इक्कीस अप्रैल को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मद्रास में बीटेक केमिकल इंजीनियरिंग के द्वितीय वर्ष के छात्र केदार सुरेश चौगुले को उनके छात्रावास के कमरे में फंदे पर लटका पाया गया. विडंबना यह है कि ठीक तीन दिन पहले ही केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थानों को निर्देश दिया था कि वे मानसिक स्वास्थ्य के लिहाज से छात्रों को मजबूत करने के लिए सहायता मुहैया कराएं. प्रधान दरअसल भुवनेश्वर में आइआइटी संस्थानों की सर्वोच्च निर्णायक संस्था आइआइटी परिषद की 55वीं बैठक में बोल रहे थे. 2023 के पहले चार महीनों में ही आइआइटी परिसर में आत्महत्या करने वाले चौगुले छठे छात्र थे. इसी अवधि में मद्रास परिसर में तीन अन्य छात्रों ने अपनी जान ले ली थी और आइआइटी बॉम्बे तथा आइआइटी गुवाहाटी के दो छात्रों ने आत्महत्या कर ली थी.
केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री सुभाष सरकार ने 27 मार्च को संसद में कहा, ''अकादमिक तनाव, पारिवारिक और व्यक्तिगत कारणों के साथ मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे खुदकुशी की कुछ प्रमुख वजहें हैं.'' उनका बयान इस कड़वी सचाई के साथ आया कि 2018 से देश भर के विभिन्न आइआइटी परिसरों में
33 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं. अप्रैल में दो और घटनाएं हुईं और इस तरह यह संख्या 35 हो गई. यानी 20 दिसंबर 2021 को संसद में बताए गए 2014 से 2021 के आठ वर्षों में 23 आइआइटी परिसरों में 34 छात्रों की खुदकुशी से एक ज्यादा. इसमें खुदकुशी की नाकाम कोशिशों की संख्या शामिल नहीं है. 13 फरवरी को आइआइटी मद्रास में बीटेक के पहले वर्ष के एक छात्र ने खुदकुशी की नाकाम कोशिश की, उसी दिन इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में दूसरे वर्ष के एमएस रिसर्च स्कॉलर स्टीफन सनी ने हॉस्टल के कमरे में अपना जीवन खत्म कर लिया.
ऐसे में आश्चर्य नहीं कि आइआइटी काउंसिल की बैठक के दौरान छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर सबसे ज्यादा फोकस था. प्रधान ने शिकायत निवारण की एक मजबूत प्रणाली बनाने, मनोवैज्ञानिक परामर्श सेवाएं बढ़ाने और छात्रों पर दबाव घटाने की बात कही. उन्होंने नाकामी और दूसरे छात्रों की ओर से अलग-थलग किए जाने के डर को कम करने के प्रयासों पर भी जोर दिया. प्रधान का कहना था कि आइआइटी का किसी भी प्रकार के भेदभाव के प्रति जीरो टॉलरेंस का रुख होना चाहिए. जातिगत भेदभाव प्रमुख इंजीनियरिंग संस्थानों के खास माहौल में ऐसी कड़वी सचाई है, जिसे स्वीकार नहीं किया जाता. इसका बदनुमा चेहरा एक बार फिर आइआइटी बॉम्बे के छात्र अरमान खत्री की हालिया गिरफ्तारी के बाद उजागर हुआ. खत्री पर दलित समुदाय के अपने सहपाठी दर्शन सोलंकी को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप है. दरअसल, 2014 से 2021 के बीच खुदकुशी करने वाले 34 छात्रों में 18 दलित और ओबीसी वर्ग के थे. 2021 में, शिक्षा मंत्रालय ने राज्यसभा को बताया कि शीर्ष सात आइआइटी में स्नातक की पढ़ाई बीच में छोड़ देने वाले छात्रों में से 63 फीसद पिछड़े समुदायों से थे.
आखिर क्यों बढ़ रही है यह प्रवृत्ति?
पढ़ाई में उम्दा परफॉर्मेंस को लेकर समाज की ऊंची उम्मीदें, साथियों का दबाव, मुश्किल शेड्यूल के साथ तालमेल बिठाने में नाकामी, भाषा की अड़चन, कक्षाओं का बढ़ता आकार, जातिगत भेदभाव, फैकल्टी के साथ कोई कनेक्ट न होना और कैंपस में काउंसलरों की अपर्याप्त संख्या, ये वे तमाम कारक हैं जो छात्रों में आत्महत्या की प्रवृत्ति को बढ़ावा देते हैं. कठोर और बहुत दबाव वाला माहौल या तो छात्रों को अत्यधिक प्रतिस्पर्धी बना देता है या फिर उन्हें अवसाद में धकेलना शुरू कर देता है. मजबूत सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि वाले छात्रों के लिए ऐसा माहौल अपेक्षाकृत आसान होता है, जबकि दूसरे छात्र कमजोर पड़ जाते हैं. आइआइटी के एक प्रोफेसर कहते हैं, ''इन दिनों आइआइटी में दाखिल होने वाले ज्यादातर छात्र कोचिंग सेंटरों के माध्यम से आते हैं, जहां उन्हें रोबोट की तरह समस्याओं को हल करना सिखाया जाता है. किशोरावस्था के शुरुआती वर्षों में न तो उन्हें समाज के भीतर चुनौतियों का सामना करने का अवसर मिलता है और न ही वे किसी के साथ किसी प्रकार का कोई रिश्ता बनाते हैं, यहां तक कि अपने परिवार के निकटतम सदस्यों के साथ भी नहीं. लब्बोलुबाब यह कि उनके पास भावनात्मक मदद की कोई व्यवस्था ही नहीं होती. तनाव की स्थिति में उन्हें संभालने वाला कोई नहीं होता.''
आइआइटी में प्रवेश पाने वाले लगभग सभी छात्र अपने स्कूलों या आसपड़ोस में टॉपर होते हैं. आइआइटी में अचानक वे खुद को टॉपरों की भीड़ में पाते हैं, जहां वे कई टॉपर्स में से एक होते हैं और जरूरी नहीं सबसे ऊपरी पांत में हों.
आइआइटी में छात्र देश के विभिन्न हिस्सों से आते हैं, और उनकी भाषा, जीवनशैली, आर्थिक स्थिति और शिक्षा का स्तर एक दूसरे से भिन्न होता है. मुंबई के मनोचिकित्सक हरीश शेट्टी कहते हैं, ''ज्यादातर छात्र अपनी परेशानियां लेकर आते हैं, जो पारिवारिक तनाव, वित्तीय देनदारियों से लेकर रिश्तों से जुड़े मुद्दे तक हो सकते हैं. वे इसे किसी से साझा नहीं करते क्योंकि आइआइटी का माहौल इसके अनुकूल नहीं होता.'' कई तो स्थानीय भाषा के स्कूलों से आते हैं और भाषा की परेशानी में उलझ जाते हैं क्योंकि शिक्षा का माध्यम अमूमन अंग्रेजी ही है. खराब ग्रेड और बैकलॉग का बोझ बढ़ने लगता है और उनमें डर घर करने लगता है कि वे तमाम लोगों की आशाओं पर खरे नहीं उतर पाएंगे. आइआइटी गुवाहाटी में बीटेक द्वितीय वर्ष की छात्रा परिधि बरुआ कहती हैं, ''यहां हम लगातार प्रतिस्पर्धा के बीच फंसे रहते हैं. हमेशा बढ़िया परफॉर्मेंस तो संभव नहीं है ना.'' इससे हीन भावना घर करने लगती है और दुखद यह कि ज्यादातर वक्त उसका एहसास ही नहीं होता.
अब आइआइटी मद्रास के बीटेक तृतीय वर्ष के छात्र वैपु पुष्पक श्रीसाई के मामले को ही लें, जिसने 14 मार्च को आत्महत्या कर ली. उसका सेमेस्टरों में बैकलॉग बढ़ने लगा तो अपने दोस्तों के साथ मेलजोल बंद कर दिया. उसके दोस्तों का दावा है कि आंध्र प्रदेश के कडप्पा के मूल निवासी श्रीसाई को संस्थान की तरफ से कोई मदद नहीं मिली. हालांकि आइआइटी दिल्ली में बीटेक तृतीय वर्ष के छात्र हरि प्रसाद केलिए सांस्थानिक मदद और इलाज भी नाकाफी साबित हुआ, जिसने जून, 2021 में अपने छात्रावास के कमरे में जान ले ली. वह दूसरे वर्ष तक अच्छा प्रदर्शन कर रहा था, लेकिन उसके बाद पिछड़ने लगा और डिप्रेशन का शिकार हो गया. उसका इलाज चल रहा था. उसके दोस्त एक बयान में छात्रों की आत्महत्या के लिए भाषा संबंधी अड़चन और सांस्कृतिक अलगाव को जिम्मेदार ठहराते हैं. श्रीसाई का एक दोस्त बताता है, ''उसकी हाजिरी जीरो थी. वह लगभग सभी विषयों में फेल हो रहा था. उसमें घातक कदम उठाने के सभी लक्षण दिख रहे थे. मगर किसी ने गौर नहीं किया. आइआइटी की मशीनी दुनिया ऐसी ही है.''
कैंपस प्लेसमेंट वह दूसरा दौर होता है, जब मैक्किंसे और एक्सेंचर्स में जगह न पाने वाले छात्रों का मनोबल टूट जाता है. बरुआ कहती हैं, ''प्लेसमेंट और इंटर्नशिप के सत्र सबसे ज्यादा फर्क पैदा करते हैं. अच्छा प्लेसमेंट न पाने वाले अलग-थलग हो जाते हैं.''
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, 2021 में छात्रों की आत्महत्याओं में 4.5 फीसद की वृद्धि देखी गई. विशेषज्ञ इसके लिए कोविड महामारी और उससे जुड़ी चिंताओं को जिम्मेदार मानते हैं. महामारी के दौरान कॉलेज में दाखिला लेने वाले ढेरों छात्रों ने पहले दो वर्षों तक ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लिया और तीसरे वर्ष में ही कैंपस में पहुंचे. अचानक उन्हें उच्च शैक्षणिक दबाव और एक नए माहौल में तालमेल बैठाने की जरूरत पड़ी और यह कई छात्रों के लिए बर्दाश्त के बाहर हो गया.
ऐसा ही एक छात्र फैजान अहमद था. असम के तिनसुकिया का यह छात्र आइआइटी खड़गपुर के कैंपस में बीटेक तृतीय वर्ष में पहुंचा था. 14 अक्तूबर, 2022 को छात्रावास के कमरे में उसकी सड़ी हुई लाश पाई गई थी. आइआइटी खड़गपुर प्रबंधन ने इसे खुदकुशी का मामला बताया था, लेकिन परिवार का दावा था कि साथ पढ़ने वाले छात्रों ने उसकी हत्या की है क्योंकि उसने रैगिंग के बारे में अधिकारियों से शिकायत की थी. बाद में पुलिस ने जांच के बाद चार छात्रों को गिरफ्तार किया. कलकत्ता हाइकोर्ट ने आइआइटी खड़गपुर के अधिकारियों पर अहमद की हत्या पर 'पर्दा डालने की कोशिश' का आरोप लगाया.
जातिगत भेदभाव
जातिगत भेदभाव के मामले को कुछ ही लोग स्वीकार करते हैं, लेकिन पिछड़े समुदायों के कई छात्र लगातार इसे झेलने की बात कहते हैं. कई ऊंची जाति के छात्र अनुसूचित जाति/जनजाति की पृष्ठभूमि के अपने सहपाठियों को इसलिए अयोग्य मानते हैं क्योंकि उन्हें साझा प्रवेश परीक्षा (जेईई) में अपेक्षाकृत कम अंक प्राप्त करने के बाद भी दाखिला मिल जाता है. हालांकि यह रवैया हमेशा खुलकर जाहिर नहीं किया जाता लेकिन अक्सर आरक्षित श्रेणियों के छात्र इसे कमोबेश महसूस करते हैं. आइआइटी दिल्ली में स्टुडेंट्स अफेयर्स डीन, प्रोफेसर आदित्य मित्तल कहते हैं, ''अगर कोई शिकायत मिलती है कि आरक्षित वर्ग के छात्रों को ज्यादा परेशानी हो रही है, तो हम इसे नजरअंदाज नहीं कर सकते. हमें जमीनी हकीकत पता करनी चाहिए और उन्हें सुधारने के लिए कदम उठाने चाहिए.''
यह खासकर ऊंची जाति के छात्रों और यहां तक कि कुछ शिक्षकों के भी रुढ़ियों में फंसे रहने के कारण होता है. शिक्षाविद् कुर्माना सिम्हा चलम ने 2007 में छपी पुस्तक चैलेंजेस ऑफ हायर एजुकेशन में लिखा था, ऊंची जाति के कुछ प्रोफेसरों का मानना है कि दलित छात्र ''शिक्षा के काबिल'' नहीं है. अप्रैल 2021 में कोविड लॉकडाउन के दौरान चल रही ऑनलाइन कक्षाओं में एससी/एसटी छात्रों के बारे में जातिवादी टिप्पणी करते हुए आइआइटी खड़गपुर में अंग्रेजी की एसोसिएट प्रोफेसर सीमा सिंह के कई वीडियो वायरल हुए थे.
ऐसी घटनाएं आरक्षित वर्ग के छात्रों में हीन भावना भर सकती हैं और कम अंकों के साथ आइआइटी में प्रवेश पाने के लिए अपराध-बोध भी पैदा हो सकता है. 2013 में किंग्स कॉलेज, लंदन में फेस ऑफ डिस्क्रिमिनेशन इन हायर एजुकेशन इन इंडिया: कोटा पॉलिसी, सोशल जस्टिस ऐंड द दलित्स शीर्षक अध्ययन इस नतीजे पर पहुंचा कि जातिवादी टिप्पणियां दलित छात्रों में यह एहसास भर सकती हैं कि वे ऊंची शिक्षा के संस्थानों में दाखिले के काबिल नहीं हैं. 2014 में खुदकुशी करने वाले आइआइटी बॉम्बे के छात्र अनिकेत अंभोर के माता-पिता याद करते हैं कि उनका बेटा जेईई फिर से देना चाहता था क्योंकि सामान्य मेरिट से दाखिला न लेने के कारण उसे बेइज्जत किया जाता था और वह सामान्य श्रेणी में दाखिला लेना चाहता था.
आइआइटी की फैकल्टी और मैनेजमेंट के लोग शायद किसी तरह का भेदभाव जाहिर नहीं करते. पर सच यह है कि परिसर में पिछड़े समुदायों के छात्र बीच की खाई पाटने के लिए बहुत कम समय और मदद पाते हैं. उन्हें अपनी कथित कमतर शैक्षणिक पृष्ठभूमि का गहरा एहसास होता है. लिहाजा, उनमें एक तरह की घबराहट बनी रहती है. आइआइटी में दाखिले के पहले महीने से ही परीक्षाएं शुरू हो जाती हैं और हाशिए के समुदायों से आने वाले कई छात्रों को कम अंक मिलते हैं क्योंकि उन्हें तैयारी के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलता.
अनिकेत की मृत्यु के बाद आइआइटी बॉम्बे ने छात्रों के सकल प्रदर्शन सूचकांक (सीपीआइ) के आधार पर एक विश्लेषण किया था, जिसमें उनके शैक्षणिक प्राप्तांकों को मापा गया. आंकड़ों से पता चलता है कि 5 से कम सीपीआइ वाले 70 प्रतिशत छात्र एससी/एसटी पृष्ठभूमि से थे. सामान्य और ओबीसी श्रेणी के ज्यादातर छात्रों के लिए सीपीआइ 6 और 9 के बीच था. इस तरह के खराब प्रदर्शन से कई प्रकार की असमानताएं पैदा होती हैं. मसलन, आइआइटी दिल्ली में चुनाव में खड़े होने के लिए छात्र के पास पाठ्येतर गतिविधियों में हिस्सेदारी के साथ अच्छे ग्रेड होने चाहिए. संस्थान के एक प्रोफेसर कहते हैं, ''कम सीपीआइ वाले दलित छात्र चुनाव लड़ने के लोकतांत्रिक अधिकार का इस्तेमाल शायद ही कर पाते हैं.''
तो फिर आइआइटी के लोग कर क्या रहे हैं
संसद में शिक्षा मंत्री राज्य सरकार ने बताया कि छात्रों का तनाव कम करने के लिए अब सभी आइआइटी पाठ्यक्रम क्षेत्रीय भाषाओं में शुरू किए गए हैं. इस पहल के तहत अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद ने क्षेत्रीय भाषाओं में 12 विभिन्न तकनीकी कोर्स का पूरा सिलेबस जारी किया है.
सरकार कहते हैं कि संस्थान खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों सहित पाठ्येतर गतिविधियों पर भी ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, और छात्रों को पढ़ाई में मदद और उनकी तरक्की की निगरानी करने के लिए प्रति 10 छात्रों पर एक संकाय सलाहकार नियुक्त किए जा रहे हैं. छात्रों, वार्डन और केयरटेकर को जागरूक बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं, ताकि वे छात्रों में डिप्रेशन के लक्षणों को भांपकर अधिकारियों को सूचित करें ताकि समय पर इलाज मुहैया कराया जा सके. वे केंद्र सरकार की एक पहल मनोदर्पण की ओर भी इशारा करते हैं जिसमें कोविड-19 के प्रकोप के दौरान और उसके बाद भी छात्रों, शिक्षकों और परिवारों को मानसिक और भावनात्मक कल्याण के लिए आवश्यक मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करने के लिए विभिन्न गतिविधियों की एक विस्तृत शृंखला शामिल है.
आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं से परेशान, कई आइआइटी खराब ग्रेड और कुछ पेपर में फेल हो रहे छात्रों के लिए परामर्श और सलाह देने, पाठ्यक्रम के भार को कम करने और परिसरों के भीतर सकारात्मक माहौल बनाने जैसे निवारक उपाय कर रहे हैं. आइआइटी बॉम्बे के निदेशक सुभाशीष चौधरी ने घोषणा की है कि संस्थान अपने स्नातक पाठ्यक्रम में बदलाव की दिशा में काम कर रहा है, ताकि उसे ज्यादा मौजूं और छात्रों के लिए दिलचस्प बनाया जाए, जिससे तनाव कुछ कम किया जा सके. आइआइटी दिल्ली ने छात्रों को पढ़ाई के दबाव से प्रभावी ढंग से निबटने में मदद करने के लिए अपने पाठ्यक्रम में भी बदलाव किया है.
अब सभी आइआइटी में वेलनेस सेंटर हैं और कुछ इनोवेटिव कदम उठाए जा रहे हैं. मित्तल का कहना है कि लक्षणों का जल्द पता लगाना निर्णायक पहलू है. वे कहते हैं, ''आइआइटी दिल्ली में हमारे पास छात्र और संकाय के लिए एक विशेष परामर्श कार्यक्रम है. छह सीनियर छात्र 10-20 जूनियर का ध्यान रखते हैं. सीनियर उन जूनियर की पहचान करते हैं जो परेशान हैं या समस्याओं से घिरे हैं. वे उन्हें किसी संकाय सदस्य के पास ले जाते हैं, जो उन्हें शिक्षा की चुनौतीपूर्ण प्रणालियों के साथ तालमेल बनाने के तरीके सीखने में मदद करते हैं.'' छात्रावासों में छात्र नियमित रूप से संकाय सदस्यों के लिए रात्रिभोज आयोजित करते हैं जिसमें छात्र और संकाय सदस्य दोनों पढ़ाई-लिखाई से इतर दूसरे विषयों पर भी खुलकर बातचीत करते हैं.
आइआइटी गुवाहाटी में छात्र मामलों की एसोसिएट डीन प्रोफेसर बिथैया ग्रेस जगन्नाथन कहती हैं कि परामर्श केंद्रों में मौजूद काउंसलरों का विस्तार किया गया है और पहले वर्ष के छात्रों के लिए उनसे संपर्क अनिवार्य कर दिया गया है, ताकि उनका साबका परामर्श केंद्र और काउंसलिंग सेवाओं से हो सके. काउंसलर मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए संस्थान के भीतर दूसरे क्लबों से जुड़ते हैं. संस्थान और हॉस्टल स्तर के कल्याण कार्यक्रम नियमित तौर पर होते हैं ताकि छात्रों को तनाव पहचानने और उससे उबरने में मदद मिल सके. परामर्श केंद्र हॉस्टल के साथियों और दोस्तों की खुदकुशी की हर घटना के फौरन बाद क्रिटिकल इंसीडेंट स्ट्रेस डीब्रीफिंग कार्यक्रम आयोजित करता है.
हालांकि, छात्रों और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का आरोप है कि ज्यादातर छात्र कल्याण प्रकोष्ठ पूरी तरह चालू नहीं हैं. दूसरों का कहना है कि उनमें पूरी क्षमता तक लोग हों तब भी, छात्रों की बढ़ती तादाद को संभालने के लिए वे नाकाफी ही हैं. वैसे इससे हर कोई सहमत नहीं. आइआइटी मद्रास के एक छात्र के मुताबिक, प्रत्येक 20 छात्रों के लिए एक संकाय सलाहकार नियुक्त किया जाता है. उसका कहना है कि ये सलाहकार अगर छात्रों की ग्रेड, हाजिरी और सामाजिक व्यवहार के प्रति चौकस-चौकन्ना रहें तो छात्रों को बैकलॉग दूर करने और अकादमिक दबाव को कम करने में मदद करके आत्महत्या की घटनाएं रोकी जा सकती हैं.
हर कोई इस बात से तो सहमत है कि आइआइटी के अधिकारियों को अधिक सक्रिय भूमिका निभाने की जरूरत है. मई के पहले हफ्ते में आइआइटी मद्रास ने समग्र वेलनेस सर्वे शुरू किया, जिसमें एक स्वतंत्र एजेंसी के करीब 30 प्रशिक्षित काउसंलरों ने छात्रों से एक-एक कर बातचीत की. 2018 से आइआइटी संस्थानों में खुदकुशी करने वाले 35 छात्रों में 12 आइआइटी मद्रास के ही थे. यह संख्या सभी आइआइटी में सबसे ज्यादा थी. उसके निदेशक वी. कामकोटि कहते हैं, ''आइआइटी मद्रास अपने परिसर में सभी के कल्याण केलिए प्रतिबद्घ है. स्वतंत्र वेलनेस सर्वे उसी दिशा में एक कदम है.'' डॉ. शेट्टी का मानना है कि काफी कुछ करने की गुंजाइश बनी हुई है. ''आइआइटी संस्थान हर साल टेक शो पर करोड़ों रुपए खर्च करते हैं. कुछ रकम कैंपस में लगातार मानसिक स्वास्थ्य कैंपों पर लगानी चाहिए.''
अधिकांश मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का सुझाव है कि नियमित पाठ्यक्रम शुरू करने से पहले आइआइटी में एक लंबा प्रवेश कार्यक्रम होना चाहिए ताकि अलग-अलग पृष्ठभूमि के छात्रों को कैंपस जीवन के साथ तालमेल बनाने के लिए पर्याप्त समय मिल सके. प्रबंधन को उन छात्रों के लिए अतिरिक्त कक्षाओं की व्यवस्था करनी चाहिए, जिनमें वे पढ़ाई में कुछ कमी पाते हों. सेमेस्टर की गति भी धीमी होनी चाहिए. जातिगत टकरावों को रोकने के लिए जात-पांत जैसे मुद्दों पर संवेदनशील बनाने को अनिवार्य कार्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए.
खास पैटर्न नहीं
हालिया आत्महत्याओं ने इस बात पर बहस छेड़ दी है कि आइआइटी अपने छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को कैसे संभाल रहे हैं. कई पर्यवेक्षकों और अंदरूनी लोगों का कहना है कि ऐसा कोई सामान्य सूत्र नहीं है जिसके आधार पर इन आत्महत्याओं में एक खास प्रवृत्ति की पहचान की जा सके. मित्तल कहते हैं, ''ये घटनाएं दुर्भाग्यपूर्ण हैं, और हम छात्रों की इन दर्दनाक मौतों से बहुत अधिक विचलित हैं. हालांकि, इन मौतों में ऐसा कोई खास पैटर्न नहीं दिखता जिससे इनके पीछे की वजह ठीक-ठीक समझी जा सके.'' हालांकि जगन्नाथ एक प्रवृत्ति देख पाती हैं. वे कहती हैं, ''ज्यादातर खुदकुशी लड़के करते हैं. पारिवारिक मामले छात्रों में तनाव बढ़ाने में बड़ा योगदान करते हैं. पढ़ाई का तनाव और मनोचिकित्सकीय लक्षण सब में देखा जा सकता है.''
कई अन्य लोगों का कहना है कि छात्रों की आत्महत्या दुर्भाग्यपूर्ण सचाई है और आइआइटी कोई अपवाद नहीं हैं. आइआइटी खड़गपुर के एक प्रोफेसर कहते हैं, ''कुछ छात्र जीवन की सचाइयों और दबावों का सामना करने में नाकाम रहते हैं और कठोर कदम उठाते हैं. वे किसी भी संस्थान में हो सकते हैं. केवल आइआइटी पर उंगली उठाना उचित नहीं है क्योंकि ये देश के सर्वश्रेष्ठ हैं.'' उनकी बात में दम है. एनसीआरबी की 'भारत में दुर्घटनाओं और आत्महत्या के कारण मौतें' रिपोर्ट के अनुसार, 2017 और 2021 के बीच छात्र आत्महत्याओं में 32 प्रतिशत की वृद्धि हुई. 2021 में आत्महत्या करने वाले 13,000 छात्रों में आइआइटी के सिर्फ सात छात्र थे.
लेकिन यह कोई सांत्वना की बात नहीं हो सकती. ये प्रतिभाशाली युवा ऐसी कई वजहों से जूझ रहे हैं जो उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं. यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम उन्हें ऐसा शैक्षणिक माहौल मुहैया कराएं जिससे वे खिल सकें. जब छात्र हिम्मत हारने लगें और मदद की जरूरत समझ आए, तो उन्हें यह अच्छी तरह पता होना चाहिए कि उन्हें आत्मविश्वास के साथ किस दरवाजे पर दस्तक देनी है.
दर्दनाक संख्या
समूचे देश की आइआइटी में छात्रों की खुदकुशी के मामले लगातार दर्ज हो रहे हैं
आइआइटी मद्रास
21 अप्रैल 2023: केदार सुरेश चौगुले, महाराष्ट्र का रहने वाला केमिकल इंजीनियरिंग का दूसरे वर्ष का छात्र हॉस्टल के अपने कमरे में लटका पाया गया
14 मार्च: वैपू पुष्पक श्रीसाई, आंध्र प्रदेश का इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग के तीसरे वर्ष का छात्र अपने कमरे में मृत पाया गया
13 फरवरी: स्टीफन सनी, महाराष्ट्र का दूसरे वर्ष का रिसर्च स्कॉलर हॉस्टल के कमरे में मृत पाया गया
आइआइटी मुंबई
12 फरवरी 2023: दर्शन सोलंकी, अहमदाबाद का बीटेक (केमिकल) का पहले वर्ष का छात्र हॉस्टल की इमारत की सातवीं मंजिल से गिरकर मर गया. बाद में उसका सहपाठी अरमान खत्री खुदकुशी के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार हुआ
17 जनवरी 2022: दर्शन मालवीय, मध्य प्रदेश के पोस्टग्रेजुएट छात्र ने हॉस्टल की छत से कूदकर जान दे दी
आइआइटी गुवाहाटी
9 फरवरी 2023: ह्रितिक भवानी, नागपुर का बीटेक फइनल वर्ष का छात्र अपने कमरे में रहस्यमय स्थितियों में मृत पाया गया
10 अक्तूबर 2022: गुदला महेश साई राज, आंध्र प्रदेश का बीटेक पांचवें सेमेस्टर का कंप्यूटर साइंस का छात्र हॉस्टल के कमरे में लटका पाया गया
17 सितंबर 2022: सूर्य नारायण प्रेमकिशोर, केरल का रहने वाला बी. डिजा. का छात्र हॉस्टल के कमरे में मरा पाया गया
आइआइटी खड़गपुर
14 अक्तूबर 2022: फैजान अहमद, असम के तिनसुकिया जिले का रहने वाला मेकेनिकल इंजीनियरिंग के तीसरे वर्ष के छात्र का सड़ा-गला शव उसके कमरे में पाया गया. पुलिस ने अब पांच छात्रों और दो कर्मचारियों पर धमकी देने और सबूत मिटाने का आरोप लगाया है
आइआइटी कानपुर
8 सितंबर 2022: प्रशांत सिंह, वाराणसी का रहने वाला मेकेनिकल इंजीनियरिंग का पीएचडी छात्र हॉस्टल के कमरे में लटका पाया गया
आइआइटी हैदराबाद
31 अगस्त 2022: राहुल बिंगुमल्ला, आंध्र प्रदेश के कुरनूल का रहने वाला एमटेक दूसरे वर्ष का छात्र हॉस्टल के कमरे में लटका पाया गया
आइआइटी दिल्ली
13 अप्रैल 2018: गोपाल मालू, केमिस्ट्री एमएससी के पहले वर्ष का छात्र अपने हॉस्टल के कमरे में लटका पाया गया. वह पश्चिम बंगाल के हुगली का रहने वाला था
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने आइआइटी संस्थानों में शिकायत निवारण की मजबूत व्यवस्था और मनोवैज्ञानिक उपाय के तौर पर काउंसलिंग सेवाओं में बढ़ोतरी की जरूरत पर जोर दिया है
''हंसी-खुशी का माहौल सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है. हमारा वेलनेस सर्वे कैंपस में यही करने की दिशा में उठा पहला कदम है''
वी. कामकोटि निदेशक, आइआइटी मद्रास
समूचे देश के आइआइटी संस्थानों में 2018 से खुदकुशी करने वाले कुल 35 छात्रों में से 12 आइआइटी मद्रास के थे, जो सबसे ज्यादा है
''शिक्षकों और छात्रों के बीच भावनात्मक जुड़ाव नहीं है. शिक्षक गुरु के बजाए अब ज्यादा इंस्ट्रक्टर बन गए हैं''
सोहम दास पीएचडी स्कॉलर, आइआइटी दिल्ली
''यहां हर वक्त लगातार प्रतिस्पर्धा चलती रहती है. हर वक्त अच्छा प्रदर्शन करना संभव नहीं है...जो अच्छा प्लेसमेंट नहीं पाते, वे सबसे दूर होते जाते हैं''
परिधि बरुआ बीटेक, द्वितीय वर्ष, आइआइटी गुवाहाटी
''अगर कोई शिकायत आती है कि कोई आरक्षित वर्ग का छात्र ज्यादा परेशान है, तो हम नजरअंदाज नहीं कर सकते. फौरन कदम उठाना चाहिए''
प्रो. आदित्य मित्तल छात्र मामलों के डीन, आइआइटी दिल्ली
4.5 फीसद
बढ़ोतरी छात्र खुदकुशी के मामलों में 2021 में हुई, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो के मुताबिक