
बहुत कम होता है कि नोएडा पुलिस शामियाना लगाकर प्रेस कॉन्फ्रेंस करे. 1 जून, 2023 की तपती दोपहर में नोएडा के सेक्टर 20 थाने के भीतर पुलिस मीडिया ब्रीफिंग के लिए शामियाना और कुर्सियां लगकर तैयार थीं. मंच पर लंबी-सी टेबल पर दर्जनों कंप्यूटर, लैपटॉप, लाखों रुपए की नकदी और आधार-पैन कार्ड से भरे पारदर्शी प्लास्टिक के डिब्बे रखे हुए थे. पत्रकार किसी बड़े गिरोह के पकड़े जाने का अनुमान लगा रहे थे लेकिन गिरोह इतना बड़ा होगा, यह किसी ने नहीं सोचा था.
नोएडा की पुलिस आयुक्त लक्ष्मी सिंह और एडिशनल डीसीपी शक्ति मोहन अवस्थी ने जो कहानी बताई, उससे वहां मौजूद हर पत्रकार को एकबारगी खुद अपने पैन कार्ड, आधार कार्ड की सुरक्षा की चिंता सताने लगी. पुलिस अफसरों ने जीएसटी (गुड्स ऐंड सर्विस टैक्स या माल और सेवा कर) की धोखाधड़ी करने वाले देश के सबसे बड़े जीएसटी फ्रॉड गैंग का भंडाफोड़ किया था. यह आम लोगों के पैन कार्ड और दस्तावेज हासिल कर उनके नाम पर फर्म का जीएसटी रजिस्ट्रेशन कर सरकार को कथित तौर पर हजारों करोड़ रुपए का चूना लगा रहा था.
सचाई तो यह है कि जीएसटी लागू होने के बाद से ही इसमें फर्जीवाड़े शुरू हो गए थे. सरकार ने बजट सत्र में संसद को बताया कि 1 जुलाई, 2017 को जीएसटी लागू होने के बाद से फरवरी 2023 तक देशभर में 3 लाख करोड़ रुपए की जीएसटी चोरी हो चुकी है. विभिन्न राज्यों में गिरोह पकड़े जा चुके हैं. लेकिन इन सबमें सबसे बड़ा जीएसटी फ्रॉड नोएडा पुलिस ने दिल्ली से पकड़ा. यह गिरोह दो हिस्सों में सक्रिय था.
एक हिस्सा लोगों के दस्तावेजों से धोखाधड़ी करके जीएसटी रजिस्ट्रेशन करता और फर्म बनाता था. उसके बाद यह फर्म दूसरी टीम को बेच देता था. यह दूसरी टीम ही उस फर्जी फर्म से कागजी लेनदेन के जरिए सरकार को चूना लगाती थी (देखें: कैसे चुराए पैन-आधार). पुलिस को शुरुआती अनुमान से ही घोटाला 15,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का लगा. लक्ष्मी सिंह कहती हैं, ''यह गिरोह हर महीने अरबों रुपए का स्कैम करता था. जीएसटी के अधिकारियों को इसकी सूचना दी जा चुकी है. यह गैंग बहुत बड़ा है.’’
अब आइए इस गोरखधंधे को सिरे से जानें. दरअसल, यह पूरा मामला इसी साल मई में एक पत्रकार के साथ हुई इस तरह की धोखाधड़ी पर दर्ज एफआइआर की जांच से खुला. पत्रकार के पैन नंबर का इस्तेमाल कर दो कंपनियां बनाई गई थीं. मार्च में टैम इंटरप्राइजेज नाम से पंजाब के लुधियाना में और अप्रैल में महाराष्ट्र के सोलापुर में इसी नाम से एक और कंपनी का जीएसटी रजिस्ट्रेशन कराया गया. लुधियाना की कंपनी से बच्चों के कपड़े और सोलापुर की कंपनी से प्लास्टिक के आइटम और खिलौनों का कारोबार दिखाया गया. शिकायतकर्ता पत्रकार को इसकी खबर उनके सीए ने दी. इस पर उन्होंने पुलिस के अलावा जीएसटी विभाग को भी सूचित किया. बस, यहीं से शुरू हुआ पुलिस का काम.

नोएडा के एडिशनल डीसीपी अवस्थी की देखरेख में जांच टीम जुट गई इसके सिरे तलाशने. जीएसटी विभाग से रजिस्ट्रेशन की तकनीकी जानकारी हासिल की गई. फोन नंबर से लेकर रजिस्ट्रेशन में दर्ज पते पर टीम जा पहुंची. एक के बाद एक कड़ियां जुड़ती गईं और पुलिस ने रजिस्ट्रेशन करने वाले यासीन को दिल्ली में धर दबोचा. मुंबई का यह टैक्सी ड्राइवर बिजनेस रजिस्ट्रेशन सर्विस का भी काम करता था. इसी सिलसिले में वह गैंग के मुखिया, दिल्ली में पीतमपुरा के 48 साल के दीपक मोरजानी के संपर्क में आया था.
दीपक और उसकी बीवी विनीता इस गैंग को दिल्ली से ऑपरेट करते थे. मोरजानी दिल्ली के एक कॉर्पोरेट दफ्तर में काम करता था. शुरुआत में गैंग के कुल आठ लोग गिरफ्तार हुए. इनमें दीपक, विनीता और यासीन के अलावा इनमें शामिल थे आकाश, विशाल, राजीव, अतुल और अश्विनी. इनसे 24 कंप्यूटर, चार लैपटॉप, 118 फर्जी आधार कार्ड, 140 पैन कार्ड और 12 लाख रुपए से ज्यादा कैश बरामद हुआ. ध्यान रहे, यह गिरोह का पार्ट वन यानी पहला हिस्सा था.
दूसरी टीम में भी अनेक ठग हैं जिनमें से अब तक चार गिरफ्तार हुए हैं. दूसरी टीम के फरार आरोपियों में अरिजित गोयल, प्रदीप गोयल, अर्चित, मयूर उर्फ मणि नागपाल, चारु नागपाल, दीपक नागपाल वगैरह शामिल हैं. ये सभी दिल्ली के हैं. गिरोह के भंडाफोड़ के दो सप्ताह बाद पुलिस ने गहरी छानबीन में 18 और लोगों की निशानदेही की. अवस्थी बताते हैं, ''अरिजित और अर्चित के इस गिरोह का सरगना होने का अंदेशा है.’’
दिल्ली के विभिन्न इलाकों में इन जालसाजों ने दफ्तर बना रखे थे और गोरखधंधा वहीं से पूरे देश में चलता था. नोएडा पुलिस ने बताया कि जीएसटी अफसरों ने 2,645 करोड़ रु. का फर्जी आइटीसी फ्रीज किया है जो कि 15,300 करोड़ रु. की फर्जी इनवाइस के जरिए जीएसटी लेजर में दर्ज किया गया था. जांच के दौरान 1,900 से ज्यादा कंपनियों के 1,400 से ज्यादा बैंक खाते फ्रीज किए गए हैं और इनमें सात करोड़ रु. की रकम अभी जमा है. 3 जुलाई तक इस मामले में नोएडा पुलिस ने 18 लोगों को गिरफ्तार किया है.
पुलिस ने सभी बरामद डिवाइसेज की क्लोनिंग कर ली है ताकि डेटा सुरक्षित रहे. अवस्थी का मानना है कि मामले के तार हवाला से जुड़े हो सकते हैं. ''अब जीएसटी समेत पांच महकमे भी जांच में जुट गए हैं. ये हैं: आइबी, कॉर्पोरेट मंत्रालय के अधीन एसएफआइओ (सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस), वित्त मंत्रालय के मातहत एफआइयू (फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट) और आयकर विभाग. जालसाजों पर गैंगस्टर ऐक्ट लगाने पर विचार हो रहा है.’’
तो कैसे बनाते थे कंपनी?
जीएसटी रजिस्ट्रेशन के लिए पैन, आधार, फोटो और एड्रेस प्रूफ जरूरी होता है. इस मामले में शिकायतकर्ता पत्रकार के पैन का इस्तेमाल किया गया लेकिन तस्वीर बदल दी गई. आधार और एड्रेस प्रूफ किसी और का था. जांच में गैंग के कंप्यूटरों से सात लाख से ज्यादा पैन कार्ड का डेटा मिला. आरोपियों ने यह डेटा लोकल बिजनेस सर्विस मुहैया कराने वाली कंपनी जस्ट डायल के किसी संपर्क से खरीदा था.
इसके बाद गिरोह के लोग मुहल्लों के अशिक्षित, गरीब और नशेड़ी टाइप के लोगों को कुछ पैसों का लालच देते और उनके आधार कार्ड में उनके मोबाइल नंबर की जगह गिरोह में से किसी का नंबर डलवा देते थे. यह बदला हुआ नंबर फर्जी दस्तावेजों के आधार पर लिए सिम वाला होता था. वे इंटरनेट से रेंट एग्रीमेंट डाउनलोड करते थे और उसमें अपने हिसाब से नाम भरकर नोटराइज्ड करा लेते. आधार के लिए इन ठगों ने स्पेशल टीम बनाई थी और ये एक कॉमन नेम का आधार डेटा उठाते थे.

कागजात जुटाने के बाद वे जीएसटी की वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन करा लेते थे. चूंकि रजिस्ट्रेशन में नाम के सिर्फ पहले हिस्से का मिलान जरूरी होता है. ऐसे में ये जालसाज पैन कार्ड और आधार कार्ड में नाम का पहला हिस्सा मिलाकर प्रक्रिया शुरू कर देते थे. रजिस्ट्रेशन कराने तक का काम सरगना दीपक और उसकी बीवी विनीता वाली पहली टीम का होता था. ये लोग एक रजिस्ट्रेशन पर 10,000 रुपए खर्च करते थे. सारा तकनीकी काम यासीन करता था. पहली टीम को सिम कार्ड दूसरी टीम मुहैया कराती थी क्योंकि ट्रांजैक्शन के लिए मोबाइल जरूरी होता है. अब तक फर्जी जीएसटी रजिस्ट्रेशन के जरिए इस गैंग के 3,077 फर्जी फर्में बनाने की जानकारी सामने आई है.
बेच दी कंपनी, चुरा लिया आइटीसी
पहली टीम जीएसटी रजिस्ट्रेशन के बाद उस फर्म को दूसरी टीम को 80,000-90,000 रुपए में बेच देती थी. फिर इस फर्म के जरिए इनपुट टैक्स क्रेडिट (आइटीसी) के नाम पर सरकार को चूना लगाया जाता था. इनपुट टैक्स क्रेडिट क्या बला है? समझें इसे. फर्ज कीजिए कि आपने कोई प्रोडक्ट तैयार करने के लिए कच्चा माल खरीदा, जिस पर 18 फीसदी जीएसटी लगा. आपने वह चुका दिया. आपका प्रोडक्ट तैयार हो गया. अब मान लीजिए कि यह प्रोडक्ट 12 फीसदी जीएसटी वाली श्रेणी में आया. तो बीच का यही छह फीसदी आइटीसी हो गया.
यह आपके जीएसटी अकाउंट में आइटीसी के रूप में दिखेगा. आप चाहें तो इस आइटीसी को कैश करा लें या अगले टैक्स पेमेंट में इस्तेमाल कर लें. पकड़े गए गिरोह की दूसरी टीम फर्जी कंपनियों से बिना किसी कारोबार के फर्जी इनवॉइस यानी बिल बनाकर आइटीसी लेती थी. जीएसटी विभाग यह नहीं देखता कि दो लोगों के बीच सचमुच कोई खरीद-फरोख्त हुई भी है या नहीं. जाहिर है, इन फर्जी कंपनियों से कोई खरीद-फरोख्त होती नहीं थी, बस बिलों का आदान-प्रदान कर सरकार को चूना लगाया जा रहा था. मोटे तौर पर एक फर्जी फर्म से हर महीने 3 से 4 करोड़ रुपए की फर्जी इनवॉइस बनाकर आइटीसी रिफंड लिया जा रहा था.
इन जालसाजों ने जर्मनी में नौकरी कर रहे दिल्ली के इंजीनियर विवेक कुमार को भी निशाना बनाया. अपना खाता फ्रीज हो जाने पर विवेक ने नोएडा पुलिस से संपर्क किया. पुलिस ने उन्हें बताया कि उनके पैन कार्ड पर दो जीएसटी रजिस्ट्रेशन हुए हैं. इसी तरह डीएमआरसी के भी एक अधिकारी के नाम पर जीएसटी रजिस्ट्रेशन कर आइटीसी की हेराफेरी हुई. दोनों मामलों में खाता फ्रीज होने पर पीड़ितों को जालसाजी की जानकारी मिली.
मई 2022 में बिहार के मधुबनी में एक ग्रामीण महिला जालसाजों का शिकार हुई. उसे पता चला कि वह एक फर्म की मालकिन है जो कोयला आपूर्ति करती है और उसकी कंपनी ने बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और बंगाल की 19 फर्मों को 73 करोड़ का कोयला सप्लाइ किया. चूंकि सभी कंपनियां दूसरे राज्यों की थीं इसलिए जीएसटी विभाग कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर सका.
फेक बिलिंग या बिल ट्रेडिंग का एक बड़ा गिरोह जीएसटी के स्पॉट वेरिफिकेशन या भौतिक सत्यापन के दौरान गुजरात में फरवरी 2023 में पकड़ा गया. भावनगर फेक बिलिंग केस नाम से चर्चित इस मामले में 4,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का घोटाला किया गया. इसमें अनपढ़ गरीबों को सरकारी योजनाओं का लाभ देने का झांसा देकर आधार केंद्र तक आधार अपडेट कराने के लिए लाया गया. यहां धोखेबाजों ने 1,500 आधार कार्डों में उनका फोन नंबर बदल दिया.
इसके बाद उस आधार नंबर पर पैन कार्ड बनवाया और जीएसटी रजिस्ट्रेशन कराकर इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ लिया. इसमें एक और तरीका अपनाया गया: इंटरनेट पर 'फेसबुक मार्केटप्लेस’ नाम के बिजनेस पेज पर बोगस लोन सर्विस कंपनियों की प्रोफाइल बनाई गई. फिर कर्ज देने के नाम पर लोगों के पैन कार्ड इकट्ठे किए और इनसे 2,700 जीएसटी रजिस्ट्रेशन देशभर में किए गए. इस केस में पूरे गुजरात से 40 लोग गिरफ्तार किए गए.
अगर हर रजिस्ट्रेशन का स्पॉट वेरिफिकेशन हुआ होता तो शायद दूसरों के दस्तावेजों पर जालसाजी से फर्में न बनी होतीं. अब जीएसटी रजिस्ट्रेशन के लिए स्पॉट वेरिफिकेशन अनिवार्य कर दिया गया है. नाम न छापने की शर्त पर एक अफसर कहते हैं, ''ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की पॉलिसी काफी हद तक सख्त कार्रवाई में आड़े आती है. जीएसटी रजिस्ट्रेशन बिना जांच के मुफ्त में मिल रहा है. हजारों करोड़ रुपए लोगों ने दबा लिए हैं.
जब पते पर पहुंचिए तो वहां कोई मिलता ही नहीं.’’ उनका कहना है कि रजिस्ट्रेशन से पहले केवाइसी पूरा होना चाहिए पर ऐसा नहीं हो रहा. सरकार को बैंक अकाउंट, पैन और आधार को फोन नंबर से जोड़कर जीएसटी रजिस्ट्रेशन के वक्त फोन नंबर से उसका मिलान करना चाहिए. भारतीय राजस्व सेवा (आइआरएस) के अफसरों ने सरकार को इस बात से अवगत कराया है कि पैन को ओटीपी से जोड़ा जाना चाहिए.
जहां तक मोबाइल नंबर को आधार से लिंक करने की बात है तो सुप्रीम कोर्ट का फैसला इसमें आड़े आता है. 2018 में शीर्ष अदालत ने कहा था कि कल्याणकारी योजनाओं के अलावा किसी और सुविधा में आधार से मोबाइल नहीं जोड़ा जा सकता. अब बचा पैन कार्ड, तो उसके लिए कोई ओटीपी वेरिफिकेशन जीएसटी रजिस्ट्रेशन के प्रावधान में ही नहीं है. दरअसल, आयकर विभाग केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के तहत है और जीएसटी केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआइसी) के अधीन. धोखेबाज इनमें तालमेल न होने का फायदा उठा रहे हैं.
इसके अलावा भारत में लोगों के निजी डेटा की सुरक्षा से जुड़े कानून का न होना भी बड़ी समस्या है. जब सब कुछ डिजिटल है तो इस डेटा की सुरक्षा होनी चाहिए. अगर लाखों पैन कार्ड का डेटा बाजार में बिक रहा है तो इस पर कार्रवाई उसी तरह होनी चाहिए जैसे ड्रग्स बेचने पर होती है. अब यूरोप में जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन यानी जीडीपीआर 2018 आ चुका है. इसके तहत यूरोपियन यूनियन में कोई भी कंपनी लोगों के निजी डेटा का इस्तेमाल नहीं कर सकती.
इसके उल्लंघन पर इतने भारी जुर्माने का प्रावधान है कि कंपनी की बैलेंस शीट हिल जाए. भारत में 2018 में पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल का मसौदा तैयार हुआ. इसे 2019 में लोकसभा में रखा भी गया लेकिन वापस ले लिया गया. अब डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (डीपीडीपी) बिल 2022 को संसद के मानसून सत्र में लाया जा रहा है. ऐसे में जब डेटा हर तीन साल में दोगुना हो जाता है, भारत डेटा संरक्षण कानून बनाने में काफी पीछे है.
इन स्कैम की पड़ताल से एक बात सामने आई कि आम आदमी का आधार और पैन कार्ड खास तौर पर खतरे में है. लोगों को नहीं पता होगा कि उनके पैन कार्ड पर कब फर्जी जीएसटी रजिस्ट्रेशन हो गया. इसका एकमात्र तरीका यही है कि आप ऑनलाइन (देखें: बचाइए अपना आधार और पैन) इसे खुद जांचें. लेकिन 61 करोड़ पैन कार्ड धारकों के लिए बार-बार चेक करना मुमकिन नहीं. आम आदमी के लिए तो यह और भी मुश्किल काम है.
नोएडा में गिरोह के भंडाफोड़ पर मुंबई के जीएसटी विशेषज्ञ वकील अभिषेक रस्तोगी कहते हैं, ''निश्चित रूप से जीएसटी रजिस्ट्रेशन की प्रणाली में कमियां हैं. नोएडा में पकड़ा गया मामला आम आदमी के लिए गंभीर चिंता पैदा करने वाला है. रजिस्ट्रेशन में और सख्ती होनी चाहिए. इसे बायोमीट्रिक और लाइव फोटो आधारित किया जाना चाहिए. सरकार को बिना भौतिक सत्यापन के कोई भी रजिस्ट्रेशन नहीं जारी करना चाहिए.’’
गुजरात का मामला सामने आने के बाद जीएसटी विभाग ने कर चोरों के खिलाफ मई के दूसरे पखवाड़े से देशव्यापी अभियान छेड़ा हुआ है. इसके लिए पांच सूचियां निकाली गई हैं जिनमें 60,000 फर्जी रजिस्ट्रेशन पाए गए हैं. इस अभियान के दौरान स्पॉट वेरिफिकेशन हो रहा है. दिल्ली समेत बड़े शहरों के बड़े बाजारों में जीएसटी अफसरों का आना-जाना बढ़ गया है. मुहिम का असर दिखने लगा और शुरुआती कुछ दिनों में ही 30,000 करोड़ रु. की कर चोरी पकड़ी गई जिसे 4,000 से ज्यादा फर्जी कंपनियों के जरिए अंजाम दिया गया. पीएम किसान, ग्रामीण रोजगार योजना आदि का डेटा चुराकर भी फर्जी रजिस्ट्रेशन कराए गए.
अफसर मानते हैं कि हाइ वैल्यू वाले सामान के कारोबार में सबसे ज्यादा जीएसटी और आयकर की चोरी होती है. लोग फर्जी बिलों से बड़ा टर्नओवर दिखाकर बैंक से लोन ले लेते हैं और भाग जाते हैं. मेटल, स्क्रैप, एफएमसीजी, कपड़ा, टेलरिंग में ज्यादा चोरी होती है. टैक्स चोरी की रकम वापस आने की उम्मीद बहुत कम होती है. फर्जी आइटीसी का खेल टेक्सटाइल्स, तंबाकू, ऑटो पार्ट्स समेत ऐसे कारोबारों के नाम पर ज्यादा होता है जिनमें कच्चा माल ज्यादा जीएसटी वाला और तैयार माल कम जीएसटी वाला होता है. वैसे अफसरों की मानें तो हर सेक्टर में फर्जी आइटीसी का खेल चल रहा है.
वैसे जीएसटी चोरी करने के और भी तरीके चलन में हैं, जिनके बारे में विभाग के अधिकारियों को अच्छी तरह पता है. मसलन ई-वे बिल. जीएसटी प्रावधानों के पालन और कर चोरी रोकने को 50,000 रुपए से ज्यादा का सामान एक शहर से दूसरे शहर भेजने के लिए ई-वे बिल बनाया जाता है. लेकिन धड़ल्ले से ई-वे बिल की अवहेलना हो रही है. जीएसटी प्रवर्तन विभाग के सूत्र बताते हैं कि बाजार में नंबर दो का काम करने वाले ट्रांसपोर्टरों को कारोबारी ठेका दे देते हैं. मसलन यही कि उन्हें रोज 5 लाख का माल बनारस में चाहिए. ट्रांसपोर्टर इसके लिए अपने पैंतरों का इस्तेमाल करता है. वह ई-वे बिल लेकर चलेगा, अगर चेकिंग नहीं हुई तो बिल फाड़कर फेंक देगा. चेक हो गया तो 50,000 से नीचे के बिल दिखाकर रिकॉर्ड में दर्ज कर लेगा.
जीएसटी वेरिफिकेशन के अभियान में एक पक्ष व्यापारियों का भी है. फेडरेशन ऑफ सदर बाजार ट्रेडर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट राकेश यादव कहते हैं, ''चोर को पकड़ने के लिए पुलिस को घोषणा करने की जरूरत नहीं है. टैक्सेशन में भी चोरों को पकड़ना सरकार का काम है. जो लोग फेक बिल दे रहे हैं, उन सबको अंदर करना ही चाहिए. अभी दुकानों में अफसर आकर पूछ रहे हैं कि दुकान में जीएसटी नंबर कहां लिखा है.
यहां खरीदार आ रहे हैं और बिल कटवाना नहीं चाहते. जो इंस्पेक्टर राज खत्म हो गया था, अब वह फिर शुरू हो गया है. सेल परचेज का बिल यहां कोई दुकान में नहीं रखता क्योंकि छोटी दुकानें हैं. अफसरों को चोरों को पकड़ना चाहिए न कि व्यापारियों को परेशान करना चाहिए. सरकार को चाहिए कि गैर पंजीकृत कारोबारियों को जीएसटी के दायरे में लाए.’’
अभी दो तिहाई से ज्यादा कारोबारी जीएसटी के दायरे से बाहर हैं. इनके जीएसटी अनुपालन का जिम्मा भी रजिस्टर्ड कारोबारियों पर है. यादव मांग करते हैं कि चार्टर्ड एकाउंटेट की भी जांच होनी चाहिए. कई सीए मिलीभगत से व्यापारियों पर छापा पड़वाते हैं. पश्चिमी यूपी के टैक्सेशन से जुड़े एक वकील कहते हैं कि कंसल्टेंसी फर्में दरअसल टैक्स चोरी कराने में सबसे ज्यादा व्यापारियों की मदद करती हैं.
नेहरू प्लेस मार्केट से दिल्ली का करीब एक चौथाई जीएसटी जाता है. नेहरू प्लेस मार्केट एसोसिएशन के महेंद्र अग्रवाल कहते हैं, ''जीएसटी में चोरी ज्यादा हो रही है. हालांकि सरकार को राजस्व भी मिल रहा है. जांच के लिए केंद्र के अफसर भी आ रहे हैं और राज्य के भी. पर दिक्कत की बात यह है कि वे शाम पांच बजे के बाद आते हैं.’’ अग्रवाल कहते हैं, जीएसटी आने के बाद भी इंस्पेक्टर राज खत्म नहीं हुआ है. जाहिर है, जीएसटी में फर्जीवाड़ा हो रहा है. कारोबारी इल्जाम लगाते हैं कि मार्केट की लोकेशन के हिसाब से जीएसटी रजिस्ट्रेशन का पैसा लगता है.
सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय इससे सहमति जताते हुए कहते हैं, ''जीएसटी में पेपरवर्क आधा हो गया है लेकिन भ्रष्टाचार पर कोई फर्क नहीं पड़ा. इसे लागू करने वाला सिस्टम पुराना है, स्टाफ वही, इंस्पेक्टर वही, उनका रवैया वही. सिर्फ डिपार्टमेंट का नाम बदला है. इंस्पेक्टर राज जस का तस है. काले धन को सफेद करने का धंधा चल ही रहा है.’’ अर्थशास्त्री प्रो. अरुण कुमार इसे सबकी मिलीभगत से चलने वाला समानांतर सिस्टम बताते हैं.
वे कहते हैं, ''इससे व्यापारी-अधिकारी और नेता सब फायदा उठा रहे हैं. जीएसटी जटिल प्रणाली है, इसके पेन पॉइंट (दुखती रगें) ही अपराध और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं. समानांतर व्यवस्था तब तक चलती रहेगी जब तक कराधान को एकदम सरल नहीं कर दिया जाता.’’ फर्जी जीएसटी रजिस्ट्रेशन, फर्जी इनवाइसिंग के मसले पर सरकार का पक्ष जानने के लिए इंडिया टुडे ने राजस्व सचिव संजय मल्होत्रा और सीबीआइसी (सेंट्रल बोर्ड ऑफ इनडायरेक्ट टैक्सेज ऐंड कस्टम्स) के चेयरमैन विवेक जौहरी से संपर्क किया पर उन्होंने जवाब न दिया.
वैसे, मल्होत्रा ने 11 जुलाई को जीएसटी काउंसिल की बैठक के बाद वित्त मंत्री के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि बोगस फर्मों पर बैठक में तो नहीं लेकिन 10 जुलाई को अफसरों के साथ जरूर चर्चा हुई. जांच में अभी तक करीब 17,000 फर्में बोगस पाई गईं जिनके खिलाफ कार्रवाई की जा रही है.
उसी प्रेस कॉन्फ्रेंस ने जौहरी का कहना था कि बोगस बिलिंग रोकने के लिए रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया को सख्त किया जाएगा. आवेदन के लिए बैंक खाते का ब्योरा अनिवार्य किया जा रहा है. ब्योरा न देने पर रजिस्ट्रेशन रद्द हो जाएगा. फिजिकल वेरिफिकेशन के दौरान आवेदक की मौजूदगी जरूरी नहीं होगी. फर्जीवाड़ा रोकने के मसले पर जौहरी ने बताया कि बायोमैट्रिक ऑथेंटिकेशन का पायलट प्रोजेक्ट चल रहा है और इसे भी जल्द ही लागू कर दिया जाएगा.
उधर जीएसटी काउंसिल की 11 जुलाई को हुई 50वीं बैठक में फैसला हुआ कि ज्यादा जोखिम वाले कारोबारों में फर्म का भौतिक सत्यापन भी होगा. जीएसटी काउंसिल की तरफ से अब तक जीएसटी में कर चोरों पर कार्रवाई के लिए 869 नोटिफिकेशन, 174 सर्कुलर और 19 ऑर्डर जारी हो चुके हैं. अफसर बताते हैं कि बिल्कुल फ्रॉड कारोबारी को छोड़ दिया जाए तो रिकवरी हो जाती है. जीएसटी लागू होने के बाद से फरवरी 2023 तक कुल कर चोरी का एक तिहाई वापस भी ले लिया गया है.
अधिकारी बताते हैं कि बाजार में कई तरह के चोर बैठे हैं. कई दुकानदार आपको बिल देने के नाम पर टैक्स के कुछ ज्यादा पैसे मांगते हैं लेकिन वे बिल न दें तब भी आपसे जीएसटी के पैसे ले चुके होते हैं. कुछ व्यापारी खर्चे मैनेज करने के लिए बिल परचेजिंग करते हैं या नेट प्रॉफिट ज्यादा है तो टैक्स लाइबिलिटी सेटल करने के लिए बिल खरीद लेते हैं. जैसे एक करोड़ पर 25 लाख के फर्जी बिल खरीदे. इनकम टैक्स बचा और जीएसटी भी नहीं दिया. मार्केट में कुछ लोग डमी कंपनियां खोलकर बैठे हैं, ये व्यापारी को भी चूना लगाते हैं और सरकार को भी, और कुछ दिनों में गायब हो जाते हैं. इन्हें पकड़ना और केस चलाना बहुत टेढ़ा काम है.
पिछले दिनों हरियाणा के फतेहाबाद की एक अदालत ने 2019 के मामले में फर्जी कंपनी खोलकर 89 फर्जी इनवाइस से 21 करोड़ के बिल बनाने के जुर्म में तीन लोगों को सात साल की सजा सुनाई. लेकिन ऐसे फैसले बहुत कम आ पाते हैं. जीएसटी में मुकदमों की सफलता दर महज 10 प्रतिशत है. इसकी वजह आरोपियों का सुस्त न्यायिक प्रक्रिया का लाभ उठाना है. रजिस्ट्रेशन में सख्ती के प्रावधान कितने कारगर होंगे, यह उनके ठीक से लागू होने के बाद ही पता चलेगा.
—साथ में आनंद चौधरी और पुष्यमित्र