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बहराइच में भेड़िए क्यों बन गए हैं इंसानों के खून के प्यासे?

बहराइच की महसी तहसील में भेड़ियों ने अब तक 10 लोगों को अपना निवाला बनाया तो वहीं 35 से अधिक लोगों को घायल कर दिया

बहराइच में पकड़ा गया एक भेड़िया, जिस पर आदमखोर होने का संदेह है
बहराइच में पकड़ा गया एक भेड़िया, जिस पर आदमखोर होने का संदेह है
अपडेटेड 24 सितंबर , 2024

न तो हाथी जैसा विशालकाय, न ही बाघ-शेर जैसा रुआबदार शिकारी और न कोबरा सांप जितना जानलेवा जहर. झुंड की ताकत, रुआब की जगह दिमाग और चुपचाप दबोच लेने की धारदार चालाकी. ये हम इंसान हैं. हमारे पुरखे कुछ हजार साल पहले इन्हीं वजहों से तो जंगलों में बचे रहे. बाहर निकलकर फौलाद और सीमेंट के अपने जंगल बनाए और दीवारों के साथ पैदा हुए भ्रम में रहने लगे.

हमारे जंगली दिन स्कूल की किताबों में दर्ज हैं. लेकिन लखनऊ से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर बहराइच में हमारे पुरखों के जंगली साथी इंसानी बस्तियों में घुस आए हैं, इतिहास का आईना बनकर. घाघरा और कतर्नियाघाट के जंगलों के बीच महसी तहसील में भेड़ियों का झुंड हमें हमारा ही सबक याद दिला रहा है, कि बचे रहने की विधा सीख ली तो एक सौ अस्सी किलो वजन के शेर को चौदह किलो वजन का बच्चा पिंजरे के इस पार खड़े होकर उसे ठेंगा दिखा सकता है.

भेड़ियों का यह बर्ताव जितना नया है, उतना ही डरावना है. इसी इलाके के पचास से ज्यादा गांवों में इतना डर तब भी नहीं था जब दो साल पहले एक बाघ ने तीन लोगों को मार डाला था. सिर्फ इसी साल तेंदुओं के हमले में चार लोग मारे गए हैं और सत्रह घायल हुए. लेकिन भेड़िए न तो बाघ की तरह ताकत इस्तेमाल करते हैं और न तेंदुओं की तरह ठसक से नजर में आते हैं. यह भेड़ियों का छापामारों की तरह हमला करके गायब हो जाना है, जिससे लोग डरे हुए हैं. 10 लोगों को मारने और 35 से ज्यादा को घायल करने के बाद भी भेड़िए शिकार पर निकले हैं.

महसी तहसील के ही गरेठी गांव में कमल की ढाई साल की बेटी को एक भेड़िया घर में घुसकर दबोच ले गया. रोते-चीखते घर और गांववालों को डेढ़ किलोमीटर दूर बिटिया की लाश मिली. जंगलात महकमे के ड्रोन और पिंजरों पर भेड़ियों का झुंड भारी पड़ रहा है. पलक झपकते गायब हो सकने वाले भेड़िए अपने मुखिया के अनुशासन में पूरी एकता से रेकी और रात भर पीछा करके शिकार पर झपटते हैं. दिन के उजाले में भी लाठियों और लोहे की रॉड से लैस होकर चल रहे गांव वाले समझ रहे हैं कि भेड़िए पीछा कर रहे हैं और इंतजार भी, माकूल वक्त आने का. गांव वालों के साथ पुलिस और वन विभाग की कई टीमें गश्त पर हैं. सालों से खुले घरों में दरवाजे लगा दिए गए हैं.

भेड़िए का शिकार हुए बच्चे की मां और परिजन

इस अनजाने आतंक का पहला संकेत 6 मार्च को मिला, जब भेड़ियों ने औराही गांव में दो बच्चों, 15 वर्षीय ननकई मनोहर और 6 वर्षीय राहुल देव को घायल कर दिया. औराही गांव में रहने वाले बुजुर्ग नंदकिशोर बताते हैं, "शुरुआत में इसे तेंदुए का हमला समझा गया, जो इस क्षेत्र में अधिक सामान्य शिकारी है, लेकिन सच्चाई तब स्पष्ट हुई जब 10 और 23 मार्च को हुई हत्या में जानवरों के पैरों के निशान और चोटों का मिलान किया गया. तब आदमखोर भेड़ियों का पता चला." 17 जुलाई से 28 अगस्त के बीच ये भेड़िए और खूंखार हो गए और इस दौरान इन्होंने सात बच्चों को मारा, 25 को घायल कर दिया.

चार से छह भेड़िए ही पूरे सिस्टम पर भारी पड़ रहे हैं. जिला प्रशासन, पुलिस व वन विभाग लगातार हमले रोकने का दावा कर रहें हैं. लेकिन पूरी तरह से सफलता नहीं मिल पाई है. मुख्य वन संरक्षक रेणू सिंह, वन संरक्षक मनोज सोनकर, अपर पुलिस महानिदेशक (एडीजी) गोरखपुर जोन डॉ. के.एस. प्रताप कुमार, जिलाधिकारी बहराइच मोनिका रानी, पुलिस अधीक्षक वृंदा शुक्ल और क्षेत्रीय वन अधिकारी (डीएफओ) अजीत प्रताप सिंह के नेतृत्व में दो दर्जन से अधिक टीमें दिन-रात गांवों में कैंप कर रही हैं लेकिन भेड़िए अभी तक पकड़ से दूर हैं. डीएफओ अजीत प्रताप सिंह का कहना है, "बीते दिनों थर्मल ड्रोन में छह भेड़ियों की तस्वीर कैद हुई थी. चार भेड़िए पकड़े गए हैं, जिन्हें गोरखपुर चिड़ियाघर में स्थानांतरित कर दिया गया है." वहीं, ग्रामीणों का कहना है कि आदमखोर भेड़ियों की संख्या दस से ज्यादा है.

वन्यजीव विशेषज्ञों की मानें तो भेड़िया काफी चालाक जानवर होता है. भेड़िए झुंड में रहते हैं और खरगोशों, हिरण, बंदरों जैसे छोटे जानवरों का शिकार करते हैं. वे नदी के कछार में मांद बनाकर स्थानीय जंतुओं का शिकार करते हैं. मनुष्यों पर बहुत कम हमले करते हैं लेकिन उन्हें पता होता है कि बिना पहरे के बच्चों का शिकार किया जा सकता है. इसीलिए भेड़ियों का सुनसान रात में दबे पांव बच्चों का शिकार करने का इतिहास रहा है, जिसे 'बच्चा-चोरी' कहा जाता है. बहराइच जिले के इन इलाकों में वन्यजीव अधिकारियों को परेशान करने वाला सवाल यह है कि भेड़ियों के स्वभाव में अब क्या बदलाव हो गया जो वे इंसानों पर हमला कर रहे हैं.

एक दशक से अधिक समय से जानवरों में शिकारी व्यवहार का अध्ययन करने वाले वन्यजीव विज्ञानी मयंक श्रीवास्तव कहते हैं, "बहराइच में घाघरा (सरयू) नदी का कछार भेड़ियों के रहने के लिए सुरक्षित माहौल देता है. वहां बड़ी संख्या में भेड़ियों की मांद हैं. नदी में बाढ़ से भेड़ियों को नए भोजन स्रोतों की तलाश में अपने क्षेत्र छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा है. वे कई बार आसान भोजन के लिए गांवों में घुसते हैं. यही वजह है कि बारिश का मौसम शुरू होने के बाद भेड़ियों ने पिछले छह हफ्तों में बहराइच और उसके आसपास के इलाकों में नौ बच्चों सहित दस लोगों को मार डाला."

बहराइच के क्षेत्रीय वन अधिकारी अजीत कुमार सिंह के मुताबिक, बाढ़ के पानी ने पारिस्थितिकी तंत्र के नाजुक संतुलन को बिगाड़ दिया है, जिससे हिरण और छोटे स्तनधारी जैसे शिकार की प्रजातियां ऊंची जमीन पर चली गई हैं. उनकी अनुपस्थिति में, भूख से जूझ रहे भेड़िए मवेशियों और कुछ दुखद मामलों में मनुष्यों सहित आसान शिकारों की ओर मुड़ गए हैं क्योंकि यह उनके अस्तित्व का मामला है. अजीत कुमार सिंह कहते हैं, "जब भेड़ियों का प्राकृतिक शिकार उपलब्ध नहीं होता, तो उनके पास कम विकल्प बचते हैं. बाढ़ ने कुछ ऐसी परिस्थितियां पैदा कर दी हैं जिसने उन्हें ऐसे जोखिम उठाने के लिए मजबूर कर दिया है, जिनके बारे में वे आमतौर पर नहीं सोचते."

हालांकि सरकारी दलीलों से स्थानीय लोग इत्तेफाक नहीं रखते. बहराइच निवासी और समाजवादी पार्टी के नेता भगतराम मिश्र बताते हैं, "इन इलाकों में बाढ़ तो हर साल आती है लेकिन भेड़ियों का इतना खूंखार रूप तो पहली बार देखने को मिल रहा है. मानव के साथ भेड़ियों का संघर्ष सामान्य घटना नहीं है." वन्यजीव विशेषज्ञों के मुताबिक, भेड़िया काफी चालाक और बदले की भावना वाला जानवर है, जबकि शेर, बाघ और तेंदुओं में बदला लेने की प्रवृत्ति नहीं होती.

तराई इलाकों के जंगलों से जुड़े वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर और लेखक बिलाल खान बताते हैं, "भेड़िए के बच्चे को मारने पर कुनबे का नर या मादा मुखिया उग्र होकर हमले करता है. महसी में भी हो सकता है किसी ने इनके बच्चे को नुक्सान पहुंचाया हो, जिसके बाद से सभी बदले की भावना से हमले कर रहे हों." बताया जाता है कि आदमखोर भेड़िए इस समय महसी इलाके में जहां पर सक्रिय हैं वहां इस साल जनवरी में एक खेत में ट्रैक्टर से जुताई के दौरान उनके दो बच्चों की मौत हो गई थी. इस खेत में भेड़िए ने मांद बनाई थी. उसके बाद भेड़िए हमलावर हो गए और जनवरी में ही दो लोगों को मार डाला था. बिलाल खान बताते हैं, "झुंड में शिकारी भेड़िए रणनीतिक तरीके से हमला करते हैं. झुंड का एक सदस्य ध्यान बंटाने के लिए हमला करता है, जबकि दूसरा ध्यान बंटाने का फायदा उठाकर बच्चे को उठा ले जाता है."

वन अधिकारियों के अनुसार, इन हमलों के पीछे भेड़ियों का झुंड है जबकि स्थानीय लोग इस दलील से इत्तेफाक नहीं रखते. जंगली जानवरों के हमले से होने वाली मौत के प्रति जागरूकता फैलाने वाले श्रावस्ती निवासी मोहम्मद रिजवान बताते हैं, "अगर महसी में हमला करने वाला भेड़ियों का झुंड है तो बच्चों के सिर और धड़ अलग-अलग स्थानों पर पाए गए होते. चूंकि सभी पीड़ितों के शरीर बरकरार पाए गए और उनके केवल मांसल हिस्से ही खाए गए, जो केवल 'एक भेड़िए' की संलिप्तता की ओर इशारा करता है." रिजवान के मुताबिक, एक भेड़िया एक बार में लगभग 5 से 6 किलोग्राम मांस खा सकता है, "लेकिन अगर झुंड हमला करता है तो शरीर पर कुछ भी नहीं बचेगा."

भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून के पूर्व डीन और जीवविज्ञानी यादवेंद्र देवविक्रम सिंह झाला बताते हैं, "यूपी के कुछ इलाकों में खासकर बहराइच, लखीमपुर के तराई जंगलों में रहने वाली आदिवासी जातियां कुत्तों के साथ भेड़ियों को भी पालती हैं. यह भेड़िए कुत्तों के साथ 'क्रॉसब्रीड' करते हैं. इससे पैदा संकर भेड़िए मनुष्यों के प्रति अपना स्वाभाविक डर खो देते हैं और आक्रामक हो जाते हैं." झाला बताते हैं कि जिन क्षेत्रों में भेड़ियों को कुत्तों के साथ संकरित किया जाता है और उनका उचित प्रबंधन नहीं किया जाता है, वे अंतत: लोगों के लिए खतरा बन जाते हैं. बहराइच में हो सकता है कि ऐसी संकर प्रजाति हमले कर रही हो और कुत्तों की आड़ में बच निकल रही हो.

दूसरी ओर, भेड़ियों को पकड़ने के लिए विशेष टास्क फोर्स का नेतृत्व कर रहे बाराबंकी के डीएफओ आकाशदीप बधावन ने बताया कि उन्होंने वरिष्ठ वैज्ञानिकों से सलाह ली है और भेड़ियों के रेबीज से संक्रमित होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. बहराचइच के क्षेत्रीय वन अधिकारी अजीत कुमार सिंह बताते हैं, "हमने अन्य विशेषज्ञों से भी सलाह ली है और शेष दो भेड़ियों को पकड़ने के बाद इनके खूनी होने के कारणों का पता लगाने के लिए एक अध्ययन किया जाएगा."

सभी पकड़े गए भेड़ियों की जांच करने वाले पशु चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. दीपक वर्मा के मुताबिक, यह दावा करना मुश्किल है कि पकड़े गए भेड़ियों ने ही लगातार हमले किए हैं. वहीं बिलाल खान बताते हैं, "भेड़िए तेजी से सीखते हैं. उन्होंने बढ़ती मानवीय गतिविधियों, ड्रोन और पिंजरों के रूप में खतरे को भांपना सीख लिया होगा, जिसकी ओर वे जाने से बचते हैं."

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कड़े निर्देश के बाद मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने वन विभाग को आदमखोर भेड़ियों को मारने के निर्देश दिए हैं लेकिन भेड़ियों की जंगल वापसी उतनी ही मुश्किल दिख रही है, जितनी हजारों साल पहले हम इंसानों के पुरखों की सभ्यता में आमदगी थी.

सामूहिक अभियान! बहराइच में देखे गए इन भेड़ियों पर संदेह है कि इन्होंने ही बच्चों को मारा है

विलुप्त हो रहे हैं भेड़िए 
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भारत में आम तौर पर पाई जाने वाली किस्मों में भारतीय प्रायद्वीपीय भेड़िया और हिमालयी भेड़िया हैं. बहराइच में शिकार करने वाले भेड़ियों की प्रजाति के बारे में अलग-अलग दावे हैं 

> वर्ष 2022 के अनुमान के अनुसार, देश में केवल 3,000 के करीब भारतीय प्रायद्वीपीय भेड़िए बचे हैं. इस जानवर को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची (1) के तहत लुप्तप्राय माना गया है 

> भारतीय भेड़िए निशाचर होते हैं और अलग-अलग शिकार का पीछा करने के लिए अलग-अलग रणनीतियों का उपयोग करते हुए शाम से सुबह तक शिकार करते हैं

> भेड़ियों को जंगल की बजाए कछार व गन्ने का इलाका ज्यादा रास आता है. बहराइच में सरयू (घाघरा) की कछार में 50 से अधिक मांद होने का अनुमान है. एक मांद में 2 से 20 की संख्या में भेड़िए रहते हैं 

> एक झुंड भेड़ियों का एक परिवार होता है और उसमें नर, मादा और छोटे भेड़िए, सात से दस भेड़िए एक साथ हो सकते हैं. तेंदुए और बाघों की तरह भेड़ियों को पैरों के निशानों से आसानी से पहचाना नहीं जा सकता है

> भेड़ियों के पास असाधारण गति और सहनशक्ति है. झुंड में एकता, अनुशासन, मुखिया का संरक्षण और रेकी करने की क्षमता इन्हें खतरनाक शिकारी बनाती है 

इस तरह बढ़ा आतंक

> 10 मार्च: बहराइच की महसी तहसील क्षेत्र में भेड़ियों के आंतक की शुरुआत हुई. हरदी थाना क्षेत्र के मिश्रनपुरवा निवासी तीन साल की बच्ची को मार डाला 

> 23 मार्च: हरदी थानाक्षेत्र के नयापुरवा गांव में भेड़िए ने एक साल के बच्चे को मार डाला

> 17 जुलाई: मक्कापुरवा में एक और सालभर के बच्चे को भेड़िए ने मार डाला

> 18 जुलाई: वन विभाग की टीमों ने तलाशी अभियान शुरू किया. स्थानीय विधायक सुरेश्वर सिंह ने अपनी लाइसेंसी बंदूक लेकर ग्रामीणों के साथ रात में पहरा देना शुरू किया 

> 26 जुलाई: गश्त कर रहे ग्रामीणों को चकमा देकर भेड़िए ने नकवा गांव में तीन साल की बच्ची की हत्या की

> 2 अगस्त: काफी जद्दोजहद के बाद केवल एक भेड़िया वन विभाग की गिरफ्त में आया

> 3 अगस्त: हरदी के कुलेला गांव में एक आठ साल के बच्चे को भेड़िये ने मार डाला 

> 7 अगस्त: दूसरा भेड़िया वन विभाग की गिरफ्त में आया 

> 17 अगस्त: दो हफ्ते शांत रहने के बाद भेड़िए ने बांसगढ़ी गांव में चार साल की बच्ची की हत्या की 

> 18 अगस्त: वन विभाग की टीम ने गश्त बढ़ाई और तीसरा भेड़िया पकड़ा

> 21 अगस्त: गड़रिया गांव में छह साल की बच्ची को मार डाला

> 22 अगस्त: वन विभाग की टीम में इजाफा. प्रभावित गांवों में हाइमास्ट लाइट और सीसीटीवी कैमरे लगाने के निर्देश

> 25 अगस्त: बेखौफ भेड़ियों ने कुम्हारन पुरवा गांव में 45 वर्षीय महिला को मार डाला. सीएम योगी आदित्यनाथ ने मुख्य वन संरक्षक को विशेष टीमों और नाइट ड्रोन के साथ मौके पर भेजा 

> 26 अगस्त: भेड़िये के हमले में सात साल के बच्चे की मौत. वन विभाग ने 22 टीमें बनाई गईं, 150 पीएसी जवान तैनात हुए 

> 29 अगस्त: भेड़ियों को पकड़ने के लिए सर्च ऑपरेशन तेज. चौथा भेड़िया पकड़ा गया

> 1 सितंबर: सर्च आपरेशन को चकमा देते हुए भेड़िए ने तीन साल की बच्ची को मार डाला और दो लोगों को घायल कर दिया

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