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बिहार में पत्तों की तरह झड़ते पुलों के पीछे का सच

बिहार में नदियों की गाद निकासी से लेकर पुल-पुलिया बनाने तक में ठेकेदारों, इंजीनियरों और अफसरों ने नदियों का स्वभाव समझने में की बड़ी भूल

सारण जिले में जनता बाजार के पास 2004 में बना पुल गिरा जबकि इसके बगल में ही आजादी से पूर्व बना पुल बरकरार
सारण जिले में जनता बाजार के पास 2004 में बना पुल गिरा जबकि इसके बगल में ही आजादी से पूर्व बना पुल बरकरार
अपडेटेड 5 अगस्त , 2024

सीवान जिले के गरौली गांव में गंडकी नदी के पास लगे सफेद कपड़े के बैनर पर लाल स्याही से लिखा है: "पुल क्षतिग्रस्त है, यातायात बाधित है." ऐसे बैनर इन दिनों इसी गंडकी नदी के किनारे सात जगहों पर लगे हैं. हाल के दिनों में इस नदी पर बने सात पुल एक-एक कर ढह गए. छह पुल तो सिर्फ दो दिन के भीतर 3-4 जुलाई को ध्वस्त हुए.

गरौली के दशरथ प्रसाद पुल के गिरने के बारे में पूछते ही भड़क उठते हैं: "ठीकदार लोग नदी में माटी खुनवा रहा था. हमलोग मना किए, पुल के पास खोदाई नहीं कीजिए, हमलोग चंदा करके बनवाए हैं. पीलर में पीसीसी ढलाई नहीं हुआ है. लेकिन नहीं माना. नहीं माना तो पुल भंस गया. पानी उसको घींच कर तोड़ दिया." पास ही खड़ी बसंती देवी जोड़ती हैं, "एकठो मैडम आई थीं. हम बोले, मैडम मिट्टी ऐसे मत कटवाइए, तो बोलीं, आप मुखमंतरी हैं क्या. ई लोग पुल भंसाकर चल गए. पचास गांव के आदमी का दुख हो गया."

गरौली में गिरा यह पुल 18 जून, 2024 के बाद बिहार में गिरे एक दर्जन पुलों में से है. यह नाले की शक्ल में बहने वाली पतली-सी गंडकी नदी की धारा पर बना था. 1991 में गांव के लोगों ने चंदा करके इसके पिलर बनवाए थे. बाद में तत्कालीन स्थानीय विधायक उमाशंकर सिंह ने बचा काम पूरा करवा दिया. 22 जून, 2024 को जब पहली बारिश का पानी आया तो यह पुल भरभराकर गिर गया. गांव के लोग इसका दोष उन ठेकेदारों को देते हैं, जो नदी की सफाई करने आए थे और पोकलेन (मिट्टी निकालने वाली मशीन) से मिट्टी कटवा रहे थे. एक अन्य ग्रामीण अजय पटेल कहते हैं, "नदी की उड़ाही (सफाई) करते वक्त इन लोगों ने पुल की नींव के पास भी खुदाई कर दी. इसी वजह से पुल गिरा है."

गलत उड़ाही की वजह से सिर्फ यही पुल नहीं गिरा है. गंडकी की धार में समाए सात में चार पुलों वाले इलाकों का दौरा करने पर हर जगह लोगों ने यही बताया कि नदी में हुई उड़ाही के बाद पुल कमजोर हो गया था, इसी वजह से गिरा. सरकारी जांच में इन सातों पुलों के गिरने की वजह एक ही पाई गई. यही कि गंडक-गंगा नदी जोड़ो परियोजना के तहत हो रही इस गंडकी नदी की उड़ाही में ठेकेदारों और अभियंताओं ने लापरवाही की. गाद निकासी के काम के दौरान उन्होंने पुल-पुलिया सुरक्षित रखने के लिए एहतियाती कदम नहीं उठाए.

इनका तकनीकी पर्यवेक्षण नहीं किया. ठेकेदारों ने भी लापरवाही बरती. इसके बाद बिहार राज्य के जल संसाधन विभाग ने अपने दो कार्यपालक अभियंता, चार सहायक अभियंता और पांच कनिष्ठ अभियंता निलंबित कर दिए. गिरे पुलों को फिर से बनाने की जिम्मेदारी ठेकेदारों पर डाल दी. उन्हें यह काम अपने खर्च पर करना है. उनका भुगतान भी रोक दिया गया है.

हालांकि यह इस संकट का छोटा-सा हिस्सा है. 170 किमी लंबी गंडकी नदी पर कुल 98 पुल-पुलिया हैं. बड़ा संकट यह है कि गलत तरीके से हुई गाद निकासी की वजह से ये सभी पुल-पुलिए खतरे की जद में हैं. अब जल संसाधन विभाग बाकी बचे 91 पुल-पुलियों को बचाने में जी-जान से जुटा है. माना जा रहा है कि अगर आने वाले दिनों में बारिश हुई या इस नदी के शुरू में गंडक नदी के सारण तटबंध पर बने स्लूइस गेट को खोला गया तो इनमें से कई पुल और ढह जाएंगे. फिर बिहार सरकार की फजीहत का सिलसिला लगातार चलता रहेगा.

सीवान जिले के महाराजगंज अनुमंडल से सटे महुआरी के पास इस संवाददाता ने एक पुल को बचाने की कोशिश में जुटे मजदूरों को देखा. वे पुल के नीचे तेज धारा में उतरकर पुल की नींव के पास सैंडबैग रख रहे थे. एक क्रेन लगातार मिट्टी काट कर वहां गिरा रही थी. अनौपचारिक बातचीत में विभाग के एक वरिष्ठ अफसर ने बताया कि इस नदी पर बचे सभी पुलों पर इसी तरह का बचाव कार्य चल रहा है.

बिहार में सिलसिलेवार गिरते पुलों के बीच गंगा-गंडक नदी जोड़ो परियोजना में लगे इंजीनियरों और ठेकेदारों की लापरवाही नीतीश कुमार सरकार के लिए कितनी बड़ी समस्या बन चुकी है, इसे गंडकी नदी की मिसाल से समझा जा सकता है. उत्तर बिहार की नदियों पर शोध करने वाले जल विशेषज्ञ दिनेश कुमार मिश्र इस मसले पर तल्ख टिप्पणी करते हैं, "डॉक्टर की लापरवाही के जख्म से हम कुछ दिनों में उबर सकते हैं मगर इंजीनियरों की लापरवाही का नुक्सान पीढ़ियों को भुगतना पड़ता है. इसलिए इंजीनियरों को हमेशा कोई भी फैसला बड़ी सतर्कता से लेना चाहिए. इन पुलों को उन्होंने पहले परख लिया होता तो न ऐसी दुर्घटना होती, न बिहार सरकार को फजीहत झेलनी पड़ती."

इस गंडकी नदी की कहानी अपने आप में दिलचस्प है. गोपालगंज के रहने वाले सिविल इंजीनियर और राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के प्रदेश संयोजक विमल कुमार बताते हैं, "दरअसल यह नदी नहीं, नाला है. सारण गजेटियर में इसका नाम अकाली नाला दर्ज है. गोपालगंज में इसे छाड़ी नदी कहते हैं. सीवान-सारण जिले में इसका नाम गंडकी हो जाता है. इस नदी का कोई उद्गम स्थल नहीं है. पहले गोपालगंज के इलाके में जगह-जगह चौरों में पानी जमा हो जाता था, जो बाढ़ की वजह बनता था. 1932 में अंग्रेजों ने इसे नाले का रूप दे दिया और गंडक नदी में स्लूइस गेट बनाकर वहां से बाढ़ का अतिरिक्त पानी इस नाले में बहाया जाने लगा. मकसद गंडक नदी के इलाके को बाढ़ से बचाना और इस पूरे इलाके को सिंचाई की सुविधा मुहैया कराना था. सिर्फ गोपालगंज में इस नदी से 5,000 हेक्टेयर जमीन की सिंचाई होती थी. हम बचपन में इस नदी में नहाते-खेलते थे. 2002 में इस नदी में भीषण बाढ़ आई, जिसमें गोपालगंज डीएम के आवास में भी काफी पानी जमा हो गया. इसके बाद स्थानीय प्रतिनिधियों के सुझाव पर डीएम ने 2003 में गंडक का स्लूइस गेट बंद करा दिया. तब से यह धारा सूखी पड़ी थी. मगर फिर स्थानीय लोगों ने इस नदी को पुनर्जीवित करने का अभियान चलाया. इसके बाद सरकार ने गंगा-गंडक परियोजना की शुरुआत की है."

इस परियोजना को जून, 2023 में बिहार सरकार ने मंजूरी दी. उसी के तहत 69.89 करोड़ रु. की लागत से 170 किमी लंबी धारा में तीन मीटर गहराई तक नदी की गाद सफाई का काम चल रहा है. इसे 19 मीटर चौड़ा किया जा रहा है. इसका मकसद भी गंडक के बाढ़ के खतरे को कम करना और 60,000 हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई है. इस नदी पर ज्यादातर पुल स्थानीय लोगों और जनप्रतिनिधियों ने बनवाए हैं.

वैसे ये पुल सिर्फ गाद निकासी में हुई लापरवाही से ही नहीं गिर रहे. निर्माण में खामी और खराब सामग्री का इस्तेमाल भी वजह है. ऐसा ही एक पुल सारण जिले के जनता बाजार में ढोढनाथ महादेव मंदिर के पास 3-4 जुलाई के बीच गिर गया. उसी पुल से ठीक पहले अंग्रेजों के जमाने का बना पुल मजबूती से खड़ा है. गिरे पुल का निर्माण 2004 में तत्कालीन विधायक धूमल सिंह ने अपनी निधि से करवाया था. और अब भी खड़े पुल का निर्माण भेटवलिया गांव के एक समृद्ध व्यक्ति ने आजादी से पहले कराया था.

वैसे तो 18 जून के बाद से बिहार में दर्जन भर से ज्यादा पुल गिरे हैं मगर बिहार सरकार सिर्फ नौ पुल गिरने की बात स्वीकार करती है. सरकार के अनुसार, छह पुल गंडकी नदी पर गिरे हैं. बाकी तीन पुलों में से एक अररिया के बकरा नदी पर बन रहा पुल, एक पूर्वी चंपारण के घोड़ासहन में स्थित पुल और एक मधुबनी में बन रहा पुल है. अररिया और मधुबनी में बन रहे पुलों के गिरने में सरकार इंजीनियरों और ठेकेदारों की गलती मानती है. इनमें कार्रवाई भी हुई है. घोड़ासहन का पुल गिरने के मामले में दोष असामाजिक तत्वों पर डाल दिया गया है.

सरकारी सूची में गंडकी नदी पर 22 जून को गिरे पुल और किशनगंज में गिरे दो पुलों का नाम शामिल नहीं है. इससे पहले भी बिहार में निर्माणाधीन पुल गिरते रहे हैं. सुल्तानगंज में गंगा पर बन रहा पुल दो बार गिरा. पहली बार अप्रैल 2022 में तो दूसरी बार जून 2023 में. इसके बाद इसी साल सुपौल में कोसी नदी पर बन रहे पुल का बड़ा हिस्सा गिर गया, जिसमें एक मजदूर की मौत हो गई. मई, 2022 से अब तक बिहार में 20 पुल गिर चुके हैं. गंडकी नदी के पुलों को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर ऐसे पुल गिरे हैं, जो निर्माणाधीन थे.

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