scorecardresearch

राजस्थान में किस अनदेखी का शिकार हुए बाघ?

15 बाघों की गुमशुदगी के पीछे स्थानीय वन अधिकारियों की ढीली निगरानी व्यवस्था, राजनैतिक दबाव और आंकड़ों की अविश्वसनीयता है

रणथंभौर में चहलकदमी करता एक बाघ 
रणथंभौर में चहलकदमी करता एक बाघ 
अपडेटेड 25 नवंबर , 2024

शुरुआत में आई खबर काफी हैरान करने वाली थी—14 अक्टूबर को राजस्थान वन विभाग की एक रिपोर्ट में बताया गया कि प्रसिद्ध रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व में 25 बाघ 'लापता' हैं. इनमें से 14 जानवरों के बारे में कुछ महीनों से कोई जानकारी नहीं मिली थी जबकि 11 अन्य एक साल से अधिक समय से लापता थे. आधिकारिक गणना के मुताबिक, 2022 में रणथंभौर में बाघों की कुल संख्या 52 थी.

सबसे बड़ा डर: कहीं रणथंभौर का हश्र भी राजस्थान के सरिस्का वन्यजीव अभयारण्य जैसा न हो जाए, जहां 2006 में स्थानीय बाघों की आबादी खत्म हो गई थी. हालांकि, 6 नवंबर को अच्छी खबर आई. वन अधिकारियों को 25 में 10 बाघों के बारे में पता चल गया. इस पूरे प्रकरण में दो जांच के आदेश दिए जा चुके हैं. 4 नवंबर को राजस्थान के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) और मुख्य वन्यजीव वार्डन पवन कुमार उपाध्याय ने बाघों के गायब होने की जांच के आदेश दिए.

वहीं, तीन दिन बाद राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (डब्ल्यूसीसीबी) से इस मामले में विस्तृत खुफिया जानकारी जुटाने को कहा. एनटीसीए सदस्य सचिव गोविंद सागर भारद्वाज के नेतृत्व में एक टीम ने जयपुर पहुंचकर सीधे तौर पर नजर आए या ट्रैप कैमरों में कैद बाघों पर रिपोर्ट का आकलन किया, जो गिनती के लिए अपनाई जाने वाली एक सामान्य प्रक्रिया है.

इसके अलावा, जानवरों के पदचिह्नों का भी आकलन किया गया, जिसके जरिए भारत में बाघों की संख्या के बारे में अनुमान लगाया जाता है. बहरहाल, रणथंभौर में बाघों के 'लापता' होने की घटना बाघ संरक्षण से जुड़े सामान्य मुद्दों—आवास प्रबंधन, शिकार, मानव-पशु संघर्ष, बीमारियों और अवैध शिकार के खतरों—से आगे बढ़कर बाघों की संख्या अविश्वसनीय होने की समस्या की ओर भी ध्यान आकृष्ट करती है.

हालांकि, एनटीसीए की हर चार साल में होने वाली बाघ गणना अब कैमरों के इस्तेमाल के कारण अधिक विश्वसनीय हो गई है, लेकिन विशेषज्ञों को लगता है कि स्थानीय अधिकारियों की तरफ से मौतों, चोट-चपेट, शावकों के जन्म और बाघों के अन्य स्थानों पर जाने के कारण नजर न आने जैसी दिन प्रति दिन की गतिविधियों की निगरानी में लापरवाही बरतना असली समस्या है.

महाराष्ट्र राज्य पारिस्थितिकी पर्यटन विकास बोर्ड की गवर्निंग काउंसिल के सदस्य और राजस्थान राज्य वन्यजीव बोर्ड के पूर्व सदस्य सुनील मेहता कहते हैं, "सबसे अच्छा निगरानी मॉडल बाघों को स्थानीय लोगों के लिए कमाई का साधन बनाने वाला है, जो बाघों के साथ सह-अस्तित्व बनाते हैं, उन्हें ट्रैक करना जानते हैं और शिकारियों और बाहरी लोगों को पहचान सकते हैं. वे सामुदायिक रेंजर बन सकते हैं. ताड़ोबा (महाराष्ट्र में बाघ अभयारण्य) में इसे ठीक तरह से अमल में लाया जा रहा है."

क्यों मायने रखती है संख्या?

कभी-कभी वन अधिकारी बड़े-बड़े दावे करते हैं, जिसके आगे संख्याएं गौण हो जाती हैं. नवंबर 2023 में उन्होंने रणथंभौर में शावकों सहित बाघों की आबादी में 25 फीसद वृद्धि की घोषणा की, जिससे यह संख्या बढ़कर 88 हो गई. अगर परंपरागत तरीके से संख्याओं के अनुमान के बारे में बात करें तो लापता 15 बाघों को छोड़कर यह संख्या अनुमानित तौर पर करीब 66 है. अब सचाई चाहे जो भी हो लापता बाघों की संख्याओं को लेकर उठी चिंता उचित लगती हैं.

खासकर, यह देखते हुए कि कैसे राजस्थान के वन्यजीव विभाग ने आपदा से पहले सरिस्का में पदचिह्नों की घटती संख्या को बहुत हल्के में लिया था. राजस्थान में वन्य जीव संरक्षण की जिम्मेदारी संभाल रही फॉरेस्ट फोर्स के प्रमुख अरिजीत बनर्जी कहते हैं, "गुणवत्तापूर्ण आंकड़ों का निरंतर विश्लेषण करते हुए हमें लापता बाघों की पहचान में सक्षम होने के लिए अपनी निगरानी मजबूत करनी चाहिए."

इस पर बनर्जी का सुझाव है कि सूचना अपलोड करने के लिए एमएसटीआरआइपीईएस (बाघ निगरानी) ऐप के इस्तेमाल, निगरानी के लिए कैमरा ट्रैप सही जगह पर लगाना, और यह पक्का करना कि उनके मेमोरी कार्ड कॉपी करने के बाद ही फॉर्मेट कर फिर से लगाए जाएं,  बाघों को जीपीएस-युक्त उन्नत कॉलर लगाने जैसे कदम उठाए जा सकते हैं.

बनर्जी वनरक्षकों की कमी को पूरा करने के लिए टाइगर वॉच जैसे गैर-सरकारी संगठनों की भागीदारी और राजस्थान के रेंजरों के लिए बेहतर प्रशिक्षण की सिफारिश भी करते हैं. जाहिर तौर पर सुधार की काफी जरूरत है—रणथंभौर की परिधि में आने वाले 12 वॉच टावर में से 11 में कैमरे खराब हैं, जिससे उन क्षेत्रों में बाघों की आवाजाही के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाती है. पिछले कुछ हफ्ते विभाग के लिए मुश्किल भरे ही रहे.

14 अक्टूबर को एक रेडियो कॉलर वाली बाघिन लापता होने के एक महीने बाद मृत मिली. उसे 2023 में रामगढ़ विषधारी के नए बाघ अभयारण्य में स्थानांतरित किया गया था और फिर वह दशकों में बूंदी जिले में शावकों को जन्म देने वाली पहली बाघिन बन गई थी. 3 नवंबर को रणथंभौर में भीड़ ने बाघ टी-86 को पत्थरों, धारदार हथियारों और विस्फोटकों का इस्तेमाल कर बेरहमी से मार डाला, क्योंकि उसने एक ग्रामीण की जान ले ली थी. हालांकि, टी-86 ग्रामीण को अपना शिकार बनाने के बाद करीब 30 मिनट तक वहीं बैठा रहा लेकिन न तो अधिकारियों ने उसका पता लगाया और न ही उसे बचाने का कोई उपाय किया गया.

लोगों का यह भी मानना है कि टी-86 की हत्या से ध्यान भटकाने के लिए बाघों के लापता होने के मामले को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया; कुछ अधिकारी कह रहे हैं कि बाघों की आधी आबादी के लापता होने की बात प्रचारित करना वन अधिकारियों की आपसी गुटबाजी का नतीजा था. मेहता कहते हैं, "बाघों के लापता होने का विवाद जयपुर के अरण्य भवन (वन्यजीव एवं वन विभाग मुख्यालय) में अधिकारियों के बीच टकराव का नतीजा लगता है. उन्होंने 25 बाघों के लापता होने की जांच का आदेश देकर और अगले ही दिन इसे घटाकर 15 करके खुद ही अपनी पोल-पट्टी खोल दी है."

वजह चाहे जो भी हो, राज्य वन विभाग के सामने दो सवाल हैं: रणथंभौर में बाघों की वास्तविक संख्या कितनी है? और 15 लापता बाघों का महीनों बाद भी पता क्यों नहीं चल पाया? एक गैर-सरकारी संगठन टाइगर वॉच के लिए दो दशकों से अधिक समय से रणथंभौर में बाघों की स्वतंत्र रूप से गणना कर रहे वन्यजीव विशेषज्ञ धर्मेंद्र खंडाल का मानना है कि वयस्क बाघों की संख्या 25 और बाघिनों की संख्या 22 है, जो 2022 की गणना में सामने आई संख्या 52 से मेल खाती है.

इस तरह के आकलन में मृत्यु दर, अन्य क्षेत्रों में स्थानांतरण और शावकों की वयस्कता को भी ध्यान में रखा जाता है. फिर भी, पिछले नवंबर में 88 बाघ होने संबंधी दावा इस संख्या के साथ कतई मेल नहीं खाता. कुछ विशेषज्ञों की राय है कि नवंबर में विधानसभा चुनावों के मद्देनजर संख्या बढ़ा-चढ़ाकर पेश की गई ताकि राजनेता इसका श्रेय ले सकें. हालांकि, यह संभावना अधिक लगती है कि रणथंभौर से बाघों को मुकुंदरा और रामगढ़ विषधारी के नए रिजर्व में स्थानांतरित करने के लिए प्रमुख नेताओं की तरफ से लगातार डाला जा रहा दबाव इसकी एक वजह हो. इसके पीछे इरादा यह दर्शाना हो सकता है कि रणथंभौर में बाघों की आबादी ज्यादा होने की वजह से ही वे मानव बस्तियों में घुस रहे हैं.

इसी तरह, बहुत संभव है कि कुछ कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों ने रणथंभौर के बाघों को ऐसे नए अभयारण्यों, जहां मृत्यु दर अधिक है, में स्थानांतरित करने की मांग को रोकने के लिए लापता बाघों की संख्या बढ़ा-चढ़ाकर प्रचारित करने का फैसला किया हो.

चिंता का कारण

रणथंभौर में लापता बाघों पर अंतरिम रिपोर्ट में संख्या 14 बताई गई है. इनमें आठ बाघों के बारे में बताया गया है कि वे बूढ़े हो चुके हैं, जिनकी उम्र 12 वर्ष से अधिक है. भारद्वाज कहते हैं, "मेरी चिंता यह है कि हमें प्राकृतिक कारणों से मरने वाले बाघों के शव नहीं मिल रहे..." खंडाल की राय है कि बाघों के लापता होने की वजह अधिक तर्कसंगत ढंग से समझी जा सकती हैं. उनका कहना है कि उम्रदराज बाघों की मौत के अलावा कुछ जीव बीमार भी रहे हैं. वहीं, कम उम्र के बाघों में से कुछ कमजोर वयस्क मध्य प्रदेश या अन्य वन क्षेत्रों में चले गए होंगे.

हालांकि, ऐसा कोई औपचारिक अध्ययन नहीं हुआ है कि बाघ अभयारण्य में औसतन कितने बाघों का पता नहीं लग पाता लेकिन रणथंभौर में यह संख्या तीन है. इसलिए, अधिकारियों का कहना है कि उन्हें कम से कम आधा दर्जन बाघों के बारे में चिंता करनी चाहिए, जिन्हें एक साल से नहीं देखा गया है, और इनके कैमरे या लोगों की नजरों में न आने का कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया गया है.

बहरहाल, बाघों के लापता होने का यह सनसनीखेज खुलासा वन्यजीव विभाग की निगरानी को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए रणनीतियों पर पुनर्विचार की जरूरत बताता है. जाहिर है, देश में कोई भी रणथंभौर में सरिस्का जैसी घटना की पुनरावृत्ति नहीं देखना चाहेगा.

चिंता का कारण घोर लापरवाही और उदासीनता के कारण लापता हो रहे हैं बाघ

अक्टूबर में खबर आई कि 25 बाघ  'लापता' हो गए हैं, जिससे खतरे की घंटी बज उठी; 6 नवंबर को सूचना मिली कि इनमें से 10 का पता चल गया है; शेष 15 लापता बाघों की जांच के आदेश दिए गए हैं.

बाघों की गुमशुदगी से कमजोर निगरानी प्रणाली और इसलिए अविश्वसनीय आंकड़ों की समस्या उजागर होती है. रणथंभौर के बाहरी इलाकों में अधिकांश वॉचटावर कैमरे काम नहीं कर रहे हैं.

वन अधिकारी बाघों की संख्या को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं; पिछले साल रणथंभौर में यह संख्या 88 बताई गई थी.

कुछ लोगों का कहना है कि ऐसा नेताओं को श्रेय दिलाने और अन्य अभयारण्यों में बाघों के स्थानांतरण को जायज ठहराने के लिए किया जाता है.

कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि लापता बाघों का कारण मृत्यु, चोटें और कमजोर वयस्क बाघों का अन्य क्षेत्रों में निकल जाना हो सकता है.

इस बात का कोई जवाब नहीं है कि लापता बाघों की गुमशुदगी का पता पहले कैसे नहीं चला

Advertisement
Advertisement