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सहानुभूति का सहारा या वोटों का बंटवारा, असली शिवसेना वाले ठप्पे का क्या मतलब?

शिंदे की अगुआई वाली शिवसेना पर स्पीकर की मोहर के बाद उद्धव ठाकरे की अगुआई वाली शिवसेना (यूबीटी) के नेताओं को जनता से सहानुभूति की उम्मीद है

एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे
एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे
अपडेटेड 31 जनवरी , 2024

महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर राहुल नार्वेकर ने फैसला सुनाया कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुआई वाला गुट ही ''असली शिवसेना'' है. यह उद्धव ठाकरे की अगुआई वाले शिवसेना खेमे के लिए बड़ा धक्का है. हालांकि नार्वेकर ने दोनों विरोधी गुटों में से किसी के भी विधायकों को अयोग्य नहीं ठहराया. जून 2022 में तब ठाकरे की अगुआई वाली महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन सरकार में मंत्री रहे शिंदे 39 विधायकों के साथ उससे बाहर निकल गए थे जिससे सरकार गिर गई थी.

फिर शिंदे ने भाजपा से गठबंधन कर मुख्यमंत्री का पद संभाला. शिवसेना के दोनों गुटों ने 2022 में एक-दूसरे को अयोग्य ठहराने की मांग करते हुए स्पीकर के सामने 24 याचिकाएं दायर की थीं. दिसंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने नार्वेकर को 10 जनवरी, 2024 तक याचिकाओं पर फैसला लेने का निर्देश दिया था.

शिंदे की अगुआई वाली शिवसेना पर स्पीकर की मोहर शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के लिए एक प्रतीकात्मक नुकसान है, लेकिन इसे वे अवसर में भी बदल सकते हैं. ठाकरे खेमे के नेताओं का कहना है कि इस फैसले से मुंबई और आसपास के इलाकों के मराठीभाषी लोगों में उनके प्रति सहानुभूति पैदा हो सकती है, जो शिवसेना का मुख्य समर्थन आधार हैं. दरअसल, ठाकरे खुद को ऐसे पीड़ित के रूप में पेश कर रहे हैं जिनके साथ शिंदे और भाजपा ने गलत किया. इस लिहाज से असल में उनके लिए यह बेहद मामूली झटका है. हालांकि ठाकरे के सहयोगियों का कहना है कि नार्वेकर ने शिवसेना (यूबीटी) के 16 विधायकों को तकनीकी आधार पर अयोग्य न ठहराकर उन्हें ज्यादा चुनावी सहानुभूति पाने का मौका नहीं दिया है.

शिवसेना (यूबीटी) के एक सूत्र का कहना है कि फैसले ने शिंदे और भाजपा की ओर से ठाकरे परिवार से पार्टी छीनने को औपचारिक रूप दे दिया है. वे कहते हैं, ''इसकी वजह से हमें सहानुभूति मिलेगी. शिवसेना किसकी है, इसका फैसला लोकसभा चुनाव में सुनाया जाएगा.'' ठाकरे के वफादारों का कहना है कि शिवसेना काडर पार्टी और ठाकरे को एक-दूसरे के समानार्थी और पूरक मानता है और शिंदे को पार्टी हड़पने वाला माना जाएगा. मुंबई में कामगार तबके के मराठीभाषियों को जज्बाती मतदाता माना जाता है और जब पार्टी खतरे में नजर आती है तो वे परंपरागत रूप से पार्टी के समर्थन में लामबंद होते रहे हैं.

फिर भी, लंबे समय के लिए प्रतीकात्मक स्वामित्व महत्वपूर्ण है. ठाकरे ने कहा है कि वे इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे. उन्होंने कहा, ''यह फैसला न तो सुप्रीम कोर्ट में टिकेगा और न ही लोगों के जेहन में.'' दूसरी ओर शिंदे का कहना है कि नार्वेकर का फैसला ठाकरे के 'वंशवादी राज' के खात्मे की घंटी सरीखा है. उन्होंने कहा, ''लोकतंत्र में बहुमत की इच्छा सर्वोच्च होती है. विधानसभा और लोकसभा में हमारे पास बहुमत है. चुनाव आयोग ने हमें असली शिवसेना का दर्जा दिया है... क्योंकि बहुमत हमारे साथ है. आज के फैसले ने अधिनायकवाद और वंशवादी शासन को खत्म कर दिया है.''

निश्चित रूप से इस फैसले की वजह से कुछ हलचल होगी जो बड़े मुंबई महानगरीय क्षेत्र में महसूस की जा सकेगी. यह शिवसेना का पारंपरिक गढ़ है और यहां राज्य की 48 लोकसभा सीटों में से 12 सीटें भी हैं. हालांकि शिवसेना (यूबीटी) की बड़ी लड़ाई एमवीए में अपने सहयोगियों-कांग्रेस, एनसीपी और प्रकाश आंबेडकर की अगुआई वाली वंचित बहुजन अघाड़ी की सीट बंटवारे की मांगों को साधने की भी है. शिंदे के लोगों को उम्मीद है कि अयोध्या मामले से बहुसंख्यकों का वोट एकजुट होगा और उन्हें मदद मिलेगी. अंतत: यह रस्साकशी हिंदू गौरव और मराठी अस्मिता के बीच के टकराव में तब्दील हो सकती है.

शिवसेना (यूबीटी) नेता मानते हैं कि नार्वेकर का फैसला मुंबई और आसपास के क्षेत्र में उनके लिए सहानुभूति पैदा करेगा.

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