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मध्य प्रदेश: मदरसे में क्यों पढ़ने आते हैं हजारों गैर-मुस्लिम बच्चे?

मध्य प्रदेश मदरसा बोर्ड में पंजीकृत 1,622 मदरसों में करीब 5,000 गैर-मुस्लिम छात्रों ने दाखिले लिए हैं

मध्य प्रदेश मदरसा बोर्ड के तहत कुल 1,622 मदरसे पंजीकृत हैं. अब उन सभी की जांच की जा रही है
मध्य प्रदेश मदरसा बोर्ड के तहत कुल 1,622 मदरसे पंजीकृत हैं. अब उन सभी की जांच की जा रही है
अपडेटेड 20 सितंबर , 2024

मध्य प्रदेश में मदरसे जांच के दायरे में हैं. राज्य सरकार का स्कूल शिक्षा विभाग मुख्यत: इस्लामी शिक्षा देने वाले इन मदरसों के कामकाज की जांच कर रहा है. दो खास मुद्दों की वजह से यह कदम उठाया गया है—एक, अभिभावकों की मंजूरी लिए बिना मदरसों में गैर-मुस्लिम बच्चों को पढ़ाने का आरोप, और दूसरा, ऐसे कथित छात्र जो दरअसल हैं ही नहीं मगर सरकारी सहायता हासिल करते रहने के लिए उनके नाम कथित तौर पर कुछ मदरसों के हाजिरी रजिस्टर में रखे गए हैं. सरकार का दावा है कि यह कदम मदरसों को ज्यादा दक्ष बनाने के मकसद से उठाया गया है. वहीं मदरसे इसे उन्हें कमजोर करने और जनता के मन में उनके कामकाज के प्रति शक पैदा करने की कोशिश बता रहे हैं.

मदरसों पर 'कार्रवाई' तब शुरू हुई जब राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने बीते साल राज्य सरकार को पत्र लिखकर पूछा कि क्या मदरसों में हिंदू बच्चों को उनके माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध दाखिले दिए गए हैं, जैसा कि उनके ध्यान में लाया गया है. मध्य प्रदेश मदरसा बोर्ड के एक अधिकारी कहते हैं, ''हिंदू बच्चों के मदरसों में पढ़ने पर रोक नहीं है, मगर उन्हें अन्य सभी छात्रों की तरह दाखिला लेने से पहले माता-पिता/अभिभावक की मंजूरी लेनी होती है.''

राज्य सरकार के 16 अगस्त के निर्देश में जिला कलेक्टरों से मध्य प्रदेश मदरसा बोर्ड में पंजीकृत सभी मदरसों का मुआयना करने और गैर-मुस्लिम छात्रों के माता-पिता की मंजूरी के अलावा बुनियादी ढांचे, छात्रों के नामांकन और शिक्षकों की उपलब्धता के बारे में जांच करने को कहा गया. उसमें यह भी कहा गया कि मदरसों में छात्रों के रिकॉर्ड की जांच करके पता लगाएं कि सभी मदरसों को मिलने वाले सालाना सरकारी अनुदान हासिल करने की गरज से छात्रों के फर्जी नाम तो दर्ज नहीं किए गए हैं. आदेश कहता है कि दोषी मदरसों की मान्यता रद्द कर दी जाएगी. कुछ हफ्ते पहले श्योपुर जिले के 56 मदरसे विभिन्न मानदंडों के अनुपालन में लापरवाही बरतते पाए गए थे; उन्हें मान्यता रद्द करने के नोटिस दिए गए हैं.

मध्य प्रदेश मदरसा बोर्ड में पंजीकृत 1,622 मदरसों में करीब 5,000 गैर-मुस्लिम छात्रों ने दाखिले लिए हैं. मदरसों में कुल नामांकन करीब 1,00,000 हैं. मदरसे कक्षा 1 से 8 तक की शिक्षा देते हैं, जिसके बाद छात्रों को नियमित स्कूलों में दाखिला लेना होता है. मोटे तौर पर तीन तरह के मदरसे हैं. सरकारी अनुदान प्राप्त मदरसे न केवल धार्मिक शिक्षा यानी दीनी तालीम देते हैं, बल्कि गणित, विज्ञान, सामाजिक और पर्यावरण विज्ञान सरीखे आधुनिक विषय भी पढ़ाते हैं. दूसरे मदरसे वे हैं जिन्होंने मान्यता हासिल नहीं की है और उनमें आधुनिक शिक्षा शायद दी जाती हो या न भी दी जाती हो. तीसरी श्रेणी उन मदरसों की है जो केवल धार्मिक शिक्षा देते हैं.

धार्मिक शिक्षा मदरसों के पाठ्यक्रम का जरूरी हिस्सा है तो गैर-मुस्लिम बच्चे उनमें दाखिला क्यों लेते हैं? जवाब जाहिरा तौर पर मदरसों को दिए जाने वाले अनुदान की व्यवस्था में है, जिससे करीब 20 साल पहले अचानक राज्यभर में उनका फैलाव हुआ.

केंद्र में 1998-2004 के दौरान शिक्षा मंत्री रहे भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी ने मदरसों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की योजना का ऐलान किया था. उसके तहत पाठ्यक्रम में आधुनिक शैक्षिक विषय शामिल करने का विकल्प चुनने वाले हर मदरसे को सालाना अनुदान मिलता था जिसमें तीन शिक्षकों की तनख्वाह भी शामिल थी. ऐसे मदरसों के छात्रों को यूनिफॉर्म-किताबें भी मिलती थीं. 50,000 रुपए के सालाना रखरखाव अनुदान के साथ राज्य सरकार इसमें सबसे अव्वल रही.

आधुनिक मदरसा कल्याण संघ के अध्यक्ष मोहम्मद सुहैब कुरैशी कहते हैं, ''मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत हर पंजीकृत मदरसा को तीन शिक्षकों के लिए मासिक 6,000 रुपए बतौर वेतन मिलते थे, मगर दिसंबर 2016 में नरेंद्र मोदी सरकार ने उसे बंद कर दिया.'' राज्य सरकार अब भी रखरखाव का खर्च और मिड-डे मील देती है. स्कूल शिक्षा विभाग के सूत्रों का कहना है कि 2000 के दशक की शुरुआत में उस अनुदान के शुरू होने के बाद मदरसों की संख्या बढ़ गई. गैर-मुस्लिम छात्रों वाले कुछ मदरसे भी उन नए मदरसों में हैं और अनुदान का लाभ ले रहे हैं.

मदरसा चलाने वालों की प्राथमिकताएं साफ हैं. कुरैशी कहते हैं, ''जिन मदरसों में वित्तीय अनियमितताएं पाई जाती हैं, उन पर कार्रवाई करने से हमें कोई एतराज नहीं है.'' भोपाल के जिंसी इलाके में 800 छात्रों का मदरसा चलाने वाले कुरैशी का कहना है कि कई गैर-मुसलमानों ने मदरसों से इसलिए पढ़ाई की और नाम लिखवाते हैं क्योंकि यह मुफ्त है.

मध्य प्रदेश का स्थानीय मीडिया अक्सर मदरसों के विध्वंसक गतिविधियों में शामिल होने की अपुष्ट खबरें चलाता है. कुरैशी कहते हैं, ''अगर ऐसी संस्थाएं हैं जो अपने सदस्यों को लाठी और तलवार चलाना सिखा रही हैं, तो उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए.'' मगर, उन्होंने किसी भी मदरसे के ''राष्ट्र विरोधी गतिविधियों'' में शामिल पाए जाने से इनकार किया.

मध्य प्रदेश के स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह कहते हैं, ''हम स्कूल शिक्षा विभाग के विभिन्न बोर्ड के तहत चल रही सभी संस्थाओं की जांच करवा रहे हैं. कुछ मदरसे कागजों पर हैं, कुछ पंजीकृत पतों पर मिले ही नहीं. ऐसे मदरसों को बंद करने के नोटिस जारी किए गए हैं.'' उनका कहना है कि इस कवायद का मकसद गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना है. यह पूछे जाने पर कि क्या कोई मदरसा विध्वंसक गतिविधियों में लिप्त पाया गया, मंत्री ने कहा, ''ऐसा कोई दावा किया जाता है तो उसका सबूत होना चाहिए.''

मदरसों के खिलाफ कार्रवाई तब शुरू हुई जब एनसीपीसीआर ने राज्य सरकार से पूछा कि क्या मदरसों में हिंदू बच्चों को माता-पिता की मंजूरी के बिना दाखिले दिए गए हैं

पढ़ाई की पड़ताल

> मध्य प्रदेश सरकार ने अधिकारियों से सभी सरकारी सहायता प्राप्त मदरसों का मुआयना करने को कहा है

> उन्हें पता लगाना है कि क्या गैर-मुस्लिम छात्रों को उनके माता-पिता/अभिभावकों की मंजूरी के बिना दाखिले दिए गए हैं

> उन्हें यह जांच भी करनी है कि क्या फर्जी तरीके से हाजिरी रजिस्टर में छात्रों के नाम डाले जा रहे हैं ताकि सरकारी सहायता का दावा किया जा सके

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