
बीहड़ों ने बॉलीवुड को कभी निराश नहीं किया है. सुनील दत्त अभिनीत मुझे जीने दो (1963) हो या पुतली बाई (1972), सनी देओल की मुख्य भूमिका वाली डकैत (1987) या फिर बैंडिट क्वीन (1994) और पान सिंह तोमर (2012)—डकैतों पर केंद्रित फिल्मों की शूटिंग करने के लिए मध्य प्रदेश बीते छह दशक से सबसे पसंदीदा स्थलों में रहा है. यह स्वाभाविक भी है क्योंकि डकैतों की असल जिंदगी के गवाह बने चंबल के बीहड़ यहीं पर हैं.
मगर पिछले पांच वर्षों में बॉलीवुड ने महसूस किया कि यह सिर्फ घोड़ों पर भागते डकैतों और उनका पीछा करते पुलिसवालों को दिखाने के लिए ही आदर्श स्थल नहीं है, बल्कि शूटिंग के लिहाज से यहां और भी बहुत कुछ है. अब मध्य प्रदेश फिल्मों और ओटीटी शो की शूटिंग के लिए सबसे पसंदीदा स्थलों में से एक बनता जा रहा है. हालिया वर्षों में राज्य में करीब 400 फिल्मों और ओटीटी की आंशिक या फिर पूरी शूटिंग हुई है.
वैसे तो 1950 के दशक में बनी नया दौर, तीसरी कसम और श्री 420 जैसी सदाबहार क्लासिक फिल्मों की थोड़ी-बहुत शूटिंग मध्य प्रदेश में हुई थी, मगर 2010 के दशक तक राज्य में फिल्मों की शूटिंग इंदौर, भोपाल और ग्वालियर तक ही सीमित रही. वह तो निर्देशक प्रकाश झा ने मध्य प्रदेश में नई-नई लोकेशन खोजीं और राजनीति (2008) से शुरू करके आरक्षण (2011), चक्रव्यूह (2012) और गंगाजल-2 (2016) जैसी फिल्मों की शूटिंग यहीं पर की. लेकिन मार्च 2020 में आई राज्य सरकार की फिल्म पर्यटन नीति (एफटीपी) एक गेमचेंजर साबित हुई. इसका प्रमुख उद्देश्य एकल खिड़की के जरिए कई तरह की अनुमतियां लेना आसान बनाना था ताकि राज्य में फिल्म शूटिंग सुविधाजनक हो. इसने नौकरशाही के स्तर की दिक्कतों को काफी हद तक दूर कर दिया है.
फिल्म पर्यटन नीति के तहत मध्य प्रदेश में फिल्मों की शूटिंग पर सब्सिडी भी दी जाती है. वैसे यह उत्पादन लागत का बेहद मामूली हिस्सा होती है. आवेदन फिल्म निर्माण के बाद करना होता है और दावा तभी किया जा सकता है जब कुछ निर्धारित शर्तें पूरी की गई हों, जिसमें किसी प्रोजेक्ट की कम से कम 50 फीसद शूटिंग मध्य प्रदेश में होना शामिल है. लेकिन आम धारणा के विपरीत, राज्य सिर्फ सब्सिडी की वजह से बॉलीवुड दिग्गजों को नहीं लुभा रहा. सच तो यह है कि 2020 से अब तक 400 से ज्यादा फिल्मों की शूटिंग के बावजूद केवल 16 ने सब्सिडी के लिए आवेदन किया और यह राशि हासिल की, जो फिल्म के लिए 2 करोड़ रुपए और ओटीटी के लिए एक करोड़ रुपए है.
इसकी वजह बताते हुए प्रदेश के प्रमुख सचिव, पर्यटन और संस्कृति, शिव शेखर शुक्ल कहते हैं, "फिल्म पर्यटन नीति का एक प्रमुख उद्देश्य राज्य में फिल्म निर्माण के उपयुक्त माहौल का निर्माण करना है." प्रदेश सरकार ने इसी कोशिश के तहत देवास और जबलपुर में सार्वजनिक निजी भागीदारी मॉडल पर फिल्म सिटी विकसित करने के लिए कुछ साइट की पहचान की है. फिल्म संबंधी कार्यों के लिए तकनीकी और गैर-तकनीकी प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है. शुक्ल के मुताबिक, "इस प्रक्रिया में स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के मौके भी बढ़ रहे हैं. जबसे मध्य प्रदेश में बड़े पैमाने पर फिल्मों की शूटिंग शुरू हुई है, स्थानीय लोगों को फिल्मों में बतौर अभिनेता भूमिकाएं मिलना भी बढ़ गया है."
सबसे बड़ी बात यह कि शूटिंग बढ़ने से लाइन प्रोड्यूसर के तौर पर काम करने वाली कई कंपनियां बन गई हैं. वे मुंबई से आने वाली फिल्म यूनिटों को परिवहन, स्थानीय अभिनेता, लोकेशन परमिट, बोर्डिंग और लॉजिंग, सुरक्षा और उपकरण जैसी रसद सहायता उपलब्ध कराती हैं. भोपाल की लाइन प्रोडक्शन कंपनी जील जेड एंटरटेनमेंट सर्विसेज के निदेशक सैयद जैद अली कहते हैं, "2008 तक मध्य प्रदेश में 32 फिल्में शूट हुई थीं, पर 2008 के बाद, खासकर बीते पांच साल में इनमें खासा उछाल आया है."
अली का दावा है कि उनकी कंपनी ने हालिया वर्षों में प्रदेश में 431 फिल्मों की शूटिंग से जुड़ा कामकाज संभाला. उनके मुताबिक, "पहले फिल्मों की शूटिंग ज्यादातर मुंबई, चेन्नै और हैदराबाद जैसे महानगरों में होती थी. फिर भारत की असली तस्वीर का अनुभव कराने के लिए निर्देशकों ने यूपी-बिहार जाना शुरू कर दिया. धीरे-धीरे उन्हें एहसास हुआ कि गैर-महानगरीय विकल्पों में मध्य प्रदेश कानून-व्यवस्था के लिहाज से सबसे अच्छा है." वे प्रदेश में काफी विविधता वाले और 'बेजोड़' शूटिंग स्थल होने का जिक्र करते हुए कहते हैं, "खजुराहो, ग्वालियर, ओरछा और मांडू में विरासत स्थल हैं तो कान्हा, बांधवगढ़ और पचमढ़ी के जंगल और गांव ग्रामीण भारत को दर्शाते किसी भी प्रोजेक्ट की शूटिंग के लिए आदर्श स्थल हैं."
फिल्म शूटिंग से राज्य को टैक्स से लेकर होटल बुकिंग तक काफी राजस्व प्राप्त होता है. इसमें कोई हैरानी नहीं कि विभिन्न राज्यों में फिल्मों की शूटिंग अपने यहां कराने को लेकर होड़ लगी है. यही वजह है कि यूपी, पंजाब, गुजरात और आंध्र प्रदेश आदि ने फिल्म नीतियों की घोषणा की है.
मध्य प्रदेश में शूटिंग की हालिया परियोजनाओं में पंगा (2020), लूडो (2020), संजू (2018), स्त्री (2018), स्त्री-2 (2024), लापता लेडीज (2023), भूल भुलैया-3 (2024) और हिट वेब सीरीज पंचायत (2020) और द सूटेबल बॉय (2020) आदि शामिल हैं. चंदेरी में फिल्माई गई स्त्री-2 अब तक की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली हिंदी फिल्म है और लापता लेडीज अब भारत की ओर से ऑस्कर में दस्तक दे चुकी है. प्रदेश फिल्म निर्माताओं के लिए भाग्यशाली साबित हो रहा है और यह उनके लिए फिल्में यहां शूट करने का एक और कारण भी है.

कमाल के आउटडोर
> पिछले चार वर्षों में 400 से ज्यादा फिल्मों और ओटीटी की शूटिंग के साथ मध्य प्रदेश बॉलीवुड फिल्म निर्माताओं के लिए एक नया पसंदीदा राज्य बना
> 2020 की फिल्म पर्यटन नीति गेमचेंजर साबित हुई, जो फिल्में बनाने के लिए सुविधाजनक माहौल मुहैया करा रही है
> प्रोडक्शन कंपनी, होटल और ट्रांसपोर्ट बुकिंग के जरिए रोजगार के अवसर बढ़े, स्थानीय कलाकारों को भी मौका मिल रहा
> इससे राज्य का राजस्व भी बढ़ रहा