भाजपा की अगुआई वाली सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को रद्द करने के चार साल बाद, कश्मीरी प्रवासियों (केएम) और पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर (पीओजेके) शरणार्थियों के लिए सीटें आरक्षित करने के लिए लोकसभा में पेश संशोधन विधेयक पारित हो चुके हैं.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के लोकसभा में जम्मू-कश्मीर से संबंधित दो विधेयक—जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2023, और जम्मू-कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2023 पेश करने के बाद सदन में भारी शोर-शराबा हुआ था और विपक्ष वॉकआउट कर गया था. फिर भी, विधेयकों को 6 दिसंबर को निचले सदन से हरी झंडी मिल गई.
ज्यादा हंगामा जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक पर मचा, जिसमें नामांकित सदस्यों के अधिकार निर्वाचित विधायकों के बराबर करने का प्रस्ताव है. इसके अलावा, मनोनयन केंद्र का प्रतिनिधि उपराज्यपाल करेगा, जो मुख्यमंत्री या निर्वाचित सरकार से परामर्श किए बिना ऐसा कर सकता है. जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 में पहले ही मनोनीत सदस्यों को अविश्वास प्रस्ताव सहित सभी मामलों में निर्वाचित सदस्यों के बराबर मतदान का अधिकार दे दिया गया था. नया विधेयक अधिनियम की धारा 15 के अनुरूप है जिसमें विधानसभा में दो महिलाओं के मनोनयन की अनुमति है.
यह विधेयक मई 2022 में गठित सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व वाले तीन सदस्यीय परिसीमन आयोग की सिफारिशों के आधार पर है. 1989 में आतंकवाद के फैलने के बाद हजारों लोग, खासकर कश्मीरी पंडित, हमलों की आशंका से जम्मू के मैदानी इलाकों की तरफ चले गए. जम्मू-कश्मीर प्रवासी अचल संपत्ति (संरक्षण, सुरक्षा और संकटकालीन बिक्री पर प्रतिबंध) अधिनियम, 1997 उन्हें 'प्रवासी' बताता है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, करीब 62,000 परिवार अपना घर छोड़कर घाटी से पलायन कर गए. इसी तरह, 41,844 परिवार ऐसे हैं जो 1947, 1965 और 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध के दौरान पीओके से आए थे.
लोकसभा में गृह मंत्री ने कहा कि विधेयक का मकसद पिछले 70 वर्षों से वंचित लोगों को इंसाफ दिलाना है. उन्होंने कहा, ''अगर वोट बैंक की राजनीति पर विचार किए बिना आतंकवाद से शुरुआत में ही निबटा गया होता तो कश्मीरी पंडितों को घाटी नहीं छोड़नी पड़ती.''
पांच मनोनयन के साथ जम्मू-कश्मीर विधानसभा में संख्या 95 हो जाएगी. परिसीमन आयोग ने जम्मू के लिए छह और कश्मीर के लिए एक अतिरिक्त सीट की सिफारिश की थी. इसने जम्मू में 43 और कश्मीर घाटी में 47 सीटों के साथ दोनों क्षेत्र लगभग समान चुनावी ताकत पर पहुंच गए हैं, जिससे राज्य की राजनीति में मुस्लिम बहुल घाटी के वर्चस्व को खत्म करने का भाजपा का पुराना सपना साकार हो गया है. अतीत में, भगवा पार्टी ने जम्मू से एक मुख्यमंत्री बनाने की कसम खाई थी. विधानसभा की कुल सीटों की संख्या बढ़कर 119 हो गई है, जिसमें पीओके के लिए खाली रखी गई 24 सीटें भी शामिल हैं.
घाटी में प्रतिक्रियाएं उम्मीद के मुताबिक ही हैं. 2019 के घटनाक्रम से पहले से कश्मीर में रह रहे और पुराने श्रीनगर में एक सुपरमार्केट के मालिक संदीप मावा को लगता है कि यह विस्थापितों के लिए ''मरहम'' का काम करेगा. वे कहते हैं, ''यह ऐतिहासिक फैसला है... हम छोटे-से समुदाय हैं जो आतंकवाद के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में बिखर गए हैं.'' भाजपा नेता तथा पूर्व उप-मुख्यमंत्री कविंदर गुप्ता को खुशी है कि दोनों समुदायों को उनका उचित हिस्सा मिला है और अब वे जल्द से जल्द विधानसभा चुनाव चाहते हैं.
लेकिन विपक्षी नेताओं और राजनैतिक विश्लेषकों सहित कई लोगों का मानना है कि यह भाजपा की बिना किसी अड़चन के सरकार बनाने की ''बड़ी योजना'' का हिस्सा है. पिछला विधानसभा चुनाव 2014 में हुआ था और जून 2018 में पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार गिरने के बाद से जम्मू-कश्मीर में कोई निर्वाचित सरकार नहीं है.
पांच नामांकनों के साथ, भाजपा को बहुमत का दावा करने के लिए 43 सीटों की दरकार होगी. पिछले चुनाव में पार्टी को पहली बार जम्मू में 25 सीटें मिली थीं. अब वह एससी/एसटी समुदायों का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रही है, जिनके लिए परिसीमन आयोग ने क्रमश: नौ और सात सीटें आरक्षित की हैं. राज्य के एक नेता का कहना है, ''अगर उन्हें जम्मू से अधिकांश सीटें मिल गईं तो उन्हें कश्मीर की पार्टियों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा. इससे क्षेत्र की राजनीति में कश्मीर-आधारित पार्टियों का वर्चस्व समाप्त हो जाएगा.''
पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का कहना है कि उनकी पार्टी आरक्षण के खिलाफ नहीं है, लेकिन उन्हें लगता है कि इसका मकसद भाजपा की संख्या ज्यादा करने में मदद करना है. उन्होंने कहा, ''हम आरक्षण के खिलाफ नहीं हैं...हमने पहले भी महिलाओं और अन्य लोगों को आरक्षण दिया है. लेकिन सीटें आरक्षित करना निर्वाचित सरकार पर छोड़ दिया जाना चाहिए, न कि उन लोगों पर जो केंद्र से नामित होकर आए हैं.''
वरिष्ठ माकपा नेता मोहम्मद यूसुफ तारिगामी एक और मुद्दा उठाते हैं. वे दो निर्वाचित कश्मीरी पंडित विधायकों, प्यारे लाल हांडू और रमन मट्टू के मामले को याद करते हैं, जो श्रीनगर के हब्बाकदल निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए थे. हांडू 1996 में फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री थे और मट्टू 2002 में मुफ्ती मोहम्मद सईद के नेतृत्व वाले शासन में मंत्री थे. लेकिन मट्टू सहित सभी हिंदू उम्मीदवार 2008 में हार गए. वे कहते हैं, ''प्रतिनिधि चुनने के लिए संबंधित समुदाय की कुछ भागीदारी होनी चाहिए. उनका पक्ष लेने की आड़ में प्रतिनिधि का चुनाव या चयन कौन करेगा? समुदाय अपने प्रतिनिधि का नाम तय करने में भाग नहीं लेता तो यह उनका सशक्तीकरण तो नहीं हुआ.'' यह सिक्के का एक पहलू है, पंडित समुदाय की कठिनाइयां दूसरा पहलू है. भाजपा का इरादा तीसरा पहलू हो सकता है.
मामला जो भी हो, लोगों के अधिकार और निर्वाचित सरकार को जल्द से जल्द स्थापित करना सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए.
बड़ा हुआ सदन
> विधानसभा में कुल संख्या 83 से बढ़कर 90 (जम्मू में 37 से बढ़कर 43, कश्मीर में 46 से 47)
> 'कश्मीरी प्रवासी' समुदाय से एक महिला सहित दो सदस्यों को विधानसभा के लिए नामांकित किया जाएगा, जो 'कश्मीरी प्रवासी' समुदाय 1 नवंबर, 1989 के बाद कश्मीर से चले गए और राहत आयुक्त के पास पंजीकृत हैं
> पीओके के 'विस्थापित लोगों' के लिए एक सीट आरक्षित की जाएगी
> इस तरह जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के बाद मनोनीत सदस्य पांच होंगे, जिसमें महिलाओं के लिए पहले से ही आरक्षित दो सीटें शामिल हैं
> उपराज्यपाल सदन के लिए मनोनयन करेंगे. चुनी हुई सरकार या मुख्यमंत्री से परामर्श का कोई प्रावधान नहीं
> मनोयन से सीटों की संख्या 95 और पीओके के लिए आरक्षित अतिरिक्त 24 सीटों के साथ विधानसभा में कुल सीटें 119 होंगी
- मोअज्जम मोहम्मद श्रीनगर से