यह ऐसी योजना थी जैसे ताजा कटा हुआ चमकता नग हो. पांच साल पहले सूरत डायमंड बोर्स (एसडीबी) को मुंबई में बढ़ती भीड़ और लागत वृद्धि का एकदम सटीक विकल्प माना गया था. मुंबई, जहां भारत के अधिकांश हीरा व्यापारी हैं, की टक्कर में हीरा कारोबारियों के लिए शानदार, सस्ते और बड़े ऑफिस, चौड़ी सड़कें, उन्नत हवाई अड्डे के साथ योजनाबद्ध अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय हवाई संपर्क की योजना बनाई गई थी.
इसमें सोने में सुहागा प्रस्तावित बुलेट ट्रेन थी जो महज दो घंटे में सूरत से मुंबई के बांद्रा कुर्ला कांप्लेक्स तक पहुंचा देती. इसे महत्वाकांक्षी मिशन के रूप में आकार दिया गया ताकि यह मुंबई के बांद्रा-कुर्ला कांप्लेक्स (बीकेसी) में स्थित भारत डायमंड बोर्स (बीडीबी) की जगह हीरा कारोबार का केंद्र बनकर उभर सके क्योंकि मुंबई में बिकने वाले लगभग सभी हीरों की तराशी सूरत में होती है.
मगर कागज पर बनी यह शानदार योजना व्यवहार में आई तो धराशायी हो गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उद्घाटन करने के सात महीने बाद एसडीबी के 4,200 कार्यालयों में से महज 60 में ही काम हो रहा है. भाजपा सरकार के जोर के बावजूद यह मुंबई के कारोबारियों को महानगर से अपना कारोबार यहां लाने या विस्तार के लिए प्रोत्साहित करने में विफल रहा है. इसके कारणों में वैश्विक प्रीमियम ज्वेलरी बाजार में मंदी से लेकर सूरत में इस कारोबार के तंत्र में कमियां होना है.
एसडीबी के दिसंबर 2023 में उद्घाटन से पहले तराशे हीरों की दुनिया के सबसे बड़े निर्यातकों में से एक किरण जेम्स ने करीब 1,500 कर्मचारियों के साथ अपना मुख्यालय सूरत के परिसर में स्थापित किया. एसडीबी के साथ-साथ किरण जेम्स के अध्यक्ष वल्लभ लखानी के पास परिसर में एक लाख वर्ग फुट जगह है. मगर वह भी अन्य कारोबारियों को प्रोत्साहित करने में विफल रहे. मुंबई के हीरा कारोबारियों/हीरा उद्योग से जुड़े लोगों ने वहां से हटने से मना कर दिया तो लखानी ने जनवरी 2024 में किरण जेम्स का कार्यालय फिर बीडीबी में शुरू कर दिया और अधिकतर कर्मचारियों को वापस ले गए. तब से "दुनिया के सबसे बड़े कार्यस्थल के रूप में प्रचारित" एसडीबी का नाम 'भुतहा बिल्डिंग' पड़ गया है. लखानी ने मार्च में एसडीबी से इस्तीफा दे दिया.
एसडीबी को एक मकसद से डिजाइन किया गया था. इसके कार्यालय भवनों के सुनियोजित क्लस्टर में ज्यादा जगह और फर्मों के लिए दूसरे कम खर्च और उनके कर्मचारियों के लिए बेहतर जीवन शैली का वादा किया गया था. वैसे एसडीबी तभी काम करेगा जब हजारों कारोबारियों वाले हीरा उद्योग का समूचा तंत्र वहां आ जाए. मुंबई के हीरा उद्योग से जुड़े लोगों के बीच सहमति नहीं बन पाई.
उद्योग के नेताओं के साथ यह निहित समझौता था कि मुंबई के कारोबारी एसडीबी में अपना दूसरा ऑफिस खोल सकते हैं और धीरे-धीरे अपना कामकाज वहां ले जा सकते हैं. मगर लग्जरी सामान के बाजार में कोविड के बाद उम्मीद से कम बहाली हुई और फिर रूस-यूक्रेन युद्ध ने इस उद्योग की चमक और उड़ा दी. एसडीबी के नए अध्यक्ष गोविंद ढोलकिया, जिन्हें हाल में भाजपा ने राज्यसभा सदस्य मनोनीत किया है, कहते हैं, "कारोबारी अपना वादा नहीं निभा सके. वह कामकाज का अपना खर्च कम करना चाहते हैं न कि बढ़ाना."
सूरत में रूसी सरकार के नियंत्रण वाली खनन कंपनी अलरोजा से करीब एक तिहाई कच्चे हीरों का आयात होता था. कई पश्चिमी देशों के रूस पर प्रतिबंध लगाने से अलरोजा पर असर पड़ा और भारत को उसका निर्यात घट गया जिससे कच्चे हीरों की कीमतों में वृद्धि हुई. वहीं, लैब में तैयार हीरों (एलजीडी) की बाजार में भरमार हो गई, जिससे खान वाले हीरों की मांग और कीमत दोनों एक तिहाई तक गिर गई है.
एक बड़े हीरा उद्योगपति जिनके कार्यबल ने सूरत आने से मना कर दिया, कहते हैं, "सूरत शिफ्ट होने के लिए उद्योग के दिग्गजों का दबाव है और उन दिग्गजों पर सियासी दबाव है. मगर हीरा उद्योग कुशल और वफादार लोगों से चलता है, मशीनों से नहीं." हीरा कारोबारी अब एसडीबी के लंबी अवधि के भविष्य से उम्मीद लगा रहे हैं.
सूरत डायमंड एसोसिएशन और एसडीबी की कोर समिति के एक सदस्य दिनेश नावदीया कहते हैं, "बीडीबी को भी सदस्यों को बीकेसी में ऑफिस खोलने और शिफ्ट करने के लिए तैयार करने में वर्षों लग गए. ये शुरुआती समस्याएं हैं." एसडीबी के दिग्गजों ने अब नई रणनीतियां बनाई हैं. वे अब स्थानीय कारोबारियों को एसडीबी में आने और छोटे दफ्तर खोलने के लिए लुभा रहे हैं. नावदीया कहते हैं, "हम उन्हें उतनी ही दर पर विश्व स्तरीय सुविधाएं दे रहे हैं. सूरत और मुंबई के करीब 400 कारोबारियों ने पुष्टि की है कि वे मध्य जुलाई से एसडीबी में अपना कामकाज शुरू कर देंगे. पहले 1,000 कार्यालय भरने के बाद बाजार फिर अपने आप गति पकड़ लेगा."
मगर सूरत डायमंड वर्कर्स यूनियन के उपाध्यक्ष भावेश टांक इससे उत्साहित नहीं हैं. वे कहते हैं, "सूरत की मुख्य चुनौती अंतरराष्ट्रीय उड़ान संपर्क और मुंबई की जीवन शैली से मैच करने की है. दोनों आपस में जुड़े हुए हैं और एसडीबी के फेल होने का यह मुख्य कारण है."