मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) में अनियमितताओं के जरिए अपनी पत्नी को लाभ दिलाने के आरोपों से घिरने के करीब तीन महीने बाद कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरामैया के लिए हालात और विकट हो गए हैं. कर्नाटक हाइकोर्ट ने 24 सितंबर को मुख्यमंत्री की वह याचिका खारिज कर दी जिसमें एमयूडीए की तरफ से 55.8 करोड़ रुपए के आवासीय भूखंड आवंटित किए जाने की जांच के लिए राज्यपाल की मंजूरी को चुनौती दी गई थी.
उम्मीद के मुताबिक, विपक्ष ने उन पर पद छोड़ने का दबाव बढ़ा दिया. मगर सिद्धरामैया ने बड़ी पीठ के सामने अपील दायर करके पद पर बने रहने और कानूनी लड़ाई लड़ने का फैसला किया. अदालत के फैसले के कुछ घंटे बाद उन्होंने कहा, "सभी मंत्री, विधायक और पार्टी आलाकमान मेरे साथ हैं." विपक्ष पर उन्हें हटाने की कोशिश के लिए 'राजभवन का दुरुपयोग करने' का आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री ने यह भी कहा, "मैं भाजपा और जेडी (एस) की साजिशों से नहीं डरता क्योंकि कर्नाटक के लोग मेरे साथ हैं."
सिद्धरामैया के खिलाफ आरोप एमयूडीए की तरफ से 2022 में उनकी पत्नी बी.एम. पार्वती को 14 आवासीय भूखंड आवंटित करने से जुड़े हैं. ये भूखंड उन्हें मैसूरू के बाहरी छोर पर उनकी मिल्कियत वाली 3.16 एकड़ जमीन पर अतिक्रमण के मुआवजे के तौर पर दिए गए थे. हालांकि यह उस वक्त हुआ था जब भाजपा कर्नाटक की सत्ता में थी, पर राज्यपाल थावरचंद गहलोत को दी गई तीन अलग-अलग शिकायतों में तीन दशक लंबे वक्त के दौरान अनियमितताएं होने का आरोप लगाया गया.
इनमें कहा गया कि 1992 में एमयूडीए ने मूलत: कृषि भूमि रही इस 3.16 एकड़ जमीन को अधिग्रहण के लिए अधिसूचित किया, फिर अधिसूचना रद्द करके इसे अधिग्रहण से हटा दिया गया, और उसके बाद इसे पार्वती के भाई ने खरीदकर 2010 में उन्हें तोहफे में दे दिया. राज्यपाल के दफ्तर ने भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम 1988 की धारा-17ए और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) का हवाला देते हुए मुख्यमंत्री के खिलाफ जांच और मुकदमा चलाने को मंजूरी दे दी.
अदालत का फैसला सिद्धरामैया के लिए झटका है. उन्होंने दलील दी थी कि राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सलाह को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए था, जो उनके लिए बाध्यकारी थी, और धारा 17ए के तहत मंजूरी की शुरुआत मानक कार्य प्रक्रिया के मुताबिक पुलिस अफसर की तरफ से ही हो सकती थी. न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना ने आदेश में कहा, "सामान्य परिस्थितियों में राज्यपाल को भारत के संविधान के अनुच्छेद 163 के तहत अस्तित्व में आई मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से काम करना होता है, पर अपवाद परिस्थितियों में वह स्वतंत्र निर्णय ले सकता है."
मुख्यमंत्री के कानूनी सलाहकार ए.एस. पोन्नन्ना का कहना है कि बीएनएसएस की धारा 218 के तहत—जिसे अदालत ने समय-पूर्व कहकर अनदेखा कर दिया—यह बताने की जरूरत होती है कि प्रथम दृष्ट्या अपराध हुआ है जबकि पीसी अधिनियम की धारा 17ए के तहत मंजूरी वहीं दी जाती है जहां संदेह या आरोप मौजूद होता है. पद छोड़ने की मांगों के जवाब में सिद्धरामैया ने कहा, "यह केवल जांच है. इसमें ही आप इस्तीफा मांग रहे हैं." पूरी कार्यवाही के दौरान मुख्यमंत्री की दलीलें ये थीं कि 1992 से लेकर उनकी पत्नी को मुआवजे के तौर पर जगहें मंजूर किए जाने तक हर काम कानून के मुताबिक हुआ और मुआवजा स्थलों की मंजूरी के लिए वे कोई अकेली आवेदक नहीं थीं. 112 लोग और थे जिनकी जमीनें अधिग्रहीत की गई थीं.
हाइकोर्ट ने 2022 में मैसूरू के आवासीय इलाके विजयनगर (तीसरा चरण) में पार्वती के पक्ष में की गई सेल डीड का हवाला देते हुए यह भी कहा कि मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (जमीन के स्वैच्छिक आत्मसमर्पण के लिए प्रोत्साहन लाभ योजना) नियम 1991 से पता चला कि संपत्ति छोड़ने वाला नागरिक 3 एकड़ संपत्ति छोड़ने के एवज में 4,800 वर्ग फुट के दो स्थलों का हकदार होता.
फैसले में कहा गया, "यह बात अदालत की अंतरात्मा को झकझोर देती है कि याचिकाकर्ता को कितना ज्यादा दिया गया है... 4,800 वर्ग फुट के मुकाबले यह 38,284 वर्ग फुट है. याचिकाकर्ता की पत्नी अब 56 करोड़ रुपए की 14 जगहों की मालिक है... लाभ कई गुना ज्यादा है."
हाइकोर्ट के आदेश के बाद जांच शुरू होने वाली है, और आक्रामक सिद्धरामैया अपना रुख बदलने को तैयार नहीं. ऐसे में कर्नाटक की 16 महीने पुरानी कांग्रेस सरकार उथल-पुथल भरे दौर में प्रवेश कर रही है.
- अजय सुकुमारन