भारत में वैसे तो गाय को पूजनीय पशुधन माना जाता है लेकिन महाराष्ट्र अपनी भैंसों की भी परवाह करने में पीछे नहीं है. कम से कम जंगली जल भैंस (बुबैलस अर्नी) प्रजाति की तो सुध ले ही रहा है. दुनियाभर में जंगली जल भैंसों की कुल आबादी का 91 फीसद हिस्सा भारत में ही पाया जाता है, जहां इनकी तादाद करीब 3,400 है. एक 'लुप्तप्राय' जीव के तौर पर इसे आइयूसीएन यानी अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ की रेड लिस्ट में शामिल किया गया है तो वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची-1 के तहत इसे बाघों और हाथियों जैसे जानवरों की तरह संरक्षित जीवों की श्रेणी में रखा गया है.
अधिकांश भारतीय जंगली भैंसें पूर्वोत्तर, खासकर असम में हैं. नरम घास के मैदानों, दलदलों और घनी वनस्पति वाली नदी घाटियों में मिलने वाले इस जीव की एक छोटी आबादी—तकरीबन 60—मध्य भारत में भी है, जो महाराष्ट्र के कोलामरका-कोपेला जंगलों और छत्तीसगढ़ में इंद्रावती और उदंती-सीतानदी बाघ अभयारण्यों तक बिखरी है. जंगली भैंसे को अपने प्राकृतिक आवास में खाद्य शृंखला और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के लिहाज से अहम माना जाता है, इसीलिए महाराष्ट्र राज्य वन्यजीव बोर्ड (एमएसबीडब्ल्यूएल) ने उनके बंदी प्रजनन (प्राकृतिक आवास के बाहर नियंत्रित वातावरण में प्रजनन) की मंजूरी दे दी है.
पिछले माह मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अध्यक्षता में एमएसबीडब्ल्यूएल की एक बैठक में कहा गया कि यह कार्यक्रम भैंसों के संरक्षण का पूरक होगा और उन्हें बाद में जंगलों में छोड़ दिया जाएगा. वन मंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने इंडिया टुडे को बताया, "जंगली भैंसों की आबादी में कमी आई है और यह कार्यक्रम उनकी संख्या बढ़ाने का एक प्रयास है."
महाराष्ट्र सरकार ने भैंसों के संरक्षण के लिए 2013 में गढ़चिरौली जिले के कोलामरका में 180.72 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र कंजर्वेशन रिजर्व घोषित किया था. 2022 में इसे वन्यजीव अभयारण्य बना दिया गया. 2017 के एक अनुमान के मुताबिक, कोलामरका में 22 जंगली भैंसे हैं. वन विभाग के एक अधिकारी का कहना है कि कोलामरका में पाए जाने वाले झुंड की संख्या 25 से 50 के बीच है. अधिकारी बताते हैं, "इन जानवरों की सही संख्या पता लगाना आसान नहीं है क्योंकि ये दोनों राज्यों के बीच आते-जाते रहते हैं जो इस पर निर्भर है कि इंद्रावती नदी का जलस्तर कितना है. लगता है कि छत्तीसगढ़ में दो झुंड हैं और महाराष्ट्र में एक अलग झुंड है." बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) के निदेशक और एमएसबीडब्ल्यूएल के सदस्य किशोर रीठे कहते हैं, "जंगली भैंसें डेयरी उद्योग का स्रोत हैं क्योंकि घरेलू भैंसें उन्हीं से जन्मी हैं. इसलिए, जंगली आबादी की रक्षा करना आवश्यक है." बीएनएचएस मध्य भारत के क्षेत्रों में जंगली भैंसों के बंदी प्रजनन और उन्हें फिर उनके प्राकृतिक आवासों में छोड़ने संबंधी प्रस्ताव तैयार कर रहा है.
रीठे बताते हैं, "प्रजनन परियोजना के तहत कोलामरका और असम से जंगली भैंसों को चरणबद्ध तरीके से नागपुर के गोरेवाड़ा चिड़ियाघर लाया जाएगा...गर्भाधान में सफलता के बाद पशुओं को गोरेवाड़ा में रखा जाएगा जबकि बाकी जानवरों को पेंच, ताडोबा अंधारी और नवेगांव-नागजीरा बाघ अभयारण्यों में जंगल में छोड़ दिया जाएगा." बीएनएचएस पत्रिका हॉर्नबिल के लिए लिखे गए एक लेख में रीठे कहते हैं कि मध्य भारत में जंगली भैंसों की आबादी फिर बढ़ाने के लिए आनुवंशिक तौर पर शुद्ध जंगली भैंसों की बंदी प्रजनन आबादी होना जरूरी है.