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उत्तर प्रदेश : कांग्रेस की अपने पैरों पर खड़ी होने की कोशिश कितनी सफल हो पाएगी?

कांग्रेस ने यूपी में जनआंदोलनों और कई सारे कार्यक्रमों के जरिए अपने जनाधार विस्तार की रणनीति बनाई, पिछड़ों, दलित और अल्पसंख्यकों पर विशेष रूप से फोकस

उत्तर प्रदेश कांग्रेस ने योगी सरकार की नाकामियों के खिलाफ राजधानी लखनऊ (दाएं) समेत पूरे प्रदेश जनांदोलन शुरू कर दिया है
उत्तर प्रदेश कांग्रेस ने योगी सरकार की नाकामियों के खिलाफ राजधानी लखनऊ (दाएं) समेत पूरे प्रदेश जनांदोलन शुरू कर दिया है
अपडेटेड 9 अक्टूबर , 2024

उत्तर प्रदेश में संघर्ष का रास्ता अख्तियार कर नई सियासी छवि गढ़ने की छटपटाहट कांग्रेस पार्टी में साफ दिखाई पड़ रही है. इसी छवि को और धार देने के लिए 18 सितंबर को कांग्रेस पार्टी एक बार फिर सड़कों पर उतरी. मुद्दा उत्तर प्रदेश की बदहाल कानून व्यवस्था और मनमर्जी एनकाउंटर के विरोध का था. प्रदेश के सभी मंडल मुख्यालयों में कांग्रेसी नेता सड़कों पर उतरे. लखनऊ में कांग्रेस के यूपी प्रभारी अविनाश पांडेय, प्रदेश अध्यक्ष अजय राय के नेतृत्व में सैकड़ों कार्यकर्ता गोमती नदी के किनारे शहीद स्मारक पर जुटे. काफी देर प्रदर्शन के बाद पैदल मार्च करके कमिशनर दफ्तर पहुंचे और राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन सौंपा.

लोकसभा चुनाव के बाद यह तीसरा मौका था जब कांग्रेस जनता के मुद्दे लेकर सड़क पर उतरी. इससे पहले 21 जून को नीट-यूजी रद्द करने की मांग को लेकर कांग्रेस नेताओं ने विधान भवन का घेराव करने का प्रयास किया था. 22 अगस्त को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का दफ्तर घेरने निकले कांग्रेसी नेता चकमा देकर राजभवन के गेट पर पहुंच गए और अजय राय के नेतृत्व में सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की. इन प्रदर्शनों में नेताओं ने एकजुटता दिखा कर यह संकेत देने की कोशिश की कि भले ही विधानसभा में पार्टी के केवल दो सदस्य हैं लेकिन संघर्ष के मामले में वह मुख्य विपक्षी दल की ही भूमिका में रहेगी. 

कांग्रेस आम लोगों की समस्याओं को लेकर आंदोलन करने के साथ कई कार्यक्रमों के जरिए जनता से सीधे 'कनेक्ट' करने की हर संभव कोशिश कर रही है. जनता के साथ इसी संबंध को प्रगाढ़ बनाने के लिए प्रदेश अध्यक्ष अजय राय और दूसरे कांग्रेसी नेता विभिन्न घटनाओं के पीड़ितों के पास पहुंचकर न केवल उन्हें सांत्वना दे रहे हैं बल्कि आर्थिक मदद भी कर रहे हैं. अजय राय 23 सितंबर को कानपुर देहात के रनियां औद्योगिक इलाके में गत्ता फैक्ट्री में लगी आग से मारे गए छह दलित मजदूरों के परिजनों के बीच पहुंचे.

इससे पहले प्रदेश अध्यक्ष एनकाउंटर में मारे गए मंगेश यादव के परिजनों से मिलने जौनपुर पहुंचे थे. कांग्रेसी नेताओं का दावा है कि प्रदेश की ऐसी कोई भी घटना नहीं है जिसके पीड़ितों से मिलने कांग्रेस का प्रतिनिधिमंडल सबसे पहले न पहुंचा हो. यह पार्टी को आगे बढ़ाने की ललक ही है कि इन घटनाओं के पीड़ितों की मदद कांग्रेसी नेता आपस में चंदा जुटाकर कर रहे हैं.

कांग्रेस के क्रियाकलापों में बदलाव 7 अगस्त को दिखा था जब आमतौर पर मंडल की राजनीति से अपने को दूर रखने वाली पार्टी ने लखनऊ के मॉल एवेन्यू स्थित प्रदेश कार्यालय 'नेहरू भवन' में 'मंडल दिवस' का आयोजन किया. 34 साल पहले 7 अगस्त, 1990 को मंडल कमिशन की सिफारिशें लागू की गई थीं. इस मौके पर उत्तर प्रदेश माइनॉरिटी कांग्रेस, प्रदेश ओबीसी कांग्रेस और यूपी फिशरमैन कांग्रेस ने मिलकर गोलमेज सम्मेलन किया. कार्यक्रम का लक्ष्य दलित, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और मुस्लिम मतदाताओं के बीच कांग्रेस की स्थिति को मजबूत करने की दिशा में प्रयास करना था.

इससे पहले 26 जुलाई से अल्पसंख्यक कांग्रेस, ओबीसी कांग्रेस और फिशरमैन कांग्रेस ने जातिगत जनगणना कराने और आरक्षण पर लगी 50 प्रतिशत की पाबंदी हटाने की मांग को लेकर एक हस्ताक्षर अभियान की शुरुआत भी की. यह अभियान छत्रपति शाहू जी महाराज की ओर से 26 जुलाई, 1902 में कोल्हापुर रियासत में लागू किए गए 50 प्रतिशत आरक्षण की वर्षगांठ पर आयोजित राष्ट्रीय भागीदारी सम्मेलन में शुरू किया गया. इस तरह कांग्रेस ने दलितों और पिछड़ों की कल्याणकारी योजनाओं से जुड़ी विभिन्न तारीखों से अपने अभियानों की शुरुआत कर इन जातियों से सीधा 'कनेक्ट' करने की कोशिश की है.

इसी क्रम में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में अगस्त क्रांति दिवस (9 अगस्त) से राजीव गांधी सरकार की ओर से 1989 में दलित उत्पीड़न निरोधक कानून पास किए जाने की वर्षगांठ (11 सितंबर) तक प्रदेश भर में जातिगत जनगणना कराने, प्रस्तावित वक्फ कानून का विरोध करने, पूजा स्थल अधिनियम 1991 की रक्षा करने, कॉलेजियम व्यवस्था खत्म करने, सुप्रीमकोर्ट की ओर से एससी-एसटी आरक्षण को विभाजित करने के फैसले का विरोध करने और आरक्षण पर से 50 प्रतिशत की पाबंदी हटाने की मांग के समर्थन में सामाजिक संगठनों से संपर्क, सेमिनार और विचार गोष्ठियां भी आयोजित की. इन मांगों के समर्थन में 10 लाख लोगों के हस्ताक्षर इकट्ठा करने का अभियान अपने अंतिम चरण में है.

2024 के लोकसभा चुनाव में 'इंडिया' गठबंधन की सहयोगी समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ मिलकर कांग्रेस ने छह लोकसभा सीटें जीतीं जो पार्टी का 2009 के बाद सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है. कांग्रेस ने प्रदेश की 80 में से 17 सीटों पर चुनाव लड़ा था. उसने इनमें अमेठी, रायबरेली, सीतापुर, बाराबंकी, सहारनपुर और इलाहाबाद लोकसभा सीट पर जीत हासिल की थी. इसके अलावा छह लोकसभा सीटें ऐसी भी हैं जिनमें कांग्रेस उम्मीदवारों को 50 हजार वोट से कम के नजदीकी मुकाबले में हार मिली थी. इस तरह कांग्रेस ने 17 में से 12 सीटों पर बेहतर प्रदर्शन किया था.

लखनऊ में बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में प्रोफेसर सुशील पांडेय बताते हैं, "लोकसभा चुनाव के नतीजों ने कांग्रेस को प्रदेश में संजीवनी दी है. पार्टी अब दलितों और ओबीसी के मुद्दे उठाकर इन समुदाय के बीच अपनी पैठ बढ़ाना चाहती है. दूसरी ओर, जनता के मुद्दों पर सड़कों पर उतर कर पार्टी खुद का जनाधार तैयार करना चाहती है जिसके बूते वह साढ़े तीन दशक पहले सत्ता में थी."

प्रदेश में अपने जनाधार को विस्तार देने के लिए कांग्रेस की निगाह कई जातियों पर टिकी है. दलित संवाद और दलितों के साथ सहभोज के बाद कांग्रेस ने पासी समाज पर फोकस बढ़ाया है, क्योंकि उत्तर प्रदेश में 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले सपा और भाजपा अपने-अपने तरीके से पासियों को लुभाने में लगी हैं. 21 जुलाई को कांग्रेस ने पासी नेता मसूरिया दीन पासी की पुण्यतिथि मनाई, जो संविधान सभा के सदस्य थे और आजादी के बाद विधायक और सांसद चुने गए.

मसूरिया को ब्रिटिश शासन के दौरान लागू किए गए आपराधिक जनजाति अधिनियम को खत्म करने के लिए आंदोलन शुरू करने का श्रेय दिया जाता है. वे 1952 और 1957 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ फूलपुर लोकसभा क्षेत्र से दो बार सह-निर्वाचित हुए थे. कांग्रेस ने राजधानी लखनऊ के बाहरी इलाके में पासी बहुल इलाके मलीहाबाद में मसूरिया की पुण्यतिथि मनाई, जहां पार्टी विचारक के रूप में 'समुदाय के सशक्तिकरण' में मसूरिया के योगदान पर चर्चा करने के लिए पासी नेताओं की मौजूदगी में संगोष्ठी का आयोजन किया गया.

लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने सामाजिक न्याय और जाति जनगणना के मुद्दे को जोरशोर से उठाया था, जिसका फायदा कांग्रेस को मिला. इसी मुद्दे को और धार देने के लिए लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी 20 अगस्त को अपने संसदीय क्षेत्र रायबरेली पहुंचे और वहां मारे गए युवक अर्जुन पासी के परिजनों से मुलाकात की.

जाटवों के बाद पासी उत्तर प्रदेश में दूसरा सबसे बड़ा दलित समुदाय है, जो राज्य की कुल अनुसूचित जाति की आबादी का लगभग 16 प्रतिशत है. अवध क्षेत्र में इस समुदाय की महत्वपूर्ण उपस्थिति है. इसे देखते हुए कांग्रेस ने प्रदेश महासचिव सुशील पासी का कद बढ़ाते हुए उन्हें राष्ट्रीय सचिव बनाया है. सुशील पासी की तरह ही कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी के खास माने जाने वाले उत्तर प्रदेश माइनॉरिटी कांग्रेस के प्रमुख शाहनवाज आलम को भी राष्ट्रीय सचिव बनाकर बिहार का सह प्रभारी बनाया गया है. वहीं गुर्जर नेता विदित चौधरी को राष्ट्रीय सचिव बनाकर हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ के सह प्रभारी की जिम्मेदारी दी गई है. सपा की तरह कांग्रेस की भी दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक समुदाय के बीच अपने जनाधार का विस्तार करने की रणनीति है. 

जनाधार विस्तार करने की कांग्रेसी रणनीति को पहली चुनौती आने वाले दिनों में 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव से मिलने वाली है. वर्ष 2022 के विधानसभा उपचुनाव में इन 10 सीटों में से पांच पर सपा ने और दो पर उसके तत्कालीन सहयोगी राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) ने जीत हासिल की थी. कांग्रेस, जिसके पास प्रदेश विधानसभा में केवल दो सीटें हैं, ने कोई भी सीट नहीं जीती. सहयोगी सपा विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस को दो से ज्यादा सीटें देने को अनिच्छुक है, फिर भी कांग्रेस का सभी 10 सीटों पर मैदान में उतरना हैरान कर रहा है.

पार्टी ने स्थानीय जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए न केवल राज्य के नेताओं बल्कि राज्य के प्रभारी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआइसीसी) के चार सचिवों और पांच नवनिर्वाचित सांसदों को भी जमीनी स्तर पर लामबंदी करने के लिए शामिल किया है. इससे पहले, कांग्रेस ने 10 सीटों के लिए पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की थी. क्या इससे समाजवादी पार्टी के साथ कांग्रेस का टकराव तो नहीं बढ़ेगा? इसका जवाब देते हुए उत्तर प्रदेश कांग्रेस मीडिया कमेटी के वाइस चेयरमैन मनीष हिंदवी कहते हैं, "पार्टी विधानसभा सीटों पर अपनी तैयारी मजबूत कर रही है. विधानसभा उपचुनाव के लिए सीटों का बंटवारा तय होने के बाद इस मजबूती का फायदा इंडिया गठबंधन के उम्मीदवारों को ही मिलेगा." फिलहाल, यूपी में कांग्रेस के स्वतंत्र अस्तित्व के लिए कई चुनौतियां हैं.

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