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बिहार : क्या राजद के 'एमवाई' समीकरण का 'एम' नया आशियाना ढूंढ़ रहा है?

मुसलमान कह रहे हैं कि राजद का मुस्लिम-यादव समीकरण बस नाम का रह गया है. मुसलमान जनसुराज, एमआईएम और पप्पू यादव जैसे विकल्पों की तलाश में हैं. अब राजद भी इन्हें मनाने को मजबूर

पटना के राजद कार्यालय में अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ की बैठक में पार्टी प्रमुख तेजस्वी यादव के साथ अन्य नेता मुसलमान
पटना के राजद कार्यालय में अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ की बैठक में पार्टी प्रमुख तेजस्वी यादव के साथ अन्य नेता मुसलमान
अपडेटेड 18 सितंबर , 2024

एक अरसे बाद 10 अगस्त को राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ की पार्टी कार्यालय में बैठक हुई. बैठक को संबोधित करते हुए तेजस्वी यादव ने वहां मौजूद कार्यकर्ताओं को अल्पसंख्यकों के हित में अपने पिता लालू यादव के किए गए कामों की याद दिलाई: ''लालूजी सत्ता में रहें न रहें मगर बिहार में उन्होंने दंगा-फसाद नहीं होने दिया. देश के किसी राज्य में पहली बार अल्पसंख्यक आयोग का गठन हुआ तो वह लालूजी ने बिहार में कराया."

उन्होंने आगे कहा, "अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय बनाने की शुरुआत भी उन्होंने ही की. उनके जमाने में राज्य में कहीं दंगा-फसाद होता तो डीएम बाद में पहुंचते थे, मुख्यमंत्री हेलिकॉप्टर से पहले पहुंच जाया करते थे. उन्होंने किसी भी स्थिति में अपनी विचारधारा से समझौता नहीं किया. वक्फ बोर्ड को लेकर पेश बिल के मौके पर लालूजी ने अपने सांसदों के लिए लाइन साफ कर दी थी. उन्होंने कभी भाजपा से समझौता नहीं किया, चाहे उन पर मुकदमे हों, जेल जाएं या फिर उनके परिवार के लोगों पर केस-मुकदमे हों."

तेजस्वी ने कहा, ''अगर लालूजी सांप्रदायिक ताकतों से नहीं डरे तो उनका लड़का भी नहीं डरेगा. हम आपके सम्मान, आपके अधिकार की लड़ाई लड़ते रहेंगे. चाहे कुछ भी हो जाए. डगमगाएंगे नहीं." उनके इतना कहने के बाद सभा जिंदाबाद के नारों में डूब गई. मगर वे इतने से संतुष्ट नहीं हुए. आखिर में उन्होंने कह ही दिया. "हम सब लोग चाहते हैं कि आने वाले विधानसभा में आप लोगों की उचित भागीदारी सुनिश्चित हो. हम इसे सुनिश्चित कराएंगे."

उचित भागीदारी की बात सुनकर न सिर्फ उस सभा में मौजूद लोग बल्कि बिहार भर के मुस्लिम मतदाता थोड़े संतुष्ट हुए. सोशल मीडिया पर राजद में मुसलमानों को उचित भागीदारी न मिलने के सवाल पर लगातार लिखने वाले युवाओं ने भी टिप्पणी की, "यह सही दिशा में किया हुआ काम है. इज्जत दीजिए, इज्जत मिलेगा." हालांकि एक युवा ने पूछ ही लिया, "टिकट कितना मिलेगा?"

बीते लोकसभा चुनाव में राजद ने सिर्फ दो मुसलमानों को टिकट दिया था, शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब को वह सीवान से लड़ने के लिए मना नहीं पाया, इंडिया गठबंधन की तरफ से कुछ भाजपा-आरएसएस पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को टिकट दिया और पूर्णिया से पप्पू यादव की उम्मीदवारी का समर्थन न कर वहां से बीमा भारती को पार्टी का टिकट दिया. इन सबकी वजह से बिहार का मुस्लिम मतदाता इन दिनों राजद से नाखुश चल रहा है.

इस बैठक से छह रोज पहले पटना की ही एक सभा में जिसमें "अल्पसंख्यक और सबाल्टर्न के परिप्रेक्ष्य में बिहार की राजनैतिक स्थिति और 2025 की चुनौतियां" के मुद्दे पर चर्चा हो रही थी, एक युवा राजनैतिक विश्लेषक इरशादुल हक ने सभा को संबोधित करते हुए कहा, "राजद ने इस चुनाव में कई गलतियां कीं. पहले मीसा भारती को टिकट दे दिया, जिनका अभी राज्यसभा का कार्यकाल चार साल बचा था. फिर रोहिणी को भी सारण से टिकट दे दिया. दोनों बेटियों ने परिवार पर दबाव बनाकर टिकट ले लिया."

हक ने आगे कहा, "दूसरी गलती पूर्णिया में पप्पू यादव का साथ न देकर हुई. यह फैसला दो बार बैकफायर किया. पूर्णिया लोकसभा में और रुपौली विधानसभा उपचुनाव में भी. पार्टी ने अपने हिस्से की 23 सीटों में से यादवों को तो 11 सीटें दीं, मगर एमवाई समीकरण के दूसरे पार्टनर मुसलमानों को सिर्फ दो सीटें दीं. इसके अलावा, सीवान में लालूजी को हिना शहाब को मनाना चाहिए था. वे न मानतीं तो वह सीट उनके समर्थन में खाली छोड़ी जानी चाहिए थी. इससे कई सीटों पर इंडिया गठबंधन का नुक्सान हुआ."

शिकायतें बहुत सारी थीं, मगर सबसे बड़ी शिकायत भागीदारी की थी. सोशल मीडिया पर लगातार बिहार के मुसलमानों के सवालों को उठाने वाले साकिब, जो दरभंगा के रहने वाले हैं, कहते हैं, ''एमवाई समीकरण अब सिर्फ कहने भर का है. पार्टी का नया नेतृत्व, खास कर तेजस्वी यादव मुसलमानों को भागीदारी देने में संकोच करते हैं. पार्टी 2015 तक मुसलमानों को ठीक-ठाक संख्या में टिकट देती रही. मगर उसके बाद टिकट मिलना कम हो गया. तेजस्वी कहते हैं, 'राजद माई के साथ बाप की भी पार्टी है. इसलिए अब इनका फोकस एमवाइ समीकरण पर नहीं है.’ मगर इस बदलाव का नुक्सान सिर्फ मुसलमानों को है, यादवों के टिकट की कटौती इन्होंने कभी नहीं की."

आंकड़े साकिब की बातों की तस्दीक करते हैं. 2019 लोकसभा चुनाव में राजद ने 19 सीटों पर उम्मीदवार उतारे जिनमें आठ यादव थे, जबकि मुसलमान सिर्फ पांच. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में राजद ने 144 सीटों पर कैंडिडेट उतारे, जिनमें 58 यादव, जबकि सिर्फ 17 मुसलमान थे. 2024 के लोकसभा चुनाव में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व न्यूनतम हो गया. पार्टी ने सिर्फ दो टिकट दिए. आबादी के हिसाब से बिहार में मुसलमान 18 फीसद हैं और यादव 14 फीसद. एक अरसे से मुस्लिम मतदाता राजद के पक्ष में मजबूती से खड़े रहे हैं.

राजद के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव अब्दुल बारी सिद्दीकी इंडिया टुडे से बातचीत में यह स्वीकार करते हैं, "मैं यह दावे के साथ कह सकता हूं कि इस बार के लोकसभा चुनाव में यादव मतदाताओं से ज्यादा मुसलमान राजद और इंडिया गठबंधन के साथ मजबूती खड़े रहे."

इसी बात को थोड़े तल्ख अंदाज में असद ओवैसी की पार्टी एमआईएम के बिहार प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान कहते हैं, "बिहार के 14 फीसद यादव वोटरों में बिला शुब्हा छह फीसद भाजपा में जा चुके हैं. आठ फीसद यादवों में राजद ने आठ टिकट दिए और 18 फीसद मुसलमानों में सिर्फ दो टिकट. लालूजी मुसलमानों को थोड़ी जगह भी देते थे, मगर नए लीडर तेजस्वी इतराए हुए हैं. ऐसे में माइनॉरिटी के लीडर अपना रास्ता तलाशने लगे हैं."

वे कहते हैं, "बिहार में लालू यादवों को बढ़ावा देते हैं, नीतीश कुर्मियों को, चिराग पासवान पासवान जाति के लोगों को. मगर बिहार में मुस्लिम खुद कंफ्यूजन का शिकार है. वह समझ नहीं पा रहा कि मेरा असल मसीहा कौन है." उनका इशारा एमआईएम की तरफ है, जिसके लीडर ओवैसी मुसलमानों के हित की बात मजबूती से करते हैं. मगर बिहार का मुसलमान कभी उन पर पूरा भरोसा नहीं करता. वह एमआईएम को तभी वोट करता है, जब उसे लगता है कि पार्टी का उम्मीदवार भाजपा को हरा सकता है.

दिलचस्प बात यह है कि 'भाजपा हराओ' की इसी नीति के तहत मुसलमानों ने इस बार पूर्णिया में राजद प्रत्याशी बीमा भारती के बदले निर्दलीय पप्पू यादव को एकमुश्त वोट दिया. उन्हें लगता था कि पप्पू दो बार से जद (यू) सांसद भारती को हरा सकते हैं. पूर्णिया में एमवाई समीकरण पूरी तरह राजद से पप्पू की तरफ शिफ्ट हो गया. यादवों ने भी अपने स्वजातीय पप्पू को एकमुश्त वोट दिए.

पूर्णिया से सांसद पप्पू यादव का कहना है, "जहां तक राजद की बात है, जितने भी बड़े बाप के बेटे हैं, उनके दो चेहरे हैं. वे माइनॉरिटी और दलितों को अछूत समझते हैं. उनका इस्तेमाल करेंगे, उनसे वोट लेंगे. मगर उनके मुद्दों पर चुप्पी साध लेंगे. सोचते हैं, मुसलमान जाएगा कहां. लालू के उत्तराधिकारी ने मुसलमानों का ट्रस्ट खो दिया है."

इन दिनों पप्पू यादव बार-बार कहते हैं कि अगर बिहार में कांग्रेस को मजबूत होना है तो उसे अकेले चुनाव लड़ना चाहिए. पप्पू यादव ने इंडिया टुडे से कहा, "मेरा आग्रह है कि बिहार में कांग्रेस क्षेत्रीय पार्टी पर से निर्भरता कम करे. यहां की क्षेत्रीय पार्टी कांग्रेस को सम्मान नहीं देती."

हालांकि अब राजद मानने लगा है कि पप्पू के मसले पर उससे पूर्णिया में चूक हुई है. सिद्दीकी कहते हैं, "पूर्णिया में हमसे कुछ गलतियां हुई हैं. वहां मुसलमानों को लगा कि पप्पू हमारी लड़ाई लड़ने वाला मजबूत साथी है. इसलिए पप्पू वहां बहुसंख्यक वोट से जीते. हालांकि उनका जीतना भी सेक्युलर फोर्स के लिए अच्छी बात है. भाजपा-जद (यू) और एनडीए से तो बेहतर ही है."

वैसे, राजद को फिलहाल पप्पू यादव से ज्यादा खतरा नहीं है. इरशाद कहते हैं, "पप्पू यादव बार-बार राहुल गांधी का नाम लेते हैं. तेजस्वी राहुल से कहकर पप्पू को कंट्रोल कर सकते हैं. उन्हें असली खतरा प्रशांत किशोर के जनसुराज अभियान से है, जिनकी पार्टी बनने जा रही है. वहां मुसलमानों का आकर्षण बढ़ रहा है. खास तौर पर ऐसे मुसलमानों का जो नॉन पोलिटिकल हैं. मगर सफल हैं, पैसे वाले हैं तो चुनाव लड़ लेना चाहते हैं. कुछ ऐसे मुसलमान भी उधर जा रहे हैं, जो पप्पू की तरह अपने दम पर चुनाव जीत सकते हैं."

जनसुराज अभियान ने खास तौर पर अपना फोकस तीन समूहों पर रखा है. दलित, अति पिछड़ा और मुसलमान. पार्टी बनने से पहले ही प्रशांत किशोर ने घोषणा कर दी है कि पार्टी का पहला अध्यक्ष दलित होगा, दूसरा अति पिछड़ा और तीसरा मुसलमान. जनसुराज से हाल ही में जुड़े मुस्लिम नेता और पूर्व मंत्री मोनाजिर हुसैन कहते हैं, "प्रशांत किशोर ने बिहार विधानसभा चुनाव में मुसलमानों को 45 सीटें देने की घोषणा की है."

अभियान से जुड़े मोनाजिर हसन और आफाक अहमद जैसे बड़े नेताओं ने मिल कर पटना के हज भवन में "बिहार का सियासी मंजरनामा और मुसलमान" के नाम से एक बड़ी सभा करवाई. इस सभा में प्रशांत किशोर बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए और उन्होंने कहा, "लालटेन में किरासन तेल बनकर आप जल रहे हैं और रौशनी कहीं और हो रही है. मुसलमानों को राजनैतिक बंधुआ मजदूरी से अब निकलना होगा." इसके बाद कई मुसलमान नेता जनसुराज अभियान में शामिल होने लगे.

इनमें भागलपुर के इबरार अहमद, महताब आलम, गोपालगंज के नियाज अहमद, मुजफ्फरपुर के अब्दुल मजीद, बेतिया के अब्बास शेख, पूर्णिया के शाहनवाज आलम समेत 35 बड़े नेता थे. ऐसे में राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह को चिट्ठी जारी करनी पड़ी और लोगों को पार्टी से निष्कासित करना पड़ा. इसी वजह से तेजस्वी भी अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ की बैठक में इशारे-इशारे में प्रशांत किशोर पर हमला करते नजर आए.

कभी बिहार सरकार में मंत्री रहे मोनाजिर हसन इन दिनों जनसुराज अभियान को मजबूत करने में जुटे हैं. वे विधानसभा उपचुनाव में बेलागंज और इमामगंज से उम्मीदवार उतारने की तैयारी में हैं. वे कहते हैं, "बिहार 35 साल से दो भाइयों की जोड़ी देख-देखकर थक चुका है. अब बिहार बदलाव चाहता है. मुस्लिम वोटरों को जनसुराज से सबसे अधिक फायदा है. प्रशांत किशोर कहते हैं, भीख नहीं भागीदारी, सबको बराबर हिस्सेदारी. वे आबादी के हिसाब से सत्ता में हिस्सेदारी देंगे."

वे आगे जारी रखते हैं, "मुसलमान एकतरफा राजद को वोट करते हैं, मगर पार्टी उनको दो मंत्री पद देती है, वह भी ऐसा पद जिसके अफसर जिले में नहीं हैं. वोट लेने के लिए नौ परसेंट वालों को हेलिकॉप्टर पर घुमाते हैं. जिसकी आबादी 19-20 परसेंट है, वह किनारे खड़ा रहता है. ऐसी बेइज्जती की स्थिति में प्रशांत किशोर जी से बेहतर विकल्प नहीं है. भाजपा को हराने के नाम पर लोग कितने दिन ठगे जाएंगे. केंद्र में दस साल से नरेंद्र मोदी हैं, बीस साल से एनडीए बिहार में है, मुसलमानों के साथ क्या हुआ." 

शिकायतें दूसरी भी हैं. जैसे लंबे अरसे से बिहार में पसमांदा मुसलमानों के मुद्दों की लड़ाई लड़ने वाले अली अनवर कहते हैं, "राजद एमवाई की राजनीति करता ही नहीं. वह एफएमवाई की राजनीति करता है. यानी फॉरवर्ड मुसलमान और यादव. राजद के बड़े नेता मुसलमानों में अगड़ी जाति के हैं. पार्टी पसमांदा मुसलमानों को टिकट नहीं देती."

वे यह भी कहते हैं, "इसके बावजूद हमने लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन की जी-जान लगाकर मदद की. आज हालात ये हैं कि भाजपा से लेकर जद (यू) और प्रशांत किशोर तक सभी मुसलमानों को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहे हैं. मगर जिन लोगों को हम वोट करते हैं, जिनके लिए बदनाम हैं, उन लोगों को हमारी कद्र नहीं. तो हमने साफ कर दिया है, जो हम लोगों को नजरअंदाज करेगा, उसे नजर से उतारने में हमें वक्त नहीं लगेगा."

हालांकि सिद्दीकी इन आरोपों को खारिज करते हैं. वे कहते हैं, "हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू यादव की तो बदनामी ही इसलिए है कि वे मुस्लिम मुद्दों पर ज्यादा मुखर हैं. विरोधी उन्हें इस बात के लिए बदनाम करते हैं. वैसे लोकसभा चुनाव में अपेक्षाकृत बेहतर जीत न मिलने के कारणों की हमने समीक्षा की है. हम जल्द अपनी गलतियां सुधार लेंगे."

नाराजगी के बावजूद आम मुसलमान राजद से आज भी बेहतरी की उम्मीद रखता है. इरशाद कहते हैं, "प्रशांत किशोर फैक्टर को मैं इस रूप में देख रहा हूं कि बिहार के मुसलमानों को बारगेनिंग का विकल्प मिला है. मेरा मानना है कि राजद अब अपनी नीतियां बदलेगा. पार्टी को युवा और डाइनेमिक मुसलमानों को सामने लाना चाहिए. तेजस्वी की कोर टीम में भी मुसलमान दिखने चाहिए. अगर वे ऐसा करते हैं तो चुनाव आते-आते हमारी शिकायतें भी खत्म हो जाएंगी."

राजद से मुसलमानों का मोहभंग और समुदाय में जनसुराज की बढ़ता नेतृत्व तेजस्वी यादव के लिए खतरे की घंटी होनी चाहिए वरना समुदाय की 'नजर से उतरना' तय है.

नाराजगी के सबब

● एमवाई समीकरण कहने भर को है, मुसलमानों को चुनाव में समुचित भागीदारी नहीं मिलती.

● जब से तेजस्वी को कमान मिली है, मुसलमानों का प्रतिनिधित्व घटता गया है.

● राजद नेतृत्व मुसलमानों के मुद्दे पर मुखर होने से परहेज करने लगा है.

● लोकसभा चुनाव में भाजपा-आरएसएस पृष्ठभूमि वाले लोगों को टिकट दिया, समर्थन किया.

● मुसलमान मानते हैं पप्पू यादव के मसले पर राजद ने चूक की.

● राज्य के मुसलमान जनसुराज अभियान, पप्पू यादव और ओवैसी जैसे नेताओं की तरफ आकर्षित हो रहे.

● भाजपा, जद (यू) से लेकर हर कोई मुसलमानों को लुभाने की कोशिश कर रहा है, मगर राजद उन्हें लगातार नजरअंदाज कर रहा.

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