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आंध्र: नायडू के साथ आर-पार की लड़ाई में जगन रेड्डी कितना तैयार?

वाईएसआरसीपी प्रमुख जगन रेड्डी और टीडीपी सुप्रीमो चंद्रबाबू नायडू के बीच मुकाबला आर-पार का है. नायडू के एनडीए गठबंधन में शामिल होने से आंध्र के मुख्यमंत्री रेड्डी के लिए दोबारा कुर्सी पाने का सपना सच होना आसान नहीं

तिरुपति में वाईएसआरसीपी के रोड शो में सीएम जगन मोहन रेड्डी
तिरुपति में वाईएसआरसीपी के रोड शो में सीएम जगन मोहन रेड्डी
अपडेटेड 26 अप्रैल , 2024

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी ने 16 मार्च को कडप्पा जिले के इडुपुलुपाया में अपनी पुश्तैनी जमीन पर बने स्मारक पर अपने पिता और पूर्व सीएम वाई.एस. राजशेखर रेड्डी को श्रद्धांजलि अर्पित की. इसके बाद उन्होंने राज्य की 175 विधानसभा और 25 लोकसभा सीटों के लिए पार्टी उम्मीदवारों के नाम घोषित किए.

लेकिन कुछ ही घंटे बाद उनकी युवजन श्रमिक रायतू कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) को यह जानकर झटका लगा कि चुनाव आयोग ने राज्य में चौथे चरण में मतदान कराने की घोषणा की है, न कि पहले चरण में, जैसा कि पिछले चार चुनावों में होता आया था. ऐसे में लगातार दूसरी बार जीत के लिए बस अप्रैल भर में ही एक छोटा लेकिन तेज अभियान चलाने की उनकी उम्मीदें धरी रह गईं.

राज्य में 13 मई को मतदान होगा, जब गर्मी पूरे चरम पर होगी. यह बात सभी दलों के लिए चिंता का सबब बन गई है. क्योंकि भीषण गर्मी के कारण मतदान में गिरावट से नतीजों में बड़ा उलटफेर हो सकता है. खासकर जब लड़ाई एकदम कांटे की हो, जिसमें वाईएसआरसीपी एकतरफ अपनी प्रतिद्वंद्वी तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) की अगुआई वाले गठबंधन से मुकाबला कर रही है जिसमें भाजपा और अभिनेता पवन कल्याण की जनसेना भी है.

टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू चित्तूर में अपने चुनाव अभियान के दौरान

वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस-वाम गठबंधन भी वाईएसआरसीपी को चुनौती दे रहा है और इसकी कमान खुद जगन की बहन वाई.एस. शर्मिला ने संभाल रखी है. शर्मिला की अगुआई में कांग्रेस की अगुआई वाला गठबंधन सियासी स्तर पर मजबूती हासिल करने की राह पर है लेकिन अभी यह कहना मुश्किल है कि आंध्र के मतदाताओं ने तेलंगाना और उसके दिल हैदराबाद को अलग करने के लिए ग्रैंड ओल्ड पार्टी को माफ कर दिया है या नहीं.

जगन ने वैसे तो अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के नाम घोषित होने से पहले सड़क पर न उतरने की चुनावी रणनीति अपनाई थी. हालांकि, राज्य के सभी चार अंचलों में वे चार विशाल सिद्धम (तैयार) रैलियां पहले ही कर चुके हैं. इनकी शुरुआत 27 जनवरी को भीमिली (विशाखापत्तनम) से हुई और इसमें आयोजन स्थलों को अलग अंदाज में ही तैयार किया गया था. इसमें मध्य में एक ऊंचा रैंप था, जहां खड़े होकर जगन संबोधित करते थे. फिर उनके रैंप पर चलने के दौरान उत्साही समर्थक सीएम के साथ सेल्फी लेने लगते. शुरुआती स्तर पर एक अलग ही तरह का माहौल बनाने के बाद जगन अब सभी जिलों के 21 दिवसीय मेमंत सिद्धम (पूरी तरह से तैयार) बस दौरे पर हैं.

दूसरी तरफ, टीडीपी प्रमुख एन. चंद्रबाबू नायडू भी इसी तरह एक राज्यव्यापी प्रजा गलम (जनता की आवाज) बस यात्रा पर हैं. कौशल विकास घोटाले के सिलसिले में सितंबर-अक्तूबर 2023 में 52 दिनों की जेल की सजा काट चुके 73 वर्षीय नायडू काफी भड़के हुए हैं और जगन के 'कुशासन' का मुद्दा जोर-शोर से उठा रहे हैं. यही नहीं, वे उन मामलों का ब्योरा भी जुटाने में लगे हैं, जिनमें सीएम अदालती लड़ाई में उलझे रहे हैं (वाईएसआरसीपी नेता ने भी 2013-14 में 16 महीने जेल में बिताए थे लेकिन बाहर आने के बाद वे और मजबूत होकर उभरे).

नायडू को उम्मीद है कि वे गठबंधन की संयुक्त ताकत के बलबूते वाईएसआरसीपी को धूल चटाने में सफल रहेंगे, जैसा 2014 में हुआ था. लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि इन दोनों पक्षों में कांटे की टक्कर है जो 2014 के बाद से चुनावों में 45 फीसद या इससे ज्यादा वोट शेयर हासिल करते आए हैं.

राज्य की 25 लोकसभा सीटों में टीडीपी ने अपनी बड़ी हिस्सेदारी (17 सीटें) बरकरार रखी है, जबकि भाजपा को केवल छह और जनसेना को दो सीटें मिली हैं. 175 सीटों वाली विधानसभा में टीडीपी 144 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, और जनसेना को 21 और भाजपा को 10 सीटें मिली हैं. टीडीपी ने कई ऐसे उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं, जिनमें वाईएसआरसीपी और कांग्रेस छोड़कर आए नेता शामिल हैं. पार्टी को इनके बूते अपने अभियान के और मजबूत होने की उम्मीद है.

जगन इन चुनावों को 'वर्ग संघर्ष' करार दे रहे हैं, और उनकी तमाम उम्मीदें उन कल्याणकारी योजनाओं पर टिकी हैं जो उन्होंने वंचितों के लिए शुरू की हैं. इन 38 योजनाओं के लाभार्थियों का आंकड़ा करीब 12.5 करोड़ तक पहुंच चुका है. ऐसी योजनाओं के मामले में एक बात आंध्र प्रदेश को अन्य राज्यों से अलग करती है, और वह है ग्राम सचिवालयम और वार्ड सचिवालयम (जीएसडब्ल्यूएस) का विस्तृत नेटवर्क.

जीएसडब्ल्यूएस स्वयंसेवकों ने कोविड-19 से निबटने के दौरान और उसके बाद भी कल्याणकारी योजनाओं के लाभ घर-घर तक पहुंचाने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. 'वेलफेयर कैलेंडर' के जरिए तय समयसीमा में सेवाएं मुहैया कराने और लाभ के पारदर्शी हस्तांतरण (ज्यादातर ऑनलाइन) ने भी वाईएसआरसीपी प्रमुख को वंचित तबके बीच खासा लोकप्रिय बना दिया है.

नायडू को इस मोर्चे पर जगन की खामियां ढूंढने में खासी मशक्त करनी पड़ी लेकिन उन्होंने यह पक्का किया कि चुनाव आयोग 2,66,000 जीएसडब्ल्यूएस स्वयंसेवकों को चुनाव प्रक्रिया का हिस्सा बनने से रोक दे. लेकिन जगन ने अपनी 'युवा सेना' को आश्वस्त किया कि 'फिर सत्ता में लौटने पर पहली फाइल' उनकी पुन: नियुक्ति की ही होगी. इसके बाद तमाम जीएसडब्ल्यूएस स्वयंसेवकों ने इस्तीफा दे दिया और आधिकारिक तौर पर वे अब वाईएसआरसीपी के लिए काम कर रहे हैं.

शासन के अन्य पहलुओं को लेकर भी सत्तारूढ़ दल पर निशाना साधने में टीडीपी कोई कसर नहीं छोड़ रही. श्री वेंकटेश्वर यूनिवर्सिटी, तिरुपति में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख बी.वी. मुरलीधर कहते हैं, "इस बात को ध्यान में रखा जाना चाहिए कि वाईएसआरसीपी एक वन-मैन शो है. सत्ता विरोधी लहर के कारण 2019 के बाद से इसका प्रभाव घट रहा है. एनडीए भ्रष्टाचार, रेत और भूमि माफिया, एससी/एसटी पर अत्याचार की घटनाओं, पूंजी निवेश की कमी और सरकारी कर्मचारियों से किए वादों से मुकरने जैसे मुद्दों पर इसे घेर रहा है."

प्रशासनिक, विधायी और न्यायिक स्तर पर क्रमश: विशाखापत्तनम, अमरावती और कुरनूल में तीन राजधानियां बनाने की योजना को लेकर भी जगन को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है और इस प्रस्तावित योजना को न्यायिक मंजूरी का इंतजार है.

बहरहाल, 2014 में पुनर्गठित आंध्र प्रदेश को विशेष श्रेणी का दर्जा (एससीएस) देने के जटिल मुद्दे पर टीडीपी और एनडीए में उसके सहयोगियों ने चुप्पी साध रखी है. भाजपा इसके खिलाफ है क्योंकि उसकी राय है कि देश के अन्य हिस्सों में भी ऐसी मांग उठ सकती है. वाईएसआरसीपी भी इस मुद्दे से बच रही है क्योंकि चुनाव बाद अगर आंध्र में पार्टी और दिल्ली में एनडीए की सरकार बनी तो उसे भाजपा के साथ कामकाजी रिश्ते बनाए रखने की जरूरत पड़ेगी.

एनडीए एक साझा घोषणापत्र के साथ मैदान में है, जिसमें टीडीपी ने "सुपर सिक्स गारंटी के साथ आंध्र प्रदेश के लिए एक नए नजरिए" का वादा किया है. नायडू के बेटे और टीडीपी के राष्ट्रीय महासचिव नारा लोकेश कहते हैं कि इसमें युवाओं के लिए 20 लाख नौकरियां पैदा करना और रोजगार मिलने तक 3,000 रुपए प्रति माह बेरोजगारी भत्ता देना शामिल है. उनका वादा है, "तल्लिकी वंदनम योजना के तहत हर स्कूली बच्चे को प्रतिवर्ष 15,000 रुपए दिए जाएंगे जबकि अन्नदाता योजना के तहत किसानों को 20,000 रुपए मिलेंगे."

बहरहाल, चुनौतियां और भी हैं. पार्टियों के बीच परस्पर समन्वय एक चुनौती बना हुआ है क्योंकि भाजपा का एक वर्ग टीडीपी के साथ गठबंधन को लेकर नाराज है.

सामाजिक मामलों के विशेषज्ञ और टिप्पणीकार डी. सुब्रह्मण्यम रेड्डी की राय है कि आंध्र की चुनावी लड़ाई "यह तय करने के लिए होने वाला मतदान है कि लोग जमीनी स्तर का व्यावहारिक शासन (जगन) चाहते हैं या फिर अनौपचारिक राजनैतिक प्रशासन (नायडू)." जाहिर है कि आंध्र प्रदेश में सबसे लंबे समय तक सत्ता में रहने वाले नायडू इस तरह के चरित्र-चित्रण से सहमत नहीं होंगे.

वैसे तेलुगु बिड्डा से एक भावनात्मक अपील में वे पहले ही कह चुके हैं कि यह उनका आखिरी चुनाव होगा. देखना होगा कि उनकी यह अपील कितनी कारगर साबित होती है. जगन रेड्डी की वाईएसआरसीपी ने भी चुनावी जीत के लिए पूरी ताकत झोंक रखी है. आर-पार की इस लड़ाई में एक बात तय है कि तापमान बढ़ाने के साथ-साथ दोनों पक्षों के बीच सियासी पारा भी चढ़ता जाएगा.

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