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जम्मू-कश्मीर चुनाव : यहां कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस का गठबंधन क्यों सबसे मजबूत दिख रहा है?

अनुच्छेद-370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में पहली बार विधानसभा चुनाव हो रहा है. यह 18 सितंबर से 1 अक्तूबर तक तीन चरणों में होगा

नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारुक और उमर अब्दुल्ला 22 अगस्त को श्रीनगर में कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और के.सी. वेणुगोपाल के साथ
नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारुक और उमर अब्दुल्ला 22 अगस्त को श्रीनगर में कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और के.सी. वेणुगोपाल के साथ
अपडेटेड 10 सितंबर , 2024

एक दशक बाद सितंबर में जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव होंगे. लोगों को उम्मीद है कि वे आखिरकार सरकारी फैसलों में उन्हें स्थानीय प्रतिनिधित्व देखने को मिलेगा. जम्मू (43) और कश्मीर (47) की 90 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव 18 सितंबर से 1 अक्तूबर तक तीन चरणों में होगा.

2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और तत्कालीन राज्य को केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) का दर्जा देने के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव होगा. जून 2018 से अब तक छह साल से ज्यादा अरसे से जम्मू-कश्मीर सीधे केंद्रीय शासन के अधीन है.

सकारात्मक संकेत यह है कि सभी सियासी पार्टियां इस प्रक्रिया के बारे में आश्वस्त हैं और जून में हुए लोकसभा चुनाव के बाद से इसके लिए कमर कस रही हैं. आम चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और भाजपा ने क्रमश: कश्मीर और जम्मू में दो-दो सीटें हासिल कीं.

पांचवीं सीट अवामी इत्तेहाद पार्टी (एआईपी) के उम्मीदवार शेख अब्दुल रशीद उर्फ इंजीनियर रशीद ने जीती. आम चुनाव में भाजपा ने 24 फीसद से ज्यादा वोट शेयर के साथ जम्मू में चुनावी मैदान पर अपना दबदबा बनाया था. उसके बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस (22.3 फीसद), कांग्रेस (19.4 फीसद) और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (8.5 फीसद) का स्थान रहा.

नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस ने अब गठबंधन का ऐलान किया है, जिससे भाजपा की चुनावी संभावनाओं को झटका लग सकता है. इतना ही नहीं, भाजपा नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह इस गठबंधन की संभावनाओं से इतने आशंकित हैं कि उन्होंने इसे 'अपवित्र गठबंधन' करार दे दिया.

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी दो दिन के लिए 21 अगस्त को जम्मू-कश्मीर आए थे. दोनों ने कहा कि नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ गठबंधन की संभावना तलाशने के अलावा राज्य का दर्जा बहाल करना पार्टी की प्राथमिकता है, जिसे स्थानीय लोगों का भरपूर समर्थन मिला है.

राहुल ने कहा, "ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. केंद्र शासित प्रदेश राज्य बन गए हैं, लेकिन यह पहली बार है जब कोई राज्य केंद्र शासित प्रदेश बन गया है. हमने अपने राष्ट्रीय घोषणापत्र में भी अपनी प्राथमिकता साफ कर दी है कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लोगों को उनके लोकतांत्रिक अधिकार वापस मिलें."

गठबंधन इतनी आसानी से नहीं हुआ. पहले चरण के लिए नामांकन दाखिल करने की पूर्व संध्या पर 26 अगस्त को दो दौर की गहन चर्चा के बाद एनसी और कांग्रेस ने इस समझौते पर मुहर लगाई. एनसी 51 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जबकि कांग्रेस 32 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी. इंडिया गठबंधन की सहयोगी सीपीआई (एम) और जम्मू-कश्मीर पैंथर्स पार्टी को एक-एक सीट दी गई है.

भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा जम्मू में पार्टी के एक कार्यक्रम में जम्मू-कश्मीर प्रदेश अध्यक्ष रविंदर रैना के साथ

दिलचस्प बात यह है कि पांच सीटों—डोडा, बनिहाल, भद्रवाह, नगरोटा और सोपोर—में 'दोस्ताना मुकाबला' होगा, जहां दोनों पक्षों के स्थानीय नेताओं ने एक-दूसरे के उम्मीदवारों की खातिर दावेदारी छोड़ने से इनकार कर दिया. कांग्रेस महासचिव के.सी. वेणुगोपाल का कहना है कि इस गठबंधन का मकसद "कश्मीर की आत्मा की रक्षा करना" है.

उन्होंने एनसी के घोषणापत्र की आलोचना करने के लिए शाह पर पलटवार करते हुए कहा, "भाजपा ने पहले एनसी और पीडीपी दोनों के साथ गठबंधन किया है. हर राजनैतिक दल के अपने घोषणापत्र और वादे होते हैं; हमारे भी अपने हैं. जब हम सरकार बनाएंगे, तो एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम होगा."

आम चुनाव में विधानसभा चुनाव क्षेत्रवार मतदान के नतीजे बताते हैं कि इस चुनाव में एनसी सबसे आगे रहेगी, खासकर कांग्रेस के साथ. पार्टी उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला बारामूला सीट हार गए थे, लेकिन डेटा से पता चलता है कि एनसी ने कश्मीर में 34 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल की (इसने जम्मू की दो सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतारे).

जहां तक भाजपा का सवाल है, उसने जम्मू की दो सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों को हराया, लेकिन वोट शेयर में भारी गिरावट आई, 2019 में 46.7 फीसद से 2023 में 24.4 फीसद (वह घाटी में चुनाव नहीं लड़ी). वो जम्मू और उधमपुर लोकसभा सीटों के 37 विधानसभा क्षेत्रों में से 29 पर आगे रही.

भाजपा को हिंदू बहुल जम्मू में मजबूत समर्थन हासिल है. वहां उसने 2014 के विधानसभा चुनाव में 25 सीटें जीती थीं, और पीडीपी के साथ गठबंधन सरकार का हिस्सा थी. लेकिन अब पार्टी के भीतर कलह है. इसी वजह से वह 26 अगस्त को कुछ ही घंटों के भीतर 44 उम्मीदवारों की पहली सूची वापस लेने को मजबूर हो गई.

संशोधित सूची में पहले चरण के लिए केवल 15 उम्मीदवारों को शामिल किया गया, जिससे दक्षिण कश्मीर की आठ सीटें खाली रह गईं (उसके बाद दो और सूचियां जारी हो गईं). पूर्व उपमुख्यमंत्री निर्मल सिंह और राज्य पार्टी प्रमुख रविंदर रैना जैसे शीर्ष नेताओं को भी सूची से बाहर रखा गया है.

राजौरी और पुंछ (पीरपंजाल) के दो पहाड़ी जिले, जहां 2021 से फिर से उग्रवाद बढ़ गया है, सभी दलों के लिए फोकस क्षेत्र होंगे. परिसीमन के बाद इन जिलों के बीच आठ सीटें हैं, जो इस क्षेत्र को सरकार गठन के लिए "चुनावी रूप से महत्वपूर्ण" बनाता है. पीरपंजाल की पहाड़ियां 50 फीसद गुज्जर-पहाड़ी आबादी के साथ 2014 से पहले तक नेशनल कॉन्फ्रेंस की समर्थक थीं. फिर उसने महबूबा मुफ्ती की पीडीपी को तीन सीटें, भाजपा को दो और एनसी और कांग्रेस को एक-एक सीटें दीं.

इस बार भाजपा पहाड़ी भाषी जातीय समूहों, ऊंची जाति के सैयद मुसलमानों और ब्राह्मण हिंदुओं के वोटों पर निर्भर है. ब्राह्मणों को हाल में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिया गया है, जिससे वे आदिवासी गुज्जर और बकरवाल समुदायों के बराबर आ गए हैं.

इस कदम ने पहाड़ी समुदाय के कई प्रमुख राजनेताओं को भगवा पार्टी में शामिल होने के लिए प्रेरित किया है, जिससे इसका आत्मविश्वास बढ़ा है. खास बात यह है कि एसटी समुदाय के लिए आरक्षित नौ सीटों में से चार पुंछ के राजौरी, थानामंडी, बुधल, सूरनकोट और मेंढर में आती हैं.

लोकसभा चुनाव में केवल पांच विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिलने के बाद से पिछले कुछ समय से पीडीपी के हौसले पस्त हैं. खुर्शीद आलम और बशारत बुखारी जैसे इसके कुछ नेताओं की वापसी से पार्टी को बढ़ावा मिलेगा, लेकिन अभी भी इसकी जीत की संभावना पर बड़ा सवालिया निशान है, शायद इसीलिए पार्टी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने पहले ही ऐलान कर दिया है कि अगर उन्हें ज्यादा सीटें न मिलीं तो वे एनसी-कांग्रेस सरकार का समर्थन करेंगी.

इस चुनाव में, हर पार्टी (भाजपा को छोड़कर) के लिए मुख्य मुद्दा अनुच्छेद 370 और राज्य का दर्जा बहाल करना है. सरकारी नौकरी की भर्ती में 2022 के पेपर लीक घोटाले, स्थानीय लोगों के लिए भूमि अधिकार और बिजली के ज्यादा बिलों जैसे मुद्दों को लेकर जम्मू में पहले से ही मुखर विरोध प्रदर्शन होते आए हैं. अगर इनमें से कुछ मुद्दे चुनाव प्रचार के दौरान तूल पकड़ते हैं, तो भगवा पार्टी को नुक्सान हो सकता है.

उमर को भरोसा है कि उन्हीं की पार्टी सरकार बनाएगी. एनसी ने अपने घोषणापत्र में 'गरिमा, पहचान और विकास' पर केंद्रित 12 गारंटी दी हैं. पूर्व सीएम विधानसभा चुनाव लड़ने के बारे में विचार कर रहे हैं (उन्होंने राज्य से घटाकर केंद्र शासित बनाए गए क्षेत्र की विधानसभा का सदस्य न बनने की कसम खाई थी). वे कहते हैं, "जाती तौर पर मैं चुनाव नहीं लड़ना चाहता. लेकिन पार्टी के भीतर से बहुत दबाव है. मैं सहयोगियों से बात करके जल्द फैसला करूंगा."

इस बीच एआईपी के रूप में वादी में एक नया दावेदार उभरा है. यह पार्टी पूरे कश्मीर में उम्मीदवार उतार रही है. उमर मई में बारामूला में एआईपी के इंजीनियर रशीद से हार गए थे, जो कथित आतंकी फंडिंग के आरोप में 2019 से तिहाड़ जेल में बंद हैं. पार्टी ने आम चुनाव में 'तिहाड़ का बदला, वोट से' नारे पर प्रचार किया था.

एनसी के एक नेता कहते हैं, "अगर वे बाहर आकर प्रचार करते हैं तो हम देखेंगे कि क्या होता है. रशीद का जज्बाती अभियान अनोखा था, लेकिन मुझे नहीं लगता कि विधानसभा चुनाव में इसका असर दिखेगा." एक पार्टी जो इस तरह के नतीजे की उम्मीद कर सकती है, वह है भाजपा, क्योंकि वोटों के बंटवारे से उसे फायदा होगा.

लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हारने वाली पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) बिखर गई लगती है. शायद इसी वजह से महबूबा मुफ्ती ने कहा है कि वे नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस सरकार का समर्थन करेंगी.

- मोअज्जम मोहम्मद, श्रीनगर में

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