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तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी का हाल लुटी-पिटी विरासत के बादशाह जैसा क्यों हो गया?

बेभाव उधारियां उठाकर केसीआर ने तेलंगाना का दीवाला ही निकाल दिया. उनके इस फितूर का खामियाजा अगले एक दशक तक राज्य को उठाना पड़ेगा

तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी
तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी
अपडेटेड 9 अक्टूबर , 2024

यह स्वतंत्रता दिवस पर उनका पहला संबोधन था, लेकिन मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी के पास अपने लोगों के लिए कम ही कोई अच्छी खबर थी. उन्होंने कहा, "तेलंगाना का कर्ज का बोझ 2014 में राज्य बनने के बाद 10 गुना हो गया है. उस वक्त कुल कर्ज 75,577 करोड़ रुपए था... मार्च में यह 7 लाख करोड़ रुपए हो गया." इससे मुक्ति का एक जाहिर रास्ता था: अगस्त के आरंभ में उनकी अमेरिका यात्रा के दौरान विश्व बैंक ने ऊंची लागत वाले कुछ कर्ज चुकाने में दिलचस्पी दिखाई. मुख्यमंत्री ने उम्मीद जताई कि इससे पिछली के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) सरकार की ''अंधाधुंध उधारियों'' के जरिए राज्य पर थोपा गया बोझ कम होगा.

कांग्रेस सरकार ने राज्य की माली हालत पर अब श्वेत पत्र जारी किया है. रेवंत ने जोर देकर कहा, "मेरी सरकार ऊंची ब्याज दरों पर रकम उधार लेकर लोगों पर भारी बोझ डालने की गलती नहीं करेगी. वित्तीय अड़चनों के बावजूद सरकार अभय हस्तम (कांग्रेस के घोषणापत्र में दी गई कई गारंटियों) के चुनाव-पूर्व वादे पूरे करने की हर कोशश कर रही है." इस फेहरिस्त में सबसे ऊपर 2 लाख रु. तक के कर्ज माफ करने की मुश्किल चुनौती थी, जिसके लिए राज्य के खजाने से 31,000 करोड़ रुपए जाने थे. हालांकि पार्टी के राजनैतिक विरोधी कर्ज माफी योजना को गड़बड़ बताते हैं, पर सरकार ने अपनी किसान-हितैषी छवि को साबित करने के लिए इसे अंजाम दिया.

नाजुक माली हालत

साल 2014 में आंध्र प्रदेश से अलग होकर बनने के बाद तेलंगाना ने राजस्व-अधिशेष (सरप्लस) राज्य के रूप में शुरुआत की थी. तो इन 10 साल में क्या हुआ जब राज्य में केसीआर की भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की हुकूमत थी? नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने 2022-23 की अपनी रिपोर्ट में बताया कि कुल देनदारियों में चिंताजनक बढ़ोतरी हुई और कर्ज का ब्याज ही चुकाने का बोझ इस कदर बढ़ता गया कि इसे संभाला नहीं जा सकता. रिपोर्ट में कहा गया, "बकाया कर्ज राज्य के सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का 35.6 फीसद है, जो 15वें वित्त आयोग की तरफ से मंजूर 29.7 फीसद की सीमा से कहीं ज्यादा है."

रेवंत ने 10 सितंबर को हैदराबाद में अरविंद पानगड़िया की अध्यक्षता में हुई 16वें वित्त आयोग की बैठक में कहा, "अर्थव्यवस्था के अच्छी होने के बावजूद हम भारी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. वित्त वर्ष 2023-24 के आखिर में तेलंगाना पर 6.8 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा कर्ज का भारी बोझ है." राज्य ने कर्ज के पुनर्गठन के लिए अतिरिक्त सहायता या मंजूरी के लिए गुहार लगाई है. मुख्यमंत्री ने अफसोस के साथ कहा, "अगर हम कर्ज और ब्याज के भुगतान को नहीं संभाल पाते हैं तो प्रगति धीमी पड़ जाएगी." उन्होंने बताया कि किस तरह तेलंगाना का जीएसडीपी 12.9 फीसद की सीएजीआर से बढ़ रहा है, जो भारत की 10.1 फीसद की वृद्धि दर से ज्यादा है. तेलंगाना का राष्ट्रीय जीडीपी में योगदान 5.1 फीसद है जबकि आबादी में उसकी हिस्सेदारी औसतन 2.8 फीसद है. भारत के 1 लाख रु. के औसत के मुकाबले राज्य की प्रति व्यक्ति आमदनी (पीसीआइ) 3.5 लाख रु. है.

तेलंगाना की बदहाली तमिलनाडु के मुकाबले थोड़ी ही बेहतर है. राज्यों में सबसे ज्यादा तकरीबन 8.3 लाख करोड़ रुपए (मार्च 2024 के अंत में आंका गया) के कर्ज का बोझ तमिलनाडु पर है. राज्य पुनर्गठन से बने एक और राज्य हरियाणा का अनुमान है कि उसकी कर्ज की देनदारियां 2024-25 के आखिर तक 3 लाख करोड़ रुपए पार कर जाएंगी. हरियाणा वही राज्य है जिससे तेलंगाना बनने से पहले 'अलग राज्य' का अभियान चलाने वाले उसकी तुलना किया करते थे.

तेलंगाना के कर्ज का काफी अहम हिस्सा 1.2 लाख करोड़ रु. की ऑफ-बजट बॉरोइंग (ओबीबी) यानी बजट से बाहर ली गई उधारियों का है, जिसका बड़ा हिस्सा (66,854 करोड़ रु.) कालेश्वरम सिंचाई परियोजना निगम लिमिटेड (केआइपीसीएल) के लिए लिया गया है. ओबीबी चुकाने की अधिकतम अवधि 14 साल थी और कालेश्वरम परियोजना के कर्ज का ब्याज चुकाने की ही देनदारियां अगले 10 साल तक करीब 1.4 लाख करोड़ रु. बैठती हैं. सीएजी रिपोर्ट कहती है, "इससे राज्य की माली हालत पर भारी बोझ पड़ेगा, जिससे उनके लिए गंभीर बाधाएं खड़ी हो जाएंगी. और निकट भविष्य में कोई भी विकास योजना बनाने की राज्य की क्षमता बहुत सीमित हो जाएगी."

बिजली की जनोपयोगी सेवा के बारे में रिपोर्ट में बताया गया कि करीब 16,000 करोड़ रु. का इस्तेमाल कैसे किया गया, इसका कोई ब्योरा नहीं दिया गया. दी गई गारंटियों के जोखिम के आकलन से संबंधित दस्तावेज भी नहीं दिए गए. सीएजी ने कहा, "जिन गारंटियों को प्रत्यक्ष 100 फीसद देनदारी की श्रेणी में रखा जाना चाहिए था, उन्हें भी मध्यम से बहुत कम जोखिम की श्रेणी में रखा जा रहा था."

सीएजी की रिपोर्ट से भेड़ वितरण और पालन और गरीब गर्भवती माताओं के लिए 'केसीआर किट' सरीखी जनकल्याण योजनाओं में भी सुस्त प्रदर्शन और जवाबदेही की कमी का खुलासा होता है. हालांकि सरकार ने दावा किया कि अस्पताल में प्रसव, शिशु मृत्यु दर (आइएमआर) और मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) के आंकड़े सुधारने के लिए लाई गई 'केसीआर किट' प्रत्यक्ष लाभ योजना का फायदा 14 लाख गर्भवती माताओं को मिला, लेकिन 1,261.7 करोड़ रु. के वर्ष-वार भुगतान के रिकॉर्ड ऑडिट के लिए उपलब्ध नहीं थे. सरकारी स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं में प्रसव से जन्मे अत्यधिक गरीब परिवार के लड़कों के लिए 12,000 रु. और लड़कियों के लिए 13,000 रु. का भुगतान सरकार को करना था.

भेड़ पालन योजना के लाभार्थियों की जानकारी के रखरखाव और जानवरों को लाने-ले जाने के प्रमाण के तौर पर बिल और चालान रखने में गंभीर खामियां थीं. पारंपरिक चरवाहा परिवारों को टिकाऊ आजीविका प्रदान करने के लिए यह योजना 2017 में लाई गई थी. पशुधन उद्योग के विशेषज्ञों ने तब भी आगाह किया था कि इनमें से ज्यादातर भेड़ें जल्द ही "बिरयानी प्रेमियों की थाली" में होंगी. ऑडिट में फर्जी वाहन पंजीकरण संख्या वाले ऐसे चालानों का पता चला जिनमें मुमकिन या इजाजत से ज्यादा भेड़ों को लाना-ले जाना और यहां तक कि भेड़ों की 'रिसाइक्लिंग' (एक ही जानवर अलग-अलग लाभार्थियों को दिया जाना) भी दिखाई गई है. कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद शुरू की गई भ्रष्टाचार-विरोधी और सतर्कता जांच से अब तक 254 करोड़ रुपए की संदिग्ध धोखाधड़ी का पता चला है.

सीएजी रिपोर्ट एक और कड़वी हकीकत पर रोशनी डालती है. ऑडिट से पता चला कि दलित बंधु योजना, ग्रामीण और शहरी गरीबों के लिए 2बीएचके मकान बनाने की योजना और जनकल्याण गतिविधियों के लिए विशेष विकास निधि के लिए बजट में मंजूरियां तो दी गईं पर इन मदों में विशाल धनराशियां खर्च ही नहीं की गईं.

अच्छी बात यह थी कि बीआरएस ग्रेटर हैदराबाद के विकास के लिए निवेश लाने और शहरी अर्थव्यवस्था की वृद्धि तेज करने का उचित ही दावा कर सकती है. मगर विश्लेषकों का कहना है कि इसमें और खासकर सिंचाई व बिजली की जनोपयोगी सेवाओं के विकास सरीखे बेहद अहम बुनियादी ढांचे में भी संदिग्ध सौदों की भरमार है.

महंगा गड़बड़झाला

ऐसे में केसीआर की विरासत महंगा गड़बड़झाला ही है. सीएजी का कहना है कि तेलंगाना को अगले दस साल में अकेले बाजार से ली गई उधारियों पर ही मूलधन और ब्याज के रूप में 2.7 लाख करोड़ रुपए चुकाने होंगे. इसमें अन्य वित्तीय संस्थाओं से ली गई उधारियों पर देय 19,210 करोड़ रुपए के मूलधन का भुगतान शामिल नहीं है. बाजार से ली गई उधारियों का खासा बड़ा हिस्सा पीएसयू, विशेष प्रयोजन (एसपीवी) और स्वायत्त निकायों (एबी) को कर्ज और अग्रिम देने के लिए भी इस्तेमाल किया गया ताकि वे बजट से बाहर की उधारियों का ब्याज चुका सकें. समग्र ऋण स्थिरता से पता चलता है कि ओबीबी का ब्याज चुकाने में गई धनराशियों पर विचार करने के बाद सरकार का सार्वजनिक ऋण नकारात्मक होगा.

विश्लेषकों का कहना है कि कर्ज की साज-संभाल को नजरअंदाज करते हुए भारी उधारियों पर निर्भर रहने ने ही राज्य को इस मुकाम पर ला पटका है. बुनियादी ढांचे की फिजूलखर्च परियोजनाओं (मसलन, सिंचाई और बिजली क्षेत्र की) के अलावा अन्य मसलों में गैरजरूरतमंदों को सब्सिडी देना, पारदर्शिता न होना, किसानों को दी गई कर्ज राहत, राज्य की जनोपयोगी सेवा को कर्ज के जाल में धकेल देने वाली मुफ्त बिजली, कर्ज पर ब्याज सब्सिडी शामिल हैं. इन स्पष्ट सब्सिडियों में पैसा लगाने के लिए उधारियों पर निर्भर करना टिकाऊ रणनीति नहीं है, क्योंकि यह बेहद अहम बुनियादी ढांचे के विकास और निवेश के लिए उपलब्ध संसाधनों को लील लेता है और अब तेलंगाना की आर्थिक वृद्धि में बाधा बन गया है.

आलोचकों का कहना है कि राज्य के लोगों का यह भारी नुकसान उन्हीं केसीआर ने किया जो आंध्र इलाके के साथी तेलुगु लोगों के हाथों तेलंगाना के लोगों के शोषित होने का दावा करते थे और राज्य के लिए इतने प्राणपण से लड़े थे.

6.9 लाख करोड़ रुपए तेलंगाना की कुल देनदारी थी मार्च 2024 तक (8.3 लाख करोड़ रु. के साथ तमिलनाडु शीर्ष पर)

16,000 करोड़ रुपए के खर्च का कोई ब्योरा नहीं दिया है बिजली कंपनियों ने

1,262 करोड़ रुपए के केसीआर किट योजना के खर्च का ब्योरा नहीं मिला. यह योजना गर्भवती महिलाओं के लिए थी

शुद्ध सफेद हाथी

और खैंचो केएलआइएस प्रोजेक्ट के तहत 2019 में एक नहर का मुआयना करते केसीआर

अपनी तरह की दुनिया की सबसे बड़ी परियोजना के रूप में प्रचारित कालेश्वरम लिफ्ट सिंचाई स्कीम (केएलआइएस) की नियति में ही नाकामी लिखी थी. यह सीएजी की ऑडिट परफॉर्मेंस रिपोर्ट में कहा गया है. इसमें परियोजना की लागत में भारी वृद्धि, ठेकेदारों को संभावित अनुचित लाभ और इसकी खराब योजना का ब्योरा दिया गया है. इसकी लागत 1.5 लाख करोड़ रुपए से अधिक हो सकती है जबकि 2018 में बीआरएस सरकार ने केंद्रीय जल आयोग को इसकी लागत 81,911 करोड़ रु. बताई थी. 

केएलआइएस के मामले में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज पी.सी. घोष और बिजली परियोजना की लागत तथा बिजली खरीद समझौतों के मामलों में जज मदन एस. लोकुर की न्यायिक जांच के समक्ष पेश हुए अफसरों ने संकेत दिया है कि कई फैसले अजीब थे और उन्हें केसीआर के इशारे पर लिया गया था.

रिपोर्ट में कहा गया है कि केएलआइएस परियोजना के लिए एक साथ प्रशासनिक मंजूरी नहीं दी गई थी. उसके बजाए, 1.1 लाख करोड़ रु. की कुल 73 अलग-अलग स्वीकृतियां थीं. 86,788.1 करोड़ रु. (मार्च 2022 तक) की कुल लागत में से 55,807.9 करोड़ रु. (64.3 फीसद) एक एसपीवी, कालेश्वरम सिंचाई परियोजना निगम लिमिटेड की ओर से बजटेतर उधार के जरिए जुटाए गए. ऑडिट में संदेह जताया गया कि पंप, मोटर आदि की आपूर्ति और कमिशन में ठेकेदारों को कम से कम 2,685 करोड़ रु. का अनुचित लाभ दिया गया.

निविदा के बाद मूल्य निर्धारण उपबंध को शामिल करने से 1,342.5 करोड़ रु. का अतिरिक्त भुगतान करना पड़ा. आलोचकों का आरोप है कि इस पैसे के कुछ हिस्से को चुनावी बॉन्ड के जरिए बीआरएस में भेज दिया गया था. एसबीआइ के दस्तावेज बताते हैं कि पार्टी ने 1,214 करोड़ रु. के बॉन्ड भुनाए.

प्रोजेक्ट का लागत-लाभ अनुपात (सीबीआर) भी बढ़ाया गया था; 1.5 लाख करोड़ रु. की नवीनतम परियोजना लागत के साथ यह 0.52 हो गया है. यानी कि प्रोजेक्ट पर खर्च किए प्रत्येक रुपए पर केवल 52 पैसे मिलेंगे. ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि "यह साफ तौर पर संकेत करता है कि परियोजना शुरू से ही आर्थिक रूप से नाकाम थी."

बेतरतीब योजना हर जगह नजर आती है. जब सभी पंप संचालित होते हैं तो पीक ऊर्जा की मांग राज्य को प्राप्त औसत दैनिक बिजली (2021-22) से अधिक होगी. इसलिए लिफ्ट सिंचाई के लिए बिजली उपलब्ध कराना भी चुनौती होगी. और, 18 लाख एकड़ के लक्षित कमान एरिया के मुकाबले, अब तक केवल 40,888 एकड़ ही तैयार हुआ है.

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