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कोलकाता रेप केस में सिस्टम ने पीड़िता से कैसे किया भयावह आपराधिक खिलवाड़?

अस्पताल, प्रशासन और राज्य सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लेने की बजाए किस तरह से हर कदम पर खिलवाड़ किया

डॉक्टर, छात्र और हॉस्पिटल के दूसरे स्टाफ 12 अगस्त को आर.जी. कर हॉस्पिटल में विरोध प्रदर्शन करते हुए
डॉक्टर, छात्र और हॉस्पिटल के दूसरे स्टाफ 12 अगस्त को आर.जी. कर हॉस्पिटल में विरोध प्रदर्शन करते हुए
अपडेटेड 11 सितंबर , 2024

अगस्त की 8 तारीख को कोलकाता के सरकारी आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में 31 वर्षीया ट्रेनी डॉक्टर के साथ बर्बर बलात्कार और हत्या की घिनौनी दास्तान में इनकार ही स्वाभाविक प्रतिक्रिया नजर आता है. सबसे पहले अस्पताल ने यह बताने से इनकार कर दिया कि वह डॉक्टर बलात्कार और हत्या की शिकार हुई थीं, फिर पुलिस ने इसे अस्वाभाविक मौत का मामला बताने की कोशिश की, और उसके बाद प्रशासन लोगों के गुस्से की गंभीरता को समझने और यह बताने में नाकाम रहा कि स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर अस्पताल परिसर में की गई तोड़फोड़ तृणमूल कांग्रेस के अपने समर्थकों की ही कारस्तानी थी.

इनकार के दूसरी तरफ और मुख्य रूप से सोशल मीडिया पर सूचनाओं और जानकारियों का अतिरेक था. अफवाहों, असत्यों और शरारतों का एक अस्वस्थ और अप्रिय गुबार वायरल ताकत के बल पर चक्कर लगा रहा था. उसने सत्य की खाल ओढ़ रखी थी जबकि वास्तव में वह सच्चाई को छिपा रहा था. उम्मीद के मुताबिक यह सारा अतिउत्साह खतरनाक साबित हुआ, क्योंकि इसका हश्र पीड़िता का नाम और मुर्दाघर में रखे उसके अधढके शव की तस्वीरें उजागर करने में हुआ.

दस दिन बाद भी तमाशा थमा नहीं. कलकत्ता हाइकोर्ट में कई याचिकाओं के बाद मामला केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआइ) को सौंप दिया गया; सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई की और पूरे मामले में हुई भूल-चूकों के लिए कड़ी फटकार लगाई. मामले के सारे तथ्यों के सामने आने में हालांकि वक्त लग सकता है, मगर इस मामले में हुई कई आपराधिक चूकों को याद करना बेहद जरूरी है. हम कुछ मूर्खताओं और चूकों का पता लगा पाए जो यहां पेश किए गए हैं.

पीड़िता

पीड़िता आरजीकेएमसीएच में पल्मोनरी मेडिसिन की दूसरे साल की 31 वर्षीया पोस्टग्रेजुएट ट्रेनी डॉक्टर. कोलकाता के बाहरी इलाके सोदेपुर में रहने वाले अपने माता-पिता की अकेली संतान, जिसने नादिया के जेएनएम मेडिकल कॉलेज और अस्पताल से एमबीबीएस किया था. उस पीड़िता की डायरी में लिखी बातों से पता चलता है कि वह गोल्ड मेडलिस्ट बनना चाहती थी.

आरोपी

आरोपी सिविक पुलिस वॉलंटियर 33 वर्षीय संजय रॉय के खिलाफ घरेलू हिंसा के कई आरोप हैं, मगर वह हिस्ट्री-शीटर नहीं था. पुलिस का कहना है कि वह कोलकाता के रेड लाइट इलाकों में नियमित जाता रहता था और बताया जाता है कि 9 अगस्त को आरजीकेएमसीएच आने से पहले भी वह कम से कम एक वेश्यालय गया था. सूत्रों का यह भी कहना है कि उसने उस रात शराब पी रखी थी.

प्रिंसिपल

मूलत: बनगांव के रहने वाले 54 वर्षीय डॉ. संदीप घोष आरजीकेएमसीएच के पूर्व छात्र हैं. 2021 में आरजीकेएमसीएच के प्रिंसिपल बनने से पहले वे कलकत्ता नेशनल मेडिकल कॉलेज के वाइस-प्रिंसिपल थे. घटना के बाद उन्हें प्रिंसिपल बनाकर वापस सीएनएमसी भेज दिया गया. उन्होंने जहां भी काम किया, वित्तीय अनियमितताओं के आरोप हर जगह उनका पीछा करते रहे.

आपराधिक खिलवाड़ 1.

हत्या पर खुदकुशी का परदा

कलकत्ता हाइकोर्ट के चीफ जस्टिस की खंडपीठ के सामने 12 अगस्त को दायर अपनी याचिका में पीड़िता के साठ साल से अधिक उम्र के माता-पिता ने गंभीर आरोप लगाए. दर्जी की दुकान में काम करने वाले दंपती का कहना था कि अस्पताल के अधिकारियों ने उनकी बेटी का शव मिलने के बाद पुलिस की सहायता से घटना के वास्तविक स्वरूप पर परदा डालने की संगठित कोशिशें कीं.

याचिका में कहा गया है कि "उन्होंने समय से पहले ही उसकी मौत को आत्महत्या करार दे दिया, यहां तक कि तब जब पोस्टमॉर्टम जांच भी नहीं हुई थी." ऑटोप्सी रिपोर्ट में दर्ज है कि उनकी बेटी की मौत 9 अगस्त को तड़के 3 बजे और 5 बजे के बीच हुई, लेकिन माता-पिता को पहला फोन कॉल अस्पताल के असिस्टेंट सुपरिंटेंडेंट द्वैपायन विश्वास के यहां से उस दिन सुबह 10.53 बजे आया, और वह भी यह बताने के लिए कि उनकी बेटी बीमार है. बाइस मिनट बाद 11.15 बजे उसी व्यक्ति ने फिर फोन किया और उन्हें बताया कि उनकी बेटी खुदकुशी करके मर गई है.

मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने घटनाओं के सिलसिले पर और कोलकाता पुलिस की तरफ से एफआइआर दर्ज करने में हुई देरी पर सवाल उठाए—अपराध का पता सुबह तड़के चल गया था, मगर एफआइआर देर रात को दर्ज की गई. बदतर यह कि जब उनके माता-पिता बेटी की मौत की खबर मिलने के बाद भागे-भागे अस्पताल आए, उन्हें शव को दिखाए जाने तक से इनकार कर दिया गया, जो, उनकी याचिका के मुताबिक, "सबूतों के साथ छेड़छाड़ की जानी-बूझी कोशिश की तरफ इशारा" करता है.

प्रिंसिपल संदीप घोष की तरफ से औपचारिक शिकायत दर्ज न करवाने से भी शक की गुंजाइश पैदा होती है. मामले की पहली एफआईआर माता-पिता की तरफ से 9 अगस्त को रात 11.45 बजे ताला पुलिस थाने में दर्ज करवाई गई.

अपनी याचिका में लड़की के माता-पिता ने कहा, "उन्हें पता चला है कि उनकी बेटी के शरीर के निचले हिस्से पर कोई कपड़े नहीं थे, और भीषण यातना के निशान दिखाई दे रहे थे. उसके शव की स्थिति से स्पष्ट पता चलता था कि उसके साथ बर्बरता से बलात्कार करके हत्या की गई थी...कई सारी चोटें, खरोंचें और हिंसक संघर्ष के साफ निशान (थे), जिनमें योनि, होंठों और आंखों से खून निकलना भी शामिल था."

गलत जानकारियां फैलाने के लिए मीडिया को दोषी ठहराते हुए कोलकाता के पुलिस कमिशनर विनीत गोयल ने अपने पुलिसकर्मियों का यह कहकर बचाव किया, "अपराध को 'आत्महत्या’ बताने की कोई कोशिश नहीं की गई, जैसा कि कुछ हलकों से गलत ढंग से बताया जा रहा है. पुलिस ने कभी इसे आत्महत्या नहीं कहा."

● असिस्टेंट सुपरिंटेंडेंट ने माता-पिता को कॉल करके पहले बताया कि उनकी बेटी बीमार है. बाद में उसी ने कॉल करके कहा कि उसने आत्महत्या कर ली है

● पहली एफआईआर दाह-संस्कार के बाद ही दर्ज हुई और उसे भी माता-पिता ने दर्ज कराया

आपराधिक खिलवाड़ 2.

संदिग्ध रॉय आर.जी. कर अस्पताल में कहीं भी बेरोकटोक घूमता था

अस्पताल परिसार के किसी भी हिस्से में मुख्य आरोपी संजय रॉय की इतनी बेरोकटोक पहुंच कैसे थी? उतना ही हैरान करने वाला तथ्य यह है कि उसे डॉक्टरों की गतिविधियों की जानकारी रहती थी और उसे यह भी पता था कि जिस डॉक्टर को उसने अपना शिकार बनाया वह उस समय कहां मिल सकती थी? वह महज एक सिविक पुलिस वॉलंटियर ही था. पश्चिम बंगाल ने 2012 में त्योहारों, चुनावों और आपदा प्रबंधन के दौरान सहायता के लिए सिविक पुलिस वॉलंटियर व्यवस्था बनाई थी. संजय रॉय 2019 में वॉलंटियर बना और कोलकाता सशस्त्र पुलिस की चौथी बटालियन के लिए बने बैरक में रहता था, जिसका वह हकदार नहीं.

14 अगस्त के बाद आर.जी. कर हॉस्पिटल में तैनात आरएएफ का दस्ता

वह कोलकाता पुलिस वेलफेयर एसोसिएशन की तरफ से मरीजों को भर्ती करने के लिए अक्सर अस्पताल लेकर जाता था. हालांकि हैरान करने वाली बात यह भी है कि आखिर रॉय ऐसा कैसे कर पाता था क्योंकि कोई व्यक्ति उस एसोसिएशन में तभी शामिल हो सकता है जब वह उस पुलिस बल का स्थायी सदस्य हो.

तीसरी मंजिल पर जाने वाली लिफ्ट एक गलियारे में खुलती है जहां एक सीसीटीवी लगा हुआ है. उसकी फुटेज की जांच करने पर पता चला है कि रॉय सुबह करीब 3.45 बजे सेमिनार हॉल में दाखिल हुआ, करीब 4.35 बजे वहां से बाहर आया और 4.37 बजे अस्पताल परिसर से बाहर चला गया. हॉल में दाखिल होते समय उसने ईयरफोन लगा रखा था, लेकिन बाहर आते समय ईयरफोन नहीं था. बताया जाता है कि सेमिनार रूम में टूटे हुए ईयरफोन के टुकड़े मिले हैं. हॉल के पिछले हिस्से में एक दरवाजा है जो सीढ़ी की ओर खुलता है, लेकिन वहां कोई सीसीटीवी नहीं था. अन्य किसी सीसीटीवी में रॉय के प्रवेश या निकास रिकॉर्ड नहीं हुआ है.

अभी तक यह मालूम नहीं है कि अस्पताल प्रशासन की अन्य गतिविधियों से भी उसका किसी प्रकार का कोई लेना-देना था या नहीं. जब उसकी पहचान के बारे में पूछा गया, तो कोलकाता पुलिस आयुक्त विनीत गोयल ने कहा कि वह "उच्चतम स्तर का अपराधी" था.

● हर स्तर पर सुरक्षा के बावजूद, संदिग्ध सुबह 4 बजे खुलेआम अस्पताल में अंदर-बाहर घूमता रहा

● वह न केवल अस्पताल की हर गतिविधि से परिचित था बल्कि उसे यह भी पता था कि उसकी शिकार अभी कहां मिल सकती है

आपराधिक खिलवाड़ 3

इधर प्रिंसिपल का इस्तीफा, उधर दूसरे अस्पताल के प्रिंसिपल

ऑर्थोपेडिक्स के प्रोफेसर डॉ. संदीप घोष का बीते तीन साल में दो बार तबादला हुआ, मगर जल्द ही उन्हें फिर बहाल कर दिया गया; एक बार दो-एक हफ्तों के भीतर और दूसरी बार कुछ घंटों के ही भीतर. इस बार बताया जाता है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उनके पीछे अपनी पूरी ताकत झोंक दी, और इस्तीफा स्वीकार करने के बजाए दूसरे प्रतिष्ठित कॉलेज में प्रिंसिपल के पद पर उनका तबादला कर दिया. 

बीते कुछ साल के दौरान घोष के खिलाफ कई औपचारिक शिकायतें दर्ज करवाई गईं. एक तो अभी इसी साल अप्रैल में दर्ज करवाई गई. इनमें मुख्य शिकायत यह थी कि घोष अस्पताल के कूड़ेदानों से बायोमेडिकल कचरा गैरकानूनी ढंग से इकट्ठा करने और उसे बाहरी लोगों को बेचने से जुड़े एक गोरखधंधे का मास्टरमाइंड था, और पुलिस की तरफ से पोस्टमॉर्टम के लिए अस्पताल को भेजे गए शवों का उनकी अनुमति या मृतकों के परिवारों की अनुमति के बिना ईएनटी कार्यशालाओं के लिए इस्तेमाल किया करता था.

दरअसल, मार्च 2023 में तब आरजीकेएमसीएच के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट और वाइस-प्रिंसिपल ने बायोमेडिकल कचरे की बदइंतजामी की जांच के लिए समिति बना दी थी. इसके संयोजक आरजीकेएमसीएच के पूर्व डिप्टी सुपरिंटेंडेंट (नॉन-मेडिकल) अख्तर अली थे, जो अब मुर्शिदाबाद मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में तैनात हैं. जुलाई 2023 में राज्य सतर्कता आयोग को लिखे एक पत्र में उन्होंने 15 बातों का जिक्र किया. बायोमेडिकल कचरे से जुड़े आरोप के अलावा उनमें यह आरोप भी शामिल था कि महामारी के दौरान अस्पताल ने (कथित रूप से प्रिंसिपल के आदेश पर) प्रति मशीन 4.3 लाख रुपए और 12 फीसद जीएसटी के दाम पर हाइ फ्लो नैजल ऑक्सीजिनेशन मशीनें खरीदीं. संदर्भ के लिए उन्होंने बताया कि शहर के दूसरे अस्पतालों ने यही मशीनें प्रति मशीन 1.34 लाख रुपए जितनी कम कीमत में खरीदी थीं.

 

डॉ. संदीप घोष

इस बीच 2023 में वकील अक्षय के. सारंगी ने कलकत्ता हाइकोर्ट में याचिका दायर करके बायोमेडिकल कचरे और शवों के दुरुपयोग के आरोपों को लेकर घोष को हटाने की मांग की. इस साल अप्रैल में ताला पुलिस थाने ने बिस्वनाथ दास की शिकायत दर्ज की, जिसमें घोष पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया था.

तो घोष किसके बलबूते पर इतने ताकतवर थे? पत्रकारों के साथ बातचीत में भाजपा और विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने दावा किया कि घोष प्राइवेट ऑर्थोपीडिशियन डॉ. श्यामपद दास के करीबी हैं, जो कथित तौर पर मुख्यमंत्री ममता के करीबी हैं. दास उस 'नॉर्थ बंगाल’ लॉबी के सदस्य बताए जाते हैं, जिसका कथित तौर पर राज्य के स्वास्थ्य महकमे में सिक्का चलता है.

सूत्रों के मुताबिक, विधायक सुदीप्त रॉय और उनके साथ नॉर्थ बंगाल मेडिकल कॉलेज के पूर्व ओएसडी सुशांत रॉय, और अवीक डे—जो सभी डॉक्टर और पश्चिम बंगाल मेडिकल काउंसिल के सदस्य हैं—इस लॉबी का हिस्सा हैं. सुदीप्त ने घोष की खुलकर तारीफ की. विधायक ने, जो आर.जी. कर रोगी कल्याण समिति के अध्यक्ष भी हैं, कहा, "वे थोड़े सख्त हैं, पर योग्य प्रशासक और अच्छे शिक्षक हैं." जब नॉर्थ बंगाल लॉबी के बारे में पूछा गया, उन्होंने इसके अस्तित्व से इनकार नहीं किया, पर कहा कि मेडिकल काउंसिल का चुनाव जीतने की वजह से इसे 'सरकार समर्थक समूह’ कहा जाता है.

● आरजीकेएमसीएच के प्रिंसिपल संदीप घोष ने 12 अगस्त को इस्तीफा दे दिया, तो उन्हें कलकत्ता नेशनल मेडिकल कॉलेज का प्रिंसिपल बनाकर उनका तबादला कर दिया गया

आपराधिक खिलवाड़-4.

तोड़फोड़ और लीपापोती

तेरह अगस्त को यह बात फैल गई कि अपराध के स्थल सेमिनार हॉल को गिराया जा रहा है. विरोध करने वालों—डॉक्टरों और राजनैतिक कार्यकर्ताओं दोनों— ने यह मांग शुरू कर दी कि वह काम तुरंत रोका जाए. बाद में यह सामने आया कि सेमिनार हॉल के ठीक सामने वाले कमरे में कुछ जीर्णोद्धार का काम किया जा रहा था. पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के पूर्व प्रमुख अरुणाभ दत्त चौधरी ने कहा कि यह काम पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष के आदेशों पर किया जा रहा था.

चौधरी कहते हैं, "मुझे नवीकरण के काम के बारे में पता नहीं था और जब मैंने यह शोर सुना तो उस समय मैं अस्पताल के अपने नियमित दौरे पर था. फिर मैंने देखा कि दीवार के हिस्से पहले ही गिराए जा चुके हैं. मैंने उनसे तुरंत काम बंद करने को कहा." कई ने अपराधस्थल के नजदीक निर्माण कार्य कराने की हड़बड़ कोशिशों पर सवाल उठाए हैं और दावा किया है कि इससे सबूत नष्ट हो गए होंगे.  

तोड़फोड़ आरजीकेएमसीएच का वह रूम जहां पर काम चल रहा था

फिर, 14 अगस्त को जब महिलाएं 'रिक्लेम द नाइट मार्च’ की अगुआई कर रही थीं, उसके बावजूद सैकड़ों हुड़दंगियों की एक भीड़ आरजीकेएमसीएच में घुस गई और उस जगह को तोड़ने-फोड़ने पहुंच गई. उन्होंने प्रथल तल पर इमरजेंसी रूम में तोड़फोड़ की और दूसरे तल पर चले गए तथा रास्ते में पड़ने वाली हर चीज के साथ तोड़फोड़ की, और फिर उन्होंने ईएनटी विभाग को भी तहस-नहस किया.

कई चीजों के साथ-साथ बेहद जरूरी दवाएं और उपकरण भी नष्ट हो गए. सोशल मीडिया पर प्रसारित एक वीडियो में एक उपद्रवी यह कहता नजर आया है, "सेमिनार रूम में चलो." अस्पताल की नर्सों और अन्य कर्मचारियों ने शौचालयों, मुर्दाघरों तथा अन्य जगहों पर शरण ली. एक नर्स बताती हैं, ''उनमें से एक ने अगली बार हमारा बलात्कार करने की धमकी दी.’’

तोड़फोड़ के दौरान पुलिस ने करीब 20 मिनट तक कथित तौर पर कुछ नहीं किया. बाद में उसने दावा किया कि उस भीड़ की संख्या बहुत ज्यादा थी. अब सुप्रीम कोर्ट ने राज्य पुलिस की निष्क्रियता के लिए उसको कड़ी फटकार लगाई है और जांच का आदेश दिया है.

● नवीनीकरण का काम ठीक उसी फ्लोर पर शुरू किया गया जिस पर जघन्य बलात्कार और हत्या का स्थल, सेमिनार रूम है 
● 14 अगस्त को उपद्रवी भीड़ जबरदस्ती अस्पताल में घुस गई और उसमें तोड़फोड़ की मगर पुलिस ने किसी को हाथ तक नहीं लगाया. बाद में पुलिस ने दावा किया कि 7,000 की भारी भीड़ के सामने वे कम पड़ गए थे

आपराधिक खिलवाड़-5

बेरुखी का बर्ताव

साफतौर पर चौतरफा घिरी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की प्रतिक्रिया उनके दामन पर छींटे लगने से उन्हें बचा नहीं पाई. घोष का इस्तीफा स्वीकार न करने, और इसके बजाए एक अन्य प्रमुख सरकारी अस्पताल के प्रिंसिपल के रूप में उनके तबादले का ममता सरकार का फैसला अपने आप में गलत था. डॉक्टरों, नागरिक समाज के समूहों, आम जनता, फिल्म और थिएटर उद्योग के लोगों के विरोध-प्रदर्शन के प्रति सरकार के सख्त रवैये की भी आलोचना हुई.

विरोध-प्रदर्शनों में शामिल होने की वजह से 16 अगस्त को 42 डॉक्टरों का तबादला कर दिया गया (वैसे वह आदेश उसी शाम रद्द कर दिया गया था). अगले दिन, पुलिस कमिशनर विनीत गोयल ने अस्पताल परिसर के आसपास भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (पहले सीआरपीसी की धारा 144) लागू कर दिया और उस कदम को कथित तौर पर प्रदर्शनकारियों को वहां इकट्ठा होने से रोकने की कोशिश के रूप में देखा गया.

आक्रोश सीएम ममता बनर्जी 16 अगस्त को कोलकाता में एक विरोध प्रदर्शन के बीच 

फुटबॉल क्लब मोहन बागान, ईस्ट बंगाल और मोहम्मडन स्पोर्टिंग के समर्थकों को साल्ट लेक सिटी में युवा भारती स्टेडियम के पास विरोध-प्रदर्शन आयोजित करने से रोकने के लिए 18 अगस्त को स्टेडियम के आसपास एक दिन का वैसा ही आदेश लगा दिया गया था. पुलिस ने ईस्ट बंगाल और मोहन बागान के बीच एक डर्बी मैच पहले ही रद्द कर दिया था. गलत खबरें फैलाने के आरोप में पुलिस सोशल मीडिया यूजर्स को नोटिस भी जारी कर रही है. रैलियों में हिस्सा लेने वाले लोगों को भी पुलिस समन जारी कर रही है.

और, हालांकि ममता बनर्जी ने खुद इस मामले को सीबीआइ को सौंपने की पेशकश की और यहां तक कि उन्होंने एक रैली भी निकाली, मगर 14 अगस्त की तोड़फोड़ के लिए भाजपा और वाम को उनकी ओर से दोषी ठहराने का दांव उलटा पड़ गया. अब तक गिरफ्तार किए गए 32 लोगों में से कई के तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के साथ परोक्ष संबंध पाए गए.

कई स्तरों पर विफलता के लिए राज्य प्रशासन की खिंचाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अस्पताल में ढीली सुरक्षा-व्यवस्था, घोष के तबादले और आर.जी. कर अस्पताल में उपद्रवियों पर काबू पाने में पुलिस की निष्क्रियता को लेकर सवाल पूछे और उसे कड़ी फटकार लगाई.

● बचाव की मुद्रा में सीएम ममता, कोई सख्त कदम नहीं उठाया गया

● प्रदर्शनकारियों पर अनुचित कार्रवाई के लिए सरकार की खासी आलोचना हुई

आपराधिक खिलवाड़-6

तथ्य बनाम सोशल मीडिया की मनगढ़ंत

सबसे पहले, बलात्कार और हत्या के बारे में भयानक विवरण बताए जा रहे थे, जिनमें सभी के सही होने के सबूत नहीं थे. चारों ओर अफवाहें उड़ रही थीं कि वह सामूहिक बलात्कार था (किसी एक आदमी का काम नहीं था), यह भी कि पीड़िता के पेल्विक गर्डल को कुचल दिया गया था, उसकी आंख में टूटा कांच था, उसके शरीर में 150 ग्राम वीर्य पाया गया था...फिर यह भी कहा गया कि जिन चार डॉक्टरों के साथ उसने खाना खाया था उनका भी उस अपराध से कुछ लेना-देना था, उनके नाम और उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर डाल दी गईं. उनमें से एक शख्स पर टीएमसी नेता का बेटा होने का भी आरोप लगाया गया, मगर ये सभी आरोप बाद में झूठ साबित हुए.

जहां तक लड़की की चोटों का सवाल है, ऑटोप्सी रिपोर्ट में पीड़िता के शरीर के अंगों पर कई खरोंच का उल्लेख है, मगर किसी टूटे हिस्से का कोई जिक्र नहीं. इसी तरह, पीड़िता का नाम, उसकी तस्वीरें और वीडियो क्लिपिंग भी कई ई-प्लेटफॉर्म पर प्रसारित होने लगे. पीड़िता के क्षत-विक्षत चेहरे और आधे ढके शरीर के दृश्य भी वायरल हो गए, जिससे विरोध और गुस्सा भड़क गया.

अंतत:, इस पागलपन को खत्म करने की जिम्मेदारी सुप्रीम कोर्ट पर आ गई और उसने सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को पीड़िता का नाम तथा उसकी तस्वीरें हटाने के निर्देश दिए. फिर भी, पीड़िता का नाम, उसकी तस्वीरें और यहां तक कि बलात्कार के वीडियो ऑनलाइन सर्च की जा रही हैं. 

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म निराधार अफवाहों, भयावह कल्पनाओं, पीड़िता और उसके सहकर्मियों के नाम और तस्वीरों से भर गए

खूनी वारदात की डरावनी दास्तान

जघन्य अपराध का ग्राफिक में ब्यौरा और उसके बाद 10 दिनों तक चलीं दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं की फेहरिस्त

*इलस्ट्रेशन: नीलांजन दास

9 अगस्त, रात 12.30 बजे 

9 अगस्त, रात 12.30 बजे 
सीसीटीवी कैमरे की रिकॉर्डिंग में दिखा कि पीड़ित डॉक्टर सेमिनार रूम में अपने चार अन्य सहयोगियों के साथ डिलिवरी ऐप पर ऑर्डर किया गया खाना लेकर प्रवेश करती है. वे लोग वहां रात 2.30 बजे तक रुके और इसके बाद वहां से जाते हुए दिखे

 

 

 

 

9 अगस्त, रात 12.30 बजे 
9 अगस्त,  सुबह 9.30 बजे 

9 अगस्त, सुबह 4.00 बजे 
आरोपी संजय रॉय सेमिनार हॉल की तरफ चलकर जाते हुए दिखा और करीब 4.35 बजे वहां से निकला

9 अगस्त,  सुबह 9.30 बजे 
एक जूनियर डॉक्टर उस रूम में जाता है और तत्काल ही भागकर बाहर निकलता है. वह पीजीटी और अस्पताल स्टाफ को सचेत करता है

9 अगस्त, सुबह 10.30 बजे 
9 अगस्त,   सुबह 10.53 बजे 

9 अगस्त, सुबह 10.30 बजे 
पुलिस परिसर में पहुंचती है, पुलिस आयुक्त विनीत गोयल खुद भी 1 बजे वहां पर पहुंच गए

9 अगस्त,  सुबह 10.53 बजे 
आरजीकेएमसीएच के असिस्टेंट सुपरिंटेंडेंट पीडि़ता के माता-पिता को फोन कर बताते हैं कि उनकी बेटी की तबीयत ठीक नहीं है. करीब 22 मिनट बाद वे दोबारा फोन कर कहते हैं कि उसने आत्महत्या कर ली है

9 अगस्त, 4.20 बजे 
10 अगस्त 

 

 

 

 

 

 

 

9 अगस्त, 4.20 बजे 
पोस्टमॉर्टम शुरू हुआ और 25 मिनट में खत्म हो गया. उसके बाद अभिभावकों को आधिकारिक शिकायत दर्ज करने के लिए ताला पुलिस थाने ले जाया गया. रात करीब 8.30 से 9 बजे के बीच उन्हें बेटी का शव सौंपा गया

10 अगस्त 
पुलिस ने संजय रॉय को साल्ट लेक स्थित कोलकाता आर्म्ड पुलिस की चौथी बटालियन की बैरक से उठाया. रात 2 बजे से सुबह 5 बजे तक उससे पूछताछ हुई. उसने अपराध स्वीकार कर लिया और पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया

12 अगस्त 
13 अगस्त 

 

 

 

 

 

 

 

12 अगस्त 
युवती के अभिभावकों और अन्य लोगों ने कलकत्ता हाइकोर्ट में याचिका दायर की. संदीप घोष ने आरजीकेएमसीएच के प्रिंसिपल पद से इस्तीफा दिया और उन्हें सीएनएमसीएच में प्रिंसिपल नियुक्त किया गया

13 अगस्त 
अदालत ने केस केंद्रीय जांच ब्यूरो को ट्रांसफर किया और घोष को छुट्टी पर भेजा. जहां अपराध हुआ उस स्थान के पास रिनोवेशन का काम शुरू हो गया जिससे विवाद पैदा हुआ

14 अगस्त 
हजारों लोगों, खासकर महिलाओं ने 'रिक्लेम द नाइट’ रैली में हिस्सा लिया. बाद में रात को हजारों शरारती तत्वों की भीड़ अस्पताल में घुस गई और इमरजेंसी तथा ईएनटी समेत कई महत्वपूर्ण यूनिटों में भारी तोड़फोड़ की.

16 अगस्त 

16 अगस्त 
हाइकोर्ट ने हंगामा रोकने में नाकाम रही पुलिस की जमकर खिंचाई की और उससे ''पूरे घटनाक्रम का क्रमवार ब्योरा देने को कहा जिसकी वजह से यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई.’’ इस बीच सीबीआइ ने घोष से पूछताछ शुरू की. उनसे कई बार पूछताछ की गई

20 अगस्त 
सुप्रीम कोर्ट ने घटना का खुद संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को अपने दायित्व में विफल रहने के लिए फटकार लगाई. शाम तक राज्य सरकार ने अधिसूचना जारी कर पूर्व पुलिस और सैन्य अफसरों को पूरे बंगाल के अस्पतालों में बतौर सुरक्षा अधिकारी तैनात करने के लिए आवेदन मांगे .

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