अगर सब कुछ योजना के मुताबिक हुआ तो दुनिया साबरमती रिवफ्रंट पर सैर करने आएगी. भारत 2026 के राष्ट्रमंडल खेलों के लिए दावेदारी कर सकता है क्योंकि ऑस्ट्रेलियाई राज्य विक्टोरिया इस साल के शुरू में मेजबानी से हट गया है. अहमदाबाद के सरदार वल्लभभाई पटेल स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स के पहले चरण की समाप्ति से ठीक पहले शुरू होने वाला रिवरफ्रंट प्रोजेक्ट का दूसरा चरण तब तक तैयार हो जाएगा. यह 236 एकड़ का एक दूरदर्शी निर्माण कोई मामूली नहीं होगा, 4,600 करोड़ रु. की लागत वाला निर्माण भारत की 2036 के ओलंपिक खेलों की मेजबानी का शो-पीस भी होगा. यह एक नीले रिबन की तरह दिखने वाला विस्तारित रिवरफ्रंट होगा.
स्पोर्ट्स एन्क्लेव से शुरू करके 5.5 किलोमीटर तक दोनों तरफ के तटों को विकसित करने से जुड़े रिवरफ्रंट परियोजना के दूसरे चरण को 2020 में 850 करोड़ रुपए के शुरुआती बजट के साथ मंजूरी दी गई थी और इसे पर्यावरण मंजूरी भी मिल चुकी है. इस क्रम में व्यापक सड़क नेटवर्क के अलावा सैरगाह, पार्क, फूड प्लाजा, एम्फीथिएटर और मनोरंजन के अन्य साधन विकसित किए जाने हैं. इसे पूरा करने में अनेक बाधाएं हैं और बहुत कम समय इनमें से एक है.
इस सदी की शुरुआत के आसपास अहमदाबाद को उसकी नदी के साथ फिर जोड़ने की मंशा के साथ आकार लेने वाली रिवरफ्रंट परियोजना के पहले चरण में शहर के बीच से गुजरने वाले 11.5 किलोमीटर के हिस्से को विकसित किया गया जिसका उद्घाटन 2012 में हुआ. इसे बढ़ाकर 26.65 किलोमीटर किया जाना है, जिससे यह अगले 15 वर्षों में कई चरणों में सीधे तौर पर राज्य की राजधानी गांधीनगर से जुड़ जाएगा. ये जुड़वां शहर जीवंत महानगर के तौर पर उभर रहे हैं, जिन्हें अंतत: एक प्रशासनिक प्राधिकरण के जरिए प्रशासित किया जा सकता है.
तीसरा चरण व्यवहार्यता आंकने से पहले के अध्ययन के दौर में है, जिसमें योजना का विस्तार चार किलोमीटर उत्तर में नर्मदा मुख्य नहर तक होगा जो कि फिनटेक हब के रूप में गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक-सिटी (गिफ्ट सिटी) से लगे पूर्वी तट से ठीक पहले होगा. राज्य का सिंचाई विभाग गिफ्ट सिटी के साथ चार किलोमीटर का एक और हिस्सा विकसित कर रहा है, जिसके लिए चार गांवों में भूमि अधिग्रहण किया गया है. रिवरफ्रंट विस्तार का आखिरी छोर गांधीनगर के बाहरी इलाके में स्थित शाहपुर गांव होगा.
साबरमती रिवरफ्रंट डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एसआरएफडीसीएल) के अध्यक्ष केशव वर्मा कहते हैं, "हम प्रतिभाशाली और रचनात्मक लोगों को आकृष्ट करने के लिहाज से एक हरा-भरा, स्वास्थ्यकर, जीवंत और सुनियोजित शहरी महानगर बना रहे हैं." स्पेशल पर्पज व्हीकल यानी खास प्रायोजन के साथ 1997 में गठित इस कॉर्पोरेशन का काम रिवरफ्रंट विकास की योजना बनाना और उसकी निगरानी करना है. इसके अधिकारियों के मुताबिक, विस्तार से 135 हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि विकसित होगी, जो यहां कम से कम 10 किलोमीटर के दायरे में रहने वाले लोगों के लिए नदी क्षेत्र को 'एक आरामगाह और मनोरंजन केंद्र' में तब्दील कर देगी.
लेकिन पहले चरण में जिस तरह काम हुआ उसके मद्देनजर दृष्टिकोण और असलियत में काफी अंतर दिख सकता है. उस समय खाली बची 204 हेक्टेयर भूमि को वाणिज्यिक और आवासीय विकास के लिए रियल्टर्स को नीलाम किया जाना था लेकिन एसआरएफडीसीएल को ज्यादा खरीदार नहीं मिल पाए. अब, यह कॉर्पोरेशन साबरमती रिवरफ्रंट भूमि निपटान नीति 2023 लेकर आया है, जिसमें आवासीय अथवा वाणिज्यिक विकास के बजाए खुली जगहें तैयार करने और सार्वजनिक सुविधाओं और मनोरंजन केंद्रों के विकास पर ज्यादा फोकस किया जा रहा है.
वैसे, कहा जा रहा है कि मनोरंजन के लिए विकसित केंद्र लोगों में कोई खास रुचि जगाने में नाकाम रहे हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव से पूर्व मोदी ने बड़ी धूमधाम के साथ जिस सीप्लेन सेवा का उद्घाटन किया था, वह 2021 में बंद हो चुकी है. 2020 में तैयार एक स्पोर्ट्स पार्क के तीन साल तक निर्जन पड़े रहने के बाद हाल में अदाणी समूह की एक कंपनी को सौंप दिया गया है. इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में स्थानीय लोग और पर्यटक पहुंचते हैं जो आराम से छुट्टियां बिताने या फिर नौकायन और कयाकिंग जैसी गतिविधियों का लुत्फ उठाने के लिए खुली जगहें तलाशते हैं, लेकिन यहां जीवंतता से भरे कैफे और सांस्कृतिक केंद्रों का नितांत अभाव है, जबकि नदी तटों पर इनकी खास मांग होती है.
रही बात रियल्टर्स के रुचि न दिखाने की तो उनका एक तर्क यह है कि वाणिज्यिक जिला पश्चिम की ओर बढ़ गया है और सरकार ऐसे क्षेत्र में जमीन ऊंची कीमतों पर दे रही है जो अब मुख्य शहर के बहुत करीब नहीं हैं. वैसे, एसआरएफडीसीएल अधिकारियों का दावा है कि रियल्टर्स के उत्साह में कोई कमी नहीं है, और संशोधित नीति रिवरफ्रंट परियोजना में जान फूंक देगी. हालांकि, यह रहस्य ही बना हुआ है कि विकास के लिए कई बार जारी किए गए टेंडर वापस क्यों लिए गए.
भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद के शहरी नियोजन विशेषज्ञ प्रो. नवदीप माथुर भी परियोजना से प्रभावित लोगों के पुनर्वास और बाढ़ की स्थिति में होने वाले नुक्सान को लेकर चिंता जाहिर करते हैं. वे कहते हैं, ''हजारों लोगों की आजीविका चली गई. पुनर्वास के लिए बनी कॉलोनियों में स्कूलों और स्वास्थ्य केंद्रों जैसी बुनियादी सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं हैं. उम्मीद है कि आगे ऐसा नहीं होगा.'' एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, अकेले दूसरे चरण में ही 'सैकड़ों परिवारों' के पुनर्वास की जरूरत पड़ेगी, जबकि बाकी के चरणों के लिए तो अभी सर्वेक्षण ही नहीं हुआ है.
बहरहाल, परियोजना में एक सबसे बड़ी चुनौती खुद यह नदी भी है. साबरमती बारामासी नदी नहीं है. अभी, पानी को कराई में नर्मदा मुख्य नहर से नदी की तरफ मोड़ा जाता है जबकि रिवरफ्रंट के दक्षिणी छोर पर स्थित वासना बैराज इसे शहर के दायरे तक सीमित रखता है. लेकिन एक बार रिवरफ्रंट के विस्तारित हो जाने पर नहर के उसी निकास का इस्तेमाल मोटेरा के पास एक बैराज बनाकर जलधारा ऊपर की तरफ मोड़ने के लिए किया जाएगा. वहीं, उत्तर में मेहसाणा के धरोई बांध से भी पानी की आपूर्ति की जाएगी.
एकमात्र चिंता बस यही नहीं है. गैर-शोधित औद्योगिक कचरा और घरेलू सीवेज इसमें बहाए जाने से साबरमती को प्रदूषण की गंभीर समस्या भी झेलनी पड़ रही है. अहमदाबाद में औद्योगिक समूहों से निकलने वाले अपशिष्ट को सीधे खंभात की खाड़ी में गिराने के लिए 210 किमी लंबी समुद्री जलधारा पर काम चल रहा है. लेकिन इसके अमल में आने में कम से कम एक दशक लगेगा.
आगे के अड़ंगे
- साबरमती रिवरफ्रंट को 11.5 किलोमीटर से बढ़ाकर 26 किमी किया जाएगा; तब यह अहमदाबाद से गांधीनगर तक पहुंच जाएगा
- इसमें सबसे बड़ी चुनौती नदी खुद है. साबरमती बारहमासी नदी नहीं है और यह भयंकर प्रदूषण की शिकार है
- नैसर्गिक डूब क्षेत्र को होने वाला नुक्सान भी चिंता की बड़ी वजह है.
- परियोजना से विस्थापित होने वाले लोगों के पुनर्वास का विधिवत कार्यक्रम होना चाहिए
- यह सब काम 2026 की काफी नजदीकी डेडलाइन को ध्यान में रखकर होना चाहिए जिसमें पहले विस्तारित प्रोजेक्ट के पहले 5.5 किलोमीटर का हिस्सा तैयार होना है.