
इधर कुछ सालों में तृणमूल कांग्रेस ने एक मामले में भाजपा को तगड़ी टक्कर दी है. कोलकाता में हुगली तट पर काशी जैसी गंगा आरती का आयोजन, वैष्णो देवी और पुरी के जगन्नाथ मंदिर की प्रतिकृतियां बनवाना. यानी हर कदम पर खुद को हिंदुत्ववादी दर्शाना.
भले ही इसे पश्चिम बंगाल में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने की कोशिश बताया जाता हो, असल उद्देश्य तो सियासी मकसद साधना ही है. यही वजह है कि 2024 के लोकसभा चुनाव नजदीक आते ही राज्य में धार्मिक गतिविधियों में नए सिरे से तेजी नजर आने लगी है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बहु-प्रचारित कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए 24 दिसंबर को कोलकाता पहुंचने वाले हैं, जिसमें करीब एक लाख लोग भगवद्गीता के श्लोकों का पाठ करेंगे. पर इससे एक पखवाड़े पहले तृणमूल के दो नेताओं को हुगली जिले के महेश स्थित जगन्नाथ मंदिर में ठीक उसी तर्ज पर एक कार्यक्रम में हिस्सा लेते देखा गया. हालांकि, यह आयोजन उतने बड़े स्तर का नहीं था. शायद इसके निहितार्थ समझकर ही ब्राह्मणों के एक संगठन पश्चिम बंग राज्य सनातन ब्राह्मण ट्रस्ट ने चंडीपाठ के आयोजन में राज्य सरकार की सहायता के मकसद से कोलकाता के मेयर और मंत्री फिरहाद हकीम से संपर्क साधा. एक अहम तथ्य यह भी है कि इस ट्रस्ट ने 2019 में विवादास्पद नागरिकता (संशोधन) अधिनियम का विरोध किया था.
लोक्खो कोन्थे गीतापाठ (एक लाख लोगों का गीता पाठ) कार्यक्रम कभी वाम मोर्चे की भव्य रैलियों के लिए क्चयात रहे कोलकाता के ब्रिगेड परेड मैदान में होगा. इसका आयोजन साधु-संतों के साल भर पुराने संगठन सनातन संस्कृति संसद की ओर से किया जा रहा है और इसमें भाजपा भी सहयोग कर रही है. संगठन के अध्यक्ष कार्तिक महाराज भारत सेवाश्रम संघ के सदस्य हैं, जो बंगाल में 1917 में स्थापित एक धर्मार्थ संगठन है. महाराज कहते हैं, ''मोदीजी जब गुजरात में आरएसएस के प्रचारक थे तभी से उनका भारत सेवाश्रम से नाता है.'' 17 नवंबर को बंगाल भाजपा प्रमुख सुकांत मजूमदार महाराज और अन्य साधु-संतों के साथ दिल्ली भी आए और पीएम को कार्यक्रम में शामिल होने का न्योता दिया गया. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भी इसमें आमंत्रित किया गया है. हालांकि, उनकी तरफ से मौजूदगी की पुष्टि नहीं की गई है.

वैसे, मजूमदार और महाराज तो यही कह रहे हैं कि कार्यक्रम का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं और इसमें सभी दलों के सांसदों, विधायकों, यहां तक कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी आमंत्रित किया गया है. लेकिन भाजपा का समर्थन और मोदी का शामिल होना कुछ अलग ही संकेत देता है. भाजपा के एक सूत्र ने बेझिझक स्वीकारा, ''24 दिसंबर को मोदीजी की मौजूदगी में एक लाख लोग भगवद्गीता का पाठ करेंगे. फिर एक महीने बाद वे अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन करेंगे.''
ऐसे में कोई अचरज नहीं कि तृणमूल एक बार फिर हिंदू समर्थक भावनाएं उभारकर इसे अपनी राजनैतिक रणनीति का हिस्सा बना रही है. मध्य कोलकाता में भगवा जमघट से एक पखवाड़े पूर्व 10 दिसंबर को महेश स्थित 627 साल पुराना जगन्नाथ मंदिर दो हजार लोगों के गीता पाठ से गूंज उठा. कार्यक्रम का आयोजन सेरामपुर से तृणमूल सांसद कल्याण बनर्जी ने किया था और पंचायत मंत्री प्रदीप मजूमदार भी इसमें शामिल हुए. दूसरी तरफ, भाजपा की शिकायत रही कि इसमें उसके किसी प्रतिनिधि को आमंत्रित नहीं किया गया. इस पर महेश भगवान जगन्नाथ मंदिर ट्रस्ट के सचिव पियाल अधिकारी ने सफाई दी कि यह नियमित अनुष्ठान का हिस्सा था. हालांकि, उनका सुर टीएमसी के पक्ष में ही दिखा. प्रदीप मजूमदार ने बाद में भाजपा प्रवक्ता समिक भट्टाचार्य के इस आरोप को निराधार बताया कि कोलकाता में होने वाले कार्यक्रम की वजह से अचानक की टीएमसी का 'हिंदुत्व जोर मारने' लगा है.
वैसे 'नरम हिंदुत्व' को अपनाकर अन्य विपक्षी दलों को तो कोई खास फायदा नहीं हुआ है. अब, देखना होगा कि टीएमसी के प्रदर्शन पर क्या असर पड़ता है?
- अर्कमय दत्त मजूमदार