यह अलग किस्म की घर वापसी है. भारत ने गुजरात की गिर गायों के कृत्रिम गर्भाधान के लिए ब्राजील से सांड़ों की गिर नस्ल के खालिस वीर्य की 40,000 डोज आयात की है. ब्राजील वही देश है जिसने सन् 1870 से ही दशकों तक बहुत ज्यादा दूध देने के लिए मशहूर गिर गाएं आयात कीं. अब यह रिटर्न गिफ्ट महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल समेत उन राज्यों को भी दिया जाएगा जहां गिर गायें पाई जाती हैं.
उम्मीद की जा रही है कि ब्राजील के गिर सांड़ों के वीर्य से ऐसी गिर गायें पैदा होंगी जो सामान्य के मुकाबले पांच से आठ गुना ज्यादा दूध देंगी. भारत में हाल के दशकों में गिर गायों की आबादी में कमी आई है. ऐसे में इस वीर्य का इस्तेमाल मूल देश में उनकी आबादी बढ़ाने के लिए भी किया जाएगा. यह केंद्रीय पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) के तहत आनुवंशिक सुधार कार्यक्रम का हिस्सा है और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) छह करोड़ रुपए की इस पहल को जमीन पर उतार रहा है.
गुजरात के पशुपालन विभाग के एक अफसर कहते हैं, "वीर्य के ये स्ट्रॉ (जिनमें वीर्य रखा जाता है) ब्राजील के उन चार सांड़ों के हैं जो 'शीर्ष प्रदर्शन' कर रहे हैं. इनसे यहां की उच्च श्रेणी की गिर गायों का गर्भाधान कराया जाएगा और उनसे पैदा गायें सुपर परफॉर्मर होंगी." विशेषज्ञों के अनुसार, अगर यह पहल कामयाब होती है तो अगले दशक के दौरान गिर गायों का रोज का औसत दूध उत्पादन 20-30 लीटर बढ़ सकता है. उम्मीद तो यहां तक की जा रही है कि टॉप 'परफॉर्मर' गाएं दिन में 60-70 लीटर तक दूध दे सकती हैं.
वीर्य एक निजी डेयरी किसान से खरीदा गया है और ब्राजील की सरकार ने उसे प्रमाणित किया है. हालांकि परियोजना को फलीभूत होने में दो साल लगे, पर अब डीएएचडी जल्द गिर सांड़ों के वीर्य के 2.5 लाख स्ट्रॉ के आयात के लिए वैश्विक निविदा जारी करेगा, जिनमें से दो लाख स्ट्रॉ पारंपरिक वीर्य के होंगे और 50,000 सेक्स-सॉर्टेड या लिंग-वर्गीकृत वीर्य के होंगे (जिसमें पहले से चुना गया होता है कि संतान नर होगी या मादा).
अब ब्राजील से खुद अपने स्वदेशी मवेशी के वीर्य के आयात की भारतीय विडंबना को समझते हैं. उस दक्षिणी अमेरिकी देश में खालिस नस्ल की गिर गायों की आबादी करीब 40 लाख है, जबकि भारत में यह 2019 की पशुधन गणना में 23 लाख आंकी गई. माना जाता है कि ब्राजील ने इस नस्ल को भारत के मुकाबले इसलिए बेहतर 'संरक्षित' किया क्योंकि उसने 1976 में ही सघन आनुवांशिक सुधार कार्यक्रम शुरू कर दिया था. एनडीडीबी के उच्च पदस्थ सूत्र बताते हैं, "जो मवेशी आनुवंशिक रूप से अत्यधिक दूध उत्पादकता के लिए उपयुक्त नहीं, उन्हें ब्रीडिंग प्रोसेस से बाहर कर दिया जाता है. भारत में किसान तब भी गाय का प्रजनन बंद नहीं करते जब वह कम दूध देने लगती है. इसलिए अधिक दुग्ध उत्पादन और रोगों से निबटने की क्षमता बढ़ाने वाले आनुवांशिक सुधार कार्यक्रम का भारत में वैसा असर नहीं हो पाता होता जैसा 50 साल तक ब्राजील में हुआ. हमारे टॉप परफॉर्मिंग मवेशियों में से कुछेक तो दिन में 20 लीटर तक दूध दे सकते हैं पर हमारा औसत 8-10 लीटर ही रह जाता है."
ऐसे में कृत्रिम गर्भाधान के जरिए आनुवांशिक सुधार स्वाभाविक रूप से ब्राजील में कहीं व्यापक है. गुजरात पशुपालन विभाग की निदेशक फाल्गुनी ठाकर तो बताती हैं कि 40 फीसद तक पशु प्रजनन के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भी इस्तेमाल किया जाता है.
भारत में 2019 में दूध/दुग्ध उत्पादों की रोज की अनुमानित खपत 32 करोड़ लीटर थी और 2030 तक इसके बढ़कर रोजाना 46.8 करोड़ लीटर हो जाने का अनुमान है. यह अच्छा-खासा बढ़ा हुआ अनुमान ही उच्च गुणवत्ता वाले गिर सांड़ों के वीर्य के आयात की बुनियादी वजह है, जिससे कि दुग्ध उत्पादन बढ़ाकर इसे पूरा किया जा सके.
दूध की पैदावार या तो मवेशियों की संख्या में इजाफा करके या मौजूद मवेशियों की दूध देने की क्षमता में इजाफा करके बढ़ाया जा सकता है. संख्या बहुत ज्यादा बढ़ाना व्यावहारिक नहीं क्योंकि सिमटते चरागाहों की वजह से मवेशी सड़कों और खेतों पर आ जाएंगे. दूसरे विकल्प को मौजूदा मवेशियों की बेहतर खुराक/प्रबंधन के बल पर पूरा किया जा सकता है, लेकिन मवेशी की आनुवंशिक क्षमता ही सीमित होने की वजह से नतीजों की भी सीमा हो जाती है. यही वजह है कि एनडीडीबी ने 2008 में कृत्रिम गर्भाधान आधारित आनुवंशिक सुधार कार्यक्रम शुरू किया.
फ्रोजन सीमेन यानी कि हिमीकृत वीर्य के जरिए कृत्रिम गर्भाधान व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक है. इसमें किसान सीमेन स्टेशन पर जाकर गाय का गर्भाधान करवाते हैं. आम तौर पर बेहतर आनुवंशिक गुणवत्ता वाले (जिसमें संतति का अधिक दूध देना सिद्ध हो चुका हो) सांड़ों के वीर्य का इस्तेमाल किया जाता है. जब सेक्स-सॉर्टेड सीमेन से गर्भाधान करवाया जाता है तो मादा संतति पैदा होने की 90 फीसद संभावना होती है. ट्रैक्टर सरीखे यांत्रिक वाहनों के निरंतर बढ़ते इस्तेमाल के साथ बैलों की उपयोगिता में भारी कमी आई है. सेक्स-सॉर्टेड सीमेन से आवारा मवेशियों का मसला भी हल हो जाता है.
गौरतलब है कि गिर ब्राजील भेजी गई भारतीय नस्ल की अकेली गाय नहीं थी. दुधारू नस्ल रेड या लाल सिंधी, आंध्र प्रदेश की ओंगोल और नेल्लोर और गुजरात की कांकरेज सरीखी भारी नस्लों का ब्राजील में लंबे वक्त से प्रजनन किया जाता रहा है. दूसरी नस्लों के मुकाबले गिर गायों में रोग प्रतिरोधक और दूध देने की क्षमता भी ज्यादा है.
साठ के दशक के शुरुआती वर्षों से ही भारत में मवेशियों के आनुवंशिक सुधार कार्यक्रम में पूरा ध्यान होल्स्टीन फ्रीजियन और जर्सी सरीखी ज्यादा दूध देने वाली नस्लों की भारतीय मवेशियों के साथ क्रॉस-ब्रीडिंग या संकरण पर दिया गया. फिलहाल भारत के गोजातीय दूध में संकर नस्लों का योगदान एक-तिहाई है जबकि उनकी आबादी कुल गोजातीय आबादी की 22 फीसद है. इससे भारत को दुग्ध उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने में मदद मिली.
एनडीडीबी के एक सूत्र का कहना है, "दुग्ध उत्पादन में संकर नस्ल के मवेशियों का अहम हिस्सा बना रहेगा. आनुवंशिक सुधार कार्यक्रम शुद्ध देसी नस्लों पर ध्यान देने के अलावा संकर नस्ल के मवेशियों में सुधार की कोशिश भी करता है." इस कार्यक्रम के तहत हाल के वर्षों में उम्दा नस्ल के सांड़ों का और अच्छी नस्लों के फ्रोजन भ्रूणों का भी आयात किया गया.
परियोजना इतने वर्षों में विवादों से भी गुजरी है. 2019 में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने गिर सांड़ों के एक लाख सीमेन स्ट्रॉ के आयात के लिए निविदा निकालने के सरकार के फैसले पर सवाल उठाया था. सौराष्ट्र के किसानों ने चिंता जताई कि आयातित वीर्य गिर गायों के साथ क्रॉसब्रीड की गई गायों का होगा और इससे हमारी देसी गायों का गर्भाधान जेनेटिक पूल को बर्बाद कर देगा. ऐसे गर्भाधान से संतान इतनी कमजोर होगी कि यहां जिंदा नहीं रह पाएगी. हालांकि एनडीडीबी के वैज्ञानिकों ने सफाई दी कि केवल शुद्ध नस्ल के गिर सांड़ों का ही वीर्य आयात किया जा रहा है.