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राजस्थान : योजनाओं पर भारी नाम बदलने की सियासत

राजस्थान में योजनाओं के नाम बदलने की सियासत लंबे अरसे से चली आ रही है. कांग्रेस और भाजपा, दोनों पार्टियों ने सत्ता में आने के बाद पूर्ववर्ती सरकारों की योजनाओं के नाम बदले हैं

जोधपुर की एक इंदिरा रसोई में आम लोगों के साथ खाना खाते अशोक गहलोत
जोधपुर की एक इंदिरा रसोई में आम लोगों के साथ खाना खाते अशोक गहलोत
अपडेटेड 24 जनवरी , 2024

दिसंबर 2016 में राजस्थान की तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने एक योजना शुरू की थी, जिसका नाम था 'राजस्थान युवा विकास प्रेरक इंटर्नशिप प्रोग्राम.' सरकारी योजनाओं का लोगों को लाभ पहुंचाने और उन्हें योजनाओं के प्रति जागरूक करने के लिए यह कार्यक्रम शुरू किया गया था. इसमें तकनीकी और उच्च शैक्षणिक संस्थानों से 100 पोस्ट ग्रेजुएट युवाओं का चयन 'प्रेरक' के तौर पर किया गया. इस कार्यक्रम के तहत चयनित युवा प्रेरकों को 25 हजार रुपए प्रति माह मानदेय दिया गया.

उस समय मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने इस कार्यक्रम को भाजपा के प्रचार-प्रसार की योजना नाम दिया. 2018 में सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस योजना को बंद करने की जगह इसका नाम बदलकर 'राजीव गांधी युवा मित्र इंटर्नशिप प्रोग्राम' कर दिया और चयनित युवाओं की संख्या 100 से बढ़ाकर 2,500 कर दी. 2023 में इस प्रोग्राम के पद 2,500 से बढ़ाकर 5,000 कर दिए गए. 

राजस्थान में अब मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की नई सरकार ने कार्यभार संभालने के 10 दिन बाद ही इस योजना को बंद करने का फैसला किया है. आर्थिक एवं सांख्यिकी निदेशालय ने 25 दिसंबर, 2023 को एक आदेश जारी कर 31 दिसंबर, 2023 से इस योजना को समाप्त कर दिया. 

कांग्रेस ने इस योजना को बंद किए जाने को लेकर सवाल उठाए तो भाजपा ने वही हवाला दिया जो 2016 में कांग्रेस ने दिया था. भाजपा नेताओं ने कहा कि गहलोत सरकार ने इस योजना में कांग्रेस कार्यकर्ताओं की भर्ती की थी. 

पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत और कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने यह योजना बंद किए जाने पर भाजपा सरकार पर हमला बोला. गहलोत ने कहा, "भाजपा को अगर राजीव गांधी के नाम से दिक्कत थी तो इस योजना का नाम बदल देती, लेकिन इसे बंद करना दुर्भाग्यपूर्ण है." वहीं कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष डोटासरा का कहना है, "भाजपा सरकार ने नए साल से पहले पांच हजार राजीव गांधी युवा मित्रों को बेरोजगारी का तोहफा दिया है. पिछली भाजपा सरकार में पंचायत सहायकों की नियुक्ति हुई थी, लेकिन हमने उस योजना को बंद करने की जगह उनके मानदेय में बढ़ोतरी कर उन्हें स्थायी करने का प्रयास किया. भाजपा और कांग्रेस की नीति में यही फर्क है." 

इन बयानों के जवाब में भाजपा प्रवक्ता लक्ष्मीकांत भारद्वाज कहते हैं, "राजस्थान में राजीव गांधी युवा मित्र इंटर्नशिप कार्यक्रम के माध्यम से कांग्रेस ने सरकारी पैसे से अपने कार्यकर्ताओं की भर्ती कर रखी थी." राजस्थान में राजीव गांधी युवा मित्र इंटर्नशिप कार्यक्रम इकलौती योजना नहीं है, जिसे लेकर बवाल हो रहा है. नई सरकार पर कई योजनाओं को बंद करने और कई योजनाओं में कटौती किए जाने के आरोप लग रहे हैं. 

इन्हीं में से एक योजना है इंदिरा रसोई योजना. इंदिरा रसोई योजना में कई जिलों में थालियों की संख्या कम की गई है. धौलपुर जिले में इंदिरा रसोई के तहत रोज दी जाने वाली थालियों की संख्या 3,000 से घटाकर 1,800 की गई है. धौलपुर में 19 इंदिरा रसोई संचालित हैं. धौलपुर की तरह कई अन्य जिलों में भी इंदिरा रसोई की थाली की संख्या कम किए जाने की सूचना है. बताया जा रहा है कि पहले इस योजना में जहां हर दिन 600 लोगों के लिए खाना उपलब्ध था, वहीं अब उसे घटाकर 200 थाली तक सीमित कर दिया गया है. गहलोत सरकार ने इंदिरा रसोई योजना के तहत नौ करोड़ से ज्यादा थालियां परोसी थीं. 

हालांकि, राजस्थान में आठ रुपए में भोजन दिए जाने की अन्नपूर्णा योजना की शुरुआत वर्ष 2016 में वसुंधरा राजे सरकार के कार्यकाल में हुई थी. तब की भाजपा सरकार ने तमिलनाडु की 'अम्मा रसोई' की तर्ज पर 'अन्नपूर्णा रसोई' शुरू की थी. इसके तहत अन्नपूर्णा वाहनों के जरिए राजस्थान में 200 जगहों पर लोगों को आठ रुपए में खाना और पांच रुपए में नाश्ता कराने का फैसला किया गया. ये अन्नपूर्णा वाहन सुबह से लेकर शाम तक एक निश्चित जगह पर आकर खड़े हो जाते थे जहां कोई भी व्यक्ति आठ रुपए में खाना खा सकता था.

सत्ता में आने के दो साल बाद 20 अगस्त, 2020 को गहलोत सरकार ने इस योजना का नाम अन्नपूर्णा रसोई से बदलकर 'इंदिरा रसोई' कर दिया. उस वक्त 213 नगरीय निकायों में 358 जगहों पर इंदिरा रसोई शुरू की गई, जिन्हें 2022-23 में बढ़ाकर 1,000 कर दिया गया. चुनाव से दो माह पहले 10 सितंबर, 2023 को ग्रामीण क्षेत्रों के लिए भी 400 इंदिरा रसोई शुरू करने का एलान हुआ, लेकिन गांवों में ये रसोइयां शुरू होने से पहले ही प्रदेश में सरकार बदल गई. 

गहलोत सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना में भी प्रदेशभर के अधिकांश निजी अस्पतालों ने इलाज की सुविधा बंद कर दी है. इन अस्पतालों को डर है कि वसुंधरा राजे के कार्यकाल की भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना की तरह चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत होने वाले इलाज का भुगतान नई सरकार में अटक सकता है. इसी डर के चलते राज्यभर के करीब दो हजार से ज्यादा निजी अस्पतालों ने चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत इलाज करने से इनकार कर दिया है.

इससे सबसे बड़ी परेशानी उन लोगों को हो रही है जिन्होंने चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना के लिए 850 रुपए की प्रीमियम राशि जमा कराई थी. हालांकि, राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने यह साफ किया है कि आयुष्मान भारत के तहत निजी अस्पतालों में 25 लाख रुपए तक के इलाज की सुविधा मिलती रहेगी. इसी तरह सरकारी कर्मचारियों को निजी अस्पतालों में कैशलेस इलाज और योजना से जुड़े प्राइवेट मेडिकल स्टोर से निशुल्क दवा उपलब्ध कराने के लिए चल रही राजस्थान सरकार स्वास्थ्य योजना के तहत भी 50 फीसद से ज्यादा मेडिकल स्टोर्स ने दवा देना बंद कर दिया है.  

राजस्थान में वर्ष 2011 से माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों में पढ़ने वाली लड़कियों को निशुल्क साइकिल दी जाती हैं. 2013 में जब वसुंधरा राजे सरकार सत्ता में आई तो इन साइकिलों का रंग काले से भगवा कर दिया गया. गहलोत सरकार चुनावी साल में साइकिलों का वितरण नहीं कर पाई थी. ऐसे में अब कयास लगाए जा रहे हैं कि भाजपा सरकार इन साइकिलों का फिर से भगवा रंग करके बांटेगी. 

राजनैतिक विशेषज्ञ मिलाप चंद डंडिया कहते हैं, ''भाजपा और कांग्रेस को अब एक दूसरे की योजनाओं को बंद करने और उनके नाम बदलने की सियासत से बाज आना चाहिए. योजनाओं का नाम बदलना पैसे की अनावश्यक बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है.'' 

नाम बदलने की सियासत

राजस्थान में योजनाओं के नाम बदलने की सियासत लंबे अरसे से चली आ रही है. कांग्रेस और भाजपा, दोनों पार्टियों ने सत्ता में आने के बाद पूर्ववर्ती सरकारों की योजनाओं के नाम बदले हैं. 

2003 में जब वसुंधरा राजे पहली बार मुख्यमंत्री बनीं तब उन्होंने अशोक गहलोत सरकार के पहले कार्यकाल में बनाए गए राजीव गांधी शिक्षा संकुल का नाम बदलकर डॉ. राधाकृष्णन शिक्षा संकुल कर दिया था. 2008 में जब अशोक गहलोत फिर से सत्ता में आए तो इसका नाम फिर से राजीव गांधी के नाम पर कर दिया. इसके बाद 2013 में वसुंधरा राजे सत्ता में आईं तो फिर नाम डॉ. राधाकृष्णन शिक्षा संकुल हो गया. अशोक गहलोत के दूसरे कार्यकाल में शुरू हुए राजीव गांधी सेवा केंद्रों का नाम वसुंधरा राजे सरकार ने बदलकर अटल सेवा केंद्र कर दिया था.

पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत ने वसुंधरा राजे के 2013 से 2018 के कार्यकाल में कांग्रेस के समय शुरू की गई कई योजनाओं और कार्यों को बंद किए जाने के आरोप लगाए. इनमें बाड़मेर जिले के पचपदरा में लगाई जा रही रिफाइनरी, मुख्यमंत्री ग्रामीण बीपीएल आवास योजना, मुख्यमंत्री ग्रामीण बस सेवा, पशुपालकों को दूध पर 2 रुपए प्रति लीटर की सब्सिडी, जयपुर मेट्रो फेज 2 (अंबाबाड़ी से सीतापुरा) और केदारनाथ त्रासदी में मारे गए लोगों के परिजनों को अनुकंपा नियुक्ति जैसी योजनाएं शामिल थीं.

अशोक गहलोत ने अपने दूसरे कार्यकाल में केदारनाथ और बद्रीनाथ में आई प्राकृतिक आपदा का शिकार हुए श्रद्धालुओं के परिजनों को सरकारी नौकरी देने की योजना शुरू की थी जिसे वसुंधरा राजे सरकार ने बंद कर दिया और इस योजना के तहत सरकारी नौकरी में लगाए गए मृतकों के 15-20 आश्रितों को वापस हटा दिया. इसी तरह अशोक गहलोत के दूसरे कार्यकाल में शुरू किए गए हरिदेव जोशी पत्रकारिता विश्वविद्यालय को भी वसुंधरा राजे सरकार ने बंद कर दिया. 2018 में सत्ता में आने के बाद गहलोत ने इस विश्वविद्यालय को फिर से चालू किया था.

वसुंधरा राजे ने फरवरी 2017 में वरिष्ठ नागरिकों को तीर्थ यात्रा कराने के लिए दीनदयाल उपाध्याय वरिष्ठ नागरिक तीर्थ योजना शुरू की थी जिसे गहलोत सरकार ने बदलकर मुख्यमंत्री वरिष्ठ नागरिक तीर्थ योजना कर दिया. वसुंधरा राजे ने सितंबर 2014 में गांवों में 15 लाख रुपए तक के विकास कार्यों के लिए गुरु गोलवलकर जनभागीदारी योजना की शुरुआत की थी. गहलोत सरकार ने बाद में इसका नाम बदलकर महात्मा गांधी ग्रामीण जन भागीदारी योजना कर दिया था.

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