scorecardresearch

वायनाड में एक भूल कैसे सैकड़ों की जान लेने वाली त्रासदी में बदल गई?

कई स्तर पर अनदेखी के कारण वायनाड में यह त्रासदी तो होनी तय ही थी

वायनाड के चूरलमाला में 31 जुलाई को मलबे के बीच खड़े बचाव कर्मी
वायनाड के चूरलमाला में 31 जुलाई को मलबे के बीच खड़े बचाव कर्मी
अपडेटेड 19 अगस्त , 2024

अंधेरी रात में भारी बारिश के बीच बड़े पैमाने पर भूस्खलन ने हर तरफ हाहाकार मचा दिया. 30 जुलाई को केरल के पहाड़ी क्षेत्र वायनाड में हुई इस तबाही में मुंडक्कई और चूरलमाला गांवों का नामोनिशान मिटा दिया और 1 अगस्त तक कम से कम 289 लोगों की जान चली गई. यही नहीं, 200 से ज्यादा लोग लापता हैं.

दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि कई स्तर पर अनदेखी के कारण यह त्रासदी तो होनी तय ही थी. पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के मुताबिक, राज्य भूस्खलन के प्रति काफी संवेदनशील है और देश में सबसे ज्यादा भूस्खलन यहीं होते हैं. देश में 2015 से 2022 के बीच 3,782 भूस्खलनों में से 2,239 केरल में हुए हैं.

माधव गाडगिल की अध्यक्षता में पश्चिमी घाट की पारिस्थितिकी पर रिपोर्ट पेश करने वाली विशेषज्ञ समिति का हिस्सा रहे पर्यावरणविद् वी.एस. विजयन कहते हैं कि वायनाड में जो कुछ हुआ, वह ऐसी आपदा है जिसे "हमने खुद बुलावा दिया है." यह उन राज्यों के लिए एक चेतावनी है, जो समग्र जोखिम आकलन के बिना पहाड़ी ढलानों पर अनियंत्रित निर्माण की अनुमति देते हैं. 2011 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को सौंपी गई गाडगिल रिपोर्ट में वायनाड में बेहद खूबसूरत व्यथिरी, मनतवडी और सुल्तान बाथरी तालुका को पर्यावरण के नजरिए से संवेदनशील क्षेत्र-1 (ईएसजेड-1) की श्रेणी में रखा गया था.

इसका मतलब है कि यह क्षेत्र पर्यावरण के लिहाज से बेहद संवेदनशील है और इसलिए भूमि उपयोग में कोई बदलाव नहीं किया जाना चाहिए. व्यथिरी ताल्लुका में मेप्पाडी उन 18 ईएसजेड में एक है, जिन्हें गाडगिल समिति ने चिह्नित किया था और यह भूस्खलन का शिकार बने मुंडक्कई और चूरलमाला से महज 2-3 किलोमीटर ही दूर है.

समिति ने सिफारिश की थी कि उत्खनन और लाल श्रेणी के उद्योगों (जिनका प्रदूषण सूचकांक स्कोर 60 या उससे अधिक है) को ईएसजेड-1 में अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. इसके अलावा, जहां खनन की अनुमति है, वहां से मानव बस्तियों की दूरी कम से कम 100 मीटर होनी चाहिए. हालांकि, विजयन कहते हैं कि राज्य सरकार ने दूरी की यह सीमा घटाकर 50 मीटर कर दी है. भौगोलिक परिदृश्य में बदलाव, पर्यटक रिजॉर्ट की बढ़ती संख्या और अंधाधुंध खनन से जमीनी हालात में जिस तरह के बदलाव हुए, उसका नतीजा यही होना था.

कई राज्य सरकारों के विरोध के बाद केंद्र ने गाडगिल समिति की सिफारिशें खारिज कर दीं. फिर एक साल बाद ही नई रिपोर्ट का मसौदा तैयार करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक और उच्च स्तरीय समिति गठित की. गाडगिल समिति चाहती थी कि पश्चिमी घाट के लगभग 75 फीसद हिस्से को ईएसए (पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र) के तौर पर अधिसूचित किया जाए, कस्तूरीरंगन समिति ने इसे घटाकर 37 फीसद कर दिया. लेकिन अभी तक इसे भी अधिसूचित नहीं किया गया है,  क्योंकि पश्चिमी घाट से लगे राज्य टालमटोल कर रहे हैं.

नतीजा सबके सामने है. इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायरनमेंटल रिसर्च ऐंड पब्लिक हेल्थ में छपे 2022 के एक अध्ययन से पता चलता है कि 1950 से 2018 के बीच वायनाड में 62 फीसद जंगल गायब हो गए जबकि खेती-बाड़ी 1,800 फीसद बढ़ गई. इससे जलवायु परिवर्तन में तेजी आई है, जिससे पश्चिमी घाट में भूस्खलन का जोखिम बढ़ा है. पश्चिमी घाट दुनिया में जैव विविधता से भरपूर आठ 'सबसे गर्म स्थानों' में से एक है.

कोचीन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीयूएसएटी) के एडवांस्ड सेंटर फॉर एटमॉस्फियरिक रडार रिसर्च के वैज्ञानिकों ने पाया कि भारत के पश्चिमी तट पर वर्षा अधिक सघन होती जा रही है. इस सेंटर के निदेशक एस. अभिलाष कहते हैं, "अरब सागर गर्म होने से बादल काफी घने हो जाते हैं, और यही केरल में कम समय में भारी बारिश का कारण है. इससे भूस्खलन का जोखिम भी बढ़ा है." समुद्र गर्म होने से ऊपरी वायुमंडल में भी ऊष्मागतिकीय अस्थिरता उत्पन्न हुई है. वे कहते हैं, "यह वायुमंडलीय अस्थिरता जलवायु परिवर्तन से जुड़ी है. पहले, इस तरह की बारिश उत्तरी कोंकण बेल्ट, मंगलूरू के उत्तर में होना एक आम बात थी."

2022 का अध्ययन स्पष्ट संकेत देता है कि बारिश के कारण संभावित आपदाओं की चेतावनियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. वायनाड जिले में 200 से अधिक स्थानों से वर्षा के आंकड़े एकत्र करने वाले ह्यूम सेंटर फॉर इकोलॉजी ऐंड वाइल्डलाइफ बायोलॉजी ने आपदा से 16 घंटे पहले 29 जुलाई को सुबह 9 बजे मुंडक्कई और आसपास के इलाकों में भूस्खलन की आशंका पर प्रशासन को सचेत किया था. केंद्र के आंकड़ों से पता चलता है कि मुंडक्कई के सबसे नजदीकी वर्षा माप केंद्र पुथुमाला ने 28 जुलाई को 200 मिमी और रात भर में 130 मिमी बारिश दर्ज की थी.

एक पीड़ित का शव ले जाते राहत कर्मी, 30 जुलाई

ह्यूम सेंटर के निदेशक सी.के. विष्णुदास बताते हैं, "करीब 600 मिमी बारिश होने पर भूस्खलन की आशंका रहती है. इसलिए, हमने फौरन चेतावनी जारी की कि अधिक बारिश खतरनाक साबित हो सकती है." 28 जुलाई से अब तक 48 घंटों में इस क्षेत्र में 572 मिमी बारिश हुई है. 2020 में मुंडक्कई में भूस्खलन के खतरे को लेकर ह्यूम सेंटर की चेतावनी के बाद लोगों को वहां से हटा दिया गया था, जिससे हताहतों की संख्या कम रही थी. इस बार भी जिला प्रशासन ने कुछ परिवारों को निकाला लेकिन यह पर्याप्त नहीं था.

राज्य और केंद्र दोनों के स्तर पर सबसे शर्मनाक बात यह है कि जुलाई में ही शुरू हुई उन्नत प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली प्रशासन को सचेत करने में 'नाकाम' साबित हुई. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित यह प्रणाली विनाशकारी भूस्खलन का पूर्वानुमान नहीं लगा पाई. केंद्रीय कोयला तथा खान मंत्री जी. किशन रेड्डी ने 19 जुलाई को कोलकाता में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण मुख्यालय में राष्ट्रीय भूस्खलन पूर्वानुमान केंद्र (एनएलएफसी) का उद्घाटन किया, साथ ही वायनाड में भी एक इकाई का शुभारंभ किया. माना जा रहा था कि एनएलएफसी स्थानीय प्रशासन को प्रारंभिक सूचनाएं प्रदान करेगा और बारिश व ढलानों की अस्थिरता पर रियल टाइम डाटा उपलब्ध कराने के साथ भूस्खलन के बारे में भी समय रहते आगाह करेगा.

बहरहाल, अग्रिम चेतावनी दी गई थी या नहीं, इस पर भी विवाद है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का दावा है कि राज्य को सात दिन पहले 23 जुलाई को ही आगाह किया गया था और एनडीआरएफ (राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल) की नौ टीमों को आशंकित खतरे से निबटने के लिए भेज दिया गया था. जवाब में केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन का कहना है कि उन्हें ऐसी कोई चेतावनी नहीं मिली है. उन्होंने 29-30 जून के लिए मौसम विभाग की तरफ से जारी ऑरेंज अलर्ट का हवाला भी दिया, और कहा कि शाह को इस पर "राजनीति करना बंद कर देना चाहिए."

आरोप-प्रत्यारोप दरकिनार भी कर दें तो वायनाड और भूस्खलन जोखिम वाले अन्य स्थानों में फिर त्रासदी न हो, इसके लिए संबंधित क्षेत्र से लोगों की निकासी (और पुनर्वास) को लेकर कई तरह की आशंकाएं हैं. पर्याप्त मुआवजे के बिना पुनर्वास पर लोगों की दुविधा ऐसी चुनौती है जिससे राज्य को निबटना ही होगा. जीवविज्ञानी पी.ई. ईसा कहते हैं, "हम सामुदायिक सुरक्षा पर तभी चर्चा करते हैं जब त्रासदी होती है लेकिन आपदा प्रबंधन से जुड़ी बुनियादी बातों की अनदेखी करते रहते हैं. दरअसल, केरल को सीमित जमीन में उच्च जनसंख्या घनत्व से निबटना पड़ता है. इसलिए, आपदा प्रबंधन के बेहद प्रभावी तरीके अपनाना जरूरी है." यह ऐसा तथ्य है जो किसी से छिपा नहीं है. इसके बावजूद, इस पर कुछ होता है या नहीं, यह एक अलग बात है.

Advertisement
Advertisement