
एक के बाद एक नोटों के बंडल गिनते हुए करीब 25 काउंटिंग मशीनें बिना रुके लगातार चल रही थीं. कुछ ने तो अधबीच ही हार मान ली और खराब हो गईं. इसी आशंका को देखते हुए करीब 10 और मशीनें स्टैंडबाइ पर रखी गई थीं. 10 दिसंबर को जब यह पूरी कवायद खत्म हुई, तब तक घंटों की मेहनत के बाद ये मशीनें हजारों करोड़ों रुपए के नोट गिन चुकी थीं. सटीक आंकड़ा अभी आना है, लेकिन कई लोग इसे 300 करोड़ रुपए से ज्यादा बताते हैं. अगर कांग्रेस पिछले हफ्ते हिंदी पट्टी के तीन बड़े राज्यों में अपने चुनावी मलबे से कुछ नैतिक राहत की तलाश कर रही हो, तो कर चोरी के हैरतअंगेज मामले के महानायक के तौर पर चर्चित हो चुके अपने एक सांसद के परिवार के हाथों चलाई जा रही शराब कंपनी के इस अफसाने से तो वह राहत उसे नहीं ही मिली. यह साधारण मामला भी नहीं है. झारखंड से उसके तीन बार के राज्यसभा सांसद धीरज साहू से जुड़ी इस बरामदगी का रिकॉर्ड बुक में आयकर विभाग की एक ही कार्रवाई में बेहिसाब नकदी की सबसे बड़ी बरामदगी के तौर पर दर्ज होना तय है.
ओडिशा में अपनी तरह की सबसे बड़ी बौद्ध डिस्टलरी प्राइवेट लिमिटेड (बीडीपीएल) पर यह छापेमारी गुप्त सूचना के बाद 6 दिसंबर को शुरू हुई. तब से साहू के रांची आवास और लोहरदग्गा स्थित पैतृक घर सहित 40 से ज्यादा ठिकानों पर छापे डाले जा चुके हैं. इससे जुड़ी कई और संस्थाएं भी जांच के दायरे में हैं. समूह की तीन अन्य कंपनियों में से एक बलदेव साहू इन्फ्रा प्राइवेट लिमिटेड की अगुआई साहू के बेटे हर्षित करते हैं. साहू ने खुद भी मेसर्स बलदेव साहू ऐंड संस में निवेश कर रखा है, हालांकि यह साफ नहीं है कि वे बीडीपीएल से जुड़े हैं या नहीं. 12 दिसंबर को भुवनेश्वर के आइटी अफसरों के साथ आरंभिक बातचीत के बाद प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) संभावित धनशोधन की जांच के लिए कदम उठाने को तैयार मालूम देता था.
इस घटना का फायदा उठाने में भाजपा ने जरा भी वक्त नहीं गंवाया. प्रधानमंत्री मोदी ने 12 दिसंबर को एक्स पर लिखा, "भारत में 'धन की लूट' के किस्सों की भला किसे जरूरत है, जब आपके पास कांग्रेस पार्टी है जिसकी लूट 70 वर्षों से मशहूर रही है और अब भी जारी है!" उधर, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्षी दलों और इंडिया गुट पर इस मुद्दे पर चुप्पी ओढ़ लेने के लिए तंज कसा. अब जब आम चुनाव महज कुछ ही महीने दूर रह गए हैं, अगर भाजपा, खासकर बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड और ओडिशा में, जहां वह विपक्ष में है, इसे भुनाने की कोशिश करे तो हैरानी नहीं होगी. ओडिशा में पहले ही भाजपा साहू परिवार को कथित तौर पर खुली छूट देने के लिए बीजू जनता दल की तरफ उंगली उठा रही है. बदले में बीजेडी ने यह कहकर इन आरोपों से पल्ला झाड़ने की कोशिश की है कि भगवा पार्टी के शीर्ष नेता किस तरह कांग्रेस को दोषी ठहरा रहे हैं.
इस बीच कांग्रेस ने दूरी बनाते हुए 'सफाई' देने की जिम्मेदारी खुद साहू पर छोड़ दी. पार्टी के संचार प्रमुख जयराम रमेश ने एक्स पर कहा, "कांग्रेस धीरज साहू के कारोबारों से किसी भी तरह जुड़ी नहीं है. केवल वही बता सकते हैं, और उन्हें बताना चाहिए कि आयकर अधिकारियों को उनकी संपत्तियों से कथित तौर पर इतनी भारी मात्रा में नकदी कैसे मिली." मगर पार्टी के लिए पूछताछ से पिंड छुड़ाना इतना आसान नहीं होगा. साहू कई संसदीय समितियों से जुड़े रहे हैं और आज भी बिजली और नवीकरणीय ऊर्जा सलाहकार समिति के अलावा कोयला,

खनिज और इस्पात से संबंधित समिति के सदस्य हैं. स्वतंत्रता सेनानी बलदेव साहू के बेटे धीरज ने अपना राजनैतिक सफर 1977 में कांग्रेस की छात्र शाखा एनएसयूआइ के साथ शुरू किया था. 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने उनके भाई गोपाल को मैदान में उतारा (वे हार गए थे). उनके बड़े भाई दिवंगत शिवप्रसाद साहू रांची से दो बार कांग्रेस के सांसद रहे. वह विरासत अब पूरी तरह कलंकित हो चुकी है.