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तमिलनाडु: क्या अन्नामलै लहरा पाएंगे दक्षिण में भगवा परचम?

पूर्व आईपीएस अधिकारी के. अन्नामलै भाजपा को तमिलनाडु में मुख्य दावेदार बनाने के मिशन पर. क्या कोयंबत्तूर लोकसभा सीट से इसकी शुरुआत होगी

कोयंबत्तूर में 7 अप्रैल को प्रचार अभियान पर भाजपा उम्मीदवार के. अन्नामलै
कोयंबत्तूर में 7 अप्रैल को प्रचार अभियान पर भाजपा उम्मीदवार के. अन्नामलै
अपडेटेड 24 अप्रैल , 2024

भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी कुप्पुस्वामी अन्नामलै को राजनीति में कदम रखे महज चार साल हुए हैं मगर वे माहिर खिलाड़ी की तरह दिखते हैं. अन्नामलै कोयंबत्तूर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं. कोयंबत्तूर के बाहरी इलाके पल्लडम में उनकी भगवा रंग की मिनी बस जैसे ही पहुंचती है, पटाखे फोड़े जाने लगते हैं और ढोल-नगाड़ों के साथ स्वागत किया जाता है.

सफेद धोती-कुर्ता पहने और बेतरतीब दाढ़ी तथा उलझे बालों वाले अन्नामलै हाइड्रॉलिक पैडस्टल के जरिए बस की छत पर चढ़कर लोगों का अभिवादन करते हैं. कार्यकर्ताओं की भीड़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के झंडे लहराती है और सड़क किनारे खंभों पर दूर तक सजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कट-आउट झांकते दिखते हैं.

सब कुछ करीने से सुनियोजित किया गया है. तमिल में मोदी की उपलब्धियों और देश के लिए उनके विजन की प्रशंसा में गीत बजाए जाते हैं. एक उत्साही समर्थक अन्नामलै के आशीर्वाद के लिए एक बकरी के बच्चे को आगे बढ़ाता है. उसके बाद अन्नामलै माइक्रोफोन उठाते हैं और पांच मिनट तक भाषण देते हैं.

वे कहते हैं कि "विकास" के लिए मोदी और भाजपा को वोट देना कितना अहम है. वे सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कलगम (द्रमुक) और 'इंडिया' ब्लॉक के उसके सहयोगियों पर "वंशवादी राजनीति और भ्रष्टाचार" के लिए हमला करना कभी नहीं भूलते. थोड़ा आगे चलकर वे एक दलित परिवार के घर ठहरते हैं और जमीन पर बैठकर केले के पत्ते पर दोपहर का भोजन करते हैं. शायद यह दिखाने के लिए कि वे जातिगत भेदभाव में विश्वास नहीं करते और सामान्य पृष्ठभूमि से आते हैं. 

अन्नामलै 39 साल की उम्र में भाजपा के सबसे कम उम्र के प्रदेश अध्यक्ष हैं. उन्हें वन-मैन आर्मी कहा जाता है और कइयों को लगता है कि वे राज्य में पार्टी की दशा और चुनावी तस्वीर में निर्णायक बदलाव ला सकते हैं. पिछली लोकसभा और विधानसभा चुनावों में क्रमश: 3.66 और 2.82 फीसद वोट पाने वाली भाजपा, कांग्रेस की तरह ही हमेशा द्रमुक या उसकी कट्टर प्रतिद्वंद्वी ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कलगम (अन्नाद्रमुक) की पीठ पर सवारी करती रही है. पिछले दो चुनावों में भाजपा अन्नाद्रमुक के साथ रही और उसे लोकसभा में तो कोई भी सीट नहीं मिली मगर विधानसभा चुनावों में चार सीटें मिलीं. 2024 के चुनाव की कमान अन्नामलै के हाथ आई तो छोटी-छोटी जाति आधारित पार्टियों के साथ मोर्चा बनाने का दांव खेला गया.

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के अक्खड़ रवैए को अन्नाद्रमुक से रिश्ते टूटने की वजह बताया जाता है. अन्नाद्रमुक ने इसे मुद्दा बनाया. मगर असली वजह यह थी कि भाजपा के साथ रिश्ते से अन्नाद्रमुक की साख और द्रविड़ समर्थक आधार लगातार घट रहा था. खासकर दक्षिण में आक्रामक हिंदुत्व पर भाजपा के जोर देने और द्रमुक के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के वित्तीय बंटवारे के संघीय ढांचे तथा उत्तर-दक्षिण विभाजन सरीखे मसले उठाने के बाद. वैसे, अन्नामलै ने फौरन साफ किया कि गठबंधन तोड़ने में उनकी प्रमुख भूमिका नहीं थी. उन्होंने इंडिया टुडे से कहा, "यह अकेले मेरा फैसला नहीं था. मैंने ही गठबंधन तोड़ने की पहल नहीं की थी. लगता है वे (अन्नाद्रमुक वाले) बाहर निकलने का बहाना ढूंढ़ रहे थे. मैं प्रदेश अध्यक्ष हूं और गठबंधन का फैसला राष्ट्रीय और संसदीय बोर्ड के स्तर पर होता है."

हालांकि भाजपा के पास एक बड़ा गेमप्लान है. अन्नाद्रमुक अब ओपीएस (पूर्व उप-मुख्यमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम) गुट के बाहर होने से कमजोर हो गई है और एकजुट करने के लिए दिवंगत जे. जयललिता सरीखी करिश्माई नेता भी नहीं है. ऐसे में भगवा खेमे को लगता है कि अन्नाद्रमुक वजूद के संकट से जूझ रही है. अगर वह वाकई बिखर जाती है तो उसका वोट आधार भाजपा के लिए मुफीद हो सकता है. ऐसे में अन्नामलै अपने सुंदर सांवले चेहरे, भाषण-कला और पुलिस अधिकारी रहने के दौरान सिंघम की छवि के कारण उस योजना के लिए अहम हो सकते हैं.

वे कोयंबत्तूर से 130 किलोमीटर दूर करूर जिले के प्रभावशाली गौंडर समुदाय के एक कृषक परिवार से हैं. उन्होंने कोयंबत्तूर के एक मशहूर कॉलेज से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की और फिर आईआईएम (लखनऊ) से एमबीए किया. इन दोनों डिग्रियों का असर राजनैतिक मसलों पर उनके नजरिए में दिखता है. कोई विचार बनाने से पहले वे उसका गहराई से अध्ययन करते हैं.

इसके साथ उनमें गजब की साफगोई भी है और अक्सर जिसके लिए उनके आलोचक उन्हें बड़बोले या "कहीं भी कुछ भी बक देने वाला" करार देते हैं. वे साहस दिखाने से भी गुरेज नहीं करते और इस खूबी को उन्होंने 2011 से कर्नाटक में पुलिस अधिकारी रहते हुए तराशा. पुलिस बल से बाहर निकलने के बाद उन्होंने कुछ वक्त के लिए एक एनजीओ की स्थापना की थी और जमीनी स्तर पर पर्यावरण परिवर्तन को लेकर काम किया था. फिर उन्होंने भाजपा में शामिल होने का फैसला किया क्योंकि इससे उन्हें अपने मनचाहे "विकास के एजेंडे" पर अमल करने का मौका मिल सकता है.

हालांकि, इसमें शक नहीं कि अन्नामलै की बेहिसाब विवाद खड़ा करने की कुव्वत और सुर्खियों में छाए रहने की काबिलियत ने उन्हें चर्चा का विषय बना दिया है, जिसे उनके विरोधी 'शोर' कहा करते हैं. उन्हें अब पूर्व मुख्यमंत्री इडापड्डी पलानीस्वामी या ईपीएस की अगुआई वाले अन्नाद्रमुक नेतृत्व के लिए खतरा माना जा रहा है.

पलानीस्वामी भी संयोग से गौंडर जाति के हैं. पिछले साल अन्नामलै ने राज्य के 234 विधानसभा क्षेत्रों में 'एन मन, एन मक्कल' (मेरी भूमि, मेरे लोग) नामक लंबी यात्रा शुरू की थी, जिसे काफी लोकप्रियता मिली थी. इसके साथ ही वे उस ऑडियो लीक के लिए भी जिम्मेदार थे, जिससे राज्य के लोकप्रिय वित्त मंत्री पलरीनिवेल त्यागराजन (पीटीआर) दरकिनार कर दिए गए (ऑडियो टेप की आवाज में वे द्रमुक के शीर्ष नेतृत्व पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे थे). पीटीआर ने इसका खंडन किया लेकिन नुकसान तो हो चुका था. 

अभी हाल ही में चुनाव प्रचार के दौरान वे एक आरटीआई दस्तावेज निकाल लाए, जिससे भारत और श्रीलंका के बीच एक छोटे-से निर्जन द्वीप कच्चातिवु पर विवाद को फिर तूल दे दिया गया. उसमें दावा किया गया कि दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1974 में इस द्वीप को श्रीलंका को तोहफे में दे दिया था. वह राज्य के हित में नहीं था, फिर भी तत्कालीन द्रमुक सरकार बेपरवाह थी और उसने फैसले को स्वीकार कर लिया.

लेकिन यह आरोप उस वक्त हवा हो गया, जब द्रमुक के खिलाफ बढ़त लेने की बजाए पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने इंदिरा गांधी पर हमला बोल दिया. ऐसे में अन्नामलै के विरोधियों ने मोदी सरकार को यह कहते हुए कठघरे में खड़ा किया कि उसने पिछले 10 साल में सत्ता में रहने के दौरान उसके समाधान की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया. हालांकि, भाजपा नेता का दावा है कि मोदी सरकार ने यह आश्वस्त किया कि समुद्री सीमा का उल्लंघन करने के कारण मारे जाने वाले मछुआरों की संख्या में कमी आए और श्रीलंकाई तटरक्षकों की ओर से गिरफ्तार किए गए लोगों की शीघ्र रिहाई हो.

भाजपा का गेमप्लान तमिलनाडु में वोट फीसद को मौजूदा चार फीसद से बढ़ाकर आकांक्षित 20-25 फीसद तक ले जाना है. ऐसा हुआ तो वह अन्नाद्रमुक को पीछे छोड़कर द्रमुक की मुख्य प्रतिद्वंद्वी बन जाएगी. अन्नामलै जानते हैं कि यह काफी कठिन काम है. भाजपा इस बार 19 सीटों पर खुद और चार सीटों पर उसके सहयोगी कमल के चुनाव चिन्ह पर लड़ रहे हैं. पार्टी ने 2019 में पांच सीटों पर चुनाव लड़ा था.

अपनी संभावनाओं के बारे में पूछे जाने पर अपनी वैन से अपने समर्थकों की ओर हाथ हिलाते हुए अन्नामलै कहते हैं, "इस चुनाव में हम अपना सब कुछ झोंक रहे हैं. हम अपनी पार्टी की पहुंच को बढ़ा रहे हैं, और हां, हमारा काम बढ़ गया है और हर कार्यकर्ता दोगुनी मेहनत कर रहा है. हमें उम्मीद है कि हम साफ तौर पर विजेता बनकर उभरेंगे और 25 फीसद वोट शेयर हासिल करने की अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करेंगे."

तेज विकास का वादा और द्रमुक की गड़बड़ियों को उजागर करना भाजपा का मुख्य एजेंडा है, मगर अपनी पार्टी के हिंदुत्व के विजन को लेकर अन्नामलै कुछ कन्नी काट जाते हैं, "बेशक, पहचान और विचारधारा का सवाल मायने रखता है, मगर उसे अन्य लक्ष्यों के साथ पूरा करना होगा." मजबूत काडर आधार का अभाव भाजपा की महत्वाकांक्षाओं की राह में रोड़ा बन सकता है. अन्नामलै पर राज्य भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को साथ लेकर नहीं चलने का भी आरोप है. पार्टी के एक अंदरूनी सूत्र का कहना है, "उन्हें अपनी टीम और राज्य के नेताओं को मनाना चाहिए था और साथ लेना चाहिए था मगर वे अब भी आईपीएस अफसर की तरह बर्ताव कर रहे हैं."

हालांकि अन्नामलै को पार्टी के इस जोर के आगे झुकना पड़ा कि वे कोयंबत्तूर सीट से चुनाव लड़ें. दरअसल, वे चुनाव लड़ने की बजाय राज्य भर में पार्टी के प्रचार अभियान में अपनी सारी ऊर्जा खर्च करना चाहते थे. अर्वाकुचि विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का उनका पहला प्रयास असफल रहा था, मगर इस बार चुनाव विश्लेषकों का कहना है कि वे कोयंबत्तूर में अच्छी टक्कर दे रहे हैं. हालांकि उन्हें कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है.

अन्नाद्रमुक ने वहां से सिंगै रामचंद्रन को मैदान में उतारा है और अन्नामलै की तरह उनके पास भी इंजीनियरिंग की डिग्री और आईआईएम की पृष्ठभूमि है. रामचंद्रन भी आईटी जानकार हैं. द्रमुक ने कोयंबत्तूर के पूर्व मेयर गणपति राजकुमार को चुनाव में उतारा है, जो पहले अन्नाद्रमुक में थे. ये तीनों गौंडर समुदाय से हैं और यहां कांटे का मुकाबला होने की उम्मीद है.

हालांकि अन्नामलै अपनी कामयाबी को लेकर आश्वस्त हैं. पूरे दिन के प्रचार अभियान के आखिर में जब वे एक समर्थक के घर पर अल्पाहार के लिए रुके तो इंडिया टुडे ने उनसे पूछा कि उन्हें एक पुलिस अफसर और नेता होने के बीच क्या अंतर नजर आता है? उन्होंने झट-से जवाब दिया, "यह पुलिस बल में रहने से कहीं अधिक मुश्किल काम है. वहां आप कानून पढ़ेंगे, उसमें सही और गलत देखेंगे और फिर अमल में लाएंगे."

"सियासत में आपको सभी को साथ लेकर चलना होता है और अल्पकालिक से लेकर दीर्घकालिक लाभ सबकी गणना करनी होती है. यहां हमेशा एक संतुलन साधना होता है. यूनान के इतिहासकार राजनीति को मूल पाप का परिणाम कहते थे. यह एक बड़ा सबक है. मैं उस बच्चे की तरह हूं जो रेंग रहा है और चलना सीख रहा है." इसमें कोई शक नहीं कि अन्नामलै कम समय में ही परिपक्व हो गए हैं और बड़ी चीजों के लिए तैयार हैं.

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