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दो सालों में घाटी में आतंकवाद की वापसी, लेकिन ज़मीन अब कश्मीर नहीं!

2021 के बाद से ही जम्मू में लंबे समय से चली आ रही शांति भंग हो गई है. जनवरी, 2023 से अब तक यहां 25 सुरक्षाकर्मियों और 25 आतंकवादियों समेत कम से कम 52 लोग मारे गए हैं

पुंछ के बफलियाज में तैनात सेना के जवान
पुंछ के बफलियाज में तैनात सेना के जवान
अपडेटेड 31 जनवरी , 2024

भारत की आतंकवाद-विरोधी ग्रिड कुछ वक्त से उस पर नजर रख रही थी और उसका इतिहास काफी दूर तक फैला हुआ है: अफगानिस्तान में कार्रवाई तक, पाकिस्तानी सेना और आतंक के बीच धुंधली निरंतरता तक, लश्कर-ए-तैयबा के बिल्ले तक. इसलिए जब आखिरकार भारतीय सेना के हाथ वह शख्स लगा तो यह एक लंबे अध्याय का अंत था. सारा ध्यान बाजीमाल के आसपास घने जंगलों में नाटकीय गोलीबारी पर टिक गई जो 24 घंटे तक चली. इसलिए भी कि सेना ने दो कप्तानों समेत पांच लोगों को गंवा दिया. इतनी बड़ी कीमत चुकाने के बाद बड़ी कामयाबी मिली: जंगल युद्ध और आईईडी में महारत रखने वाले आतंकी का खात्मा जिसका कोड-नेम 'कारी' था. 

हालांकि उससे उन आतंकवादी हमलों के सिलसिले का अंत नहीं हुआ जिन्होंने दो साल से ज्यादा वक्त से इन क्षेत्रों को रक्तरंजित कर रखा है. एक महीने बाद 20 दिसंबर की रात करीब 40 किलोमीटर दूर, देहरा की गली के आसपास के जंगलों में इतनी भीषण गोलीबारी हुई कि सुरक्षा बलों को अतिरिक्त सैन्य बल भेजने को मजबूर होना पड़ा.

अगली दोपहर, घटनास्थल की ओर जा रहे सेना के दो वाहनों पर लगभग 12 किमी दूर थानामंडी में घात लगाकर हमला किया गया जिसमें चार जवानों की मौत हो गई. उसके बाद जवाबी कार्रवाई में निराशाजनक लेकिन परिचित तौर-तरीकों को इस्तेमाल किया गया: यातना और हिरासत में मौतों की भयावहता ने क्षेत्र को इतना भड़का दिया कि शीर्ष केंद्रीय मंत्रियों को आग बुझाने के लिए सामने आना पड़ा.

घात लगाकर हुए हमले के एक दिन बाद 48 नेशनल राइफल्स ने इस गांव के नौ लोगों को उठा लिया था. उनमें से तीन—45 वर्षीय सफीर अहमद, 26 वर्षीय मोहम्मद शौकत और 30 वर्षीय शबीर अहमद बाद में सड़क पर मरणासन्न स्थिति में पाए गए और उनके शरीर पर यातना दिए जाने के निशान थे. पांच राजौरी अस्पताल में हैं. सोशल मीडिया पर जारी किए गए एक वीडियो में पास के कैंप के आरआर सैनिकों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया. मुआवजे का भी ऐलान किया गया. लेकिन टोपा पीर के पंच और शौकत के चाचा मोहम्मद सिद्दीक कहते हैं, "हमें इंसाफ चाहिए. हमारे बच्चों का क्या कसूर था?"

इसके बाद विरोध की ऐसी लहर उमड़ी कि सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे के साथ केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह वहां पहुंचे. एक ब्रिगेडियर समेत तीन अफसरों को हटा दिया गया; कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी बिठा दी गई; जम्मू-कश्मीर पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ एक केस दर्ज किया. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी शोक संतत्प परिवारों से मिलने पहुंच रहे हैं. केंद्र इस नए हॉटस्पॉट में अस्थिरता को गंभीरता से ले रहा है. 

साल 2024 की शुरुआत के साथ 'नई दिल्ली' ने स्थिति का जायजा लिया. नवंबर-दिसंबर की गतिविधियां अचानक सामने नहीं आई थीं. पुंछ में अब तक के सबसे लंबे ऑपरेशन के साथ, अक्टूबर, 2021 में जम्मू के तीन पर्वतीय जिलों में लंबे समय से चली आ रही शांति भंग हो गई थी. उस ऑपरेशन में दो जूनियर कमिशंड अधिकारियों समेत नौ जवान मारे गए थे. उसके बाद, सुरक्षाबलों पर घात लगाकर हुए हमलों में कभी कमी नहीं आई.

पिछले साल तो इसमें और तेजी आ गई. जनवरी, 2023 से अब तक यहां 25 सुरक्षाकर्मियों और 25 आतंकवादियों समेत कम से कम 52 लोग मारे गए हैं. कुल मिलाकर, अक्टूबर 2021 के बाद से सुरक्षाबलों ने पुंछ, रियासी और राजौरी में लगभग 30 लोगों को मार गिराया जिनमें अधिकतर पाकिस्तानी आतंकवादी थे, लेकिन अपने अधिकारियों समेत करीब 30 लोगों को भी गंवा दिया. मुठभेड़ के तौर-तरीकों का विश्लेषण करने के बाद सेना को लगता है कि लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद आतंकियों के दो छोटे समूह सबसे घातक हैं.

घाटी में व्यापक सुरक्षा घेरे के सघन होने के साथ, घुसपैठी आतंकवादियों ने जाहिर तौर पर पीर पंजाल की कम सैन्यीकृत ऊंचाइयों की ओर दो दशक पुराने मार्ग को फिर से अपना रास्ता बना लिया है. एलओसी के पार करीब 200 आतंकवादी घुसपैठ की फिराक में हैं; वे रणनीतिक जरूरतों और सर्दियों की बर्फ के हिसाब से धीरे-धीरे घुसैपठ करने की कोशिश करते हैं. सेना के एक अधिकारी का कहना है, "राजौरी, पुंछ और रियासी की सीमाएं खुली हुई हैं और वे बाड़ में फासलों का फायदा उठाते हैं."

चिंताजनक बात यह है कि यह जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की वापसी का जोरदार ऐलान करता है. लेफ्टिनेंट जनरल दीपेंद्र सिंह हुड्डा (सेवानिवृत्त) कहते हैं, स्थानीय गुज्जर और बकरवाल चरवाहों का सहयोग आतंकवाद से निबटने के लिए बेहद जरूरी है. वे चरवाहे गर्मियों में ज्यादा ऊंचे चारागाहों में चले जाते हैं और वे घुसपैठियों और उग्रवादी भगोड़ों के ट्रेक को पहचानते हैं. याद रखें कि वह एक चरवाहा ही था जिसने करगिल में घुसपैठ का पता लगाया था.

- मोअज्जम मोहम्मद के साथ

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