बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के संस्थापक कांशीराम ने अपनी संकल्प यात्राओं के जरिए पार्टी की जमीनी पकड़ को धार दी थी. मायावती के कमान संभालने के बाद यात्राओं की रणनीति ने रैलियों का रूप धारण कर लिया.
2023 में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले मायावती के भतीजे और पार्टी के नेशनल कोऑर्डिनेटर 28 वर्षीय आकाश आनंद ने पदयात्राओं और प्रदर्शनों का आयोजन न करने की पार्टी की सामान्य रणनीति से हटकर 16 अगस्त को राजस्थान के धौलपुर से 14 दिवसीय संकल्प यात्रा की शुरुआत की थी.
इसके बाद से ही यह अटकलें तेज हो गई थीं कि मायावती अपने भतीजे आकाश आनंद को किसी बड़ी जिम्मेदारी के लिए तैयार कर रही हैं. राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के विधानसभा चुनाव में जब बसपा के प्रदर्शन में भारी गिरावट आई तो मायावती ने बिना देर किए आकाश को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया.
मायावती ने 10 दिसंबर को लखनऊ के माल एवेन्यू स्थित पार्टी कार्यालय में वरिष्ठ नेताओं की बैठक बुलाई थी. भतीजे आकाश के साथ बैठक में पहुंचीं मायावती ने घोषणा की कि उनके न रहने पर आकाश ही पार्टी की कमान संभालेंगे. मायावती ने आकाश को उन राज्यों में संगठन को मजबूत करने का जिम्मा सौंपा है, जहां पार्टी कमजोर है. उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बसपा का संगठन मजबूत करने की जिम्मेदारी मायावती ने अपने पास रखी है.
हालांकि राजनैतिक विश्लेषक मायावती के इस दांव को पार्टी के भीतर विश्वसनीय और प्रभावी नेताओं की कमी के प्रतिफल के रूप में देख रहे हैं. दिगंबर जैन कॉलेज बड़ौत, बागपत में राजनीतिशास्त्र विभाग के प्रमुख स्नेहवीर पुंडीर बताते हैं, "परिवार से किसी को भी उत्तराधिकारी न बनाने का दावा करने वाली मायावती ने भतीजे को पार्टी की कमान सौंपने की घोषणा कर अपने दलित वोट बैंक से एक भावनात्मक संबंध जोड़ने की कोशिश की है. पर पार्टी के दूसरे नेता ऐसा कोई संबंध विकसित करने में विफल साबित हुए हैं."
कई वर्षों से आकाश आनंद को मायावती के राजनैतिक उत्तराधिकारी के रूप में पेश किया जा रहा था. मायावती के छोटे भाई आनंद कुमार के बेटे आकाश ने नोएडा और गुरुग्राम से स्कूली शिक्षा हासिल करने के बाद 2013 से 2016 के बीच लंदन की यूनिवर्सिटी ऑफ प्लीमथ से बीबीए किया. भारत वापस आने के बाद आकाश ने जनवरी, 2017 में 'डीजेटी कॉर्पोरेशंस ऐंड इन्वेस्टमेंट्स प्राइवेट लिमिटेड' नाम की एक कंपनी बनाई. 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद 29 मई, 2017 को सहारनपुर के हिंसा प्रभावित इलाकों का दौरा करने पहुंचीं मायावती के साथ पहली बार आकाश भी दिखाई दिए थे. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले आकाश राजनैतिक रूप से अधिक सक्रिय हो गए और उन्हें अपनी बुआ मायावती को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'ट्विटर' (अब 'एक्स') पर लाने का श्रेय दिया जाता है.
लोकसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग की ओर से मायावती के प्रचार पर 48 घंटे के लिए प्रतिबंध लगाने के एक दिन बाद, 16 अप्रैल, 2019 को आकाश मंच पर आए और आगरा में अपनी पहली रैली को संबोधित किया. मंच पर उनके साथ सपा प्रमुख अखिलेश यादव और तत्कालीन रालोद अध्यक्ष अजित सिंह भी शामिल हुए थे. इस जनसभा से ही आकाश ने अपने राजनैतिक सफर की शुरुआत की थी.
इसके बाद आकाश मायावती के साथ विभिन्न कार्यक्रमों में नजर आने लगे. 9 अक्तूबर, 2021 को हरियाणा के अंबाला में बसपा के संस्थापक कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस के मौके पर उन्होंने कहा था, "कांशीराम आज हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन उनके विचार हमें आज भी प्रेरणा देते हैं." आकाश की कई रैलियों में शामिल रहे बसपा के एक नेता बताते हैं, "आकाश अपने भाषण में अंग्रेजी के अल्फाज का काफी इस्तेमाल करते हैं." उनकी फेसबुक प्रोफाइल पर बेंगलूरू में 28 दिसंबर, 2022 को दिया गया 24 मिनट लंबा अंग्रेजी भाषण भी है.
बसपा नेता बताते हैं कि आकाश बसपा की समितियों में नौजवानों की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत तक करने की पुरजोर वकालत करते हैं. आकाश के करीबियों की मानें तो उनकी नजर उन दलित युवाओं पर है जो आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर के साथ जुड़ रहे हैं. इन्हीं दलित युवाओं से सीधे जुड़ाव के लिए आकाश सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स का बखूबी उपयोग करते हैं. आकाश ने अपनी एक्स प्रोफाइल जुलाई, 2021 में बनाई और तकरीबन सवा दो साल में उनके 1 लाख 85 हजार से अधिक फॉलोअर्स हैं. राजस्थान में बसपा के अध्यक्ष भगवान सिंह बाबा कहते हैं, "युवाओं में आकाश को लेकर क्रेज है. चूंकि वे बहनजी के भतीजे हैं, लोग मानते हैं कि ये बहुजन मूवमेंट को आगे बढ़ाएंगे." युवाओं से जुड़ने के क्रम में आकाश इसी वर्ष फरवरी में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली भी गए थे. वहां छात्रों ने आकाश की तुलना कांशीराम से करते हुए सोशल मीडिया पर अपने उद्गार व्यक्त किए थे.
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन की हार के बाद 23 जून, 2019 को मायावती ने भाई आनंद कुमार को दोबारा पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और भतीजे आकाश को नेशनल कोऑर्डिनेटर बना दिया था. इसी बीच भाई आनंद कुमार के कई वित्तीय मामलों में फंसने के कारण मायावती ने आनंद को पार्टी में आगे करने का निर्णय लिया. पिछले कुछ वर्षों में बसपा के भीतर आकाश आनंद का कद बढ़ता गया और अब उन्हें परिवार में मायावती का सबसे भरोसेमंद माना जाता है. इस भरोसे के तहत ही मायावती ने आकाश को राजस्थान, मध्य प्रदेश समेत पांच राज्यों में बसपा के चुनावी अभियान की कमान सौंपी थी. पहली बड़ी जिम्मेदारी में आकाश फिलहाल कोई छाप छोड़ पाने में कामयाब नहीं हुए. इन चुनावी राज्यों में बसपा का प्रदर्शन पिछली बार की तुलना में काफी खराब रहा.
अब नई भूमिका के तौर पर आकाश के सामने यूपी-उत्तराखंड से इतर दूसरे राज्यों में पार्टी का संगठन मजबूत करने की और भी कठिन जिम्मेदारी है. स्नेहवीर पुंडीर बताते हैं, "बसपा के पास विश्वसनीय नेताओं का अभाव है और जमीनी काडर भी सुस्त है. लगभग हर राज्य में दलितों के बीच एक नया युवा नेतृत्व उभर रहा है. इन्हें बसपा की तरफ लाने के लिए आकाश को उसी मिशनरी मोड में काम करना होगा, जैसे कांशीराम करते थे."
बसपा के गिरते चुनावी ग्रदर्शन की एक बानगी
> बसपा के राजनैतिक प्रदर्शन में लगातार गिरावट आती जा रही है. 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने यूपी में सपा से गठबंधन कर 10 लोकसभा सीटें जीती थीं जबकि दूसरे किसी राज्य में वह एक भी जीत के लिए तरस गई थी
> पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा ने कुल 26 प्रदेशों में चुनाव लड़ा. पार्टी ने सबसे ज्यादा वोट यूपी में बटोरे. उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा में 5 से 3 प्रतिशत वोट, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार समेत नौ राज्यों में 1 से 3 प्रतिशत वोट, बाकी में 1 प्रतिशत से कम वोट मिले थे
> विधानसभा चुनावों में भी बसपा का प्रदर्शन लगातार गिर रहा है. 2018 में राजस्थान के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 4.08 प्रतिशत वोट हासिल करते हुए छह सीटें जीती थीं. 2023 के चुनाव में पार्टी ने 1.82 प्रतिशत वोट पाकर महज दो सीटें जीतीं
> मध्य प्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 5.01 प्रतिशत वोट हासिल करते हुए दो सीटों पर जीत का परचम लहराया था. 2023 के चुनाव में पार्टी को 3.35 प्रतिशत वोट मिले लेकिन वह एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं हो सकी
> छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में बसपा ने गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा. पार्टी को 2.07 प्रतिशत वोट मिले और एक सीट पर गठबंधन विजयी रहा. 2018 के विधानसभा चुनाव में 2 सीटें हासिल हुई थीं
> तेलंगाना के विधानसभा चुनाव में बसपा को 1.38 प्रतिशत वोट ही हासिल हुए और पार्टी एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं हो सकी. 2018 के विधानसभा चुनाव में भी बसपा को एक भी सीट नहीं मिली थी लेकिन पार्टी करीब 3 फीसद वोट पाने में कामयाब रही थी