ऐसा इलाका जो 2,500 से ज्यादा साल से लगातार आबाद होने पर गर्व करता रहा हो. सात अलग-अलग राजवंशों के अधीन रहने के बाद आज तक जिसका अस्तित्व कायम हो. उस छोटे-से, धूल भरे कस्बे वडनगर के बारे में कुछ साल पहले तक ज्यादा लोग नहीं जानते थे. गुजरात के मेहसाणा जिले के बमुश्किल चार वर्ग किलोमीटर में बसा वडनगर तब तक अनजान सा था जब तक कि इसके एक बाशिंदे —जी हां, नरेंद्र दामोदरदास मोदी—ने भारत के प्रधानमंत्री की ऊंची कुर्सी नहीं संभाली और अपने गृहनगर को शोहरत और पहचान के नए मुकाम पर स्थापित नहीं कर दिया.
यही वजह है कि डिस्कवरी चैनल ने वडनगर पर एक डॉक्यूमेंटरी दिखाई. यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों की अंतरिम भारतीय सूची में इसे शामिल किया गया. कवि कुमार विश्वास के मुशायरे सहित इसने कई कवि सम्मेलनों की मेजबानी की और 2,500 से ज्यादा विशेषज्ञों की हिस्सेदारी के साथ अपनी पुरातात्विक विरासत और संस्कृति पर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया.केंद्र और राज्य सरकारें अलबत्ता इतने पर ही नहीं रुकीं. देश भर के 750 से ज्यादा जिलों के दो-दो छात्र कुमार शाला नंबर 1 जाएंगे, जहां से मोदी ने मिडिल स्कूल की पढ़ाई पूरी की थी.
महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ ने 1888 में यह स्कूल स्थापित किया था. इस स्कूल का हाल ही में कायापलट किया गया और कक्षाओं को ठीक वैसा ही रंग-रूप दिया गया जैसी वे पांच दशक पहले दिखती थीं जब प्रधानमंत्री यहां पढ़ते थे. प्रशिक्षण केंद्र, छात्रों और शिक्षकों के आवासों, सार्वजनिक कैफे और सामुदायिक हरी-भरी जगहों को अंतिम निखार दिया जा रहा है. यह स्कूल अब 'प्रेरणा’ नामक प्रेरक संस्थान होगा. छात्रों को यहां 'ओरिएंटेशन कार्यक्रम’ के लिए लाया जाएगा जिसमें वे योग कक्षाओं में शामिल होंगे, बाहरी जगहों के भ्रमण पर जाएंगे, भारतीय संस्कृति व विविधता पर आयोजित सत्रों में हिस्सा लेंगे और चुनिंदा फिल्में देखेंगे.
सदियों पुराने प्राकृतिक शर्मिष्ठा तालाब के किनारे वडनगर की 'कला दीर्घा’ भी बनाई जा रही है. इसमें 10वीं से 12वीं शताब्दी के दौरान चालुक्य (सोलंकी) काल में हुए निर्माण को भी दिखाया जाएगा. वडनगर रेलवे स्टेशन पर चाय परोसते युवा मोदी की लघु प्रतिकृति दीर्घा का मुख्य आकर्षण है, जिसकी पृष्ठभूमि में लकड़ी की केतली की प्रतिकृति है (मूल केतली दिल्ली के रेल संग्रहालय में रखी है).
वडनगर की पूर्व स्कूल शिक्षिका और पिछले साल सरकार की तरफ से टूरिस्ट गाइड का प्रशिक्षण पाने वाले 20 स्थानीय लोगों में शामिल मनीषा दावा करती हैं कि रोज करीब 50 दर्शक कला दीर्घा देखने आते हैं और सप्ताहांत में उनकी संख्या सौ तक पहुंच जाती है. वे कहती हैं, ''ज्यादातर सैलानी आसपास के गांवों से और कुछ मेहसाणा व अहमदाबाद से आते हैं.’’
वडनगर की महिमा अलबत्ता इसके सबसे मशहूर बाशिंदे से कहीं ज्यादा पुरानी है. माना जाता है कि इस कस्बे का जिक्र पुराणों और चीनी बौद्ध यात्री ह्वेन सांग के 7वीं सदी के यात्रा वृत्तांतों में भी मिलता है. विशेषज्ञों का कहना है कि वडनगर का बड़ा हिस्सा खंडहरों के टीले पर बनाया गया, जो संभवत: इस पर हुकूमत करने वाले राजवंशीय काल के अवशेष थे.
हालांकि भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (एएसआइ) ने इस जगह का गंभीर अध्ययन मोदी के गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के कुछ साल बाद 2006 में शुरू किया. अभी तक कस्बे में 11 स्थल और स्मारक एएसआइ संरक्षित हैं और अधिकारियों का कहना है कि इसका इतिहास इतना समृद्ध है कि पूरे इलाके को ही अब प्राचीन स्थल माना जा रहा है.
बीते सालों में शोधकर्ताओं को यहां दो बौद्ध मठ, दूसरी या तीसरी सदी जितनी पुरानी बोधिसत्व की मूर्ति, जातक कथाओं के दृश्यों से सजी टेराकोटा की कलाकृतियां और ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण मुहरें मिली हैं. गुजरात राज्य पुरातत्व विभाग के डायरेक्टर वाइ.एस. रावत कहते हैं, ''हमें बौद्ध धर्म से जुड़ी कई दिलचस्प कहानियां मिली हैं. वडनगर कभी सत्तापीठ नहीं रहा, पर सॉफ्ट पावर, संस्कृति और ज्ञान का केंद्र रहा है. बौद्ध, ब्राह्मण और जैन ज्ञान प्रणालियां (उनसे जुड़ी कलाकृतियां) यहां मिल सकती हैं.’’
राज्य सरकार ने 2022 में कस्बे के सात से ज्यादा ऐतिहासिक स्थल (कुमार शाला नंबर 1 भी उनमें थी) अपने हाथ में लिए. केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने इस जगह के सदियों से लगातार कायम रहने की वजहों, इसकी सिंचाई प्रणालियों व जलाशयों के जाल और बुनियादी ढांचे के अध्ययन के लिए कई शोध परियोजनाएं शुरू कीं.
यह कस्बा परकोटे की एक ऊंची दीवार के भीतर बढ़ता गया, जो माना जाता है कि मौर्य काल में बनी थी. इस दीवार के कुछ हिस्से अब एएसआइ के विस्तृत अध्ययन स्थल हैं. इसके नजदीक चार मंजिला अनुभव संग्रहालय बन रहा है. वडनगर के प्रसिद्ध कीर्ति तोरण मुख्य आकर्षणों में से एक बने हुए हैं, जो लाल-पीले रेत के पत्थरों के 40 फुट ऊंचे दो स्तंभ हैं और माना जाता है कि 12वीं सदी में जीत का जश्न मनाने के लिए बनवाए गए थे.
इतने बेशकीमती अतीत को देखते हुए सरकार न केवल मौजूदा खंडहरों के संरक्षण पर बल्कि वडनगर की पर्यटन क्षमता को बढ़ाने के लिए सार्वजनिक जीर्णोद्धार पर भी ध्यान दे रही है. गुजरात के टूरिज्म सेक्रेटरी हरीत शुक्ला कहते हैं, ''वडनगर पीढ़ी-दर-पीढ़ी जिंदा रहा, यह अमर है.’’ ऐतिहासिक नांदीओल गेट और पिथोरी गेट, जो कुछ जन किंवदंतियों में महाभारत काल से जुड़े हैं, लेकिन ज्यादा विश्वसनीय रूप से 11वीं और 12वीं ईस्वी सदी के माने जा सकते हैं, बहाल कर दिए गए हैं.
हतकेश्वर व आदिनाथ मंदिरों का जीर्णाद्धार भी किया जा रहा है. वडनगर की जुड़वां बहनों ताना और रीरी की याद में दो एम्फीथिएटर वाला संगीत संग्रहालय बनाया गया है. किंवदंती यह है कि दोनों बहनों ने राग मल्हार गाकर बादशाह अकबर के दरबारी संगीतकार तानसेन की बीमारी से उबरने में मदद की थी. उनके सम्मान में बनाए गए मंदिर का जीर्णोद्धार किया जा चुका है और बीते दो साल में पांच ओपन-एयर एम्फीथिएटर बनाए गए हैं. दिलचस्प यह है कि वडनगर की कई परियोजनाओं में उसी गुलाबी परंपरागत सोमपुरा पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है जो अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर में देखे गए हैं.
500 करोड़ रुपए की पुनर्विकास परियोजना के तहत शहर को सुंदर और हरा-भरा बनाने के अलावा वडनगर के सड़क नेटवर्क, भूमिगत जलनिकास प्रणाली और जलापूर्ति को भी सुधारा जा रहा है. काम 2027 तक पूरा होने की उम्मीद है. शर्मिष्ठा झील के इर्द-गिर्द खूबसूरत पैदलपथ बनाया जा रहा है और शहर के चारों ओर 10 झीलों को आपस में जोड़ा जा रहा है. नौका विहार और जल क्रीड़ाओं का साजो-सामान आ चुका है और झील के नए बने घाट पर रखा गया है.
कनेक्टिविटी भी प्राथमिकता है. शुक्ला कहते हैं, ''वडनगर उस बड़े परिपथ का भी हिस्सा है जो हम अंबाजी और मोढेरा के साथ धरोई को केंद्र में रखकर उत्तर गुजरात में विकसित कर रहे हैं.’’ 2017 में करीब आठ करोड़ रुपए से वडनगर रेलवे स्टेशन का कायाकल्प कर दिया गया और 2021 में नैरो गेज लाइन को ब्रॉड गेज में बदलकर वडनगर को दिल्ली से जोड़ने की योजना का ऐलान किया गया.
वडनगर से दक्षिण गुजरात के वलसाड के बीच चलने वाली इंटरसिटी ट्रेन को पिछले साल सुपरफास्ट एक्सप्रेस में तब्दील कर दिया गया. एक और एमईएमयू (मेनलाइन इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट) ट्रेन वरेठा (वडनगर से करीब 26 किमी दूर) और गांधीनगर के बीच चलती है. शहर में सैलानियों को इलेक्ट्रिक रिक्शों से जगह-जगह ले जाने के लिए एक तीसरा बस अड्डा जल्द बनाए जाने की उम्मीद है.
सरकार इन सारे उपायों और खासकर पर्यटन-केंद्रित विशेष आयोजनों के जरिए सैलानियों को लगातार लुभाने की उम्मीद कर रही है. पर्यटन अधिकारी और पुरातत्वविद प्रीतम मैती बताते हैं कि फिलहाल करीब 35,000 सैलानी हर महीने वडनगर आते हैं, पर मौजूदा परियोजनाओं के पूरा होने पर इसमे बढ़ोतरी होने की उम्मीद है. मैती कहते हैं, ''परियोजनाएं ज्यों-ज्यों बढ़ेंगी और पर्यटन असल में शुरू होगा, तो यह कस्बा यह सांस्कृतिक गतिविधियों से केंद्र होगा और हजारों नौकरियों का सृजन करेगा.’’
गहरी चुनौतियां
अलबत्ता यह अब भी साफ नहीं कि इन सारी गतिविधियों से वडनगर के बाशिंदों की किस्मत ठीक-ठीक कैसे बदलेगी. यहां के निवासियों में बड़ी तादाद खेती के कामों में लगी है और हुनरमंद नहीं है. यह तो बेशक कहा जा सकता है कि वडनगर के प्रसिद्ध हो जाने के अपने फायदे हैं. बीते पांच साल में कस्बे में कई शैक्षणिक संस्थाएं खुल गई हैं. इनमें 2021 में शुरू हुआ ताना रीरी परफॉर्मिंग आर्ट्स कॉलेज भी है.
स्वास्थ्य के मोर्चे पर भी सुधार आया है. कुछेक साल पहले तक बमुश्किल कुछ मरीजों को संभाल पाने वाला वडनगर का उप-जिला अस्पताल अब बड़ा चिकित्सा केंद्र है. पिछले साल चीफ सेक्रेटरी की अध्यक्षता में आठ बड़े आइएएस अफसरों से मिलकर बनी वडनगर हेरिटेज सोसाइटी को प्रेरणा परियोजना के लिए केंद्र के साथ काम करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है.
मगर इसकी तूफानी तरक्की ने गहरे सवाल भी खड़े कर दिए हैं. पिछले साल मार्च में यहां के कुछ बाशिंदों ने सरकार के उस फैसले के खिलाफ गुजरात हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया जिसमें उसने कुछ पुरातात्विक अवशेषों की हिफाजत के लिए बफर जोन बनाने के वास्ते उनकी जमीन का अधिग्रहण किया था. अदालत ने महाभारत में वॢणत जन हित में 'त्याग’ की भावना का हवाला देते हुए याचिका खारिज कर दी. सरकार ने बफर जोन बनाने के लिए कथित तौर पर सामाजिक प्रभाव आकलन नहीं किया था. वडनगर के मामलातदार रोहित अग्रहारा के अनुसार, ''करीब 30 परिवारों को नियमों के मुताबिक घर खाली करने के एवज में मुआवजा दिया गया है. इसके साथ ही शहर से बाहर कृषि भूमि के अधिग्रहण का काम भी चल रहा है.’’
दूसरी चुनौती उतनी असाध्य तो नहीं, पर इसके लिए अधिक व्यापक समाधान की जरूरत हो सकती है. यह है दूसरी जगह जा बसने का बुखार, जिसने उत्तर गुजरात को जकड़ रखा है. इसके चलते कई लोग बड़े शहरों का रुख कर रहे हैं या अमेरिकी तटों पर पहुंचने के लिए हताशा में खतरनाक सफर पर निकल पड़ते हैं. मेहसाणा और गांधीनगर जिले इस सनक के केंद्र में हैं.
इस कूच के सबूत के तौर पर बहुत-सी खाली पड़ी हवेलियों और सूनी गलियों की तरफ इशारा करते हुए सिविल इंजीनियर रुद्र पटेल कहते हैं, ''लोग बेहतर जिंदगी के लिए जा रहे हैं.’’ पटेल फिलहाल प्रेरणा स्कूल परियोजना में साइट इंजीनियर हैं और उन कई सारे स्थानीय लोगों में हैं जिन्हें इन दिनों चल रही संरक्षण या पुनर्विकास परियोजनाओं में काम मिल गया है. पटेल और उनके जैसे कई दूसरों के लिए अवसर की यह खिड़की कब तक खुली रहेगी, कोई भी अंदाजा लगा सकता है. हालांकि लोगों को उम्मीद है कि पर्यटन बढ़ने से पूरी तरह उलटे भले न, पर इस ज्वार के उतरने में मदद मिलेगी.
बहरहाल, वडनगर की हवा के चप्पे-चप्पे में आशावाद तारी है. दर्जी का काम करने वाले महेश मकवाना दोपहर के खाने के बाद हल्की-सी नींद से जागकर घर से बाहर आए हैं. कुछ दूर संग्रहालय के निर्माण स्थल पर क्रेन और करीब दर्जन भर इंजीनियरों की तरफ ताकते हुए वे उम्मीद जताते हुए कहते हैं, ''हमारी जिंदगी बदल रही है...पर्यटन से स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा.’’ लंबे समय से चली आ रही उपेक्षा के बाद अचानक मिला बहुत ज्यादा महत्व वडनगर के निवासियों के लिए शायद विरासत को चमकाने के प्रयासों से कहीं ज्यादा होगा. यहां के बाशिंदों को वाकई अपने भविष्य के प्रति आशावादी होना चाहिए. वडनगर के निवासियों को उम्मीद है कि यहां पर्यटन पर जोर देने से ज्यादा रोजगार सृजित होंगे, साथ ही शहर और ज्यादा उन्नति करेगा.