मनोज जरांगे-पाटील के अप्रत्याशित उभार के साथ महाराष्ट्र के सियासी फलक पर उथल-पुथल भरा बदलाव देखा जा रहा है. अपेक्षाकृत अनजाना-सा यह कार्यकर्ता सितंबर 2023 में जालना जिले में लाठीचार्ज के दौरान सुर्खियों में आया. वहां वे मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग करते हुए आमरण अनशन कर रहे थे.
जरांगे-पाटील का जोर दो असरदार उपवासों के साथ तेज हो गया और उसकी वजह से एकनाथ शिंदे की अगुआई वाली गठबंधन सरकार को प्रतिक्रिया देनी पड़ी. 20 जनवरी को उन्होंने जालना से मुंबई तक मार्च शुरू किया. हजारों लोगों के साथ इसका समापन दक्षिण मुंबई के आजाद मैदान में होना था. वहां जरांगे-पाटील मराठों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में शामिल करने की मांग पर अनिश्चितकालीन उपवास करने वाले थे, ताकि उन्हें शिक्षा, नौकरियों और राजनीति में कोटे के लिए पात्र बनाया जा सके.
राज्य की राजधानी में हजारों प्रदर्शनकारियों की जुटने की आशंका को देखते हुए राज्य सरकार झुक गई. 27 जनवरी को सरकार ने एक मसौदा अधिसूचना जारी की जिससे मराठों (क्षत्रिय) के लिए कुनबी (खेतिहर या किसान) के रूप में प्रमाणपत्र हासिल करना आसान हो जाए. एक विवादास्पद कदम में इसने 'सगे सोयरे' या एक ही परिवार के रिश्तेदारों को कुनबी प्रमाणपत्र वालों की तरह प्रमाणपत्र हासिल करने में सक्षम बना दिया. सरकार की ओर से प्रतिक्रिया के रूप में शिंदे वाशी गए और उन्होंने जरांगे-पाटील से आंदोलन वापस लेने कहा. 30 जनवरी को जरांगे-पाटिल ने धमकी दी कि सरकार ने अपने वचन के अनुसार कदम नहीं उठाया तो 10 फरवरी से उपवास शुरू कर दिया जाएगा.
दिग्गज मराठा नेताओं को एहसास हुआ कि जरांगे-पाटील ने खासकर सूखा प्रभावित मराठवाड़ा के ग्रामीण, कृषक मराठों के बीच सहानुभूति पैदा कर ली है. जरांगे उसी इलाके से हैं. मराठा नेताओं का मानना है कि इसके लिए कृषि संकट, शिक्षा में असमर्थता, सरकारी नौकरियों में प्रतिस्पर्धा, पुरुषों के लिए दुल्हन ढूंढने में असमर्थता तथा गतिशील और तेजी से मुखर हो रहे ओबीसी समुदाय के साथ बढ़ती प्रतिस्पर्धा जैसे कारण जिम्मेदार हैं. दूसरी तरफ, मराठा कोटा की मांग की वजह से ओबीसी को अपने हितों में नुकसान की आशंका से भर दिया है और इससे उनके बीच नाराजगी पैदा हो गई है. इस कलह के कारण हिंसक घटनाएं सामने आईं और बीड जिले में ओबीसी नेताओं और उनकी संपत्तियों को निशाना बनाया गया.
राज्य में शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) लगातार विभाजन का सामना करना पड़ा, लेकिन महाराष्ट्र की इस खंडित राजनीतिक स्थिति के बावजूद, सभी यह मानते हैं कि जरांगे-पाटील सबके समीकरणों में उथल-पुथल मचा देने वाले शख्स के रूप में उभरे हैं. उनके आंदोलन ने न केवल जातीय पहचान को तीखा कर दिया है, बल्कि चुनावी गणित को भी जटिल बना दिया है.
बीड जिले के मातोरी के माशिरूर-कासार तालुका में गरीब में जन्मे 41 वर्षीय जरांगे-पाटील तीन भाइयों और एक बहन में सबसे छोटे हैं. उनको गन्ना काटने वाले अपने पिता और भाइयों की कड़ी मेहनत के बावजूद गरीबी का सामना करना पड़ा. उन्होंने कम उम्र में ही मराठा हितों के लिए एक आंदोलनकारी के रूप में अपनी पहचान बना ली. जालना जिले में वे अपने मामा के घर चले गए और मां की ही रिश्तेदार से शादी कर ली और वहीं बस गए. वे मराठा संगठनों में रहे और बाद में कांग्रेस से जुड़े. उन्होंने 'शिवबा संगठन' नामक संगठन भी बनाया.
चार बच्चों के पिता और 12वीं कक्षा में बीच में ही पढ़ाई छोड़ देने वाले जरांगे-पाटील ने एक्टिविज्म के लिए अपनी चार एकड़ जमीन का आधा हिस्सा बेच दिया था. हालांकि जरांगे-पाटील और उनके समर्थक कामयाबी का दावा करते हैं, लेकिन मराठा समुदाय के भीतर असहमति की कुछ आवाजें भी उठीं. माना जा रहा है कि आंदोलन खत्म कराने के साथ शिंदे अब अपने मराठा जनाधार को सीट बंटवारे के सौदे में इस्तेमाल करेंगे.