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आंध्र प्रदेश : जातिगत गणना से क्या पिछड़ी जातियों को साध पाएंगे जगन मोहन रेड्डी?

जगन के इस कदम से वाइएसआरसीपी को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में पैठ बनाने में मदद मिल सकती है, जो परंपरा से विपक्षी तेलुगु देशम पार्टी के साथ जुड़ा रहा है

चलिए बताइए श्रीकाकुलम जिले के रामचंद्रपुरम गांव में पायलट सर्वे के दौरान
अपडेटेड 13 दिसंबर , 2023

राह बिहार ने दिखाई. इरादों का एलान किया और अमल करके दिखाया. 15 नवंबर को आंध्र प्रदेश ने भी राज्य में जाति सर्वेक्षण का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया, ताकि जातियों-उपजातियों की संख्या का पता लगाकर उसके अनुसार कल्याणकारी उपाय तैयार किए जाएं. बेशक, मकसद तो 2024 के आम चुनाव से पहले युवजन श्रमिक रायतू कांग्रेस पार्टी (वाइएसआरसीपी) के लिए समर्थन जुटाना भी है. मुख्यमंत्री वाइ.एस. जगन मोहन रेड्डी ने घोषणा की कि जनगणना "राज्य में पिछड़ी जातियों को ताकत देगी और सामाजिक न्याय को पक्का करेगी." असली सर्वेक्षण 9 दिसंबर को शुरू होगा और नतीजे जनवरी के अंत तक आएंगे.

वाइएसआरसीपी ने आंध्र प्रदेश में जमीनी स्तर पर प्रशासन के लिए जो विस्तृत ग्राम/वार्ड सचिवालय प्रणाली स्थापित की है, उससे जनगणना तेजी से हो जानी चाहिए. पायलट प्रोजेक्ट पांच जिला सचिवालयों—श्रीकाकुलम, डॉ. आंबेडकर कोनासीमा, एनटीआर, नेल्लोर और वाइएसआर में चल रहा है. प्रश्नों का मसौदा तैयार कर लिया गया है और ई-केवाइसी पंजीकरण के लिए चेहरे, आइरिस और अन्य ब्यौरे जुटाने के लिए सर्वेक्षणकर्ताओं के इंतजामात तैयार हैं. पिछड़ा वर्ग (बीसी) कल्याण मंत्री सी.एस. वेणुगोपाल कृष्ण कहते हैं, "नतीजे हमारे डेटा-आधारित प्रशासन का दायरा बढ़ाएंगे और राज्य के गरीबी उन्मूलन तथा अन्य योजनाओं के लक्ष्य पूरा करने में मदद करेंगे."

जगन के इस कदम से वाइएसआरसीपी को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में पैठ बनाने में भी मदद मिल सकती है, जो परंपरा से विपक्षी तेलुगु देशम पार्टी के साथ जुड़ा रहा है. वे 2019 में कुर्सी पर बैठने के बाद से जातिगत हितों का ध्यान रखने के प्रति सचेत रहे हैं. उनके पांच उप-मुख्यमंत्रियों में बी. मुत्याला नायडु ओबीसी हैं. दूसरे एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यक और कापू समूहों से हैं. उन्होंने 56 बीसी निगम भी शुरू किए हैं जिनमें आधे पद इन समुदायों की महिलाओं को दिए जाते हैं.

हालांकि जगन के आलोचक इन्हें महज दिखावटी करार देते हैं, क्योंकि निगमों के पास बहुत कम फंड है (कल्याणकारी योजनाओं में खर्च से राज्य वित्तीय संकट का शिकार है). लेकिन जगन को उम्मीद है कि जाति जनगणना से कुछ आलोचनाएं थम जाएंगी और ओबीसी सशक्तीकरण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता जाहिर होगी. ऑल इंडिया ओबीसी स्टूडेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष जी. किरण कुमार कहते हैं, "इस रणनीति की सफलता जनगणना नतीजों और उसके बाद आरक्षण नीतियों में होने वाले बदलावों पर निर्भर है. इससे राजनैतिक परिदृश्य बदल सकता है और स्थापित सत्ता तंत्र [कप्पू-कम्मा-रेड्डी] को चुनौती मिल सकती है." 

आंध्र प्रदेश में ओबीसी आबादी 50 फीसद से अधिक है, जिसमें 139 उप-जातियां हैं. इसके अलावा एससी और एसटी क्रमश: 19 फीसद और 5.6 फीसद हैं. मौजूदा आरक्षण व्यवस्था में ओबीसी पांच समूहों में वर्गीकृत हैं—ए (सात फीसद), बी (10 फीसद), सी (एक फीसद), डी (सात फीसद) और ई (चार फीसद). इन वर्गों में कुल ओबीसी आरक्षण 29 फीसद है. इसे मिलाकर एससी के लिए 15 फीसद, एसटी के लिए छह फीसद और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10 फीसद यानी आरक्षण कुल 60 फीसद है. राज्य में 729 जातियां सूचीबद्ध हैं.

नए आंकड़ों के आधार पर आरक्षण में फेरबदल यह तय करेगा कि नवरत्नालु (2019 के वाइएसआरसीपी चुनाव घोषणापत्र में सूचीबद्ध नौ कल्याणकारी योजनाएं) का कोई भी लक्षित व्यक्ति छूट न जाए. इसे मौजूदा नीतियों में संतुलन साधने और जरूरत के हिसाब से शिक्षा और रोजगार के लिए नई नीतियां तैयार करने में भी मदद करनी चाहिए. पहले ही नवरत्नालु के अनुरूप बीसी, एससी, एसटी, अल्पसंख्यक और ईडब्ल्यूएस परिवारों को 32 लाख घर दिए गए हैं.

जिन जातियों के पेशे खत्म हो गए हैं, उनके डेटा से सरकार को यह समझने में भी मदद मिलेगी कि वे अपनी आजीविका कैसे चलाते हैं और उन्हें बेहतर मदद कैसे की जा सकती है. हैदराबाद विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज में प्रोफेसर ई. वेंकटसु कहते हैं, "गणना से वाइएसआरसीपी को टीडीपी-जन सेना गठबंधन के पारंपरिक वोट में सेंध लगाने में मदद मिलेगी. इससे 'इंडिया' ब्लॉक के लिए भी दरवाजे खुलेंगे, जिसने जाति जनगणना को अपने वादों का अभिन्न अंग बना लिया है." 

हालांकि, जानकार चेताते हैं कि जाति जागरूकता बढ़ेगी और अपेक्षाएं नाजायज स्तर तक बढ़ जाएंगी तो लंबे समय में झटका लगेगा. इतिहासकार डी. सुब्रह्मण्यम रेड्डी सावधान करते हैं, "जगन की कई 'मुफ्त' कल्याणकारी योजनाओं के कारण खजाने पर संकट है. जनगणना के आधार पर अधिक अनुदान दिए जाते हैं, तो सिंचाई और उच्च शिक्षा जैसे क्षेत्रों में खर्च से धन की कमी हो जाएगी." दूसरे लोग जाति गणना को 'राजनैतिक जुमलेबाजी' कहकर खारिज कर देते हैं. पर इससे इनकार नहीं कि यह राजनैतिक दलों के लिए उपयोगी है.

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