रायपुर में सिविल लाइंस स्थित आवास पर, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अपने दोपहर के भोजन की प्रतीक्षा में बड़ी डाइनिंग टेबल पर सामने की कुर्सी पर बैठे हैं. 62 वर्षीय बघेल के साथ उनके शीर्ष सलाहकार—विनोद वर्मा, राजेश तिवारी और एक आगंतुक कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला हैं. कुछ मिनटों बाद टीम बघेल बाटी, सफेद मक्खन, चटनी जैसे स्थानीय छत्तीसगढ़ी व्यंजनों और फलों का जायका लेते हुए चुनाव प्रचार के आखिरी चार दिनों की महत्वपूर्ण योजनाओं पर चर्चा शुरू करती है. कुल 90 में से शेष 70 सीटों के लिए दूसरे चरण का मतदान 17 नवंबर को होना है.
बघेल कहते हैं, "मेरे पूरे जीवन में, मेरा नाश्ता वही रहा है जो मैं आज कर रहा हूं. यह चुनाव का समय है और मेरा कार्यक्रम बहुत व्यस्त हो गया है. लेकिन अपनी युवावस्था में मैं नहाने के लिए स्थानीय झील पर जाता था. घर लौटकर अपनी मां का परोसा नाश्ता करता, फिर सीधे खेतों में चला जाता था, और शाम को ही लौटता था. कुछ भी नहीं बदला है." छत्तीसगढ़ी जीवन शैली बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस के चुनावी अभियान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जिस पर पार्टी ने भाजपा के हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला करने के लिए भरोसा जताया है.
लेकिन उनके और उनके सहयोगियों के खिलाफ कोयला परिवहन, शराब और महादेव ऐप से जुड़े भ्रष्टाचार के आरोपों का क्या? "मुझे लगभग उनकी आदत हो गई है. ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) जो भाजपा के लिए काम करता है, पिछले तीन वर्षों से इन्हीं सब कामों में व्यस्त रहा है." बघेल की उप सचिव सौम्या चौरसिया और आईएएस अधिकारी रानू साहू और समीर विश्नोई जेल में हैं. इस महीने की शुरुआत में ईडी ने दावा किया था कि रायपुर में बरामद नकदी किसी 'बघेलजी' के लिए भेजी गई थी. एक वीडियो भी खूब वायरल हो रहा है जिसमें एक व्यक्ति खुद को शुभम सोनी बताता है और महादेव ऐप का असली मालिक होने का दावा कर रहा है. फिलहाल ईडी सट्टेबाजी रैकेट में उसकी संलिप्तता की जांच कर रहा है. सोनी का आरोप है कि उसे दुबई ले जाया गया और फिर उसके कारोबार पर बघेल तथा उनके लोगों ने कब्जा कर लिया. बघेल के सलाहकार वर्मा ने भाजपा प्रवक्ताओं को कानूनी नोटिस जारी किया है जिन्होंने यह कहना शुरू कर दिया था कि वीडियो में जिस व्यक्ति का जिक्र है, वह कोई और नहीं, सीएम बघेल ही हैं. क्या ईडी उन्हें भी गिरफ्तार करेगा? बघेल कहते हैं, "वे कुछ भी कर सकते हैं. वे संविधान के दायरे से परे जाकर काम करते हैं."
कांग्रेस 2018 में जब सत्ता में आई, उसकी तुलना अगर 2023 से करें तो एक चीज की कमी साफ दिख जाती है. बघेल के पक्के साथी रहे डिप्टी सीएम टी.एस. सिंहदेव, गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू और स्पीकर चरणदास महंत के बीच पुराना मेलभाव नदारद है. क्या वे इस समय अकेला महसूस करते हैं? चर्चा है कि गुटबाजी के कारण टिकट बांटने में कई जगह बड़े समझौते करने पड़े, क्या चुनाव के नतीजों पर इसका असर होगा? कांग्रेस नेताओं को लगता है कि अगर पार्टी जीतती है तो पार्टी नेतृत्व सीएम के नाम पर पुनर्विचार कर सकता है. ऐसे परिदृश्य में सीएम की अपनी दावेदारी मजबूती से पेश करने के लिए पर्याप्त संख्या में वफादार विधायकों की जरूरत होगी.
सीएम कहते हैं, "कोई भी पार्टी यह दावा नहीं कर सकती कि टिकट वितरण 100 प्रतिशत त्रुटिहीन है. लेकिन मुझे लगता है कि हमने काफी हद तक सबसे योग्य उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं. चुनाव में हम सब साथ मिलकर काम कर रहे हैं." अगर चुनाव का अंत बेनतीजा रहता है जैसा कि 2003, 2008 और 2013 में रहा, तो क्या यह सुनिश्चित करना बेहतर नहीं होगा कि कांग्रेस का वोट विभाजित न हो? क्या 2018 में सात फीसद वोट लेने वाली जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जेसीसी) का कांग्रेस में विलय का प्रस्ताव था? बघेल कहते हैं, "कोटा से जेसीसी विधायक और दिवंगत अजीत जोगी की पत्नी डॉ. रेनू जोगी एक सम्मानित महिला हैं. मैंने उनसे कहा कि कांग्रेस में आपका स्वागत है लेकिन आपके बेटे अमित का नहीं. उन्होंने बेटे के बिना शामिल होने से इनकार कर दिया इसलिए मामला वहीं खत्म हो गया." जेसीसी ने कई सीटों पर कांग्रेस के बागियों को मैदान में उतारा है.
अपने निर्वाचन क्षेत्र पाटन में खुद बघेल को दुर्ग के सांसद और रिश्ते में उनके भतीजे विजय बघेल से चुनौती मिल रही है लेकिन सीएम का कहना है कि वहां कोई टक्कर ही नहीं है. वे कहते हैं, "रिश्ते में हम उनके बाप लगते हैं." संयोग से, विजय भाजपा के एकमात्र नेता हैं जिन्होंने 2008 में पाटन में बघेल को हराया था. गौर तलब है कि बघेल 1993 से लगातार जीतते आ रहे थे. बघेल कहते हैं, "पाटन में मेरा कोई कार्यालय या कैंपेन मैनेजर नहीं है. कांग्रेस के सभी कार्यकर्ता मेरे कैंपेन मैनेजर हैं. प्रचार के लिए कोई बैनर या पोस्टर नहीं लगाए गए हैं, केवल पर्चे बांटे जा रहे हैं." हालांकि जेसीसी प्रमुख अमित जोगी भी मैदान में उतर गए हैं.
राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस ओबीसी राजनीति को लेकर बहुत मुखर हो रही है. क्या बघेल को लगता है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का ओबीसी चेहरा होने के नाते उन्हें भी इससे मदद मिलेगी? वे कहते हैं, "हमने जातीय जनगणना की घोषणा की है और पहली मांग बस्तर क्षेत्र से आई है." बस्तर के ओबीसी अपनी राजनैतिक ताकत का इस्तेमाल करके जातिगत गणना की मांग कर रहे हैं. वे पीईएसए या पेसा नियमों की अधिसूचना का भी विरोध कर रहे थे क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे ग्रामसभा सशक्त होगी जिसका फायदा आदिवासियों को मिलेगा.
भाजपा का दावा है कि राज्य में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह इस मुद्दे को हर रैली में उठा रहे हैं. हालांकि भाजपा ने भी पिछले पांच साल में छत्तीसगढ़ में अपनी खोई जमीन वापस पाने के सारे अवसर गंवाए हैं. बघेल कांग्रेस के मुख्य चुनावी मुद्दे के विषय में कहते हैं, "स्थानीय भाजपा नेता मुश्किल से प्रचार कर रहे हैं. पार्टी के पास कोई सीएम चेहरा भी नहीं है. हम एलपीजी सिलेंडरों पर सब्सिडी, भूमिहीन मजदूरों को नकद हस्तांतरण, किसानों के लिए धान की ऊंची कीमतें, केजी से पीजी तक मुफ्त शिक्षा, मुफ्त बिजली जैसी पेशकश के साथ जनता को महंगाई का मुकाबला करने में सक्षम बना रहे हैं." इन 'रेवड़ियों' के कारण खजाने पर पड़ने वाले प्रभाव को छत्तीसगढ़ किस प्रकार संभालेगा?" जवाब में बघेल कहते हैं, "हमने योजनाओं के लिए धन के प्रबंध को लेकर आश्वस्त होने के बाद ही घोषणाएं की हैं."
सीएम के औपनिवेशिक दौर के बंगले— जो पहले रायपुर के जिला मजिस्ट्रेट का निवास था—के स्थान पर नया रायपुर में एक नया आवास बनाया जा रहा है. क्या बघेल को उस नए मुख्यमंत्री आवास में रहने का मौका मिलेगा जो वे बनवा रहे हैं? इसका उत्तर 3 दिसंबर को ही पता चलेगा.

