 लोगों की जान चली गई और 60,000 लोग विस्थापित हो गए
कुकी मानवाधिकार समूह ने कोर्ट की निगरानी में एसआइटी जांच कराने के लिए याचिका दायर की है, वहीं सरकार का दावा है कि वे टेप फर्जी हैं और साइबरक्राइम में उसकी एफआइआर भी दर्ज की गई है
इस जांच का असर बीरेन सिंह के सियासी अस्तित्व और पूर्वोत्तर में भाजपा की स्थिति पर पड़ सकता है
यह सांप्रदायिक हिंसा में राज्य के कथित पक्षपात के मामलों को लेकर भी नई मिसाल कायम कर सकता है.