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पश्चिम बंगाल : एक दूसरे पर संशय के बीच ममता और राहुल की सहयोग की राजनीति

सीपीएम और कांग्रेस ममता पर अक्सर भाजपा के साथ गुप्त समझौता करने का आरोप लगाती रही हैं. इसके जवाब में टीएमसी ने भी कांग्रेस और वाम दलों को भाजपा की 'बी-टीम' करार दिया है

इलस्ट्रेशन: सिद्धांत जुमडे
इलस्ट्रेशन: सिद्धांत जुमडे
अपडेटेड 31 जनवरी , 2024

- अर्कमय दत्ता मजूमदार

जब कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने पार्टी की पश्चिम बंगाल इकाई के अपने सहयोगियों से आगामी लोकसभा चुनाव के लिए राज्य में तृणमूल कांग्रेस के साथ संभावित गठबंधन पर उनकी राय पूछी, तो तमाम अहम नेताओं ने सर्वसम्मति से उसके खिलाफ राय प्रकट की. दिल्ली में 20 दिसंबर को बंद कमरे की एक बैठक में बंगाल कांग्रेस के नेताओं ने राहुल को साफ कर दिया कि वे टीएमसी से हाथ मिलाने के बजाय वाम दलों के साथ जाना पसंद करेंगे. ऐसा उन्होंने 2016 और 2021 के विधानसभा चुनावों में भी किया था.

दिल्ली में इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव एलायंस (इंडिया) के नेताओं की बैठक के दौरान टीएमसी प्रमुख और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को गठबंधन की ओर से प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाए जाने का सुझाव दिया था. उसके एक दिन बाद पश्चिम बंगाल के कांग्रेस नेताओं के साथ राहुल की बैठक आयोजित की गई थी. उन नेताओं ने राहुल से कहा कि टीएमसी के साथ गठबंधन उनके मुख्य मतदाताओं को पार्टी से दूर कर देगा, जिन्हें पहले ही कथित रूप से सत्ताधारी पार्टी की ओर से सियासी उत्पीड़न का सामना करना पड़ा और अब इससे केवल भाजपा के वोटों में इजाफा होगा.

गठबंधन नेताओं ने ममता पर राहुल के बजाय खड़गे को प्रधानमंत्री के रूप में पेश करके कांग्रेस और इंडिया गठबंधन को अस्थिर करने का भी आरोप लगाया. हालांकि, ऐसी अफवाह है कि कांग्रेस पर दबाव बनाए रखने के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव, आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल और शिवसेना (यूबीटी) के उद्धव ठाकरे सरीखे नेता ममता के पक्ष में खड़े हो रहे हैं. 

ममता को बंगाल में कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन करने से कोई परहेज नहीं है. वैसे कोई आधिकारिक ऐलान नहीं किया गया है, लेकिन अफवाह है कि 'परदे के पीछे से बातचीत' चल रही है. बंगाल कांग्रेस के नेताओं ने राहुल से यह भी कहा है कि अगर न चाहते हुए भी टीएमसी के साथ गठबंधन करना पड़ा तो वे 10 लोकसभा सीटों से कम पर समझौता नहीं करेंगे. उन्होंने सीटों की सूची भी सामने रखी जहां उन्हें जीतने की संभावना नजर आ रही है.

अब तक, टीएमसी और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के हवाले से मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि ममता उन दो सीटों—बहरामपुर और मालदा दक्षिण—को देने को तैयार हैं जहां से कांग्रेस पहले ही संसद का प्रतिनिधित्व करती है. उस पेशकश से बंगाल कांग्रेस प्रमुख और सांसद अधीर रंजन चौधरी नाराज हो गए. 4 जनवरी को उन्होंने कहा, ''ममता बनर्जी की असल मंशा सामने आ गई है. वे कह रहे हैं कि वे (टीएमसी) पश्चिम बंगाल में कांग्रेस को दो सीटें देंगे. उन सीटों पर पहले से ही कांग्रेस के सांसद हैं. हमने ममता बनर्जी और भाजपा को हराकर ये दोनों सीटें जीती हैं. वे हम पर क्या एहसान कर रहे हैं?''

इससे पहले 30 दिसंबर को चौधरी ने आरोप लगाया था कि ममता खुद बंगाल में कांग्रेस के साथ गठबंधन के खिलाफ थीं. चौधरी ने कहा था, "दीदी गठबंधन नहीं चाहतीं क्योंकि इससे उनके लिए समस्या खड़ी हो जाएगी." उन्होंने जोर देकर कहा, "हमने बहरामपुर में टीएमसी और भाजपा को बार-बार हराया है. जहां भी कांग्रेस मजबूत होगी, वह अपने दम पर लड़ेगी." टीएमसी के साथ गठबंधन को लेकर उदासीन रुख अपनाते हुए चौधरी ने आरोप लगाया कि ममता इंडिया गठबंधन को नुक्सान पहुंचाने के लिए भाजपा के साथ मिलकर काम कर रही हैं ताकि उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी केंद्रीय जांच एजेंसियों के शिकंजे से बच सकें.

सीपीएम और कांग्रेस ममता पर अक्सर भाजपा के साथ गुप्त समझौता करने का आरोप लगाती रही हैं. इसके जवाब में टीएमसी ने भी कांग्रेस और वाम दलों को भाजपा की 'बी-टीम' करार दिया है. कांग्रेस ने खासकर त्रिपुरा, मेघालय और गोवा में टीएमसी की पहुंच बनाने की कोशिशों की ओर इशारा करते हुए आरोप लगाया कि इस साल के मेघालय विधानसभा चुनावों में टीएमसी ने 13.78 फीसद वोट हासिल करके वोट शेयर में विभाजन कर दिया.

सबसे बड़ी बात यह है कि बंगाल की मुख्यमंत्री के साथ-साथ अभिषेक ने भी अक्सर राहुल की अगुआई में कांग्रेस की संभावनाओं पर सवाल उठाया है. कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद उनके स्वर नरम हो गए थे, लेकिन राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में उसकी हालिया हार ने ऐसे सवालों के लिए रास्ते खोल दिए. मुख्यमंत्री ममता ने खुद कहा कि इन तीन राज्यों के नतीजे असल में 'जनता की नहीं', बल्कि 'कांग्रेस की हार' थे. उनकी पार्टी के प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा कि भाजपा के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व राहुल और कांग्रेस को नहीं बल्कि ममता और टीएमसी को करना चाहिए.

ऐसे में कांग्रेस नेताओं को लगता है कि खड़गे के नाम को आगे बढ़ाने का मकसद दरअसल पार्टी के प्रभाव को कम करने की एक चाल है. राज्य के एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता नेपाल महतो कहते हैं, ''यह साफ है कि वे हमें और राहुल जी को हतोत्साहित करने की कोशिश कर रही हैं. उनका इरादा कांग्रेस को कमजोर करना और गठबंधन में अशांति पैदा करना है.'' जहां दलित नेता खड़गे कांग्रेस के अध्यक्ष हैं, वहीं राहुल देशभर में इसका चेहरा हैं.

इंडिया गठबंधन की बैठक में खड़गे को लेकर ममता के प्रस्ताव का अरविंद केजरीवाल ने समर्थन किया. सूत्रों के मुताबिक, केजरीवाल ने तर्क दिया कि भाजपा के पास फिलहाल 48 ऐसी लोकसभा सीटें हैं जहां तकरीबन 45 फीसद मतदाता अनुसूचित जाति और मुस्लिम समुदाय के हैं, और खड़गे को गठबंधन का चेहरा बनाकर इन मतदाताओं को लुभाने में मदद मिलेगी. उन्होंने यह भी तर्क दिया कि खड़गे अपने गृह राज्य कर्नाटक में अहम साबित होंगे, जहां 28 में से 25 लोकसभी सीटों भाजपा के कब्जे में हैं. 

ममता बनर्जी ने न केवल खड़गे के नाम को गठबंधन की ओर से प्रधानमंत्री पद के चेहरे के रूप में प्रस्तावित किया, बल्कि उन्होंने यह भी कहा कि वाराणसी से नरेंद्र मोदी के खिलाफ ''मजबूत उम्मीदवार'' के रूप में प्रियंका गांधी को खड़ा किया जाना चाहिए. इसका मतलब यह है कि प्रधानमंत्री मोदी से मुकाबला करने के लिए राहुल की तुलना में वे प्रियंका को सियासी तौर पर अधिक मजबूत मानती हैं. उनकी इस बात से कांग्रेस नेता और भी नाराज हो गए हैं. महतो कहते हैं, ''वे यह तय करने वाली कौन होती हैं कि कांग्रेस किसे कहां से मैदान में उतारेगी? उन्हें अपनी सीमाएं पता होनी चाहिए.''

वामपंथी नेताओं में भी ममता के कदमों से नाराजगी है. सीपीएम के राज्य सचिव मोहम्मद सलीम ने ममता पर गठबंधन को अस्थिर करने की कोशिश करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि इंडिया गठबंधन की पार्टियों की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए चेहरा पेश करने का कभी कोई इरादा नहीं था. उन्होंने अंदेशा जताया कि भारत जोड़ो यात्रा की कामयाबी के बाद राहुल के कद को कम करने के लिए भगवा खेमे की ओर से ममता का इस्तेमाल किया जा रहा है. सलीम आरोप लगाते हैं, ''दुनिया संसदीय लोकतंत्र का राष्ट्रपतिकरण देख रही है. मोदी भारत में भी ऐसा ही करने की कोशिश कर रहे हैं, जहां निष्क्रिय संसद के साथ वे ही सर्वेसर्वा होंगे. ममता ने बंगाल में भी ऐसा ही किया है.''

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