
राजनीति प्याज की तरह हो सकती है. परत के भीतर परत. बाल्टी भर आंसू. राजस्थान में हर कोई किसी न किसी वजह से मंच पर सुबकियां भर रहा है. आंसू बहाने वालों की सूची में नए नाम हैं रवि नैयर, जयपुर के राजा पार्क में रोशन ढाबे के मालिक. दशकों से लजीज गैर-शाकाहारी व्यंजनों के लिए मशहूर यह ढाबा अचानक वह सब परोसना बंद करके एकदम सात्विक हो गया. नैयर की नजर भाजपा के टिकट पर जो थी. उन्हें तपस्या का फल भी मिला - आदर्श नगर सीट. बस फिर क्या था, वे पूरे मन से इस भूमिका में उतर पड़े. दो गायें और एक बछड़ा मरणोपरांत दृश्य पर नमूदार हुए. नैयर ने बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके खूब रोना-धोना मचाया और अपने विरोधी मौजूदा कांग्रेस विधायक रफीक खान पर इरादतन गोहत्या का आरोप मढ़ दिया.
आंसू बहाते हुए उन्होंने नाटकीय अंदाज में पूछा, "इसके बजाए मुझे गोली क्यों नहीं मार दी?" खान ने इसे घटिया स्टंट कहकर खारिज करते हुए खुद को असल गौरक्षक बताया. कहा कि किस तरह उन्होंने नगरपालिका के दस्ते से गायों को छुड़ाया था. इस रण में मंत्री प्रताप सिंह खचरियावास भी कूद पड़े. उन्होंने भाजपा पर पुरानी ड्रामेबाजी करने का आरोप लगाते हुए हिंदुओं को मवेशी और मंदिर को वोटिंग के दिन तक रोज रात ताले में बंद रखने की सलाह दी.
उधर, कांग्रेस की अर्चना शर्मा ने हजारों अश्रुओं के साथ मालवीय नगर के अपने मतदाताओं को याद दिलाया कि किस तरह वे दो बार चुनाव हारीं. पिछली बार 2,000 वोट से, और हो सकता है, यह उनकी जिंदगी का आखिरी...(आगे के शब्द आंसुओं में डूब गए). उनकी पार्टी के साथी सांगानेर के पुष्पेंद्र भारद्वाज ने सिसकियां भरते हुए बताया कि किस तरह राजनीति के चलते उन्हें कई दिन सात साल की बेटी से दूर रहना पड़ता है. भाजपा की प्रियंका चौधरी (बाड़मेर) और कांग्रेस के भरोसी लाल जाटव (हिंडन) व खिराड़ी लाल बैरवा (बसेरी) टिकट न मिलने पर खुलेआम जार-जार रोए. इधर, मौजूदा निर्दलीय विधायक और महुआ से कांग्रेस का टिकट पाने वाले ओम प्रकाश हुडला का अलग ही दर्जा है. उनकी तकलीफ? ईडी का छापा.
गुलाबी की गुदगुदी

गाड़ी चलाने के रसिक ज्यादातर लोग, जो कारों को जिंदगी में कमतर मुकाम से ऊंचे मुकाम तक जाने का साधन मानते हैं. वे मोटे पहियों और ऊबड़खाबड़ रास्ते नापने वाली रौबदार गाड़ियों या चमकीली सेडान के पीछे जाते हैं. मगर तेलंगाना में ऊपर उठने की तलब बीआरएस के उम्मीदवारों को पुराने जमाने की सजीली, जानी-पहचानी, गोल-मटोल एंबेसडर कार के पीछे जाने को मजबूर करती है. कुछ किया भी नहीं जा सकता. यह पार्टी के चुनाव चिह्न की हमशक्ल जो है. मगर कभी देशव्यापी रहा यह 'पहियों पर ड्राइंग रूम' कार का जुगाड़ हो कहां से? इसके लिए ए. इंद्रकरण रेड्डी (निर्मल) और कोवा लक्ष्मी (आसिफाबाद) सरीखे साधन-संपन्न उम्मीदवार इसे महाराष्ट्र से आयात कर रहे हैं. सजावट के लिए वे पुरानी खटारा गाड़ी को पार्टी के रंग—उजले गुलाबी—से पुतवा लेते हैं. उम्मीदवार और बेशक केसीआर की तस्वीर भी उस पर छपी हो, तो सोने पर सुहागा.
जाट बनाम जाटनी
बात जाटों की हो तो पितृसत्ता आज भी हुक्के की नली से निकलती है. कांग्रेस की मौजूदा विधायक और ओसियां से उम्मीदवार 39 वर्षीया दिव्या मदेरणा को यह राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के 51 वर्षीय संस्थापक और सांसद हनुमान बेनीवाल से मिलती रही है. हाल में उन्होंने बड़े-बुजुर्ग के अंदाज में सपाट ढंग से उनसे पूछा कि वे शादी क्यों नहीं करतीं, और कहा कि केवल यही उन्हें शांत कर पाएगा. समुदाय की खातिर उन्होंने उनकी शादी करवाने का वादा भी किया. तकलीफ बढ़ाने वाली बात क्या थी? उनके दिवंगत पिता और पूर्व मंत्री महिपाल मदेरणा की कुख्यात सीडी की तरफ इशारा किया गया, जिन्हें भंवरी देवी हत्याकांड में दशक भर जेल में बिताना पड़ा था. दिव्या कोई बहुत शर्मीली-संकोची तो हैं नहीं, जो करारा जवाब नहीं देतीं. तिस पर भी बेनीवाल ने उनके खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारा.
राजा बेटे

उन्हें पांडव कहें? शायद नहीं... पर पूर्व मुख्यमंत्रियों के पांच बेटे मध्य प्रदेश में मैदान में हैं. पांचों की एक दूसरे से दिलचस्प कड़ियां जुड़ी हैं, राजनीतिक भी और निजी भी. अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह की शादी दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह की फर्स्ट कजिन से हुई है. अजय और जय दोनों कांग्रेस उम्मीदवार हैं. '70 के दशक में मुख्यमंत्री रहे वीरेंद्र कुमार सकलेचा के वंशज ओम प्रकाश सकलेचा भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. ध्रुव नारायण सिंह, जो ज्यादा गहरे सीपिया रंग में रंगे और कांग्रेस के प्रवासी गोविंद नारायण सिंह के बेटे हैं, जिन्हें '60 के दशक में गठबंधन सरकार का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला था, तब जनसंघ से जुड़े सकलेचा उनके उपमुख्यमंत्री थे. पूर्व विधायक और मंत्री दीपक जोशी, जिनकी भगवा वंशावली भी ईस्टमैनकलर युग के पिता कैलाश जोशी तक जाती है, इस बार कांग्रेसी घोड़े पर सवार हैं. इनमें सुरेंद्र पटवा का नाम तो शुमार ही नहीं, जो अपने संततिहीन चाचा सुंदरलाल पटवा के 'दत्तक पुत्र' हैं और पुराने अखाड़े भोजपुर से खम ठोक रहे हैं.