तेलंगाना में सत्तारूढ़ कांग्रेस ने एक व्यापक सामाजिक-आर्थिक, रोजगार और जाति सर्वेक्षण शुरू किया है जिसका उद्देश्य पिछड़े वर्गों (बीसी) के लिए आरक्षण के दायरे को बढ़ाना है. यह सुप्रीम कोर्ट से निर्धारित आरक्षण की मौजूदा 50 फीसद की सीमा से ज्यादा होगा, जिसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं. सर्वेक्षण का काम 9 नवंबर को शुरू हुआ और शुरुआती दिनों में इसे नागरिकों के विरोध का सामना करना पड़ा. वे व्यक्तिगत जानकारी साझा नहीं करना चाहते थे.
सर्वे में करीब 1.175 करोड़ परिवारों को शामिल किया जाएगा, जिनमें से लगभग 28 लाख ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम क्षेत्र में हैं. इस सर्वे को लेकर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्पष्ट रूप से अलग-अलग प्रतिक्रिया देखी जा सकती है. ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग खेती में व्यस्त होने के बावजूद त्वरित प्रतिक्रिया देते हैं, शहरी लोग अपने आधार नंबर, आय विवरण और फोन नंबर साझा करने में हिचक दिखा रहे हैं.
साइबर सुरक्षा एजेंसियां अपने जागरूकता अभियानों के माध्यम से लोगों को सतर्क कर रही हैं कि फर्जीवाड़ा करने वाले लोग आजकल सर्वेक्षण के नाम पर लोगों से व्यक्तिगत जानकारियां जुटा लेते हैं और फिर फर्जी लिंक के जरिए बैंक खातों में सेंध लगा लेते हैं. इससे सर्वेक्षण कर रहे लोगों के लिए अपना काम पूरा करना चुनौतीपूर्ण हो रहा है.
इस सर्वे की तुलना मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी ने 'मेगा हेल्थ चेक' से की है, जिसका उद्देश्य जाति, धर्म, रोजगार और राजनैतिक सशक्तिकरण के बारे में आंकड़े तैयार करना है. इसमें पूछे जा रहे 75 सवालों में आराधना स्थलों तक पहुंच और अंतरजातीय विवाह से जुड़े सवाल भी शामिल हैं. रेड्डी ने कहा है कि उनके पूर्ववर्ती के. चंद्रशेखर राव ने 2014 में करवाए गए समग्र कुटुंब सर्वेक्षण के परिणामों को सार्वजनिक नहीं किया था लेकिन वे इस सर्वे के परिणामों को सार्वजनिक करेंगे. आंकड़ों का उपयोग कल्याण और विकास कार्यक्रमों की योजना बनाने के लिए किया जाएगा.
सर्वेक्षण के निष्कर्षों के आधार पर कांग्रेस की सर्वोच्च प्राथमिकता पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण को बढ़ाना है. सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक, 50 फीसद से ज्यादा आरक्षण के लिए सटीक आंकड़ों का होना जरूरी है. रेड्डी की योजना है कि पहले आंकड़े जुटाए जाएं और फिर संविधान में संशोधन किया जाए. उन्होंने पिछले हफ्ते मुंबई में मीडिया से बातचीत में कहा, "मेरी सरकार ने यह मांग करते हुए कैबिनेट में प्रस्ताव पारित किया कि केंद्र की एनडीए सरकार देशभर में जाति जनगणना कराए."
आरक्षण की सीमा बढ़ाने के लिए विश्लेषकों का कहना है कि सर्वे के निष्कर्ष तेलंगाना के परिवारों की स्थिति के साथ-साथ उसकी सामाजिक और आर्थिक संरचना पर एक नया दृष्टिकोण प्रदान करेंगे. हैदराबाद के नलसार विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान पढ़ाने वाले हरति वागीशन कहते हैं, ''इससे सरकार को लंबे समय में चुनावी-राजनैतिक लाभ के लिए सोशल रीइंजीनियरिंग में मदद मिल सकती है.'' इससे कांग्रेस को स्थानीय निकाय चुनाव में राजनैतिक कोटा तय करने में मदद मिल सकती है.
एक और लाभ यह है कि सर्वे से कांग्रेस को 2025 की राष्ट्रीय जनगणना में जाति को एक श्रेणी के रूप में शामिल करने पर जोर देने में मदद मिल सकती है. तेलंगाना सर्वेक्षण के नतीजे भारत में शासन व्यवस्था के एक नए युग की नींव रख सकते हैं.
आरक्षण
सर्वे का मकसद पिछड़े वर्ग के कोटे को बढ़ाना है जो सुप्रीम कोर्ट की तय मौजूदा सीमा से आगे निकल जाएगा
दायरे में आने वाले 1.17 करोड़ परिवारों में से शहरी क्षेत्र के 28 लाख, साइबर सिक्योरिटी खतरे को देखते हुए ब्यौरे देने से झिझक रहे.
कुल 75 सवालों में ये भी शामिल हैं कि क्या पूजाघरों तक उनकी पहुंच है और क्या उनमें अंतरजातीय विवाह हो रहे हैं?