पहले-पहल बने मुख्यमंत्री की अगुआई में राजस्थान की नवजात सरकार अभी चलना सीख ही रही थी कि गतिरोधों से जा टकराई. 8 जनवरी को उसे खास तौर पर शर्मनाक झटका लगा जब नए-नवेले मंत्री बने सुरेंद्रपाल सिंह टी.टी. करणपुर विधानसभा सीट का उपचुनाव हार गए. मूल कांग्रेस उम्मीदवार की मौत के कारण यहां चुनाव टाल दिया गया था. मगर भाजपा को लगा हो कि अपनी हुकूमत होने के बूते वह यह सीट जीत लेगी, तो यह होना नहीं था. 72 वर्षीय सुरेंद्रपाल जब कांग्रेस के नए उम्मीदवार 43 वर्षीय रूपिंदर सिंह कून्नर से हार गए तो हैरान-परेशान दिखाई दे रहे भाजपा के राज्य प्रमुख सी.पी. जोशी लड़खड़ाती जुबान से रिपोर्टरों से कहते सुने गए, "हम हार के कारणों का विश्लेषण करेंगे."
इस हार को चौतरफा भाजपा के सरकार बनाने के तौर-तरीकों के प्रति अस्वीकृति के संकेत की तरह देखा जा रहा है. 3 दिसंबर को नतीजे आने के बाद प्रक्रिया पूरी करने में पार्टी को एक महीना लगा, और मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री और अफसरशाह तक सभी जिस तरह चुने गए, अब तक हर कदम से यही लगता है कि राज्य पर केंद्र की मनसबदारी चलेगी. उम्मीद के मुताबिक, कई स्थानीय नेताओं और आम लोगों के बीच इस नई स्थिति पर अच्छी प्रतिक्रिया नहीं हुई.
केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जिस तरह मुख्यमंत्री के रूप में भजन लाल शर्मा के नाम वाली पर्ची पढ़ने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को सौंपी, उसने सब बयान कर दिया. ठेठ ऊपर से आए इस फरमान पर नए चुनकर आए विधायकों के बीच निपट खामोशी छा गई. फिर हैरानी क्या कि कांग्रेस के नारे 'पर्ची सरकार' (पर्चियों से बनी और चलने वाली सरकार) ने करणपुर के चुनाव अभियान में खूब तालियां बटोरीं.
'मोदी की राजकाज की शैली' से ओतप्रोत पीढ़ीगत बदलाव लाने की भगवा पार्टी की कोशिशों से नेताओं को अभी अभ्यस्त होना होगा. मुख्य पात्रों को भी कुछ अभ्यास करना होगा. पहली बार के विधायक मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा 'राजनीति में इतने जूनियर' हैं कि उनके कई मंत्रियों ने पहले विरले ही कभी बातचीत की या शायद कभी नहीं की. विचार-विमर्श के लिए भजन लाल के पास अब 23 मंत्री हैं, जिनमें दो उपमुख्यमंत्री हैं. अहम यह कि उनमें से कोई भी पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का कट्टर वफादार नहीं है. मगर उनके खेमे के विधायकों की अच्छी-खासी तादाद है, जिन्होंने अपने पास गृह, खनिज, आबकारी और सूचना व जनसंपर्क महकमे रखे हैं.
उनके मंत्रिमंडल में उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी सबसे ताकतवर बनकर उभरी हैं. उनकी शाही पृष्ठभूमि और इसके चलते सार्वजनिक भूमिका को सहजता से निभाने को देखते हुए उनका भाजपा सरकार का असली चेहरा बनना तय दिखाई देता है, जो भजन लाल की 'संगठन के आदमी' की निराकार छवि को संतुलित करेगा. उन्हें वित्त और पीडब्ल्यूडी सरीखे बेहद अहम विभागों सहित कई जिम्मेदारियां मिली हैं.
सरकार के रुपए-पैसों को संभालना बड़ी चुनौती होगी, खासकर जब पिछली कांग्रेस सरकार राज्य के ऊपर भारी कर्ज छोड़कर गई है, जिनमें से बहुत सारा सनक भरी परियोजनाओं पर किए गए खर्च का नतीजा है. इससे पहले उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र की मांगों को मंत्रियों और अफसरों के सामने पुरजोर ढंग से उठाया और वे बखूबी जानती हैं कि व्यवस्था कैसे काम करती हैं.
दूसरे उपमुख्यमंत्री पी.सी. बैरवा को उच्च और तकनीकी शिक्षा, परिवहन और आयुर्वेद विभाग मिले हैं. एक और प्रमुख मंत्री हैं छह बार के विधायक और आरएसएस के आदमी मदन दिलावर, जिन्हें पंचायती राज और स्कूल शिक्षा विभाग मिले हैं (शिक्षा खासकर संघ की दिलचस्पी का क्षेत्र है). पूर्व केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को उद्योग और वाणिज्य, आईटी और कुछ दूसरे चुनौतियों भरे विभाग मिले हैं. छह बार के विधायक किरोड़ी लाल मीणा को कृषि, ग्रामीण विकास और तीन अन्य महकमे दिए गए हैं. प्रशासनिक विभागों में पचमेल नुमाइंदगी के जरिए पार्टी ने जातिगत संतुलन साधने का जतन किया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले हफ्ते बड़े पैमाने पर अफसरों के तबादलों के खिलाफ आगाह किया. भाजपा के आला नेतृत्व ने पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव सुधांश पंत को नया मुख्य सचिव बनाया है. सेवानिवृत्त होने से पहले उनके पास तीन साल का कार्यकाल होगा. अपने लापरवाह रवैये के लिए कुख्यात अफसरशाही में कुछ दक्षता लाने के लिए इतना वक्त काफी है.
डीजीपी उमेश मिश्रा को रुखसत कर दिया गया है और उनकी जगह यू.आर. साहू को लाया गया है जिन्हें कांग्रेस की सरकार ने किनारे लगा दिया था. यह सब ज्यादा बड़ी योजना का हिस्सा है. भजन लाल का ध्यान सबसे पहले 'मोदी की गारंटी' तेजी से पूरी करने पर होगा ताकि राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों पर पार्टी की पकड़ को मजबूत किया जा सके. नए मुख्यमंत्री करणपुर की तरह पार्टी को लड़खड़ाने देना गवारा नहीं कर सकते.